Thursday 31 January 2019

भारत भूमि पर गौभक्ति का भाव अन्य देश की महिला द्वारा


ऐसे समय में जब गाय राजनैतिक मुद्दा बन गया है, केंद्र सरकार ने 25 वर्षों से आवारा गायों की देखभाल कर रही एक जर्मन नागरिक को पद्मश्री से सम्मानित करने का फैसला किया है....

 #फ्रेडरिक_एरिना_ब्रूनिंग नाम की महिला 25 साल पहले यूपी के मथुरा घूमने आई थीं, यहां वह आवारा गायों की बदहाली देखकर वह परेशान हो गई थीं...उन्होंने तय किया कि वह आजीवन यहीं रहकर इन जानवरों की देखभाल करेंगी। गणतंत्र दिवस के मौके पर सरकार ने पद्मश्री अवॉर्ड की लिस्ट में उनका नाम भी शामिल किया है...

लोगों की चकाचौंध से दूर एक सुनसान और मलिन इलाके में फ्रेडरिक एरिना ब्रूनिंग 1800 से ज्यादा गायों और बछड़ों को एक गोशाले में पाल रही हैं... वह बताती हैं कि गोशाले के अधिकतर जानवरों को उनके मालिक ने छोड़ने के बाद फिर से अपना लिया था और उन्हें अपने साथ ले गए... ब्रूनिंग को स्थानीय लोग सुदेवी माताजी कहकर बुलाते हैं।

हर महीने आता है 35 लाख रुपये का खर्च
61 वर्ष की ब्रूनिंग सरकार के प्रति अपना आभार व्यक्त करती हैं जिसने उनके काम को पहचाना और सम्मानित करने का फैसला किया... वह उम्मीद करती हैं कि लोग उनसे प्रभावित होंगे और जानवरों के प्रति दयालु बनेंगे
...वह बताती हैं, 'गोशाले में 60 कर्मचारी हैं और उनकी सैलरी के साथ जानवरों के लिए अनाज और दवाइयों में हर महीने 35 लाख रुपये का खर्च आता है... उनकी पैतृक संपत्ति से उन हर महीने 6 से 7 लाख रुपये मिलते हैं...।
भारत भूमि पर गौभक्ति का भाव अन्य देश की महिला द्वारा होना,,गौ की महत्ता को दर्शाती हैं, भारतीय समाज को संदेश देती हैं की गाय को पालिये,उसे बचाइए,उसकी सेवा कीजिये ।।

इस बार पद्म सम्मान भी हुए सम्मानित

#पद्मश्री
इस बार पद्म सम्मान भी हुए सम्मानित

बीड।
महाराष्ट्र के गौ-सेवक शेख शब्बीर मामू उम्र 55 साल।
25 जनवरी की रात जारी पद्म अवार्ड की सूची में इनका नाम रखा गया है।
कारण- पिछले 50 साल से बिना किसी स्वार्थ के गौ सेवा कर रहे हैं।
अपनी 50 एकड़ जमीन पर 175 गाय-बैलके लिए चारा उगाते हैं।
इन्होंने 10 साल की उम्र में अपने पिता का स्लॉटर हाउस बंद कराया और गौ-सेवा में जुट गए। 

इनका पूरा परिवार गौ-सेवा करता है। 
आइए जानते हैं इनसे जुड़ी कुछ बातें.....ये हैं गौ-सेवक शेख शब्बीर मामू, 50 साल से अपनी 50 एकड़ जमीन पर चारा उगाकर पाल रहे 175 गाय-बैल, 10 साल के थे तब पिता से कहा था- बंद कीजिए स्लॉटर हाउस- एक छोटे से कस्बे में रहने वाले शेख शब्बीर मामू पद्मश्री पुरस्कार की सूची में नाम आने के बाद से सेलिब्रिटी बन गए हैं। 
उन्हें गौ-सेवा के लिए पद्मश्री से नवाजा जा रहा है।- शब्बीर को नहीं पता कि उन्हें कौन-सा पुरस्कार दिया जा रहा है।
 कभी उन्होंने इसके बारे में सुना भी नहीं था। वे कहते हैं उन्होंने सिर्फ बिना किसी स्वार्थ के गौ-सेवा की है।-
 वे गौवंश को बचाने का काम पिछले 50 सालों से कर रहे हैं जिसके लिए अपनी 50 एकड़ जमीन पर खेतीबाड़ी नहीं करते, बल्कि चारा उगाते हैं और उसी से गौवंश को पालते हैं।- 
शेख शब्बीर ने बताया कि उनके पिता का कत्लखाना था। 10 साल की उम्र में उन्होंने कई जानवरों उसमें कटते देखा था। इसका उन पर काफी गहरा असर पड़ा। उन्होंने पिता से कत्तलखाना बंद करवाया।
- इसके बाद खुद 10 गायें लेकर आए और उन्हें पालने में लग गए। इसके बाद से शुरू हुआ ये सिलसिला आज भी जारी है। इलाके में लोग उन्हें शेख शब्बीर मामू के नाम से जानते हैं।
- जब किसी गाय को बच्चा होता है तो उसकी देखभाल खुद शब्बीर मामू करते हैं। वे इन गायों का गोबर बेचकर अपना घर चलाते हैं जिसके लिए उन्हें सालाना 60 से 70 हजार रुपए मिल जाते हैं।
- वे बताते हैं कि कभी किसी बैल को बेचने की नौबत आए तो खरीददार से लिखकर लेते हैं कि अगर बैल बीमार पड़ता है या फिर काम करने लायक नहीं रहता तो वह वापस उनके पास लाएंगे। 
उसकी जितनी कीमत होगी, चुका दी जाएगी पर उसे कत्लखाने में ना भेजा जाए।- 175 मवेशी पालना आसान नहीं है। 
पर गौ-सेवा करने वाले शब्बीर मामू का कहना है कि जहां चाह-वहां राह। वे बताते हैं कि कई लोग उनकी मदद करने समय-समय पर आगे आते रहे हैं।
- जब सरकारी अफसरपद्मश्री मिलने की खबर को लेकर उनके पास पहुंचेतब वे अपने तबेले में थे। मोबाइल फोन इस्तेमाल नहीं करते तो उनके आने तक वेट करना पड़ा। 
शब्बीर कहते हैं मैंने कभी किसी अवार्ड के लिए काम नहीं किया।- उनके दो बच्चे और बहुएं हैं। 
वे भी शब्बीर की राह पर ही चल रहे हैं।शब्बीर के बेटे कहते हैं कि हमने पिता से सीखा है कि गौ-सेवा में ही सुकून है। हम पिता का ये काम आगे भी जारी रखेंगे।

Friday 25 January 2019

तम्बाकू से ही कैंसर होता है ये झूठ है

तम्बाकू से कैंसर होता है ये सच है।

जैसे तम्बाकू पर चेतावनी लिखी जाती है कि तम्बाकू से कैंसर होता है। उसी प्रकार इन पर भी चेतावनी लिखी जाए तो देखें कौन खाता है और अपने परिवार बच्चों को खिलाता है:-
1- आयोडीन नमक इसमें पोटेसियम आयोडेट मिलाया जाता है जिससे कैन्सर होता है। सेंधा और काला नमक ही खाएं।
2- चाय में टेनिन कैफीन होते है जो कैंसर का धीमा जहर है।
3- पैकेट बाला दूध जो जर्सी,HF नामक सुअर का होता है जो A1है कैंसर करता है।
4- सभी टूथपेस्ट सोडियम लॉरेल सल्फेट जिससे कैंसर होता है।
5- एल्युमीनियम के बर्तन का पका हुआ खाना क्योंकि भारी धातु है जो कैंसर करती है।
6- चीनी sugar 23 हानिकर रसायन फार्मोलिन सहित मिलाए जाते है जिससे कैंसर होता है। गुड़,काकवी,खाण्डसारी ही खाएं।
7- रिफाइण्ड डबल रिफाइण्ड तेल 6 से 13 हानिकारक रसायन जो कैंसर करते हैं। शुद्ध सरषों,मुंगफली,तिल का तेल ही खाएं।
8- कोक पेप्सी 23 प्राणघातक रसायन संसद और राज्यसभा में 7अगस्त 2003 से प्रतिबंधित है।

