Friday 31 August 2018

Secularism

 समाज सेवा और राष्ट्र सेवा में सीधे अन्यायी सरकार से विरोध लेना होगा 
*प्रश्न - संगठन का गठन और संगठन की उपादेयता, उपयोगिता राष्ट्रसेवा में कैसे उपयोगी हो यह जानना चाहता हूँ 

सुरेन्द्र शास्त्री, राजा बलवंत सिंह महाविद्यालय, आगरा   उ0प्र0

*उत्तर ==  आपका प्रश्न सर्वोत्तम है । 
आजकल के लोग कहते हैं कि " राजनीति में धर्म नहीं होना चाहिए" 
 किंतु यह सत्य है कि धार्मिक, विद्वान, तपस्वी महात्मा, ब्राह्मण और क्षत्रिय जब राजा के कार्य अकार्य  को देखना बन्द कर देते हैं, और उदासीन हो कर कहने लगते हैं कि " हमें क्या लेना देना है, सब भगवान की लीला है " तो राजा निरंकुश हो जाता है । 

एक दिन ऐसा आता है कि फिर वही राजा, व्यभिचारी लोभी कामी, अन्यायी लोगों को एकत्रित करके ब्राह्मणों और तपस्वी महात्माओं को न तो धर्म करने देता है और ब्राह्मणों, तपस्विओं का दमन करके निर्बल असहाय प्रजा के धन को तथा अधिकारों को बलात् छीन लेता है ।" 

भागवत के चौथे स्कन्ध के  14 वें अध्याय के 40 वें और 41 वें श्लोक में अधार्मिक राजा वेन के धार्मिक अनुष्ठान बंद कराने के बाद सभी विद्वान तपस्वी ब्राह्मणों ने एक संगठन बनाते हुए आपस में विचार विमर्श करते हुए  कहा कि
 *चोरप्रायं जनपदं हीनसत्वमराजकम् ।
लोकान् नावारयञ्छक्ताः अपि तद् दोषदर्शिनः ।।41।।*

विद्वान तपस्वी ब्राह्मणों तथा महात्माओं के राजकाज से उदासीन होने के कारण, सारे राज्य की प्रजा प्रायः चोर हो गई । राजा अन्यायियों का साथी हो गया,इसलिए निर्दोषियों को सजा और दोषियों को राजदण्ड से मुक्ति मिलने लगी । 
प्रजा निर्बल हो गई ।राजा होते हुए भी ऐसा लगता था कि जैसे सम्पूर्ण राज्य बिना राजा के है । " 

जिस देश का कोई राजा नहीं होता है और प्रजा के बलवान लोग निर्बलों की स्त्रियों का तथा निरीह प्रजा के धन का बलात् उपयोग करते हैं, इसी को अराजकता कहते हैं "।

 यद्यपि विद्वान तपस्वी ब्राह्मण, तथा तपस्वी महात्मा और क्षत्रिय इस अत्याचार को रोक सकते थे ।लेकिन वे उदासीन होकर कहने लगे कि" हमें क्या लेना देना है" । 

इनकी  उदासीनता के कारण राजा इनपर ही अत्याचार करने लगा था ।तब सबने एकत्रित होकर कहा कि शास्त्रों में कहा है कि --

*" ब्राह्मणः समद्रक् शान्तो दीनानां समुपेक्षकः ।
स्रवते ब्रह्म तस्यापि भिन्नभाण्डात् पयो यथा ।।41 ।।*

ब्राह्मण वेदों का कितना भी बड़ा विद्वान हो, सभी जीवों में समान दृष्टि रखता हो, योगियों के समान उसका मन शान्त हो,लेकिन ऐसा ज्ञानी ब्राह्मण यदि राजा के द्वारा किए जाने वाले अत्याचार से पीड़ित प्रजा को दुखी देखते हुए भी शान्ति से देखता हुआ उपेक्षाकरता है तो उसका वेदज्ञान बुद्धि से ऐसे धीरे धीरे बह जाता है,जैसे छिद्रवाले घड़े से धीरे धीरे पानी बह जाता है । 

अर्थात ऐसा वेदज्ञानी ब्राह्मण का वेदज्ञान व्यर्थ है,तथा तपस्वी महात्मा का ऐसा तप व्यर्थ है,तथा क्षत्रिय की शूरबीरता व्यर्थ है,जो राजा के द्वारा किए जाने वाले अत्याचार से पीड़ित प्रजा को देख रहे हैं । 

जब राजा के अत्याचारों को रोकने में समर्थ ब्राह्मण और महात्मा  एकत्रित होकर नहीं रोकेंगे, तो मनबढ़ा राजा इनपर भी अत्याचार ही करेगा ।फिर कितने दिन वेद पढ़ लेंगे और कहां तपस्या कर लेंगें ? 

स्वामी श्री करपात्री महाराज  तथा ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य श्रीकृष्णबोधाश्रम जी महाराज, पुरी के शंकराचार्य श्री निरंजन देव तीर्थ जी महाराज आदि सभी तपस्वी,ब्रह्मज्ञानी समदर्शी महात्मा थे ।

लेकिन सबकुछ त्यागकर आजादी के बाद गौहत्या कानून के लिए नेहरू सरकार से,इन्दिरा सरकार से लड़ रहे थे ।

काशी के सभी विद्वानों ने इन महात्माओं का साथ दिया था ।कितनी बार जेल जा रहे थे,इन्दिरा सरकार के अत्याचार सह रहे थे ।लेकिन पीछे नहीं हटे 

करपात्री जी महाराज पर जेल में ही इन्दिरा गांधी के अनुमोदन से लाठियां बरसाईं थीं ।उसमें स्वामी जी की आंख चली गई थी ।लेकिन वे फिर भी नहीं माने ।

आज जो कहीं गोहत्या निवारण हेतु कानून बना है ,वह सब उन्हीं महात्माओं और ब्राह्मणों की देन है ।

हमारे पूज्य गुरूदेव श्री राजवंशी द्विवेदी वृन्दावन सुनाया करते थे तो रोम रोम कांप जाता है । 

" समाज सेवा और राष्ट्र सेवा में सीधे अन्यायी सरकार से विरोध लेना होगा ।प्राण भी जा सकते हैं । क्यों कि अन्याय करनेवाला हिंसक ही होता है । सबकुछ त्यागना होगा ।तभी आज राष्ट्र सेवा और प्रजा सेवा हो पाएगी ।

आज के अत्याचारों का विरोध करने के लिए आमरण संकल्प चाहिए ।बीरता चाहिए ।समूह चाहिए । 

पत्नी के आंचल में छिपनेवाले,बच्चों की किलकारियों में खुश होनेवाले , एक एक रुपया और एक गज जमीन के लिए लड़नेवाले लोगों का मार्ग नहीं है ये । "

 उत्तिष्ठ,जाग्रत,वरान् निबोधत " उठो ,जागो और श्रेष्ठ मार्ग और श्रेष्ठ गुरु जनों का वरण करो ।।राधे राधे ।
*-आचार्य ब्रजपाल शुक्ल, वृन्दाबन धाम*

