Sunday 21 April 2019

पपीते के पत्ते कैंसर को सिर्फ 35 से 90 दिन में सही कर सकते हैं।

पपीते के पत्तो की चाय किसी भी स्टेज के कैंसर को सिर्फ 60 से 90 दिनों में कर देगी जड़ से खत्म,
पपीते के पत्ते 3rd और 4th स्टेज के कैंसर को सिर्फ 35 से 90 दिन में सही कर सकते हैं।
अभी तक हम लोगों ने सिर्फ पपीते के पत्तों को बहुत ही सीमित तरीके से उपयोग किया होगा, बहरहाल प्लेटलेट्स के कम हो जाने पर या त्वचा सम्बन्धी या कोई और छोटा मोटा प्रयोग, मगर आज जो हम आपको बताने जा रहें हैं, ये वाकई आपको चौंका देगा, आप सिर्फ 5 हफ्तों में कैंसर जैसी भयंकर रोग को जड़ से ख़त्म कर सकते हैं।
ये प्रकृति की शक्ति है और बलबीर सिंह शेखावत जी की स्टडी है जो वर्तमान में as a Govt. Pharmacist अपनी सेवाएँ सीकर जिले में दे रहें हैं।
आपके लिए नित नवीन जानकारी कई प्रकार के वैज्ञानिक शोधों से पता लगा है कि पपीता के सभी भागों जैसे फल, तना, बीज, पत्तिया, जड़ सभी के अन्दर कैंसर की कोशिका को नष्ट करने और उसके वृद्धि को रोकने की क्षमता पाई जाती है।
विशेषकर पपीता की पत्तियों के अन्दर कैंसर की कोशिका को नष्ट करने और उसकी वृद्धि को रोकने का गुण अत्याधिक पाया जाता है। तो आइये जानते हैं उन्ही से।
University of florida ( 2010) और International doctors and researchers from US and japan में हुए शोधो से पता चला है की पपीता के पत्तो में कैंसर कोशिका को नष्ट करने की क्षमता पाई जाती है।
Nam Dang MD, Phd जो कि एक शोधकर्ता है, के अनुसार पपीता की पत्तियां डायरेक्ट कैंसर को खत्म कर सकती है, उनके अनुसार पपीता कि पत्तिया लगभग 10 प्रकार के कैंसर को खत्म कर सकती है जिनमे मुख्य है।
breast cancer, lung cancer, liver cancer, pancreatic cancer, cervix cancer, इसमें जितनी ज्यादा मात्रा पपीता के पत्तियों की बढ़ाई गयी है, उतना ही अच्छा परिणाम मिला है, अगर पपीता की पत्तिया कैंसर को खत्म नहीं कर सकती है लेकिन कैंसर की प्रोग्रेस को जरुर रोक देती है।।
तो आइये जाने पपीता की पत्तिया कैंसर को कैसे खत्म करती है?
1. पपीता कैंसर रोधी अणु Th1 cytokines की उत्पादन को ब़ढाता है जो की इम्यून system को शक्ति प्रदान करता है जिससे कैंसर कोशिका को खत्म किया जाता है।
2. पपीता की पत्तियों में papain नमक एक प्रोटीन को तोड़ने (proteolytic) वाला एंजाइम पाया जाता है जो कैंसर कोशिका पर मौजूद प्रोटीन के आवरण को तोड़ देता है जिससे कैंसर कोशिका शरीर में बचा रहना मुश्किल हो जाता है।
Papain blood में जाकर macrophages को उतेजित करता है जो immune system को उतेजित करके कैंसर कोशिका को नष्ट करना शुरू करती है, chemotheraphy / radiotheraphy और पपीता की पत्तियों के द्वारा ट्रीटमेंट में ये फर्क है कि chemotheraphy में immune system को दबाया जाता है जबकि पपीता immune system को उतेजित करता है, chemotheraphy और radiotheraphy में नार्मल कोशिका भी प्रभावित होती है पपीता सोर्फ़ कैंसर कोशिका को नष्ट करता है।
सबसे बड़ी बात के कैंसर के इलाज में पपीता का कोई side effect भी नहीं है।।
कैंसर में पपीते के सेवन की विधि :
कैंसर में सबसे बढ़िया है पपीते की चाय। दिन में 3 से 4 बार पपीते की चाय बनायें, ये आपके लिए बहुत फायदेमंद होने वाली है। अब आइये जाने लेते हैं पपीते की चाय बनाने की विधि।
1. 5 से 7 पपीता के पत्तो को पहले धूप में अच्छी तरह सुखा ले फिर उसको छोटे छोटे टुकड़ों में तोड़ लो आप 500 ml पानी में कुछ पपीता के सूखे हुए पत्ते डाल कर अच्छी तरह उबालें।
इतना उबाले के ये आधा रह जाए। इसको आप 125 ml करके दिन में दो बार पिए। और अगर ज्यादा बनाया है तो इसको आप दिन में 3 से 4 बार पियें। बाकी बचे हुए लिक्विड को फ्रीज में स्टोर का दे जरुरत पड़ने पर इस्तेमाल कर ले। और ध्यान रहे के इसको दोबारा गर्म मत करें।
2. पपीते के 7 ताज़े पत्ते लें इनको अच्छे से हाथ से मसल लें। अभी इसको 1 Liter पानी में डालकर उबालें, जब यह 250 ml। रह जाए तो इसको छान कर 125 ml. करके दो बार में अर्थात सुबह और शाम को पी लें। यही प्रयोग आप दिन में 3 से 4 बार भी कर सकते हैं।
पपीते के पत्तों का जितना अधिक प्रयोग आप करेंगे उतना ही जल्दी आपको असर मिलेगा। और ये चाय पीने के आधे से एक घंटे तक आपको कुछ भी खाना पीना नहीं है।
कब तक करें ये प्रयोग वैसे तो ये प्रयोग आपको 5 हफ़्तों में अपना रिजल्ट दिखा देगा, फिर भी हम आपको इसे 3 महीने तक इस्तेमाल करने का निर्देश देंगे। और ये जिन लोगों का अनुभूत किया है उन लोगों ने उन लोगों को भी सही किया है, जिनकी कैंसर में तीसरी और चौथी स्टेज थी।

