Monday, 20 August 2018

जाके बल लवलेश ते जितेहु चराचर झारि



प्रणाम भाई साहब....
*जाके बल लवलेश ते जितेहु चराचर झारि*
*तासु दूत मैं जाकर हरि आनेहु प्रिय नारि।।*
इस दोहे को समझाने की कृपा करें।।
ओम प्रकाश त्रिवेदी, फर्रुखाबाद,उ0 प्र0

उत्तर ==भगवदुन्मुखो भव आचार्यप्रवर ! 
आप तो स्वयं प्रबुद्ध कथा वाचक हैं ।फिर भी 
*" चाहहु सुनै राम गुन गूढ़ा। 
कीन्हिहु प्रश्न मनहुँ अति मूढा़ "।।*

आप हमसे राम जी के गुणों का वर्णन सुनना चाहते हैं । प्रश्न तो ऐसे कर रहे हैं जैसे कोई अतिमूढ़ मनुष्य प्रश्न करता है ।चलिए ठीक है । 

रावण को समझाते हुए उसी की भरी सभा में निःशंक हनुमान जी के द्वारा श्री राम के स्वरूप का  वर्णन सूत्ररूप में  देखिए ।

यह दोहा सुन्दरकाण्ड का 21 वां दोहा है । 

"दोहा = *जाके बल लवलेस ते जितेहु चराचर झारि ।
तासु दूत मैं जाकरि हरि आनेहु प्रिय नारि "।।* 

रावण ने हनुमान जी से पूंछा कि हमारे उपवन को और हमारे राक्षसों को किसके बल के अहंकार से नष्ट किया है ? 

इसी प्रश्न का उत्तर देते हुए अञ्जनीनन्दन ने कहा कि " हे रावण ! आपके  बल और बुद्धि का प्रभाव चर और अचर दोनों प्रकार की सृष्टि में दिखाई दे रहा है ।

चौरासी लाख योनियों को एक शब्द में कहना हो तो "चराचर" शब्द का प्रयोग किया जाता है । 

मनुष्य तो निर्बल है ,इसलिए तपस्या,उपासना,यज्ञ आदि के अतिकठिन नियमों को पालकर देवताओं को प्रसन्न करता है ।

लेकिन मैं देख रहा हूं कि सभी देवता आपके बल से भयभीत होकर हाथ जोड़कर खड़े हुए हैं, और सामान्य राक्षसगण आसन पर बैठे हुए हैं । 

इसी काण्ड के 20 वें दोहे की  7 वीं चौपाई 

*"कर जोरे सुर दिसिप बिनीता ।
भृकुटि बिलोकत सकल सभीता"।।*

 यह बल प्रताप तो तुम्हारा मैं भी देख रहा हूं और सारा संसार देख रहा है ।
लेकिन श्री राम का बल और प्रताप न तो तुम देख सकते हो,और न ही ये देवता देख सकते हैं । मनुष्यों की तो बात ही क्या करना ? 

लेकिन हे दशानन ! मुझे तो तुम्हारा बल भी दिखाई दे रहा है और श्री राम का बल भी दिखाई दे रहा है । बल एक गुण है, जो आंखों से नहीं दिखाई देता है लेकिन वैभव को देखकर अनुमान लगाया जाता है । 

तुम्हें लगता है कि संसार में सबसे अधिक बलशाली मैं हूं । हां,ये सत्य भी है । प्रभाव भी दिखाई दे रहा है । अहंकार के कारण तुम अपने बल को अपरिमित बल मान रहे हो । 
मैं तुम्हें तुम्हारे बल का माप बताता हूं ,सुनो !  

तुम्हारा बल, श्री रामके बल के सामने " लवलेश " मात्र है । 

संसार में माप में जो सबसे छोटा माप होता है, जिसके लिए रत्ती शब्द का भी उपयोग नहीं कर सकते हैं,उसे लवलेश  कहते हैं ।  रत्ती से भी छोटा माप लवलेश कहलाता है ।

ऐसा समझ लो कि"तुम्हारे बल को चींटी के बल से समानता की जाए तो चींटी के बल को तुम्हारे बल के सामने "लवलेश" कहा जाएगा ।
तुम्हारा बल श्रीराम के बल के सामने इसी प्रकार का है ।

अब सोचो कि " राम तुमसे युद्ध क्यों नहीं करना चाहते हैं । अब दूसरी बात देखिए ।

*"जाके बल लवलेश ते "*  यदि तुम ये कहो कि यदि मेरा बल इतना कम है तो सीता को मैं कैसे ले आया ? तो सुनो रावण ! संसार के सभी जीवों को लगता है कि ये बल मेरा बल है , ये घोर अज्ञान है 

*" जाके बल लवलेस ते ,हरि आनेहु प्रिय नारि "* तुम हरण कर के ला ही नहीं सकते थे । 

"जाके" अर्थात जिस श्री राम के द्वारा दिये हुए बल से ही तुम उनकी प्रिय पत्नी को हर लाए हो ।  सीता के हरण में भी तुम्हारा बल नहीं है ,श्री राम के ही बल से तुम ला पाए हो ।

या ऐसा कहो कि सीता जी स्वयं ही तुम्हारे साथ श्री राम की इच्छा से चलीं आईं हैं ।तुम्हारा बल तो उनको लाने के लिए बहुत ही कम था । 

चींटी हाथी को कैसे ला सकती है ? ये कहो कि हाथी ही चींटी के साथ आ गया है ।

 *"तासु दूत मैं "*  मैं उसी श्री राम का दूत हुं । अब तुम सोचो कि उनके द्वारा मैं भेजा गया हुं, तो क्या मरने के लिए भेजा गया हूं ?  मैं उनके ही बल से आया हूं, और उन्हीं के बल से लौट जाऊंगा ।

अर्थात हनुमान जी ने बता दिया कि तुम्हें ब्रह्मा जी ने मनुष्य और वानर से ही मरने का वरदान दिया है । तुम्हें बल बढ़ने का वरदान नहीं दिया है । मेरा बल तो श्री राम का बल है ।

वो जितना चाहेंगे,उतना बल मेरा बढ़ा सकते हैं । तुम अतुलित बल नहीं हो,मैं अतुलित बल हो सकता हूं । अर्थात श्री राम के ही बल से तुमने सबको जीत लिया है, और उन्हीं के बल से तुमने सीता का हरण किया है ।
वे जब चाहेंगे,तभी तुम्हें निर्बल कर सकते हैं । 

किसी को भगवान का किया हुआ भी नहीं दिखाई देता है ,और भगवान जो कर रहे हैं,वो भी नहीं दिखाई दे रहा है,तथा जो करेंगे,वो भी नहीं दिखाई देगा । 

भगवान सबका सबकुछ जानते हैं,लेकिन भगवान के विषय में कोई कुछ भी नहीं जान सकते हैं ।
राधे राधे ।

*-आचार्य ब्रजपाल शुक्ल, श्रीधाम वृन्दाबन*

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