Jaivik Kheti

जैविक फलों की खेती के लिए देशभर में मशहूर है ये महिला, पीएम मोदी करेंगे सम्मानित

मध्यप्रदेश की महिला किसान ललिता मुकाती ने 36 एकड़ में जैविक पद्धति से चीकू, सीताफल और कपास का रिकार्ड उत्पादन कर दिखाया। यदि सब कुछ ठीक रहा तो जल्द ही वह इन जैविक फलों की निर्यातक भी बन जाएंगी।
यही नहीं वे गांव की महिलाओं का समूह बनाकर उन्हें भी जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित कर रही है। केंद्र सरकार ने उन्हें देश की उन 114 महिला किसानों में शामिल किया है, जिन्होंने भारतीय कृषि में बेहतरीन योगदान दिया है। इन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सम्मानित करेंगे। हालांकि तारीख तय नहीं है।
कुछ साल पहले तक 50 वर्षीय ललिता सुरेंशचंद्र सामान्य किसान परिवार में एक बहू, मां और पत्नी की जिम्मेदारी बखूबी निभा रही थीं। एमएससी एग्रीकल्चर की डिग्री लेकर पति ने उन्नत खेती शुरू की। उनकी इस पहल को वे करीब से देखती समझती रहीं। बैंकर और डॉक्टर बेटियों के करियर में व्यस्त होने के बाद 10 साल पहले उन्होंने खेती संभाली। वहीं से यह सफर शुरू हुआ।
ललिता ने बताया कि उनके परिवार की करीब 100 एकड़ जमीन है। कृषि कार्य में पति का हाथ बंटाने को घर से खेतों तक पहुंचने के लिए उन्होंने पहले स्कूटी चलाना सीखी और धीरे-धीरे खेती के उपकरण भी। ट्रैक्टर चलाना भी सीखा। रासायनिक खादों के दुष्प्रभावों को देखते हुए तीन वर्ष पूर्व जैविक खेती करने का मन बनाया। इसके लिए 36 एकड़ जमीन में से 25 एकड़ में सीताफल, छह में चीकू और पांच एकड़ में कपास की फसल लगाई। वर्मी कम्पोस्ट, गौ मूत्र, छांछ, वेस्ट डी-कम्पोसर आदि का उपयोग किया। साथ ही खेत और घर में गोबर गैस प्लांट व सोलर पंप भी लगाए।
मप्र शासन की योजना के तहत मुकाती दंपती ने जर्मनी और इटली जाकर वहां की जाने वाली आधुनिक व उन्न्‍‌त खेती की तकनीक भी सीखी। साथ ही जिले के कृषि विज्ञान केंद्र व देश में कई स्थानों पर जैविक खेती की कार्यशालाओं व प्रशिक्षण में भाग लिया। दो वर्ष पूर्व 36 एकड़ जैविक खेती वाले हिस्से का पंजीयन मप्र जैविक प्रमाणीकरण बोर्ड में भी कराया। 
सुरेशचंद्र मुकाती ने बताया कि पंजीयन पश्चात प्रतिवर्ष बोर्ड द्वारा खेत का सूक्ष्म निरीक्षण किया जा रहा है। अगले वर्ष निरीक्षण पश्चात जैविक खेती का प्रमाणित होने पर जैविक खेती के उत्पाद विदेशों को निर्यात कर सकेंगे। वर्तमान में जैविक सीताफल व चीकू महाराष्ट्र, गुजरात सहित दिल्ली तक बेच रहे हैं। इनका भाव सामान्य फलों की तुलना में लगभग डेढ गुना मिलता है।
दिल्ली में जल्द ही होने वाले रियलिटी शो और अवॉर्ड के आयोजन की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। आयोजन में 114 कृषक महिलाओं में से चयनित तीन महिलाओं को विशेष पुरस्कार भी दिए जाएंगे। हाल ही में दूरदर्शन की टीम ने बोरलाय पहुंच कर ललिता मुकाती का प्रोफाइल वीडियो शूट किया है।
(Courtesy- Jagaran News )

Tuesday 28 August 2018

*प्रश्न==* सन्मार्ग और सत्कर्म के पथ पर इतने  अवरोध, विरोध और व्यवधान उपस्थित क्यों होते हैं ?उसका समाधान क्या है ? डर और अनिश्चितता जीवन से कैसे समाप्त हो ? 
सुरेन्द्र शास्त्री ,आर . बी . ऐस. कालेज आगरा उ. प्र. ।

*उत्तर ==*  कभी कभी स्वयं भी विचार करना चाहिए । जैसे अपनी आजीविका के लिए तथा परिवार के लिए योजना बनाते हैं, उसी प्रकार सन्मार्ग और सत्कर्म के लिए भी योजना बनानी चाहिए । 

परिवार पालन के लिए और आत्मप्रतिष्ठा सम्मान के लिए आप अपने ही माता पिता, भाई बन्धु, मित्र, समाज आदि की बात नहीं मानते हैं,और अपने मन की करके ही सांस लेते हैं । 

" लोग क्या कहेंगे" इसकी भी चिंता नहीं करते हैं, कितना भी संघर्ष क्यों न करना पड़े,  लेकिन उस काम को करते ही  हैं । 

क्यों कि इनके मोहपाश में आपका मन ऐसा बंधा हुआ है कि "पति, पत्नी और संतान के अतिरिक्त और किसी के लिए आप कुछ अधिक करने को तैयार नहीं हैं । 

जितना आप अपनी पत्नी और बच्चों के लिए करने को तैयार हैं,इतना अपने माता पिता को भी करने को तैयार नहीं हैं ।

जब कि माता पिता ने आपकी जितनी सुरक्षा की है,ध्यान दिया है,प्रेम किया है,उतना पत्नी ने न कभी किया है और न ही करेगी ।

इसी प्रकार एक पुत्री के लिए उसके माता पिता ने जो किया है,उसका पति भी कभी नहीं करेगा, लेकिन आप कुछ वर्षों तक भी माता पिता की सेवा के लिए तैयार नहीं हैं । आपका मन जैसा है,वैसा ही तो सबका है । 

दूसरों के लिए जैसे आप व्यवधान हैं, आप दूसरों का विरोध करते हैं,तो दूसरे भी आपका विरोध करते हैं । आप दूसरों के लिए अवरोध हैं तो दूसरे आपके लिए अवरोध हैं । 

सन्मार्ग और सत्कर्म तो आपके मन से विरुद्ध मार्ग है । "भागवत के 5 वें स्कन्ध के 5 वें अध्याय का 5 वां और छठवां श्लोक देखिए "

*पराभवस्तावदबोधजातो यावन्न जिज्ञासत आत्मतत्त्वम् ।यावत्क्रियास्तावदिदं मनो वै कर्मात्मकं येन शरीरबन्धः ।।5।।*

ऋषभदेव जी ने अपने पुत्रों से कहा कि जब तक इन स्त्री पुरुष के शरीरधारी मनुष्य को आत्मा को जानने की इच्छा उत्पन्न नहीं होगी ,तब तक  उनको अज्ञान के कारण  संसार ही सत्य लगेगा,और संसार के कर्म ही मुख्य लगेंगे ।शरीर के सुख ही सुख लगेंगे । 

शरीर के लिए और सम्बन्धियों के लिए ही कर्म करता रहेगा ।न उसे सन्मार्ग का सही ज्ञान होगा और न ही सत्कर्म का ।

जब तक सांसारिक क्रिया करता रहेगा,तब तक मन कर्म में ही आसक्त रहेगा, और जबतक मन अज्ञान के कर्म करता रहेगा,तब तक उसकी प्रवृत्ति त्याग की नहीं होगी । 

जब तक त्याग नहीं करेगा,तब तक न तो स्वयं सन्मार्ग और  सत्कर्म की ओर पूर्ण रूप से जाएगा और न ही किसी को जाने देगा,और न ही जन्म मरण से मुक्ति ही होगी  । अब आगे का श्लोक देखिए , 