Sunday 7 April 2019

मतलब के साथी!!!



   संसार में प्रायः प्रत्येक स्त्री पुरुष महात्माओं से तथा मंदिरों के भगवान से चमत्कार की अपेक्षा रखते हैं । यदि कोई मुसलमानों की मजार में कुछ देखने को मिल गयाया किसी की मनोकामना पूर्ण हो गई, तो हिन्दू लोग अपनी परम्परा तथा पूजा पद्धति को छोड़कर मुसलमान की मजारों में चद्दर चढ़ाने लगते हैं, *शिर पर मुसलमानों की तरह ही रूमाल डालकर पहुंच जाते हैंभीख मांगने के लिए ।*

और यदि कहीं हिन्दुओं के किसी महात्मा के यहां, या किसी मन्दिर में कामना की पूर्ति होती है, तो मुसलमान भी अपनी परम्परा तथा खुदा को छोड़कर हिन्दुओं के देवताओं के यहां भीख मांगने के लिए पहुंच जाते हैं । 

अब भले ही कोई काफिर कहे, तो कह ले । साईंबाबा जब पैदा नहीं हुए थे, तो पता नहीं लोगों की मनोकामना कौन पूर्ण करता था ?

 अर्थात जो दुखी है, जिसको धीरज नहीं है, उसकी श्रद्धा स्थिर नहीं होती है । ऐसे लोग भगवान और महात्माओं को रिश्तेदारों की तरह मानते हैं । यदि समय पर काम आएतो बहुत अच्छा रिश्तेदार है । बहुत अच्छा आदमी है ।

और यदि किसी कारणवश रिश्तेदार काम नहीं आए, तो रिश्तेदारी खतम हो गई । लो जी, अभी तक जो आदमी बहुत अच्छा था, वह तुरन्त खराब हो गया।

यही हाल शिष्य और गुरू के सम्बन्ध में है। यदि गुरू धनवान है, और सुखी है, तो गुरू महान है, सिद्धपुरुष भी  है। और यदि गुरू जी आपत्ति में फंस गए, तो अब वह गुरू नहीं है, और न ही उसमें कोई चमत्कार है।

अर्थात गुरू का सब खतम हो गया । अब चलो, किसी और गुरू को तलाशा जाए । इस गुरू में तो कुछ भी नहीं बचा है ।

