केवांच को कोंच ,आलकुंषि, कोंचा, केवच,संस्कृत में कपिकच्छु, आत्मगुप्ता आदि नामों से जाना जाता है.....
कौंच की बेल होती है और यह भारत के गर्म स्थानों पर अधिक पाई जाती है.....यह एक प्रकार की जंगली औषधि है,,,जिसके पत्ते या फल के रोएं यदि शरीर पर लग जाये तो बहुत खुजली होने लगती है....
कौंच की बेल जून-जुलाई के महीने में पैदा होकर सितम्बर-नवम्बर में फूलती है....इसकी बेल झाड़ियों और पेड़ों पर फैलती है। इसके पत्ते 6 से 9 इंच लंबे व 3 पत्तों में होते हैं....
इसके फूल एक से डेढ इंच लंबे, नीले या बैंगनी रंग के होते हैं..... इसकी फली 2 से 4 इंच लंबी और लगभग आधी इंच चौड़ी होती है.... फलिया गुच्छों में लगती है जिस पर सुनहरे व बारीक रोंए होते हैं.. इसके फली के अन्दर बीज होते हैं और इसका छिलका सख्त होता है...
इसके बीज,जड़,टहनी,फूल,पत्तियाँ सभी का औषधिय महत्व है.....।
केवच दो प्रकार की होती हैं,, कम रोयेंदार जिसकी फलियाँ पर बहुत ही कम रोये होते हैं जिसकी बहुत ही स्वादिष्ट सब्जी बनती हैं,, ओर एक अधिक रोयेंदार जिसका केवल औषधीय उपयोग लिया जाता हैं,,
केवच दो प्रकार की होती हैं,, कम रोयेंदार जिसकी फलियाँ पर बहुत ही कम रोये होते हैं जिसकी बहुत ही स्वादिष्ट सब्जी बनती हैं,, ओर एक अधिक रोयेंदार जिसका केवल औषधीय उपयोग लिया जाता हैं,,
आयुर्वेद के अनुसार : कौंच की गिरी स्वाद में कड़वी,मीठी, तीखी, गर्म और मन व मस्तिष्क को शांत करने वाली होती है... इसका फल मीठा होता है....
यह धातु को बढ़ाने वाला, बलदायक, पाचनशक्ति को बढ़ाने वाला, वात, पित्त, कफ और खून की खराबी को दूर करने वाला होता है... इसका बीज पावडर #यौन रोगों में अचूक औषधि हैं,यह यौन शक्ति को बढ़ाता हैं। यह दर्द, कमजोरी, पेशाब की बीमारी,दिल की बीमारी, गर्भाशय की कमजोरी, आंखों की रोशनी, वात रोग, चेहरे की सुन्दरता, प्रदर रोग, प्रसूता रोग आदि में भी गुणकारी है। इसे महिला या पुरुष आराम से खा सकते हैं।
पहले हमारे गांव के आसपास भी इसकी बेल मिल जाती थी पर अब दर्शन दुर्लभ है,,
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