*एवं मनः कर्मवशं प्रयुंक्ते अविद्ययात्मन्युपधीयमाने । 
प्रीतिर्न यावन् मयि वासुदेवे न मुच्यते देहयोगेन तावत् ।।6।।*

हे पुत्रो ! इसप्रकार से आत्मतत्त्व की तथा परमात्मा की जिज्ञासा उत्पन्न न होने के कारण सभी अज्ञानी स्त्री पुरुषों का मन सांसारिक कर्मों के वशीभूत होकर विविध प्रकार के दुखदायक कर्मों को करते रहते हैं ।

न स्वयं करते हैं और न ही दूसरों को करने देते हैं । जब तक भगवान वासुदेव में प्रेम नहीं उत्पन्न होता है,तब तक बार बार जन्म होगा,और मरण भी होगा । 

अर्थात मात्र पति,पत्नी,बच्चे के लिए किए जानेवाले कर्मों को ही जब तक जीवन की पूर्ण सार्थकता मानते रहेंगे,तब तक आपके जैसे ही मनुष्य सत्कर्म और सन्मार्ग के अवरोध,विरोध बनते रहेंगे ।

किसी ज्ञानविज्ञान सम्पन्न गुरु की शरण ग्रहण कीजिए,और उनकी सेवा करके उनकी आज्ञा का पालन करिए । आपका अनिश्चित जीवन निश्चित,  निश्चिंत और आनन्दपूर्ण हो जाएगा । 

आपने संसार के सुख के लिए भगवान और महापुरुषों का त्याग किया है , अब कुछ दिन के लिए भगवान और महापुरुषों के लिए संसार के सुखों का त्याग करके देख लीजिए ।

  घर में रहते हुए समय से ब्रह्ममुहूर्त में जागना, समय से सोना, सात्विक भोजन करना, किसी की निंदा न करना, सबका आदर करना, समय समय पर महापुरुषों की सेवा करना, कम बोलना, और सत्य सार्थक बोलना,इतने ही नियमों को एकवर्ष पालन करके देख लीजिए, बस इतने से ही आपको सभी लोग सत्मार्ग और सत्कर्म में सहयोग करने लगेंगे ।

न कोई विरोध करेगा और न ही कोई अवरोध उत्पन्न करेगा । 
राधे राधे ।

*-आचार्य ब्रजपाल शुक्ल, श्रीधाम वृन्दाबन*

Rich Ayurveda Poor Aloe path


अमीर आयुर्वेद व गरीब ऐलोपैथ में अंतर!!
वर्तमान समय की यही सबसे बड़ी सच्चाई है कि औषध चिकित्सा के मामले में ऐलोपैथ बिल्कुल असहाय, निरीह व गरीब सा नज़र आ रहा है, वहीँ आयुर्वेद अपने प्राकृतिक सिद्धांतो के कारण प्रभावकारी, समृद्ध व अमीर सा नज़र आता है।
इस उदाहरण से आयुर्वेद की अमीरता को और अच्छे से समझते हैं:

एक 40 वर्षीय पुरुष रोगी ऐलोपैथ डॉक्टर के पास: सर मुझे कमर में कई दिनों से असहनीय दर्द हो रहा है, कई बार यह दर्द पैरो की तरफ जाता है जिससे चलने में परेशानी होती है, इसके अलावा गर्दन में भी दर्द रहता है जो कन्धों की ओर बढ़ता हुआ आ रहा है, हाथ-पैरों में जकड़न रहती है, थकान-कमजोरी भी रहती है। मेरा कार्य ऑफिस में कंप्यूटर पर बैठने का है, वजन लगभग 85 किलो है।


ऐलोपैथ डॉक्टर: रोगी का बी. पी. चेक करने के बाद, आपका बी.पी. 130/90 आया है, वैसे तो यह लगभग नार्मल है, आप एक काम करिये अभी दर्द के लिए एक दवा लिख दी है आप एक-दो दिन इसे खा लीजिये, साथ में कुछ बहुत जरुरी टेस्ट लिखे हैं इनको करवा के मुझसे मिलिए।
टेस्ट का नाम: CBC, RBS, Uric Acid, Lipid profile, Vitamin- D3, Urine- R/M, X-Ray Cervical Spine and C.T. Scan-Lumbar Spine


रोगी: ठीक है सर, टेस्ट काफी सारे लिखे हैं।
ऐलोपैथ डॉक्टर: हाँ, आपकी दिक्कत को सही से समझने के लिए सभी जरुरी हैं।
रोगी: सुबह खाली पेट, बड़ी सी लैब के बाहर लाइन लगाकर खड़ा होकर अपनी बारी का इंतज़ार करने लगा, वहाँ पहुंचने पर उसे यह पता चला जो टेस्ट उसे लिखे गए हैं उनकी जो कुल कीमत है उसमें सिर्फ 500 रूपए ज्यादा देने पर उसके लगभग 40 तरह की जांचों को भी पैकेज में कर दिया जायेगा।

रोगी को लगा चलो अच्छा ऑफर है, इसे भी करवा लेते हैं शायद उसमे कुछ और पता लग जाये।


टेस्ट रिपोर्ट आने के बाद: Vitamin- D3 थोड़ा कम आया, कोलेस्ट्रॉल बॉर्डर लाइन से थोड़ा बढ़ा हुआ आया, बाकी की रिपोर्ट्स नार्मल थीं, X - Ray Cervical Spine and C.T. Scan-Lumbar Spine में Degenerative Changes मिले (जो कि प्रत्येक व्यक्ति में उम्र के हिसाब से स्वाभाविक हैं)

रोगी सभी टेस्ट रिपोर्ट्स को इक्कठा करके अपने ऐलोपैथ डॉक्टर साहब के यहाँ अपनी ऑफिस से छुट्टी लेकर बड़ी टेंशन में पहुंचा। टेंशन के चलते घबराहट बहुत थी, डॉक्टर साहब ने बी.पी. चेक की तो 160/100 निकली।
डॉक्टर साहब ने कहा: जैसा मैंने सोचा था लगभग वैसा ही निकला आपका Vitamin-D3 कम है और कोलेस्ट्रॉल बढ़ा हुआ है, बी.पी. भी बढ़ी हुई है, साथ में X - Ray, C.T. Scan में Arthritis के लक्षण हैं, आप हमारे यहाँ अपनी ECG और करवा लीजिये फिर मैं देखता हूँ क्या करना है।
मरीज़ भगवान को याद करते हुए अपना ECG करवाता है, ECG करवाने के बाद, ECG करने वाले से पूछता भाई कुछ दिक्कत तो नहीं है इसमें, ECG करने वाला कहता है की सर यह तो डॉक्टर साहब ही बताएँगे, आप यह ECG की रिपोर्ट लीजिये और डॉक्टर साहब के रूम के बाहर बैठकर अपने नंबर का इंतज़ार करिये।

मरीज़ अपने नंबर का इंतज़ार करते व बढ़ते हुए सस्पेंस के साथ आखिरकार दोबारा डॉक्टर साहब के कमरे में पहुँचता है।

ऐलोपैथ डॉक्टर: ECG देखते हुए, आपकी ECG से कुछ बेहतर समझ नहीं आ रहा, आपके परिवार में किसी को बी.पी. की शिकायत तो नहीं?