इसका मतलब यह हुआ कि अज्ञानी मनुष्य, न तो किसी देवी देवता का सच्चा भक्त होता है और न ही किसी गुरू का शिष्य होता हैऔर न ही किसी का सच्चा रिश्तेदार होता हैऔर न ही किसी का भाई या मित्र होता है ।

कुल मिलाकर यह सिद्ध हुआ कि शास्त्र तथा महात्मा ठीक ही कह रहे हैं कि *"यहां कोई किसी का नहीं है "* । आवश्यकता पड़ने पर मुसलमान अपनी मुसलमानियत इंसानियत छोड़ देते हैंऔर हिन्दू लोग अपने देवी देवता, पूजा, संस्कृति आदि सबकुछ छोड़ देते हैं । 

इसलिए महात्माओं ने कहा कि *"दाता एक राम भिखारी सारी दुनियां"*   
भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से गीता के 17 वें अध्याय के अन्त में 28 वें श्लोक में कहा है कि           

*"अश्रद्धया हुतं दत्तं तपस्तप्तं कृतं च यत् ।*
*असदित्युच्ते पार्थ न च तत् प्रेत्य नो इह ।।*           

हे पार्थ ! हे पृथानन्दन!  अश्रद्धा से किया गया हवन, अश्रद्धा से दिया गया दान, अश्रद्धा से किए गए तपव्रत, उपवासादि, अर्थात अश्रद्धा से किया गया अच्छा से अच्छा सत्कर्म भी असत् ही है ।

अर्थात व्यर्थ है, क्योंकि अश्रद्धा से करनेवाले स्त्री पुरुषों को सत्कर्म का फल न तो इस जन्म में ही मिलता है, और न ही मरने के बाद भी मिलता है ।

*यदि कोई हिन्दू परम्परा से चली आ रही पूजा अर्चना को छोड़कर किसी मस्जिद, मजार, मौलाना के पास जाता है तो वह अश्रद्धालु हिन्दू कितनी भी चादर चढ़ा दे, कितनी ही बार कुछ भी कर लेउसे मजारों से, मस्जिदों से न इस जन्म में कुछ मिलेगा, और न ही मरने के बाद ही कुछ मिलेगा ।*

 जो अपना था, वो तो पहले ही छोड़ चुके हैं, और जो अभी स्वीकार किया है, उसके बारे में कुछ पता ही  नहीं है । तो क्या मिलेगा ?  अर्थात कुछ नहीं ।

इसी प्रकार यदि कोई मुसलमान अपनी परम्परा को छोड़कर हिन्दूओं के या ईसाइयों के, या किसी अन्य के देवता के यहां जाता है, तो उस मुसलमान को न तो इस जन्म में कुछ मिलेगाऔर न ही मरने के बाद भी कुछ मिलेगा ।

एक दो रसखान, रहीम आदि को छोड़ दिया जाए । क्यों कि ये सब अपवाद हैं ।इनने किसी लोभ से श्री कृष्ण की आराधना नहीं की है 

औलादऔरत, सोहरत, जमीन, रोटी के लिए मजहब को छोड़कर, खुदा की इबादत को छोड़कर हिन्दुओं के देवी देवताओं की शरण में जानेवाले मुसलमान अपने मजहब के, खुदा के अश्रद्धालु लोग हैं ।

 इसी प्रकार अपने वेदों, पुराणों, धर्मशास्त्रों में विश्वास न करनेवाले  हिन्दूमजारों मेंमस्जिदों में शरण लेनेवाले अपने धर्म में अश्रद्धालु हैं ।

इन दोनों के दुख कभी भी कम नहीं होनेवाले हैं । क्यों कि मजार और मस्जिदों में आए हुए हिंदू को देखकर खुदा भी जानते हैं ,और पीर भी जानते हैं कि ये परेशान इंसान है ।

ये जहां पैदा हुआ है, पला बढ़ा है, मान्यता मानी है, जब ये वहां का नहीं हुआ, तो यदि इसकी मनोकामना पूर्ण नहीं हुई तो यह कहीं का नहीं रह जाएगा ।

इसलिए इस भिखारी को कुछ न कुछ तो दे ही देना चाहिए । लेकिन ये न तो सच्चा हिन्दू बन पाया है, और  न ही सच्चा मुसलमान बनेगा ?