Saturday 12 January 2019

पेड़ जो जगा देंगे आपका सोया भाग्य


1. वृक्ष भी भाग्योदय करने में सक्षम होते है…
प्रकृति ने हमारे जीवन की भलाई के लिए बहुत सी चीज़ों को बनाया है जिससे हम अपने जीवन को सुखमय बना सके और अपने जीवन की प्रत्येक समस्याओं का अच्छी तरह से समाधान कर सके। जड़ीबूटियाँ, खनन, धातुओं, आदि बहुत सी चीज़ें हमारे सामने उपस्थित है और सुलभ भी है, ज़रूरत हे तो सिर्फ थोड़ा सा काम करने की और ज्ञान प्राप्त करके उस चीज़ का इस्तमाल करने की। आज बात करते है कि किस वृक्ष के उपयोग से मनुष्य को किस प्रकार का फल मिलता है...
2. सात पीढियां को पुण्य मिलता है
जो भी अपने घर में फलदार पेड़, पौधे आदि लगाता है और उसकी भली भांति देखभाल करता है, उसे आरोग्य मिलता है। जो 5 वट वृक्षों का रोपण और उसका पालन किसी चौराहे या मार्ग में करता है तो, उसकी सात पीढियां को पुण्य मिलता है.
3. देवलोक मिलता है
वृक्षों के बाग या वाटिका लगाने वाला प्रसिद्धि प्राप्त करता है. जो भी व्यक्ति बिल्व वृक्ष का रोपण शिव मंदिर में करता है वह अकाल मृत्यु से मुक्त हो जाता है. सड़क के किनारे पीपल का वृक्ष लगाने, तथा उसका पालन करने वाला देवलोक प्राप्त करता है.
4. पीढियां तर जाती है
जो मनुष्य नीम के वृक्ष जितने अधिक लगाता है उतनी अधिक उसकी पीढियां तर जाती है. घर में तुलसी, आंवला, निर्गुण्डी, अशोक, आदि के वृक्ष शुभ फलदायी होते है.
5. लोक-परलोक संवर जाते है
शीशम के 11 वृक्ष को सड़क पर लगाने से यह लोक और परलोक दोनों ही संवर जाते है. कनक चम्पा के 2 वृक्ष लगाने वाले का मोक्ष मिलता है. 5 या अधिक महुआ के वृक्षों का रोपण और पालन करने वाला धन प्राप्त करता है और उसे अनुरूप यज्ञों का फल भी मिलने लगता है.
6. एक सौ यज्ञों का पुण्य मिलता है
10 पीपल के वृक्षों का रोपण करने वाला इस लोक में तो कीर्ति प्राप्त करता है, मृत्युपरांत भी मोक्ष को प्राप्त होता है. इसमें संदेह नहीं है. जो भी मनुष्य सड़क के किनारे 2 या 2 से अधिक मौलश्री के वृक्षों का रोपण एवं पालन करता है, वह एक सौ यज्ञों को करने का पुण्य प्राप्त करता है.
7. मुसीबत खड़ी नहीं होती
जो भी मनुष्य 5 या अधिक अशोक वृक्ष का रोपण और पालन करता है, उसके घर परिवार में कभी भी अकाल मृत्यु नहीं होती है. उसके यहां अचानक कोई बड़ी मुसीबत खड़ी नहीं होती तथा उसे अगले जन्म में पुण्य आत्मा होने का सौभाग्य प्राप्त होता है.
8. 10 गौवों के दान तुल्य पुण्य लाभ
5 या अधिक आम के वृक्षों का रोपण – पालन करने वाला अनेक दुर्लभ यज्ञों के फल को प्राप्त कर सकता है. जो मनुष्य 5 पलास के वृक्षों का रोपण – पालन करते है, उस 10 गौवों के दान के समतुल्य पुण्य लाभ मिलता है. पलास के वृक्षों को सड़क के किनारे अथवा किसी बड़े क्षेत्र में रोपना चाहिए. इसका रोपण घर में नहीं करना चाहिए.
9. हनुमान जी की कृपा मिलती है
जो भी मनुष्य 2 या अधिक हारसिंगार (पारिजात) के पौधों का रोपण श्री हनुमान जी के मंदिर में अथवा नदी के किनारे या किसी भी सामाजिक स्थल पर करता है तो उसे एक लक्ष्य तोला स्वर्णदान के जितना पुण्य प्राप्त होता है और उसे जीवन भर श्री हनुमान जी की कृपा मिलती रहती है.
10. भगवान शिव की कृपा मिलती है
जो भी व्यक्ति सोमवार के दिन, पप्रदोष वाले दिन, शिवरात्री को, श्रावण मॉस में किसी भी दिन अथवा शिवयोग वाले दिन 5 या अधिक बिल्व वृक्षों का रोपण और उसका नियमित पालन भी करता है तो उसे शिवलोक प्राप्त होता है. यदि इन वृक्षों को कोई भी मनुष्य शिव मंदिर में या मंदिर के समीप रोपण करता है तो निश्चय ही वह कोटि कोटि पुण्य का भागीदार तो होता ही है और उसे व उसके परिवार पर भगवान शिव की असीम अनुकम्पा भी प्राप्त होती है.

रिफाइंड तेल बनता कैसे है?

बीजों का छिलके सहित तेल निकाला जाता है। इस विधि में जो भी अशुद्धियों तेल में आती है, उन्हें साफ करके वह तेल को स्वाद गंध व रंग रहित करने के लिये रिफाइंड किया जाता है ।

रिफाइंड = केमिक्ल प्रोसेस्ड।

वाशिंग :-
 वाशिंग के लिये पानी, नमक, कास्टिक सोडा, गंधक, पोटेशियम, तेजाब व अन्य खतरनाक एसिड इस्तेमाल किये जाते हैं, ताकि अशुद्धियों इस से बाहर हो जायें। 
इस प्रक्रिया मैं तारकोल की तरह गाढ़ा वेस्टेज निकलता है, जो कि टायर बनाने में काम आता है। 
न्यूट्रलाइजेशन-
तेल के साथ कास्टिक या साबुन को मिक्स करके 180°F पर गर्म किया जाता है जिससे इस तेल के सभी पौष्टिक तत्व नष्ट हो जाते हैं।
ब्लीचिंग :-
इस विधि में पी.ओ. ब्लीचिंग /पी. ओ. पी. यह मकान बनाने मे काम ली जाती है/का उपयोग करके तेल का कलर और मिलाये गये कैमिकल को 130 °F पर गर्म करके साफ किया जाता है।
हाइड्रोजनीकरण :-
 एक टैंक में तेल के साथ निकोल और हाइड्रोजन को मिक्स करके हिलाया जाता है। 

इन सारी प्रक्रियाओं में तेल को 7-8 बार गर्म व ठंडा किया जाता है, जिससे तेल में पॉलीमर्स बन जाते हैं, उस से पाचन प्रणाली को खतरा होता है, और भोजन न पचने से सारी बीमारियाँ होती हैं। 

निकेल एक प्रकार का उत्प्रेरक धातु (लोहा) होता है, जो हमारे शरीर के श्वसन प्रणाली, लिवर, त्वचा, चयापचय, डीएनए, आरएनए को भंयकर नुकसान पहुँचाता है। 

रिफाइंड तेल के सभी तत्व नष्ट हो जाते हैं, और एसिड (कैमिकल) मिल जाने से यह भीतरी अंगों को नुकसान पहुँचाता है।