मरीज़: हाँ सर मेरे मम्मी-पापा दोनों को ही बी.पी. की शिकायत हैं।
ऐलोपैथ डॉक्टर: ठीक है, जितना जल्दी हो सके ECHO की जांच करवा लेना बाकी आपको बी.पी., कोलेस्ट्रॉल, Vitamin D3, ताकत व दर्द की कुछ दवाइयां लिख रहा हूँ इनको लीजिये, दर्द वाली जगह के लिए एक Ointment भी लिखा है इसकी मालिश करिये, ठंडी चीज़ों का परहेज करिये, थोड़ा exercise करना शुरू करिये, गर्दन के दर्द के लिए एक cervical pillow ले लीजिये, बाहर हमारी Dietitian बैठी हुई है उससे अपना Diet Chart बनवा लीजिये, ECHO करवा के मुझसे दोबारा मिलिए, तब तक यह दवाएं खाइये। मरीज़ डॉक्टर से, सर कोई घबराने की बात तो नहीं है?

डॉक्टर साहब: नहीं ऐसा तो कुछ विशेष नहीं है, ECHO जब हो जाये तो उसे भी दिखाना, बी.पी. की दवा कभी बंद नहीं होगी, बाकी की दवाओं का देखेंगे की आगे क्या करना है।

रोगी डॉक्टर साहब के कमरे से निकलकर डाईटीसन  के पास पहुँचता है, वह छोटे-मोटे परहेज़ बताती है, रोगी धीरे से डाईटीसन से पूंछता है, कभी-कभी शराब व नान वेज  ले लेता हूँ, इनको ले सकता हूँ, डाईटीसन मुस्कुराते हुए, शराब कम लेना सर, और नान वेज में रेड मीट नहीं लेना बाकी थोड़ा-बहुत ले सकते हैं (रोगी मन ही मन सोचते हुए की चलो कम से कम यह बंद करने को नहीं कहा)

रोगी ने ट्रीटमेंट शुरू कर दिया, समय निकालकर ECHO भी करवा लिया, वह नार्मल आया, डॉक्टर साहब से मिलकर थोड़ा निश्चिंत भी हो गया, दवाएं खाते हुए 1 महीना हो गया, चीज़ों में थोड़ा आराम मिला, बी. पी. नार्मल, कोलेस्ट्रॉल नार्मल, Vitamin D3 थोड़ा बढ़ गया, वजन भी इस बीच में 3 किलो और बढ़ गया, डॉक्टर साहब ने सभी दवाएं लगातार  दवा की  जरुरत बताया और खाने को कहा, 


रोगी फिर से दवाएं 1 महीने खाता है, लेकिन जब भी दर्द की दवा या ताकत की दवा नहीं लेता तो दर्द और कमजोरी फिर वैसी ही हो जाती है, फिर से डॉक्टर साहब को अपनी परेशानी बताता है, इसके साथ-साथ रोगी को अब एक और नई परेशानी हो जाती है कि अब उसे कब्ज भी रहने लगती है और कभी-कभी एसिडिटी भी बहुत बढ़ जाती है, घुटनो में भी अब दर्द होने लगा है।

ऐलोपैथ डॉक्टर: मैं आपकी दर्द की दवा में बदलाव कर रहा हूँ यह थोड़ा कम नुकसान करेगी इसे आप रेगुलर खा सकते हैं, साथ में पेट साफ़ के लिए एक दवा और लिख दी है इसे रात में सोते समय आप खाना, और सुबह खाली पेट की एक छोटी सी दवा और है इससे आपको एसिडिटी बिल्कुल नहीं होगी,

दर्द असहनीय होने पर डॉक्टर साहब से मिला तो उन्होंने फिजियोथेरेपी करवाने की सलाह दी, कुछ दिन लगातार इसे भी करवाया लेकिन कोई विशेष लाभ नहीं मिला, 

ऐसा ही अगले 3-4 महीने चलता है रोगी जब दवा खाता है तो आराम, नहीं खाता तो फिर से वही परेशानी, अपने ऐलोपैथ डॉक्टर के पास जाकर रोगी यह परेशानी बताता है, डॉक्टर साहब कहते हैं कि चलने दीजिये, यह दवाएं तो आपको खानी होंगी, थोड़ा वजन कम करिये तो अच्छा फायदा हो सकता है।

आखिरकार रोगी को लगता है कि इस बड़े से सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के बड़े से सुपर स्पेशिलिस्ट डॉक्टर साहब के अलावा के विकल्पों को तलाशा जाये, अपने जानने वालों, अपनी ओर से नेट आदि पर सर्च करने के बाद उसे लगता है कि आयुर्वेद में ट्रीटमेंट कराया जाये।

रोगी आयुर्वेद डॉक्टर के पास जाता है: शुरू से अंत तक अपनी जानकारी आयुर्वेद डॉक्टर को देता है, डॉक्टर साहब से पूछता है कि सर मेरी दिक्कत सही क्यों नहीं हो रही टेस्ट में जो आ रहा है वह कुछ दिनों की दवाओं को खाने के बाद ठीक तो होता है लेकिन जैसे ही दवाएं बंद करता हूँ तो स्थिति फिर से वैसी हो जाती है।

आयुर्वेद डॉक्टर: आप जिस ऑफिस में रहते हैं वहां A.C. है, चाय कितना पीते हैं?
मरीज़ बड़े उत्साह से: हाँ सर मेरे ऑफिस और घर दोनों जगह A.C. है, चाय ऑफिस में रहने की वजह से 3-4 या कभी-कभी इससे भी ज्यादा हो जाती हैं, डॉक्टर साहब मेरी दिक्कत क्या है? क्या आप इसे बता सकते हैं? क्या आप इसे सही कर सकते हैं?

आयुर्वेद डॉक्टर: थोड़ा सा मुस्कुराते हुए, जी मैं आपको सबसे पहले आपकी दिक्कत को समझाता हूँ, आप समझ सकेंगे कि दिक्कत क्या है और इस दिक्कत का उपचार हमारे पास न होकर आपके पास ही है।

आयुर्वेद डॉक्टर की यह बात सुनकर मरीज़ थोड़ा चकराता है और अपनी समस्या का उपचार खुद से ही समझने के लिए और उत्सुक हो जाता है।
आयुर्वेद डॉक्टर: आपकी समस्या से जुडी दिक्कत के विषय में आपको समझाता हूँ, आप सबसे पहले हमारे शरीर के कार्य करने के तरीके को समझिये, हमारे शरीर में Blood एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमता है, हम कुछ खाते हैं तो हम उसे गले तक तो पहुंचा देते हैं लेकिन वह अपने आप फिर पेट में जाता है, आंतो में जाता है, हमारे शरीर से मल बनकर शरीर के बाहर भी आता है, कहने का मतलब यह है कि हमारे शरीर में प्राकृतिक रूप से एक वायु मौजूद रहती है जो हमारे शरीर के अंदर की प्रत्येक गति को नियंत्रित करती है, इसी तरह हम सांस लेते हैं वह भी एक तरह की वायु है, आयुर्वेद में हम इसे “वात” कहते हैं।