 हिन्दुओं के देवी देवताओं की शरण में आए हुए मुसलमान को देखकर यहां भी यही सोचा जाएगा । हमारे देवता भी भिखारी को खाली हाथ नहीं लौटाते हैं ।

क्यों कि वे भी देखते हैं कि रात दिन जन्म से अभी तक तो मुसलमान था, अब चलो ठीक है । दरवाजे में आए हुए को खाली क्यों लौटाया जाए ।

जैसे भिखारियों को कोई मतलब नहीं होता है कि कौन कैसा है , उसी प्रकार से बच्चों के लिए ,परिवार के लिए, तथा अपने लिए ,नियम धरम छोड़नेवाले अश्रद्धालु मनुष्य को कहीं भी न तो शान्ति मिलती है ,और न ही कहीं सुख मिलता है ।  
-आचार्य ब्रजपाल शुक्ल, वृन्दावनधाम  

Tuesday 2 April 2019

पाठ करने की विधि


*सत्यश्रमाभ्यां सकलार्थसिद्धि"*  सत्य से तथा परिश्रम से प्रत्येक कार्य की सिद्धि होती है । सत्य अर्थात ईमानदारी से तथा विधि से परिश्रम से  ही कार्य सिद्ध होते हैं ।

भगवान कीं और भगवती कीं  सभी स्तुतियां विद्वानों ने भक्तों ने तथा ऋषियों ने देवताओं ने कीं हैं । भगवान ने तथा भगवती ने सभी की प्रार्थना सुनकर उनके कष्ट दूर किए हैं । उन्हें ज्ञान दिया है ।

सुख सम्पत्ति तथा मुक्ति प्रदान की है । आज के स्त्री पुरुष अपने किए गए दुखदाई कर्मों से दुखी होकर पूजा अर्चना करवाते हैं ,और स्वयं भी करते हैं ।

लेकिन भगवान के प्रति , देवताओं के प्रति तथा ब्राह्मणों एवं विधि के प्रति न तो भाव है और न ही उदारता है ,और न ही ज्ञान है । दुखी होकर भी भावना नहीं है ।

अपने दुख को जैसे मनुष्यों को रिश्तेदारों ,को रो रो कर सुनाते हैं , तथा सहयोग सहायता की आशा करते हैं , याचना करते हैं , वैसे ही उसी भावना से अपने भगवान से न तो सुनाते हैं, और न ही आशा करते हैं ,और न ही याचना करते हैं ।

आप जैसे हैं , उसी भावुकता से अपनी भाषा में ही स्तुति करिए , प्रार्थना करिए  , इसी को सत्य कहते हैं । सूरदास , तुलसीदास , मीरा आदि ने कोई वेद मंत्रों से स्तुति नहीं की है ।

अपनी भाषा में ही की है । भगवान ने. सुना ,और दौड़े चले आए । जो मनुष्य अपने दुख संसार के लोगों को नहीं सुनाते हैं , संसार के किसी भी मनुष्य की आशा नहीं करते हैं , तो भगवान और भगवती तथा सभी देवता उसी मनुष्य की सुनते हैं ।

यही है प्रार्थना की सच्ची विधि । फिर भी यदि भावना नहीं बन पाती है तो ऋषियों ने पाठ करने की भी विधि लिखी है , उसके अनुसार करिए ।    

"याज्ञवल्क्य ऋषि ने "शिक्षा " शास्त्र लिखा है । शिक्षा शास्त्र छै शास्त्रों में से एक शास्त्र है ।वेद का अंग है । इसलिए इसे " याज्ञवल्क्यशिक्षा " कहते हैं ।

इसमें वेद के उच्चारण करने की विधि बताई गई है । वर्णों के उच्चारण करने की विधि बताई गई है ।  "याज्ञवल्क्यशिक्षा" के 81 वें और 83 वें श्लोक में कहा है कि                 

*"यथा सुमत्तनागेन्द्रः पदात् पदं निधापयेत् ।*
*एवं पदं पदाद्यन्तं दर्शनीयं पृथक् पृथक् ।।81 ।।*

जैसे मदमस्त हाथी धीरे धीरे एक एक पैर रख रख कर आनन्द से बिना किसी भय के चलता है , उसी प्रकार पाठ करने वाले को श्लोक के , वेद के , तथा अन्य स्तुति पदों के अक्षरों को देख देख कर शुद्ध उच्चारण करते हुए पाठ करना चाहिए ।  