 गंदी नाली का पानी पी लें, उस से कुछ भी नहीं होगा, क्यों कि हमारे शरीर में प्रतिरोधक क्षमता उन बैक्टीरिया को लड कर नष्ट कर देता है, लेकिन रिफाइंड तेल खाने वाले व्यक्ति की अकाल मृत्यु होना निश्चित है।

झाग ने आपके दांतों को ग्रहण लगा दिया है

सबेरे-सबेरे हम जानवरों के हड्डियाँ का चूरा, कैंसर युक्त खतरनाक रसायन प्रतिदिन अपने दांतों पर मलकर अपने दांतों की मजूबत पर्त को खोखला करते जा रहे हैं 

बीस वर्ष बाद ही रूट कैनाल की जरूरत पड़ रही है। 

एक तरफ आप अपने दांतों को ख़राब भी कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ हम विदेशी कंपनियों को आर्थिक रूप से मजबूत भी कर रहे हैं । 

आपके झाग ने आपके दांतों को ग्रहण लगा दिया है और आप खुद को इंटेलीजेंट समझ रहे है।
याद कीजिये अपने पूर्वजों को जो मरते दम तक चने और गन्ने चूसते थे, क्योंकि उनके दांत बेहद मजबूत थे ...? क्योंकि दांत हमारे शरीर का सबसे मजबूत हिस्सा है जो ना तो मिटटी में गलता है, ना आग में जलता है और ना पानी में घुलता है पर वही दांत पेप्सी कोक में गल जाता है .....??
*यदि सारे दाँत मजबूत हैं तो पाचन - शक्ति भी अच्छी होगी, यदि पाचन शक्ति अच्छी होगी तो आप स्वस्थ्य रहेंगे ।*
आजकल के टूथपेस्ट से फ्लोरिस नामक बिमारी ज्यादा होती है।
*सभी टूथपेस्ट के बनाने के बनाने का तरीका एक सा है। झाग के लिए इसमें सोडियम लॉरेल सल्फेट, ट्राईक्लोसन, फ्लॉराइड आदि जहर मिलाये जाते है।*
आपको सारी जिन्दगी " Tooth Brush व Tooth Paste " से लाभ नहीं मिलेगा, परन्तु मंजन में मौजूद औषधियां गले की वीमारी व आमाशय की वीमारी में बहुत ही लाभप्रद हैं ।
अब निर्णय आपको लेना है आपको जानवरों की हड्डियाँ का चूरा व कैसर युक्त रसायन का टूथ-पेस्ट चाहिए या देशी आयुर्वेदिक मंजन।
*बदर्या मधुरः स्वरः। उदुम्बरे च वाकसिद्धि:।*
*अपामार्गे स्मृतिमेधा। निम्बेश्व तिक्तके श्रेष्ठ:।*
*बेर* के दातुन से स्वर मधुर होता है । *गूलर* के दातुन से वाणी अच्छी रहती है , *अपामार्ग* के दातुन से स्मरण शक्ति और बुद्धि बढती है *नीम* के दातुन दन्त रोग में श्रेष्ठ हैऔर *बबूल* से दांत मजबूत होते है ।
- आप यह आयुर्वेद मंजन घर पर बना लीजिये ( लौंग , हल्दी, माजूफल, जायफल, छोटी पीपर, नीम की निमौली का पाउडर या नीम की पत्तियों का पाउडर, उलटकम्बल ( चिचढा ), कपूर, मुलैठी, विटखदर की छाल, पतंगकाष्ठ, दालचीनी, गाय के गोबर की राख या लकड़ी का कोयला, सेंधा नमक, जावित्री, तेजपत्ता, सहिजन, आक का पत्ता, सरसों का तेल, फिटकरी, फूला सोहागा आदि का मंजन ) को हल्का-हल्का हांथो की अँगुलियों से मसूड़ों पर मलिए। इससे मसूड़ों की मालिश होगी और रक्तसंचार बढेगा जिससे दाँत मजबूत होंगें ।
*दांतों की गन्दगी, पायरिया, दुर्गन्ध*
खड़िया मिट्टी 60 ग्राम, शुद्ध सफ़ेद कत्था 50 ग्राम, दालचीनी 40 ग्राम, अखरोट छाल 40 ग्राम, मौल श्री, अजवाइन, सेंधा नमक, सोंठ, बादाम के छिलके की भस्म, जायफल अकरकरा, काली मिर्च, जायफल, माजूफल, लौंग, छोटी इलायची प्रत्येक 30 ग्राम, शंख भस्म 10 ग्राम । इन सबको पॉउडर बना लें, और सुबह - शाम अंगुली से मंजन करें।
*छालों के लिए* - दही के साथ मंजन का प्रयोग कीजिये।
👉🏼 *उकड़ू बैठकर मंजन करने के अद्भुत फायदे हैं ।*
मंजन करते समय कमर से आगे का हिस्सा थोडा आगे झुकाकर मंजन करें।
- सप्ताह में तीन से चार बार गुनगुने पानी में नमक, फिटकरी या फूले का सुहागा मिलाकर मुंह में घुमाइए उसके बाद कुल्ला कर दीजिये, इससे मसूड़ों की सिंकाई होगी मसूड़े रोग व दुर्गन्ध से मुक्त होकर दांतों को मजबूती प्रदान करेंगे।
*मुंह में छाले* पोटास ऑफ़ परमैंगनेट से कुल्ला या बबूल की छाल से कुल्ला करें।
*जीभ की मालिश* इसी मंजन से जीभ की मालिस कीजिये तथा मध्यमा व तर्जनी अँगुलियों के सहारे जीभ व गले को साफ़ कीजिये इससे आपके जीभ के स्नायु तंत्र मजबूत होंगे और लार भी बराबर मात्रा में बनेगी।
👉🏼 *कभी भी लोहे या प्लास्टिक की जिब्भी से जीभ को ना साफ करें ।*
- यदि आपके हाथों की अंगुलियाँ मंजन करते समय आपके टांसिल को स्पर्श करती हैं तो आपके हृदय व मस्तिष्क में कम्पन्न ( झनझनाहट ) महसूस होगा आपको उल्टी आएगी आपके अमाशय का अपच विकार युक्त दूषित अन्न व पित्त बहार निकल जायेगा ।
👉🏼 *टांसिल पर अँगुलियों के स्पर्श का लाभ*
प्रातः काल कफ का प्रकोप अधिक होता है तो
गले का व्यायाम होगा, कफ निकलेगा ।
टांसिल की समस्या नहीं आएगी। थायराइड में लाभ होगा ।
👉🏼 *हृदय व मस्तिष्क में कम्पन्न से हृदय मजूबत होगा और याददास्त तेज होगी ।*
- स्वर कोमल होगा ।
- नेत्र की ज्योति बढ़ेगी।
- गले की खराश कम होगी
👉🏼 *होम्योपैथी Wheezal Hekla Lava*
*प्लैण्टेन Q*
*Staphysogria* जैसी कई दवाई है, जो लक्षणों पर कार्य करती है।
*दाँत और दाढ़ के दर्द की अनुभूत दवा*---
1. काकड़ासिंगी-- एक तोला
2. छोटी पीपर -- एक तोला
दोनों को बारीक पीसकर आधा तोला खाने का सोड़ा मिलाकर रख लें। जहां दर्द हो, वहाँ मलें और नीचे को मुँह कर दें ताकि सब लार गिर जाये। उसके बाद गर्म पानी से कुल्ला कर लें। दस मिनट में दर्द मिट जायेगा। परीक्षित है।
🌅 *दांतों में कीड़ा* 🌅
*दाँत में कीड़ा लगना*
घर का बना चूना पिसी देशी फिटकरी को आपस में मिलाकर खोखली दाढ़ में भरकर मुँह नीचे लटका लें । कुछ मिनट में लार के साथ दाँत का कीड़ा बाहर आ जायेगा।
अगर किसी कारण से एक बार में कीड़ा बाहर न आये तो एक बार पुन इस प्रक्रिया को दोहरा लें !
*वीरमेदादि तैल का फाहा*

Friday 11 January 2019

हवन का क्या वैज्ञानिक महत्व है?