ठीक ऐसे ही हमारे सभी के शरीर में टॉक्सिन्स (दूषित चीज़ें) बनते हैं जैसे पसीना-यूरिन-मल लेकिन कई बार हम अपने खाने-पीने या रहने की आदतों में बदलाव कर लेते हैं जिससे यह मल शरीर से सही से बाहर नहीं आ पाते, जैसे आप ज्यादा समय A.C. में रहते हैं जिससे आपको पसीना नहीं आता, नान वेज खाते हैं, शराब पीते हैं, अधिक चाय पीते हैं, देर से पचने वाले खान-पान या तली-भुनी चीज़ों को अधिक खाते हैं, लगातार काम में बिजी रहने की वजह से शारीरिक श्रम कम करते हैं, शाम को खाना अधिक खाते है और उसके तुरंत बाद सो जाते हैं, इन सभी कारणों से शरीर में दूषित चीज़ें बढ़ जाती हैं, जो शरीर में रहने वाली वायु की वजह से एक जगह से दूसरी जगह पहुँच जाती हैं, जिससे शरीर में दर्द रहना-जकड़न रहना सूजन रहना आदि दिक्कत हो जाती है, आयुर्वेद में हम इसे "आम" कहते हैं।

ऐसे ही हमारी पृथ्वी पर Gravity (गरूत्वाकर्षण) मौजूद है, जिसकी वजह से कोई भी चीज़ ऊपर से नीचे की ओर आती है, शरीर में भी यह सिद्धांत लागू होता है, आयुर्वेद में भी वात की गति को ऊपर से नीचे की ओर माना गया है, इसे आयुर्वेद की भाषा में “वात की अनुलोम गति” कहते हैं, लेकिन जब शरीर में रूखी चीज़े और गरिष्ठ चीज़ें लगातार पहुँचती हैं तो शरीर में भी रुखापन बढ़ जाता है, जिससे वात की गति नीचे न जाकर ऊपर को हो जाती है इसे आयुर्वेद में “वात की प्रतिलोम गति” माना गया है जो बीमारियों को बढाती है, आप खान-पान तो गलत कर ही रहें हैं साथ में केमिकल वाली दवाओं के लेते रहने से यह रूखापन और बढ़ गया है को इसलिए ही आपको कब्ज और एसिडिटी बढ़ी है।

अब आपको करना यह है की आपको अपने खाने-पीने में बदलाव करना है, अपनी दिनचर्या में बदलाव करना है आयुर्वेद में हम इसे "निदान परिवर्जन" कहते हैं, अनावश्यक तनाव से बचना है, साथ में आयुर्वेद की कुछ वात को अनुलोम करने वाली दवायें, टॉक्सिन्स (आम) को निकलने व शमन करने वाली दवाओं का सेवन करने से आप स्वस्थ हो सकते हैं, इसलिए आरम्भ में मैंने आपसे कहा था कि इस समस्या का उपचार आपके हाथ में है।

आयुर्वेद चिकित्सक के द्वारा समझाई गई यह प्राकृतिक थ्योरी रोगी को समझ में भी आयी और उसने आयुर्वेद डॉक्टर के बताये अनुसार निदान परिवर्जन व आयुर्वेद चिकित्सा आरम्भ की सिर्फ 2 माह में लाभ हुआ और कुछ माह दवाओं और परहेज के बाद आयुर्वेद दवायें भी बंद कर सके।

यह स्टोरी किसी व्यक्ति विशेष, किसी चिकित्सा पद्धति आदि को नीचा दिखने के उद्देश्य से नहीं बताई है, इसका उद्देश्य वर्तमान समय में ऐलोपैथ जगत के चिकित्सा करने के तरीके, चलन और आयुर्वेद के प्राकृतिक सिद्धांत के द्वारा मिल रहे हज़ारों रोगियों के लाभ पर आधारित अनुभवों पर लिखी है, 

जिसका मकसद सही जागरूकता प्रसारित करना व यह बताना है कि जब तक शरीर में होने वाली समस्याओं का प्राकृतिक तरीके से समाधान नहीं किया जायेगा तब तक रोग में लाभ नहीं मिलता।

 प्रकृति के नियमों के विपरीत चिकित्सा करने से कुछ स्थितियों में अल्पकालिक लाभ तो मिल सकता है लेकिन स्थाई समाधान कभी नहीं, इसलिए प्रकृति की ओर मुड़ें व अधिक से अधिक लोगों को इस विषय पर जागरूक करें, क्योंकि स्वस्थ व्यक्ति ही बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकता है। 

प्राकृतिक संसाधनों व सिद्धांतो से विहीन चिकित्सा को गरीब कहना हितकर है। आयुर्वेद के चिकित्सकों के पास यह अवसर है की वे आयुर्वेद के जीवन शास्त्र को समाज में सही तरह से प्रयुक्त करें ।

Sunday 26 August 2018

toothpaste and hand wash are dangerous for health

टूथपेस्ट और साबुन खतरे में डाल रहा है आपकी जान!
अब तो अधुनिक विज्ञान भी कह दिया फिर भी कब तक रगड़ते रहोगे????????????
टूथपेस्ट व हाथ धोने के साबुन सहित दूसरे उपभोक्ता उत्पादों में जीवाणुरोधी (एंटीबैक्टीरियल) व कवकरोधी (एंटीफंगल) ट्राइक्लोजन के इस्तेमाल से कोलन (बड़ी आंत) में सूजन व कैंसर पैदा हो सकता है.

टूथपेस्ट व हाथ धोने के साबुन सहित दूसरे उपभोक्ता उत्पादों में जीवाणुरोधी (एंटीबैक्टीरियल) व कवकरोधी (एंटीफंगल) ट्राइक्लोजन के इस्तेमाल से कोलन (बड़ी आंत) में सूजन व कैंसर पैदा हो सकता है.

टूथपेस्ट व हाथ धोने के साबुन सहित दूसरे उपभोक्ता उत्पादों में जीवाणुरोधी (एंटीबैक्टीरियल) व कवकरोधी (एंटीफंगल) ट्राइक्लोजन के इस्तेमाल से कोलन (बड़ी आंत) में सूजन व कैंसर पैदा हो सकता है.

शोध के दौरान ट्राइक्लोजन का प्रयोग चूहों पर किया गया.

शोध के निष्कर्ष में कहा गया है कि थोड़े समय के लिए ट्राइक्लोजन की कम मात्रा से कोलन से जुड़ी सूजन शुरू हुई और कोलाइटिस से जुड़ी बीमारी बढ़ने लगी और कोलन से जुड़ा हुआ कैंसर चूहों में देखा गया |

शोध के निष्कर्ष का प्रकाशन पत्रिका 'साइंस ट्रांस्लेशनल मेडिसीन' में किया गया है.

अमेरिका के मैसाचुएट्स-एमहेस्र्ट विश्वविद्यालय के गुओडोंग झांग ने कहा, "इन परिणामों से पहली बार पता चला है कि ट्राइक्लोजन का आंत के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.

पिछले शोध से पता चला था कि ट्राइक्लोजन की अधिक मात्रा का जहरीला प्रभाव पड़ता है, लेकिन स्वास्थ्य पर इसके कम मात्रा का प्रभाव अस्पष्ट था.

इस नए शोध के लिए दल ने चूहों को ट्राइक्लोजन की विभिन्न मात्रा वाले आहार खिलाया.