अब आगे के श्लोक को देखिए ।                       
*"माधुर्यमक्षरव्यक्तिः पदच्छेदस्तु सुस्वरः ।*
*धैर्यं  लयसमत्वं च षडेते पाठकाः गुणाः ।। 83 ।।*

पाठकरनेवाले में ये 6 गुण होना चाहिए , तब पाठ करने का फल प्राप्त होता है ।

*(1) माधुर्यम् --* पाठ करने वाले के  शब्दों का  उच्चारण ऐसा होना चाहिए कि सुननेवाले के कानों को मधुरता लगने लगे । सुननेवाले को भले ही समझ में न आए लेकिन वह सुनते ही एकक्षण के लिए सुनते ही रुक जाए , इसी को मधुरता कहते हैं ।           

*(2) अक्षरव्यक्तिः --* प्रत्येक अक्षर स्पष्ट सुनाई देना चाहिए । इतनी जल्दी नहीं बोलना चाहिए कि स्वयं की जीभ भी न लौट रही हो ।         

*(3) पदच्छेदः --* जो पद जैसे हैं , वैसे ही अलग अलग बोलना चाहिए ।       

*(4) सुस्वरः --* स्वर भी एक जैसा ही होना चाहिए । कभी बहुत ऊंचे बोलने लगे ,तो कभी बहुत धीरे बोलने लगे , ऐसा नहीं होना चाहिए । एक स्वर में ही बोलना चाहिए ।                    

*(5) धैर्यम् --* धैर्यपूर्वक पढ़ना चाहिए । पाठ जल्दी समाप्त करने की शीघ्रता नहीं करना चाहिए । भले ही 10 ,20 मिनिट और अधिक लग जाएं ।                           

*(6) लयसमत्वम् --* जिस छंद में जो श्लोक लिखा हो , उसको उसी लय में बोलना चाहिए । जैसे रामायण में दोहा ,सोरठा ,चौपाई ,छंद , ये सब छंदशास्त्र के अनुसार लिखा गया है , इसी प्रकार संस्कृत के श्लोक भी छन्दोबद्ध होते हैं ।

यही छै गुण पाठ करने वाले में होना चाहिए । इसी को ईमानदारी कहते हैं । इसी को परिश्रम कहते हैं । इसलिए यदि रामायण का भी पाठ कर रहे हैं तो चौपाई को चौपाई की लय में ही बोलना चाहिए ।

पाठ भले ही हनुमान चालीसा , रामायण आदि किसी का भी कर रहे हैं , सबके पाठ की यही विधि है । इसी विधि से ही पाठ करने का फल प्राप्त होता है ।

बहुत जल्दी जल्दी पाठ करने से ,नहाते हुए पाठ करने से , कपड़े बदलते हुए पाठ करने से, बीच बीच में बात करने से , यहां वहां देखते हुए पाठ करने से , न तो पाठ करने का फल प्राप्त होता है , और न ही पाठ करते हुए कोई हृदय में भावना बनती है ।

ये सब अधम पाठ हैं ।  भले ही कितना भी बड़ा विद्वान हो , कितना भी याद हो , ऐसे पाठ करने से कोई फल नहीं मिलता है । ब्राह्मणों को भी विधि जानकर ही पाठ करना चाहिए ।         

राधे राधे ।

*-आचार्य ब्रजपाल शुक्ल , वृन्दावनधाम*

Monday 1 April 2019

भयानक परिस्थितियों से मुक्ति प्राप्ति के लिए 32 नाम


*★भयानक परिस्थितियों से मुक्ति प्राप्ति के लिए  माँ दुर्गा के 32 नाम ★*

  *"अथ दुर्गाद्वात्रिंशद् नाममाला★*

  *दुर्गा दुर्गातिशमनी दुर्गापद्विनिवारिणी । 
दुर्गमच्छेदिनी दुर्गसाधिनी दुर्गनाशिनी ।। 1।।*

 (1) दुर्गायै नमः
(2) दुर्गातिशमन्यै नमः
(3) दुर्गापद् विनिवारिण्यै नमः
(4) दुर्गमच्छेदिन्यै नमः
(5) दुर्गसाधिन्यै नमः
(6)दुर्गनाशिन्यै नमः      