हिन्दू सनातन धर्म में पूजा का सबसे अच्छा मार्ग हवन और यज्ञ है। इस विधि से भगवान को सदियों पहले से ही हमारे ऋषि मुनि रिझाते हुए आये है।यज्ञ को अग्निहोत्र कहते हैं।अग्नि ही यज्ञ का प्रधान देवता है। हवन में डाली गई सामग्री प्रसाद सीधे हमारे आराध्य देवी देवताओं तक पवित्र अग्नि के माध्यम से जाता है।वैज्ञानिक तथ्यानुसार जहाॅ हवन होता है, उस स्थान के आस-पास रोग उत्पन्न करने वाले कीटाणु शीघ्र नष्ट हो जाते है।
मनुष्य जीवन में यज्ञ और हवन का बहुत महत्व बताया गया है।यज्ञ हवन से देवी देवताओं की पूजा अर्चना ही नही बल्कि हवन यज्ञ से प्रदूषित वातावरण को भी शुद्ध किया जाता।यज्ञ हवन भी एक चिकित्सा पद्धति मानी गयी और हवन यज्ञ के माध्यम से विभिन्न बीमारियों का इलाज किया जाता है।
यज्ञोपैथी का पुराना वैदिक इतिहास है और जब चिकित्सा की अन्य पद्धतियां मौजूद नहीं थी तो.यज्ञ हवन आदि से ही वातावरण को बीमारी रहित बनाया जाता था।फ़्रांस के ट्रेले नामक वैज्ञानिक ने हवन पर रिसर्च की। जिसमें उन्हें पता चला की हवन मुख्यतः आम की लकड़ी को जलाकर की जाती है।
जब आम की लकड़ी जलती है तो फ़ॉर्मिक एल्डिहाइड नामक गैस उत्पन्न होती है जो खतरनाक बैक्टीरिया और जीवाणुओं को मारती है तथा वातावरण को शुद्ध करती है। इस रिसर्च के बाद ही वैज्ञानिकों को इस गैस और इसे बनाने का तरीका पता चला।
गुड़ को जलाने पर भी ये गैस उत्पन्न होती है।टौटीक नामक वैज्ञानिक ने हवन पर की गयी अपनी रिसर्च में ये पाया की यदि आधे घंटे हवन में बैठा जाये अथवा हवन के धुएं से शरीर का सम्पर्क हो तो टाइफाइड जैसे खतरनाक रोग फ़ैलाने वाले जीवाणु भी मर जाते हैं और शरीर शुद्ध हो जाता है।
हवन की महत्ता को देखते हुए राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संस्थान लखनऊ के वैज्ञानिकों ने भी इस पर एक रिसर्च किया है कि क्या वाकई हवन से वातावरण शुद्ध होता है और जीवाणु नाश होते है अथवा नही होते हैं ? उन्होंने ग्रंथों में वर्णिंत हवन सामग्री जुटाई और जलाने पर पाया कि ये विषाणु नाश करती है।
फिर उन्होंने विभिन्न प्रकार के धुएं पर भी शोध किया और देखा कि सिर्फ आम की लकड़ी मात्र एक किलो जलाने से हवा में मौजूद विषाणु बहुत कम नहीं हो गये किन्तु उसमें जैसे ही उसके ऊपर आधा किलो हवन सामग्री डाल कर जलायी गयी तो एक घंटे के भीतर ही कक्ष में मौजूद बैक्टीरिया का स्तर ९४ % कम हो गया।
यही नहीं उन्होंने आगे भी कक्ष की हवा में मौजुद जीवाणुओ का परीक्षण किया और पाया कि कक्ष के दरवाज़े खोले जाने और सारा धुआं निकल जाने के २४ घंटे बाद भी जीवाणुओं का स्तर सामान्य से ९६ प्रतिशत कम था। बार-बार परीक्षण करने पर ज्ञात हुआ कि इस एक बार के धुएं का असर एक माह तक रहा और उस कक्ष की वायु में विषाणु स्तर 30 दिन बाद भी सामान्य से बहुत कम था।
यह रिपोर्ट एथ्नोफार्माकोलोजी के शोध पत्र में दिसंबर 2007 में प्रकाशित हो चुकी है। रिपोर्ट में लिखा गया कि हवन के द्वारा न सिर्फ मनुष्य बल्कि वनस्पतियों एवं फसलों को नुकसान पहुचाने वाले बैक्टीरिया का भी नाश होता है।जिससे फसलों में रासायनिक खाद का प्रयोग कम हो सकता है।
9-हवन करने से न सिर्फ भगवान ही खुश होते हैं बल्कि घर की शुद्धि भी हो जाती है।हवन यज्ञ का ही परिणाम है कि ओजोन परतों के छेद कम होने लगे हैं।भारत के अतिरिक्त चीन, जापान, जर्मनी और यूनानआदि देशों में अग्नि को पवित्र माना जाता है। इन देशों में विभिन्न प्रकार की धूप जलाने का चलन है।वस्तुत: अग्नि में जो वस्तु जलाई जाती है उसका स्वरूप सूक्ष्म से सूक्ष्मतर हो जाता है।आधुनिक परमाणु वैज्ञानिकों ने अब इस तथ्य को पूर्णत: आत्मसात कर लिया है कि स्थूल से सूक्ष्म कहीं अधिक शक्तिशाली है।
यज्ञ में चार प्रकार के हव्य पदार्थ डाले जाते हैं। सुगंधित-केसर, अगर, तगर, गुग्गल, कपूर, चंदन, इलायची, लौंग, जायफल, जावित्री आदि।पुष्टिकारक-घृत, दूध, फल, कंद, मखाने, अन्न, चावल जौ, गेहूं, उड़द आदि।मिष्ट-शक्कर, शहद, छुहारा, किशमिश, दाख आदि।रोगनाशक-गिलोय, ब्राह्मी, शंखपुष्पी, मुलहठी, सोंठ, तुलसी आदि औषधियां अर्थात जड़ी-बूटियां जो हवन सामग्री में डाली जाती हैं।
-प्राय: लोगों का विचार है कि यज्ञ में डाले गए घृत आदि पदार्थ व्यर्थ ही चले जाते हैं परंतु उनका यह विचार ठीक नहीं है। विज्ञान के सिद्धांत के अनुसार कोई भी पदार्थ कभी नष्ट नहीं होता अपितु उसका रूप बदलता है। यथा बर्फ का पिघल कर जल रूप में बदलना, जल का वाष्प रूप में बदल कर उड़ जाना। रूप बदलने का अर्थ नष्ट होना नहीं बल्कि अवस्था परिवर्तन है। बस यही सिद्धांत यज्ञ पर भी चरितार्थ होता है।
यज्ञ में डाले गए पदार्थ सूक्ष्म होकर आकाश में पहुंच जाते हैं। यज्ञ में पौष्टिक, सुगंधित और रोगनाशक औषधियों की हवन सामग्री से दी गई आहुतियों से पर्यावरण की शुद्धि होती है। सभी पदार्थ सूक्ष्म होकर पृथ्वी, आकाश, अंतरिक्ष में जाकर अपना प्रभाव दिखाते हैं। इससे मनुष्य, अन्य जीव-जंतु एवं वनस्पतियां सभी प्रभावित होते हैं।यज्ञ से शुद्ध हुई जलवायु से उत्पन्न औषधि, अन्न और वनस्पतियां आदि भी शुद्ध एवं निर्दोष होते हैं। वायु, जल आदि जो देव हैं वे यज्ञ से शुद्ध हो जाते हैं, आकाश मंडल निर्मल और प्रदूषणमुक्त हो जाता है। यही उन देवताओं का सत्कार और पूजा है।
अग्रि में समर्पित पदार्थ आकाश मंडल में पहुंच कर मेघ बनकर वर्षा में सहायक होते हैं। वर्षा से अन्न और अन्न से प्रजा की तुष्टि-पुष्टि होती है। इस प्रकार जो अग्निहोत्र करता है वह मानो प्रजा का पालन करता है। परमात्मा ने मनुष्य को बहुत कुछ दिया है परंतु क्या मनुष्य ने भी परमात्मा को यज्ञ के द्वारा कुछ दिया है? परमात्मा स्वयं वेद में कहता है :देहि में द दामि ते।।तुम मुझे दो, मैं तुम्हें देता हूं।अत: यज्ञ करते हुए बड़े प्रेम से वेदमंत्र बोल कर आहूति दो जिससे मन शुद्ध, पवित्र और निर्मल बन जाए , प्रदूषण समाप्त हो जाए और विश्व का कल्याण हो।

किस धातु के बर्तन में भोजन करे?