इसके परिणामों से पता चलता है कि मानव के खून के नमूनों की मात्रा वाले ट्राइक्लोजन की मात्रा चूहों पर इस्तेमाल करने से नियंत्रित जानवरों (चूहों) की तुलना में कोलन की सूजन ज्यादा विकसित दिखाई देती है

शोधकर्ताओं ने इसके बाद और ट्राइक्लोजन के इस्तेमाल से चूहों में कोलन संबंधी सूजन और गंभीर हो गई | 

पंचगव्य औषधियो के चमत्कारिक असर


हमारे आयुर्वेद में दो तरह की औषधि होती है। एक जागृत औषधि दूसरा सुप्त औसधि। जागृत औषधि तुरन्त चमत्कारिक असर करती है।

उदहारण के लिए पहले जब भी लोग बीमार पड़ते थे तो वैध के पास जातें थे। वैध उन्हें आवश्कयता अनुसार तुरंत जड़ी बूटी से औषधि बना कर पिला देते थे और एक या दो खुराक में बीमारी उतर जाती थी।

अब सुप्त औषधी का विज्ञान समझे।
आज जितने भी कम्पनिया औषधि बना रही है। वो बड़े बड़े मशीनों से बना रही है। जिसके कारण उनकी गुणवत्ता कम हो जाती है। रहा सहा कसर सोडियम बेंजोएट नामक जहर जो औषधियों को सुरक्षित रखने के लिए उनमे मिलाया जाता है । वो उसकी गुणवत्ता को और कम कर देता हैं।

परिणाम ये औषधीय काम नही करती है।
और बदनाम आयुर्वेद होता हैं।

पंचगव्य औषधियो के चमत्कारिक असर का विज्ञान
गौमूत्र कभी खराब नही होता है। और गौमूत्र में किसी भी औषधि को मिलाया जाता हैं तो उसकी शक्ति 20 गुणा बढ़ जाती है।

इसलिए पंचगव्य की औसधि जागृत औसधि की श्रेणी में आती है। जो खराब नही होतीं है। इसमें कोई कैमिकल नही मिलाया जाता है। 

जिसका परिणाम यह है कि यह औसधि चमत्कारिक असर करती है।

अगर आयुर्वेद की शक्ति को जानना है तो कृपया एक बार पंचगव्य औसाधियो का सेवन कर के देखे।

गौमाता की कृपा और प्रकृति का वरदान जब किसी औसधि में समाहित हो तो वो कैसे निष्फल हो सकती है। 

किसी भी राज्य में गऊहत्या बंद नहीं होनी चाहिए!

 वैदिक काल में भी गायों की रक्षा करने वाली विशेष सेना होती थी। जैसे आज राष्ट्र की सीमाओं की रक्षा के लिए विशेष सीमा सुरक्षा बल हैं उसी प्रकार वैदिक काल में गायों की रक्षार्थ ‘गोषु योद्धा’ होते थे। स्पष्ट है कि उन कालों में भी गाय की रक्षा का प्रश्न था। उसकी सहज सुरक्षा नहीं थी।

हम सरकारों को चुनते हैं अपनी सुरक्षा के लिए, अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए, अपनी आर्थिक व्यवस्थाओं को संतुलित रखने के लिए इत्यादि। 

जब सरकारें ही इन पर से ध्यान हटा दे तो फिर सरकार क्यों ? किसके लिए ? पिछले 68 सालों में यही होते आया इस कारण भारत में सरकार के ऊपर गौरक्षक दल बना। 

यह गौरक्षक दल भी ‘गोषु योद्धा’ का ही कलयुगी रूप है। इस दल के पुरुषार्थ ने ही भारत में गाय के अस्तित्व को बचाया है। 

जब गाय का विज्ञान सामने नहीं था तब इन्होंने ही कसाईयों के बल को झेलकर गाय को बचाया, भले ही वह धर्म के नाम पर ही क्यों न हो। 

कभी भी किसी गौरक्षक दल के सदस्य को सरकार ने एक फूटी  कौड़ी भी नहीं दिया। उन्होंने अपने सामर्थ से अपना खर्च चलाया और गाय की रक्षा के लिए खर्च किया। इसमें भावना केवल धर्म की रही। जो भी हो, गाय तो बची है। 

यह बात अलग है कि उनमें से कुछ लोगों ने कमाने – खाने का धंधा बना रखा है। गाय के नाम पर बटोरना और खा-पी कर बराबर कर देना। लेकिन प्रश्न उठता है कि ऐसे कितने लोग होंगे ? शायद कुछेक ; एक या दो प्रतिशत। इसके लिए प्रधानमंत्री को गौरक्षक दल के पुरुषार्थ पर सवाल क्यों खड़ा करना पड़ा ? 

कुछ दिनों पूर्व एक समारोह के दौरान पीएम मोदी ने कहा कि, अधिकतर गायें कत्ल से नहीं बल्कि पालीथिन खाने से मरती हैं।

यही प्रधानमंत्री मोदी हैं जिन्होंने कई बार कत्लखानों को जिम्मेदार ठहराया है। देश में कत्लखानों को कलंक बताते हुए अफ़सोस भी प्रकट किया है। यही नहीं बल्कि उन्होंने सरकारों द्वारा कत्लखानों को दी जाने वाली सब्सिडी का भी विरोध किया था। 

आज उन्होंने कहा ‘‘कुछ लोग गौरक्षा के नाम पर अपनी दुकानें खोल बैठे हैं।’’ ये वैसे लोग हैं जो अपने काले कारनामे छिपाने के लिए ऐसा करते हैं। आगे कहा की, मुझे बहुत गुस्सा आता है कुछ लोग जो असामाजिक कामों में लिप्त रहते हैं, वे गौरक्षक का चोला पहन लेते हैं।

उन्होंने सभी प्रदेश के मुख्यमंत्रियों से कहा है कि असामाजिक कामों में लिप्त रहने वाले ऐसे लोग जो गौरक्षक का चोला पहन लेते हैं राज्य सरकारें ऐसे लोगों का डॉजियर तैयार करें। 

उन्होंने कहा कि, अधिकतर गायें कत्ल नहीं की जातीं, बल्कि पॉलीथिन खाने से मरती हैं, अगर ऐसे समाजसेवक प्लास्टिक फेंकना बंद करा दें, तो गायों की बड़ी रक्षा होगी। 

अर्थात् प्रतिदिन कत्लखानों में काटी जा रही लाखों गायों का मामला बस यू ही है और केवल पॉलीथिन ही विषय है। माना की यह भी एक विषय है। लेकिन कत्लखानों में कटती गायों को नाकार नहीं सकते। 

 आज गऊ हत्या पर थोड़ी पाबंदी है तो वह गऊरक्षकों के भय के कारण। सरकार से कोई भय नहीं खाता। क्योंकि सरकार के ज्यादातर नौकरशाह तो बिके हैं। पुलिस तो गऊहत्यारों के पक्ष की है। क्योंकि उनके पास पैसे हैं।
1952 में भी लगभग एक ऐसा ही बयान पंडित जवाहरलाल नेहरु प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए संसद के शीतकाल में दिया था। भारत के सभी मुख्यमंत्रियों से कहा था गऊहत्या का विषय महत्वपूर्ण नहीं है, किसी भी राज्य में गऊहत्या बंद नहीं होनी चाहिए, गऊहत्या बंदी के बिल को कूड़े में फेक  देनी चाहिए। 

इसी के बाद भारत के कसाईयों का मन बढ़ा और वे न्यायालय में चले गए। जहां उन्होंने 1954 में मुकदमा जीता और गउरक्षा का बिल अधर में अटक गया। और आज तक लटका है।

इसके बाद तो इतनी तेजी के साथ गाय काटी गई कि आज वह विनाश के कगार पर खड़ी है। 34 करोड़ से घटकर 3 करोड़ रह गई है। कुछ सालों में जड़-मूल से समाप्त हो सकती है। 

अंगरेजों के पूर्व लगभग 360 नस्लें थी। आज मुश्किल से 72 प्रजातियां बची हैं। जिनमें से 40 की पहचान और अध्ययन की जा चुकी है। शेष के बारे में ज्यादातर लोगों को पता भी नहीं है।

