#पद्मश्री
इस बार पद्म सम्मान भी हुए सम्मानित
इस बार पद्म सम्मान भी हुए सम्मानित
बीड।
महाराष्ट्र के गौ-सेवक शेख शब्बीर मामू उम्र 55 साल।
25 जनवरी की रात जारी पद्म अवार्ड की सूची में इनका नाम रखा गया है।
कारण- पिछले 50 साल से बिना किसी स्वार्थ के गौ सेवा कर रहे हैं।
अपनी 50 एकड़ जमीन पर 175 गाय-बैलके लिए चारा उगाते हैं।
इन्होंने 10 साल की उम्र में अपने पिता का स्लॉटर हाउस बंद कराया और गौ-सेवा में जुट गए।
महाराष्ट्र के गौ-सेवक शेख शब्बीर मामू उम्र 55 साल।
25 जनवरी की रात जारी पद्म अवार्ड की सूची में इनका नाम रखा गया है।
कारण- पिछले 50 साल से बिना किसी स्वार्थ के गौ सेवा कर रहे हैं।
अपनी 50 एकड़ जमीन पर 175 गाय-बैलके लिए चारा उगाते हैं।
इन्होंने 10 साल की उम्र में अपने पिता का स्लॉटर हाउस बंद कराया और गौ-सेवा में जुट गए।
इनका पूरा परिवार गौ-सेवा करता है।
आइए जानते हैं इनसे जुड़ी कुछ बातें.....ये हैं गौ-सेवक शेख शब्बीर मामू, 50 साल से अपनी 50 एकड़ जमीन पर चारा उगाकर पाल रहे 175 गाय-बैल, 10 साल के थे तब पिता से कहा था- बंद कीजिए स्लॉटर हाउस- एक छोटे से कस्बे में रहने वाले शेख शब्बीर मामू पद्मश्री पुरस्कार की सूची में नाम आने के बाद से सेलिब्रिटी बन गए हैं।
उन्हें गौ-सेवा के लिए पद्मश्री से नवाजा जा रहा है।- शब्बीर को नहीं पता कि उन्हें कौन-सा पुरस्कार दिया जा रहा है।
कभी उन्होंने इसके बारे में सुना भी नहीं था। वे कहते हैं उन्होंने सिर्फ बिना किसी स्वार्थ के गौ-सेवा की है।-
वे गौवंश को बचाने का काम पिछले 50 सालों से कर रहे हैं जिसके लिए अपनी 50 एकड़ जमीन पर खेतीबाड़ी नहीं करते, बल्कि चारा उगाते हैं और उसी से गौवंश को पालते हैं।-
शेख शब्बीर ने बताया कि उनके पिता का कत्लखाना था। 10 साल की उम्र में उन्होंने कई जानवरों उसमें कटते देखा था। इसका उन पर काफी गहरा असर पड़ा। उन्होंने पिता से कत्तलखाना बंद करवाया।
- इसके बाद खुद 10 गायें लेकर आए और उन्हें पालने में लग गए। इसके बाद से शुरू हुआ ये सिलसिला आज भी जारी है। इलाके में लोग उन्हें शेख शब्बीर मामू के नाम से जानते हैं।
- जब किसी गाय को बच्चा होता है तो उसकी देखभाल खुद शब्बीर मामू करते हैं। वे इन गायों का गोबर बेचकर अपना घर चलाते हैं जिसके लिए उन्हें सालाना 60 से 70 हजार रुपए मिल जाते हैं।
- वे बताते हैं कि कभी किसी बैल को बेचने की नौबत आए तो खरीददार से लिखकर लेते हैं कि अगर बैल बीमार पड़ता है या फिर काम करने लायक नहीं रहता तो वह वापस उनके पास लाएंगे।
उसकी जितनी कीमत होगी, चुका दी जाएगी पर उसे कत्लखाने में ना भेजा जाए।- 175 मवेशी पालना आसान नहीं है।
पर गौ-सेवा करने वाले शब्बीर मामू का कहना है कि जहां चाह-वहां राह। वे बताते हैं कि कई लोग उनकी मदद करने समय-समय पर आगे आते रहे हैं।
- जब सरकारी अफसरपद्मश्री मिलने की खबर को लेकर उनके पास पहुंचेतब वे अपने तबेले में थे। मोबाइल फोन इस्तेमाल नहीं करते तो उनके आने तक वेट करना पड़ा।
शब्बीर कहते हैं मैंने कभी किसी अवार्ड के लिए काम नहीं किया।- उनके दो बच्चे और बहुएं हैं।
वे भी शब्बीर की राह पर ही चल रहे हैं।शब्बीर के बेटे कहते हैं कि हमने पिता से सीखा है कि गौ-सेवा में ही सुकून है। हम पिता का ये काम आगे भी जारी रखेंगे।
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