हम बचपन में पीतल के बर्तन मे खाते थे खाने में बहुत स्वाद होता था हमारे यहाँ शादी में भी बड़े बड़े पीतल के बर्तन दिये जाते हैं की परिवार खा कर बीमार न पड़े लेकिन हम कुकर जैस विषैले बर्तन में खाना खाते हैंआइये जानते है कौन सी धातु के बर्तन में भोजन करने से क्या क्या लाभ और हानि होती है
सोना
सोना एक गर्म धातु है। सोने से बने पात्र में भोजन बनाने और करने से शरीर के आन्तरिक और बाहरी दोनों हिस्से कठोर, बलवान, ताकतवर और मजबूत बनते है और साथ साथ सोना आँखों की रौशनी बढ़ता है।
चाँदी
चाँदी एक ठंडी धातु है, जो शरीर को आंतरिक ठंडक पहुंचाती है। शरीर को शांत रखती है इसके पात्र में भोजन बनाने और करने से दिमाग तेज होता है, आँखों स्वस्थ रहती है, आँखों की रौशनी बढती है और इसके अलावा पित्तदोष, कफ और वायुदोष को नियंत्रित रहता है।
कांसा
काँसे के बर्तन में खाना खाने से बुद्धि तेज होती है, रक्त में शुद्धता आती है, रक्तपित शांत रहता है और भूख बढ़ाती है। लेकिन काँसे के बर्तन में खट्टी चीजे नहीं परोसनी चाहिए खट्टी चीजे इस धातु से क्रिया करके विषैली हो जाती है जो नुकसान देती है। कांसे के बर्तन में खाना बनाने से केवल 3 प्रतिशत ही पोषक तत्व नष्ट होते हैं।
तांबा
तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने से व्यक्ति रोग मुक्त बनता है, रक्त शुद्ध होता है, स्मरण-शक्ति अच्छी होती है, लीवर संबंधी समस्या दूर होती है, तांबे का पानी शरीर के विषैले तत्वों को खत्म कर देता है इसलिए इस पात्र में रखा पानी स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है. तांबे के बर्तन में दूध नहीं पीना चाहिए इससे शरीर को नुकसान होता है।
पीतल
पीतल के बर्तन में भोजन पकाने और करने से कृमि रोग, कफ और वायुदोष की बीमारी नहीं होती। पीतल के बर्तन में खाना बनाने से केवल 7 प्रतिशत पोषक तत्व नष्ट होते हैं।
लोहा
लोहे के बर्तन में बने भोजन खाने से शरीर की शक्ति बढती है, लोह्तत्व शरीर में जरूरी पोषक तत्वों को बढ़ता है। लोहा कई रोग को खत्म करता है, पांडू रोग मिटाता है, शरीर में सूजन और पीलापन नहीं आने देता, कामला रोग को खत्म करता है, और पीलिया रोग को दूर रखता है. लेकिन लोहे के बर्तन में खाना नहीं खाना चाहिए क्योंकि इसमें खाना खाने से बुद्धि कम होती है और दिमाग का नाश होता है। लोहे के पात्र में दूध पीना अच्छा होता है।
स्टील
स्टील के बर्तन नुक्सान दायक नहीं होते क्योंकि ये ना ही गर्म से क्रिया करते है और ना ही अम्ल से. इसलिए नुक्सान नहीं होता है. इसमें खाना बनाने और खाने से शरीर को कोई फायदा नहीं पहुँचता तो नुक्सान भी नहीं पहुँचता।
एलुमिनियम
एल्युमिनिय बोक्साईट का बना होता है। इसमें बने खाने से शरीर को सिर्फ नुक्सान होता है। यह आयरन और कैल्शियम को सोखता है इसलिए इससे बने पात्र का उपयोग नहीं करना चाहिए। इससे हड्डियां कमजोर होती है. मानसिक बीमारियाँ होती है, लीवर और नर्वस सिस्टम को क्षति पहुंचती है। उसके साथ साथ किडनी फेल होना, टी बी, अस्थमा, दमा, बात रोग, शुगर जैसी गंभीर बीमारियाँ होती है। एलुमिनियम के प्रेशर कूकर से खाना बनाने से 87 प्रतिशत पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं।
मिट्टी
मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाने से ऐसे पोषक तत्व मिलते हैं, जो हर बीमारी को शरीर से दूर रखते थे। इस बात को अब आधुनिक विज्ञान भी साबित कर चुका है कि मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाने से शरीर के कई तरह के रोग ठीक होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, अगर भोजन को पौष्टिक और स्वादिष्ट बनाना है तो उसे धीरे-धीरे ही पकना चाहिए। भले ही मिट्टी के बर्तनों में खाना बनने में वक़्त थोड़ा ज्यादा लगता है, लेकिन इससे सेहत को पूरा लाभ मिलता है। दूध और दूध से बने उत्पादों के लिए सबसे उपयुक्त हैमिट्टी के बर्तन। मिट्टी के बर्तन में खाना बनाने से पूरे 100 प्रतिशत पोषक तत्व मिलते हैं। और यदि मिट्टी के बर्तन में खाना खाया जाए तो उसका अलग से स्वाद भी आता है।
पानी पीने के पात्र के विषय में 'भावप्रकाश ग्रंथ' में लिखा है।
जलपात्रं तु ताम्रस्य तदभावे मृदो हितम्।
पवित्रं शीतलं पात्रं रचितं स्फटिकेन यत्।
काचेन रचितं तद्वत् वैङूर्यसम्भवम्।
(भावप्रकाश, पूर्वखंडः4)
अर्थात् पानी पीने के लिए ताँबा, स्फटिक अथवा काँच-पात्र का उपयोग करना चाहिए। सम्भव हो तो वैङूर्यरत्नजड़ित पात्र का उपयोग करें। इनके अभाव में मिट्टी के जलपात्र पवित्र व शीतल होते हैं। टूटे-फूटे बर्तन से अथवा अंजलि से पानी नहीं पीना चाहिए।

Thursday 10 January 2019

मोबाइल रेडिएशन से खबरदार


जमाने की लत से बाज आइए, अब तो मोबाइल के रेडिएशन से खबरदार हो जाइए। विश्व स्वास्थ्य संगठन और वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि इससे कैंसर का खतरा पैदा हो सकता है। इससे जुड़ी एक कैंसर पीड़ित की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने भी गंभीरता से लिया है। अपने मोबाइल सेट पर *#07# डायल कर रेडिएशन की खुद भी जांच करते रहिए।