गाय क्यों बचनी चाहिए ? इस प्रश्न का एक ही उत्तर है। ‘‘यतो गावस्ततो वयम्’’। हम मनुष्यों का अस्तित्व करोड़ो वर्षों से धरती पर बचा है क्योंकि धरती पर गाय हैं।

इसलिए प्रधानमंत्री जी जागिये ! और तब तक प्रयास करते रहिये, जब तक भारत में संपूर्ण गऊहत्या बंदी न हो जाए। इसी में आपकी रक्षा है और आपका अस्तित्व भी। 
– जय वंदे गऊ मारतरम् ।

हैंडवाश बनाना बहुत आसान



**संसार का सबसे अच्छा हैंडवाश बनाना बहुत आसान है**
35 % देशी गाय के कंडे का सफेद राख
55 % तालाब की 5 फुट नीचे की काली मिट्टी (मुल्तानी नही)
05 % निम के पते का चूर्ण
05% निम्बू के छिलके का चूर्ण 

एक बोतल में भरकर ढक्कन लगाकर उसमें छेद कर देवे

उपयोग करने की विधि..
पानी से हाथ को गिला कर चूर्ण को हाथों में लेकर पूरे हाथो में चारो तरफ कुछ देर तक रगड़े... और बाद में हाथ धो लेवें..

हाथ बेसिन के जगह पौधों के जड़ो के आस पास धोये जिससे पौधों को भी लाभ मिलेगा और जल जमीन हवा सभी शुद्ध बने रहेंगे......

कोई भी बीमारी हो केवल 21 दिन में 25 % लाभ मिलेगा....


जितने भी लिक्विड हैंड वाश है सभी मे सोडियम लररेट सल्फ़ेट ( स्लर्रिक एसिड ) होते है इसके तेजाबिय कण हाथो से चिपक जाते है और धूप के संपर्क में आने पर हाथो के रोम छिद्रों से शरीर के अंदर प्रवेश कर गेहू के घुन की तरह शरीर को रात दिन नस्ट करते रहता है।

खुद बनायें किसी पास के गोपालक से खरीदे, आस पास के गौशाला में बनवाकर खरीदे....

न मिले तो हमे बताये 150 रुपये में 5 आपके घर तक भेजने के साथ
**दवा ना खाना - प्राकीर्तिक जीवन जीना**
**जो ईश्वर की हवा पानी को खराब करता है - ईश्वर उसकी हवा पानी खराब कर देता है **

**आज तक देते रहे गोमाता को दान - 
अब उपयोग करें गोबर गोमूत्र का समान**

Saturday 25 August 2018

केरल में बीच सड़क पर बीफ‘ की दावत देकर हिन्दू भावनाओं को चुनौती !


जब से उत्तर प्रदेश में योगी सरकार आयी और अवैध बूचड़ खानों पर प्रतिबंध लगा व गाय के कत्ल को गंभीर अपराध की श्रेणी में डाला गया विरोधियों का होहल्ला मचा है। 

कोई दिन नहीं बीत रहा जब कोई अनहोनी सुनने को न मिल रही हो। अवैध बूचड़ खाने बंद होने से जैसे आकाओं के हाथ पाव फूल गये. 

सवाल उठता है कि क्या अवैध कारोबार किसी का रोजगार माना जा सकता है। जिनके पास लाइसेंस हैं वे सब चल रहे हैं। 

पिछली सरकारें उनके अवैध कारोंबार से आँखें मूँदें हुए थीं तो क्या इसका मतलब अवैध कारोबार किसी का जन्मसि़द्ध अधिकार हो गया। यह तो बंद होना ही चाहिए.

ममता की पार्टी, करूणानिधि की पार्टी, वामपंथी, सोनिया की पार्टी आदि अराजक तत्वों को परोक्ष रूप से उकसा रहे हैं। 

केरल में तो खुलेआम बीच सड़क पर गाय और बछडे का कत्ल करके ‘ बीफ‘ की दावत देकर दूसरे पक्ष की भावनाओं को चुनौती दी गयी। 

कम्युनिस्ट नेता सीताराम येचुरी ने यहाँ तक कह दिया कि क्या केन्द्र सरकार तय करेगी कि किसको क्या खाना है ? जिसका जो मन कहेगा वह खायेगा।

 इसका मतलब तो फिर यह भी हुआ कि कल एक इन्सान दूसरे इन्सान को खाने लगे या प्रतिबंधित पशु- पक्षियों का भी शिकार करके खा जाय। किसी के खाने पर कोई रूकावट नहीं है लेकिन खाने की सीमा तय तो होनी ही चाहिए। आखिर हम इन्सान है पशु नहीं ?

भारतीय संविधान की कमजोरी यही है की किसी की धार्मिक – भावना को ठेस पहुँचाने का हक किसी को नहीं। सबको धार्मिक – स्वतंत्रता है। 

हिन्दू -धर्म में गाय का आदिकाल से विशेष दर्जा रहा है। हिन्दुओं के प्राचीनतम ग्रन्थ – अथर्ववेद में लिखा है ‘‘धेनु सदानाम रईनाम‘‘ – गाय समृद्धि का मूल स्रोत है। वह सृष्टि के पोषण का भी स्रोत है। वह जननी है। 
गाय केवल इसलिए ही नहीं महत्वपूर्ण है कि वह दूध देती है। हिन्दू धर्म की यह भी मान्यता है कि जीव 84 लाख योनियों के भ्रमणके बाद अंत में गाय के रूप में जन्म लेता है। जो आत्मा का एक विश्रामस्थल है और नये जीवन का प्रारम्भ फिर यहीं से होता है। 

हिन्दुओं के दो सबसे बड़े मान्य देवता जिन्हें वह भगवान के रूपमें हजारों साल से पूजते आया हैं – एक श्री राम और दूसरे श्री कृष्ण। इनका नाम गाय के साथ सबसे ज्यादा जुड़ा हुआ है।

वैज्ञानिक पक्ष लें तो गाय एक मात्र ऐसा जीव है जिसका सब कुछ मनुष्य के काम आ जाता है।

 दूध और दूध से बनने वाली तमाम चीजें तो अपनी जगह हयी हैं। 

धरती पर यही अकेला प्राणी है जिसका मल-मूत्र तक हमारे काम आ जाता है। 

तमाम औषधियों में गोमूत्र का प्रयेाग किया जाता है। 

‘‘पंचगव्य‘’ का निर्माण गाय के दूध, छाछ, घी, मूत्र और गोबर से किया जाता है। 

कांचीपुरम स्थित महर्षि वाग्भट गोशाला की बात मानें तो सभी रोगों का उपचार गोमाता के गव्यों से हो रहा है. अभी तक 40 हजार मरीजों पर इसका सफल उपचार क्रिया किया जा चुका है. 

वैज्ञानिकों का यह भी दावा है कि गाय ही एक ऐसा प्राणी है जो सदैव आक्सीजन ही लेता है और आक्सीजन ही निकालता है। 

इसके गव्यों में भी भरपूर आक्सीजन है. 

पंचगव्य गुरूकुलम, कांचीपुरम ने तो गोमाता के गव्यों से सम्पूर्ण चिकित्सा थेरेपी ही विकसित कर दिया है. और इस पर एक सम्पूर्ण मेडिकल साईंस की पढाई भी करवा रहा है. अभी तक हजारों युवा इस कार्य में लग भी चुके हैं.

जहाँ एक ओर गोमाता को कटाने से हजारों लोगों को रोजगार मिलने का दावा किया जाता है वहीँ अब गोमाता के पालन से प्राप्त उनके गव्यों से हजारों को रोजगार मिल रहा है. 

इसे कैसे झुठला दोगे ?

दिन भर निकम्मेपन से महिलाये बीमार हो रही हैं

एक समय था जब जीवन में सभी लोग अपनी मर्यादा में रहते थे। 
मर्यादा में रहने से कोई किसी कि सीमा का अतिक्रमण नही करता था तो सभी सुख- शांति से जीवन व्यतीत करते हुए उसके उत्कर्ष तक पहुंचते थे। 

प्रकृति और पर्यावरण की गरिमा भी इसी मर्यादा में अंतर्निहित थी।
उदाहरण के रूप में राजा ही महलों और किलों का निर्माण करते थे,और वो महल बेशकीमती पत्थरों से बनी अतभूत वास्तुकला के द्योतक थे। 

इसी प्रकार राजा और प्रजा के सहयोग से अति सुंदर मंदिर भी बनते थे जिसमें भी पत्थरों और सोने चांदी का प्रयोग होता था।

किन्तु वहीं प्रजा सभी संसाधनों से समृद्ध होते हुए भी साधारण भवनों में ही रहती थी। प्रजा के घरों के लिए पत्थरों और सोने -चांदी का प्रयोग वर्जित था।क्योंकि यही उनकी मर्यादा थी।

इससे समाज को दो लाभ हुए की प्रकृति का अनावश्यक दोहन ना हो और प्रजा अपने धन का अपव्यय ना करते हुए एकरूपता के साथ प्रेम से रहे।

किन्तु आज सभी संसाधन सभी के लिए खोल दिये गए हैं। जैसे आज बड़े-बड़े घर और वो भी संगेमर्मर से साज-सज्जा के साथ बन रहे हैं। जिससे पत्थरों के पहाड़ के पहाड़ समाप्त हो रहे हैं। और प्रकृति का भयंकर विनाश हो रहा है।

एक व्यक्ति बहुत साधन संपन्न है तो दूसरा बेहद गरीब जिससे समाज की समरसता समाप्त हो रही है।

पत्थरों से बने भवन बेहद गर्म होते हैं तो सबको गर्मी से बचने के लिए बिजली और ए-सी चाहिए। बिजली बनाने के लिए कोयले की खदानों से भयंकर कोयला निकाल कर कुछ गिने चुने लोग अरबपति बन रहे हैं और उससे बनने वाली बिजली का प्रयोग करके प्रकृति का विनाश हो रहा है।

तीर्थ स्थानों को सभी के लिए मौज -मस्ती के साधन के रूप में खोला जा रहा है। पहले ये तीर्थ स्थान वानप्रस्थियों के लिए ही होते थे किंतु आज आल- वेदर रोड्स के माध्यम से इन्हें हर समय और बच्चे जवानों की मौज मस्ती के लिए खोल दिया गया है। 

जैसे चार धाम रूपी बद्री-केदार एवं गंगोत्री-यमुनोत्री को सबके लिए चैबीस घंटे खोल दिया गया है। अब ऐसा करने के लिए प्रकृति की अद्भुत और बेहद सुंदर वादियों का निर्लज्जता से दोहन हो रहा है।

 हजारों दुर्लभ वृक्षों की हत्या करके सड़कें बनाई जा रही हैं और पहाड़ों को काटने के बाद उसका मलबा अंतिम सांस ले रही पवित्र गंगा में डाला जा रहा है।

अब ये पवित्र तीर्थ स्थल वानप्रस्थियों का स्वर्ग नही बल्कि नवदम्पत्तियों का हनीमून स्थल और शराबियों के ऐय्याशी के अड्डे बन गए हैं। इन सुंदर पहाड़ों को कंक्रीट का जंगल बना दिया है।
अर्थात यहां भी मर्यादा को लांघा गया है।

दूरसंचार क्रांति को जनता की क्रांति कहने वाले असल में कुछ सरकारी लोग और बड़े उद्योगपति हैं और अरबों रुपया अपनी जेब में भरकर लोगों को और अधिक गरीब बनाने का काम व्यापक एवं सुनियोजित तरीके से किया जा रहा है।जैसे 2जी के बाद 3जी और अब 4 जी सुविधा और वो भी असीमित और केवल 49 रुपये प्रतिमाह में देना आने वाले समय में समाज के लिए बेहद घातक सिद्ध होगा। 

आज शायद इस विचार से बहुत लोग असहमत और अप्रसन्न हों कि ये तो आम आदमी को सस्ती तकनीक और सुविधा देना बहुत अच्छा है। किंतु अगर इसके प्रारंभिक और दूरगामी परिणामों को देखें तो पता चलेगा कि ये कितना खतरनाक है।

आज जो मेहनत करके दो वक्त की रोटी भी नही कमा रहा उसे भी सस्ते के लालच देकर एक पूर्णतया अनावश्यक तकनीक हाथ में दे दी गयी है। आज अम्बानी ने करोड़ों गरीबों की जेब से 49 रुपये प्रति माह निकाल कर अपना खजाना भर लिया और उस गरीब को क्या मिला ??? 

उसको मिली तीन से चार बेशकीमती घंटों को फेसबुक,वॉट्सएप्प और यूट्यूब पर उपलब्ध निरर्थक,असामाजिक और सभी के लिए उपलब्ध अश्लील सामग्री पर बर्बादी।

जिस प्रकार गांव समाज में एक गाँव के सभी बच्चे भाई-बहन के सुंदर और पवित्र रिश्ते से बंधे थे उसे यूट्यूब की अश्लीलता ने ध्वस्त कर दिया। आज देश प्रतिदिन हजारों बलात्कारों का साक्षी बन रहा है। छोटी-छोटी बच्चियां हवस का शिकार हो रही हैं।

आज सर्वसमाज बेशकीमती घंटो को चैटिंग और सोशल वेबसाइट्स पर खराब कर रहा है।
गरीब और गरीब हो रहा है और अम्बानी-अडानी जैसे और अमीर हो रहे हैं।

उज्ज्वला योजना के तहत एलपीजी जैसे संसाधन भी बांटे जा रहे हैं और गरीबों का निशुल्क ईंधन रूपी गोबर के कंडे समाज से समाप्त करा दिए गए हैं। और तो और हर महीने खत्म होने वाला सिलिंडर पैसों में ही दिया जा रहा है। 

गांव समाज की महिलाएं अब गोबर के कंडे बनाने का समय अब टीवी के नाटकों और विज्ञापनों में लगा रही हैं। 

दूध देने वाली गाय-भैंस अब समय की बर्बादी लगती है और दिन भर निकम्मेपन से महिलाये बीमार हो रही हैं। उनका पैसा बड़ी-बड़ी पेट्रोल कंपनियों को जा रहा है और टी वी के विज्ञापन देखकर अनावश्यक वस्तुएं खरीदकर अपव्यय होने से और गरीब हो रही हैं।

तो हम देख सकते हैं किस प्रकार मर्यादा से निकलने पर ना सिर्फ समाज अनियंत्रित होता है बल्कि प्रकृति का भारी विनाश भी होकर उसका पतन होता है। 

गौ मूत्र फिनायल बनाने की विधि (केमिकल रहित)

             *सामग्री* गौ मूत्र      *एक लीटर* नीम पत्र    *200 ग्राम सूखा* पाइन आयल इमल्सीफायर युक्त     *50 ग्राम* उबाला हुआ पा...