फेसबुक, व्हाटसएप जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने हर छोटे-बड़े को बुरी तरह व्यस्त और देश-दुनिया से बेखबर सा कर दिया है। इससे लोगों में बेवजह चिड़चिड़ापन, तनाव, गुस्सा भी बढ़ रहा है। स्वास्थ्य विज्ञानी आगाह कर चुके हैं कि सबसे खतरनाक साबित हो रहा है मोबाइल का रेडिएशन।
सफर में हों या बाजार में, घर में हों या सरे राह, जैसे ही आप अपने चारो तरफ एक नजर डालेंगे, कानो में झुलनी (एयर फोन) लटकाए, हथेली पर मोबाइल टिकाए तमाम ऐसे युवा और बड़े-बूढ़े दिख जाएंगे, लगेगा, मानो सारे जहां का दर्द बस उनके ही जिगर में है। इस बदहवाशी का कोई क्या करे। 
मोबाइल पर चौबीसो घंटे नाचते रहने के अलावा उनके पास जैसे और कोई काम नहीं रह गया। उन्हें क्या पता कि डब्ल्यूएचओ के बुलावे पर दुनिया भर के वैज्ञानिक रेडिएशन से नुकसान पर गंभीर मंत्रणा कर रहे हैं। भारत में जब अंग्रेजों का राज था, उन्होंने हिंदुस्तानियों को उस वक्त चाय की चुस्कियां लेने की आदत पकड़ा दी। 
फिर तो ऐसी लत लगी कि बड़े-बड़े चाय बागान, बड़ी-बड़ी टी-कंपनियों के अरबों के सालाना टर्नओवर का आज तांता लग चुका है।
हर गली, हर दुकान पर और कुछ मिले न मिले, चाय का पैकेट जरूर मिल जाएगा। चाय सुबह-सवेरे की पहली जरूरत बन चुकी है। भारत ही नहीं, पूरे विश्व-बाजार में आजकल कुछ ऐसी ही लहर मोबाइल की आई हुई है। 
वजह?जरा-सा भी खाता-पीता परिवार हो तो उसके हर सदस्य के हाथ में मोबाइल सेट। कोई-कोई तो लैपी के साथ कई-कई सेट लिए डोलता रहता है। किसी भी शहर के बाजार में चले जाइए, सबसे ज्यादा चमकीला, भड़कीला शो रूम गैजेट्स का ही नजर आता है। 
सारा काम-काज छोड़कर जैसे पूरी दुनिया ही मोबाइल में समाती, ठिठुरती जा रही है। तर्क दिए जाते हैं कि क्या करें, आज हर काम तो मोबाइल के भरोसे हो गया है। ऑफिस के काम तक मोबाइल पर लाद दिए जाते हैं कि लगे रहो हर वक्त। सर्च, सर्च, सर्च। 
मोबाइल और लैपी के खामियाजे पर चिकित्सकों के लाख आगाह किए जाने के बावजूद कोई ध्यान देने को तैयार नहीं है।
राष्ट्रीय कैंसर संस्थान की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि मोबाइल, लैपी, गैजेट्स के ज्यादा इस्तेमाल से ब्रेन कैंसर का खतरा बना रहता है। 
इससे सड़क हादसों में भी इजाफा हो रहा है। स्क्रीन को अपलक देखने से आंखों में जलन के साथ ही रंगों की पहचान की शक्ति भी समाप्त होने लगती है। गैजेट्स में बच्चों व्यस्त होने का बहुत बुरा अंजाम सामने आ सकता है। 
फेसबुक, व्हाटसएप जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने हर छोटे-बड़े को बुरी तरह व्यस्त और देश-दुनिया से बेखबर सा कर दिया है। इससे लोगों में बेवजह चिड़चिड़ापन, तनाव, गुस्सा भी बढ़ रहा है। स्वास्थ्य विज्ञानी आगाह कर चुके हैं कि सबसे खतरनाक साबित हो रहा है मोबाइल का रेडिएशन।
मोबाइल फोन रेडिएशन को गैर आयनीकरण करार दिया गया है। गैर आयनीकरण रेडिएशन से अणुओं को आयनित किए बिना ऊर्जा अन्य रूपों में निःसृत होती है। 
गैर आयनीकरण रेडिएशन में रेडियो तरंगें, दृश्यमान प्रकाश आदि शामिल होते हैं। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती है। काफी छानबीन के बाद अब विश्व स्वास्थ्य संगठन (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन-डब्ल्यूएचओ) ने भी मान लिया है कि मोबाइल रेडिएशन दिमाग के सेल्स को प्रभावित कर रहा है। इससे पूर्व जब डब्ल्यूएचओ ने कहा था कि मोबाइल के रेडिएशन से किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं है तो पूरी दुनिया में यह मामला तूल पकड़ गया। इसके बाद डब्ल्यूएचओ को इसकी हकीकत जानने के लिए चौदह देशों के लगभग इकतीस वैज्ञानिकों के साथ शोधात्मक विमर्श करना पड़ा।
नए सिरे से रिसर्च हुए, तब पता चला कि मोबाइल के रेडिएशन से दो तरह का कैंसर (ग्लिमा और ध्वनिक न्यूरोमास) हो सकता है। 
रेडिएशन के दुष्प्रभाव के सिलसिले में दायर एक जनहित याचिका पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक कैंसर रोगी की अर्जी पर ग्वालियर में मोबाइल टावर बंद करने का आदेश दिया है। यद्यपि सरकार का कहना है कि हमारे देश में मोबाइल टावर उत्सर्जन नियम वैश्विक नियमों से दसना कड़े हैं। 
इस बीच यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ तिरुवनंतपुरम के जीव विज्ञानी विभाग के शोध-निष्कर्ष में बताया गया है कि रिसर्चर्स ने कॉकरोच पर मोबाइल रेडिएशन का प्रयोग किया। 
अध्ययन के दौरान पता चला कि मोबाइल से निकलने वाला इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन कॉकरोच के शारीरिक रसायनों (बॉडी फैट और हीमैटोलॉजिकल प्रोफाइल) को तेजी से परिवर्तित कर रहा है यानी इस रेडिएशन से तंत्रिका तंत्र के रसायन में तेजी से बदलाव होता है।
इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन बॉडी फैट में मौजूद प्रोटीन को तेजी से घटाने और अमीनो एसिड को बढ़ाने लगता है। 
शरीर में ग्लूकोज और यूरिक एसिड बढ़ जाता है। अंतर्राष्ट्रीय एवं भारतीय मानक के अनुसार मोबाइल फोन का रेडिएशन लेवल 1.6 वाट/किलोग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए मगर प्रतिस्पर्धा के दौर में तमाम कंपनियां कम कीमत पर मोबाइल हैंडसेट बाजार में लाने के लिए मानक की अनदेखी कर रही हैं।
 सेल्युलर टेलीकम्यूनिकेशन एंड इंटरनेट एसोसिएशन के अनुसार सभी मोबाइल हैंडसेट पर रेडिएशन संबंधी जानकारी देनी जरूरी है मगर कई बड़ी कंपनियां इसे नजरअंदाज कर रही हैं।
इससे पता चलता है कि मोबाइल साइलेंट किलरका काम कर रहा है। इन दिनो दुनिया के तमाम मशहूर ब्रांड के ऐसे मोबाइल हैंडसेट बाजारों में भरे पड़े हैं, जिनसे निकलने वाला रेडिएशन मानक से ज्यादा पाया गया है। 
अपने मोबाइल सेट पर *#07# डायल कर रेडिएशन की खुद भी जांच की जा सकती है। यह नंबर डायल करते ही मोबाइल स्क्रीन पर रेडिएशन वैल्यू आ जाती है। 
इंडियाज नेशनल स्पेसिफिक एब्जॉर्बशन रेट लिमिट (आईएनएसएआरएल) के अनुसार भी मोबाइल के रेडिएशन का मानक अधिकतम 1.6 वाट प्रति किलोग्राम तक ही होना चाहिए।
रेडिएशन के जानकार अब दुनिया भर में लोगों को लगातार आगाह कर रहे हैं कि मोबाइल का इस्तेमाल बहुत ही सावधानी के साथ करें। 
मसलन, सेट के साथ प्रोटेक्टिव केस का जरूर इस्तेमाल करें। 
सेट को शरीर से दूर रखें। 
शर्ट-पैंट की जेब में मोबाइल न रखें। 
शरीर से सटे होने पर मोबाइल का रेडिएशन और ज्यादा तीव्रता से प्रभावित करता है। 
लैंडलाइन फोन का ज्यादा इस्तेमाल करें। 
जब जरूरत न हो, मोबाइल स्विच ऑफ करके रखें। 
रात में मोबाइल बंद रखें। 
सेट को देर तक कान से लगाकर बात न करें। 
चार्जिंग के दौरान मोबाइल पर बात करने से जरूर परहेज करें क्योंकि ऐसे में रेडिएशन लेवल दसगुना तक बढ़ जाता है।
मोबाइल में सिग्नल कमजोर होने पर, बैट्री डिस्चार्ज होने की स्थितियों में भी इस्तेमाल न करें। 
आजकल टेलिकॉम डिपार्टमेंट ने एक 'तरंग संचार' नाम का एक वेब पोर्टल शुरू किया है, जो मोबाइल टावरों से निकलने वाले रेडिएशन की स्थिति बताता है। 
अपने टावर को लोकेट करने के लिए या तो आप पीसी, टैबलेट या मोबाइल के जीपीएस की मदद ले सकते हैं या फिर अपने एरिया को सर्च कर सकते हैं। निर्देशित प्वॉइंट पर क्लिक करते ही टावर के बारे में विस्तृत जानकारी ई-मेल से मिल जाती है।
रेसियेसन से बचाव के लिए पंचगव्य से निर्मित एंटी रेदियेसन चिप का इस्तेमाल करे - गोबर और गोऔमुत्र रेडिएसन से बचाते है जिसे वैज्ञानिक भी सिद्ध कर चुके है. 
इसे आप रेडियेशन मीटर लगाकर भी जाँच सकते है 
*हमारे गौ शाला ने पंचगव्य से निर्मित एंटी रेडिएसन चिप का निर्माण किया है* 
*प्राप्त करने सम्पर्क - 9407001528*
*whatsapp - 9009363221*
Vrajraj Gaushala, Rithi, Katni, MP चिप का निर्माण किया है 
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Panchgavy Products

*पंचगव्य उत्पाद -

👉चंद्रमा,पारिजात,कैल्सियम, गिलोय, अर्जुन, ब्राह्मी, युक्त गौमुत्रअर्क - 
                                 200/500 ml
👉गिलोय, त्रिफला, अर्जुन, ब्राम्ही, हल्दी युक्त घनवटी- 150/120 वटी
👉 सर्पगन्धा,तुलसी, सप्तरंगी,पुनर्नवा, पसानवेद, गोखुर, मंजिष्ठा, कचनार, मुलेठी,कालमेघ युक्त गोमुत्र अर्क - 250/500 ml
👉नंदी अर्क 600/500ml
👉नंदी घनवटी- 400/120
👉 सर्पगन्धा, सप्तरंगी, पंचगव्य,पुनर्नवा,तुलसी,पसानवेद,गोखुर,मंजिष्ठा, कचनार, मुलेठी, कालमेघ युक्त गोमुत्र घनवटी - 180/120 वटी
👉 हर्बल फ्लोर क्लीनर - 60/1ली.
👉गोमय भष्म - 200/200gm
👉उबटन - 75/100 ग्राम
👉फेशियल- 60/50 ग्राम
👉केश सम्बर्धिनि शेम्पू - 100/200 ml
👉पंचगव्य नीम तेल युक्त साबुन - 40
👉नीमार्क (डिटोल का विकल्प) - 125/250ml
👉दन्तमंजन -30 /25gग्राम
👉दन्तमंजन-50/50ग्राम
👉गव्य त्रिफला, चुर्ण - 150/100 ग्राम
👉कब्ज नासक चूर्ण-100/100ग्राम
👉गव्य हरड़ चूर्ण-100/100ग्राम
👉त्रिफला चूर्ण-100/100ग्राम
👉मधुमेह चूर्ण 100/100gm
👉नेत्रोशधि - 70/10ml
👉कर्णऔसधि - 50/10ml
👉नश्यऔसधि (पंचगव्य घ्रत) - # 200/15 ml
सम्पर्क - ब्रजराज गौ शाला, रीठी, कटनी, एम पी 
whatsapp - 9009363221

benefits of drinking gomutra in hindi

गोमूत्र के फायदे 

गोमूत्र लेने का सही तरीका
गौमूत्र लेने का सही समय प्रातःकाल का होता है और इसे पेट साफ करने के बाद खाली पेट लेना चाहिए। गौमूत्र सेवन के 1 घंटे बाद ही भोजन करना चाहिए। पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति को सीधे गौमूत्र नहीं लेना चाहिए, गौमूत्र को पानी में मिलाकर लेना चाहिए। पीलिया के रोगी को गौमूत्र नहीं लेना चाहिए। देर रात्रि में गौमूत्र नहीं लेना चाहिए। ग्रीष्म ऋतु में गौमूत्र कम मात्र में लेना चाहिए।

गोमूत्र रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाए
गोमूत्र को नियमित रूप से पीने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और बहुत सी बीमारियां जल्द ही सरीर को नहीं लगती है।

हृदय के लिए फायदेमंद
दूध देने वाली गाय के मूत्र में “लेक्टोज” की मात्रा आधिक पाई जाती है, जो हृदय और मस्तिष्क के विकारों के लिए उपयोगी होता है।

मोटापा कम करें
गोमूत्र मोटापा कम करने के काम भी आता है, इसके लिए आप एक गिलास पानी में चार बूंद गौमूत्र के साथ दो चम्‍मच शहद और 1 चम्‍मच नींबू का रस मिला कर रोजाना पीने से लाभ मिलता है।

त्वचा रोगो में लाभकारी
गोमूत्र सभी त्वचा रोगो में लाभकारी होता है। गोमूत्र का सेवन करने से सभी त्वचा रोग जैसे एलर्जी, खाज, खुजली और दाद ठीक हो जाते है। गोमूत्र की मालिश करने से त्वचा के सफेद दाद, धब्बे ठीक हो जाते है। 

टी.बी. की बीमारी ठीक करें
नियमित रूप से गोमूत्र का सेवन करने से टी.वी. की बीमारी में जल्द ही आराम मिलता है। टी.बी. की बीमारी में डाट्स की गोलियों का असर गौमूत्र के साथ 20 गुना बढ़ जाता है। सिर्फ गौमूत्र पीने से टी.वी. 3 से 6 महीने में ठीक होती है और डाट्स की गोलियां खाने से टी.बी. 9 महीने में ठीक होती है।

जोड़ों का दर्द दूर करने में फायदेमंद
गोमूत्र जोड़ो का दर्द दूर करने में बहुत फायदेमंद होता है। अगर दर्द वाली जगह पर गौमूत्र से सेकाई की जाए तो आराम मिलता है। सर्दियों में आप गौमूत्र को सोंठ के साथ पियें, लाभ मिलेगा।

बवासीर में फायदा पहुंचाए
देसी गौ माता के मूत्र का सेवन करने से दोनों प्रकार की बवासीर में फायदा पहुंचता है। इसके लिए आपको हर रोज खाली पेट आधा कप गोमूत्र पीना है। ऐसा करने से जल्द ही आराम मिलेगा।

आँखों के नीचे काले धब्बे ठीक करें
अगर आपकी आँखों के नीचे काले धब्बे है, तो हर रोज सुबह-सुबह गौमूत्र लगाएं, काले धब्बे दूर हो जायेंगे।

Sunday 6 January 2019

केवांच


केवांच को कोंच ,आलकुंषि, कोंचा, केवच,संस्कृत में कपिकच्छु, आत्मगुप्ता आदि नामों से जाना जाता है..... 

कौंच की बेल होती है और यह भारत के गर्म स्थानों पर अधिक पाई जाती है.....यह एक प्रकार की जंगली औषधि है,,,जिसके पत्ते या फल के रोएं यदि शरीर पर लग जाये तो बहुत खुजली होने लगती है.... 

कौंच की बेल जून-जुलाई के महीने में पैदा होकर सितम्बर-नवम्बर में फूलती है....इसकी बेल झाड़ियों और पेड़ों पर फैलती है। इसके पत्ते 6 से 9 इंच लंबे व 3 पत्तों में होते हैं.... 

इसके फूल एक से डेढ इंच लंबे, नीले या बैंगनी रंग के होते हैं..... इसकी फली 2 से 4 इंच लंबी और लगभग आधी इंच चौड़ी होती है.... फलिया गुच्छों में लगती है जिस पर सुनहरे व बारीक रोंए होते हैं.. इसके फली के अन्दर बीज होते हैं और इसका छिलका सख्त होता है...

 इसके बीज,जड़,टहनी,फूल,पत्तियाँ सभी का औषधिय महत्व है.....।
केवच दो प्रकार की होती हैं,, कम रोयेंदार जिसकी फलियाँ पर बहुत ही कम रोये होते हैं जिसकी बहुत ही स्वादिष्ट सब्जी बनती हैं,, ओर एक अधिक रोयेंदार जिसका केवल औषधीय उपयोग लिया जाता हैं,,

आयुर्वेद के अनुसार : कौंच की गिरी स्वाद में कड़वी,मीठी, तीखी, गर्म और मन व मस्तिष्क को शांत करने वाली होती है... इसका फल मीठा होता है.... 

यह धातु को बढ़ाने वाला, बलदायक, पाचनशक्ति को बढ़ाने वाला, वात, पित्त, कफ और खून की खराबी को दूर करने वाला होता है... इसका बीज पावडर #यौन रोगों में अचूक औषधि हैं,यह यौन शक्ति को बढ़ाता हैं। यह दर्द, कमजोरी, पेशाब की बीमारी,दिल की बीमारी, गर्भाशय की कमजोरी, आंखों की रोशनी, वात रोग, चेहरे की सुन्दरता, प्रदर रोग, प्रसूता रोग आदि में भी गुणकारी है। इसे महिला या पुरुष आराम से खा सकते हैं।

पहले हमारे गांव के आसपास भी इसकी बेल मिल जाती थी पर अब दर्शन दुर्लभ है,, 

गोबर भस्म बनाने का तरीका


गाय का गोबर : - गाय के गोबर में 23 % आक्सीजन की मात्रा होती है । गाय के गोबर से बनी भस्म में 45 % आक्सीजन की मात्रा मिलती है । गाय के गोबर में मिट्टी तत्व है यदि आपको परिक्षण के लिए शुद्ध मिट्टी चाहिए तो गाय के गोबर से शुद्ध मिट्टी तत्व का उदहारण आपको कही नहीं मिलेगा । आक्सीजन भी भरपूर है यानि गोबर से ही वायु तत्व की पूर्ति हो रही है ।
* यह ध्यान रखें कि गाय के गोबर की भस्म बनाने का एक तरीका है , तभी आपको परिष्कृत शुद्ध आक्सीजन तथा पूर्ण तत्व मिल पायेगा । गाय के गोबर की भस्म मकर संक्रांति के बाद बनायीं जाती है ।

सूर्योदय से पहले यानि चार बजे आपको उठना है और देशी गाय के गोबर  को किसी कुचालक बस्तु में रोपना है । गोबर को किसी भी प्रकार से जमीन से ना छूने दें । फिर इस किसी लकड़ी या कुचालक धातु से पतला फैलाएं । 

ध्यान रहे प्लास्टिक के पात्र में ना गोंबर लेना है और ना ही प्लास्टिक से या प्लास्टिक पर इस गोबार को फैलाना है क्योंकि इसमें 0.02 मिली वोल्ट करंट होता है । 

इसको लकड़ी के पात्र में फैलाकर सुखा लें फिर घी डालकर इसे जला दीजिये । 
यह क्रिया मकर संक्रांति से वारिश के बीच ही करनी है । उसके बाद नहीं करनी है । 

गौ - भस्म के लाभ 
अगर आप गौ-भस्म को ध्यान से पढ़ेगें तो पायेंगे कि यह गौ भस्म ( राख ) आपके लिए कितनी उपयोगी है । 
साधू -संत लोग संभवतः इन्ही गुणों के कारण इसे प्रसाद रूप में भी देते थे । जब गोबर से बनायीं गयी भस्म इतनी उपयोगी है तो गाय कितनी उपयोगी होगी यह आप सोच सकते है । 

आपको एक लीटर पानी में 10-15 ग्राम यानि 3-4 चम्मच भस्म मिलाना है , उसके बाद भस्म जब पानी के तले में बैठ जाये फिर इसे पी लेना है । इससे सारे पानी की अशुद्धि दूर हो जाएगी और आपको मिलेगा इतने पोषक तत्व । यह लैबोटरी द्वारा प्रमाणित है ।

* तत्व रूप / ELEMENT FORM
१. ऑक्सीजन O = 46.6 %
२. सिलिकॉन SI = 30.12 %
३. कैल्शियम Ca = 7.71 %
४. मैग्नीशियम Mg = 2.63 %
५. पोटैशियम K = 2.61 %
६. क्लोरीन CL = 2.43 %
७. एल्युमीनियम Al = 2.11 %
८. फ़ास्फ़रोस P = 1.71 %
९. लोहा Fe = 1.46 %
१०. सल्फर S =1.46 %
११. सोडियम Na = 1 %
१२. टाइटेनियम Ti = 0.19 %
१३. मैग्नीज Mn =0.13 %
१४. बेरियम Ba = 0.06 %
१५. जस्ता Zn = 0.03 %
१६. स्ट्रोंटियम Sr = 0.02 %
१७. लेड Pb = 0.02 %
१८. तांबा Cu = 80 PPM
१९. वेनेडियम V=72 PPM
२०. ब्रोमिन Br = 50 PPM
२१. ज़िरकोनियम Zr 38 PPM

आक्साइड रूप :-
१. सिलिकाँन डाइऑक्साइड - SIO2 = 64.44%
२. कैल्शियम ऑक्साइड CaO =10.79 %
३. मैग्नीशियम ऑक्साइड MgO = 4-37 %
४. एल्युमीनियम ऑक्साइड AI2O3 = 3.99%
५. फास्फोरस पेंटाक्साइड P2O5 = 3.93%
६. पोटेशियम ऑक्साइड K2O = 3.14 %
७. सल्फर ऑक्साइड SO3 = 2.79%
८. क्लोरीन CL=2.43 %
९. आयरन ऑक्साइड Fe2O3=2.09%
१०. सोडियम ऑक्साइड Na2O = 1.35 %
११. टाइटेनियम ऑक्साइड TiO2 = 0.32%
१२. मैंगनीज ऑक्साइड MnO = 0.17 %
१३. बेरियम ऑक्साइड BaO = 0.07 %
१४. जिंक ऑक्साइड ZnO = 0.03%
१५. स्ट्रोंटियम ऑक्साइड SrO = 0.03%
१६. लेड ऑक्साइड PbO = 0.02%
१७. वेनेडियम ऑक्साइड V2O5 = 0.01 %
१८. कॉपर ऑक्साइड CuO = 0.01%
१९. जिरकोनियम ऑक्साइड ZrO2 =52 PPM
२०. ब्रोमिन Br = 50 PPM
२१. रुबिडियम ऑक्साइड Rb2O = 32 PPM

शुद्ध भस्म प्राप्त करने सम्पर्क 
ब्रजराज गौशाला
व्हाट्स एप 9009363221

गौ मूत्र फिनायल बनाने की विधि (केमिकल रहित)

             *सामग्री* गौ मूत्र      *एक लीटर* नीम पत्र    *200 ग्राम सूखा* पाइन आयल इमल्सीफायर युक्त     *50 ग्राम* उबाला हुआ पा...