*दुर्गतोद्धारिणी दुर्गनिहन्त्री दुर्गमापहा ।
दुर्गमज्ञानदा दुर्गदैत्यलोकदवानला ।।2।।*

(7) दुर्गतोद्धारिण्यै नमः
(8) दुर्गनिहन्त्रयै नमः
(9) दुर्गमापहै नमः
(10) दुर्गमज्ञानदायै नमः
(11) दुर्गदैत्यलोकदवानलायै नमः ।                         

*दुर्गमा दुर्गमालोका दुर्गमात्मस्वरूपिणी । 
दुर्गमार्गप्रदा दुर्गमविद्या दुर्गमाश्रिता ।।3।।*

 (12 दुर्गमायै नमः
(13) दुर्गमालोकायै नमः
(14)  दुर्गमात्मस्वरूपिण्यै नमः 
(15) दुर्गमार्गप्रदायै नमः 
(16) दुर्गमविद्यायै नमः 
(17 ) दुर्गमाश्रितायै नमः  

*दुर्गममज्ञानसंस्थाना दुर्गमध्यानभासिनी ।
दुर्गमोहा दुर्गमगा दुर्गमार्थस्वरूपिणी ।।4।।*

(18)दुर्गमज्ञानसंस्थानायै नमः  
(19) दुर्गमध्यानभासिन्यै नमः 
(20) दुर्गमोहायै नमः
(21) दुर्गमगायै नमः
(22) दुर्गमार्थस्वरूपिण्यै नमः                            

*दुर्गमासुरसंहन्त्री दुर्गमायुधधारिणी । 
दुर्गमाङ्गी दुर्गमता दुर्गम्या दुर्गमेश्वरी ।।5।।*

(23) दुर्गमासुरहन्त्र्यै नमः 
(24)दुर्गमायुधधारिण्यै नमः
(25) दुर्गमाङ्ग्यै नमः
(26) दुर्गमतायै नमः
(27)  दुर्गम्यायै नमः         
(28) दुर्गमेश्वर्यै नमः ।।     

*दुर्गभीमा दुर्गभामा दुर्गभा दुर्गदारिणी ।। 6 ।।*

(29) दुर्गभीमायै नमः
(30) दुर्गभामायै नमः      
(31) दुर्गभायै नमः         
(32) दुर्गदारिण्यै नमः         

*नामावलिमिमां यस्तु दुर्गाया मम मानवः । 
पठेत् सर्वभयान्मुक्तो भविष्यति न संशयः ।7।।*

भगवती दुर्गा ने देवताओं से कहा कि हे देवताओ !  *जो भी स्त्री पुरुष मेरे बत्तीस नामों वाले स्तोत्र को पढ़ेगा या इन नामों का जप करेंगे , वे सभी प्रकार के भयों से मुक्त हो जाएंगे ।*

*★विशेष ★*

*यह 32 नामावली स्तोत्र दुर्गासप्तशती के अन्त में दिया गया है ।* एक नाम से एकमाला पूर्ण करे , इस प्रकार प्रत्येक नाम की एक माला करते हुए *प्रतिदिन 32 माला करने से रुके हुए कठिन से कठिन कार्य 32 दिन में सिद्ध हो जाएंगे ।*

 श्रद्धा और विश्वास के साथ माँ का पूजन करके सरसों के तेल का दीपक जलाकर जप करें । अखण्ड दीपक जलाना आवश्यक नहीं है ।

सामर्थ्य हो तो जलाएं । जब तक जप करें , तब तक तो दीपक जलना ही चाहिए । नवरात्रि में तो व्रत करते हुए नौ दिन में ही कार्य की सिद्धि हो जाती है ।

स्वयं न कर सकें तो किसी ऐसे योग्य ब्राह्मण से जप करवाएं जो गुटखा आदि व्यसन न करता हो , तथा अपने ब्राह्मण कर्म को करता हो । संस्कृत भाषा को पढ़े हो ।

ब्राह्मण की इच्छानुसार दक्षिणा देकर संतुष्ट करने पर ही कार्य सिद्धि होती है । कम दक्षिणा देकर , पूजन में लोभ करनेवाले मनुष्य को कोई भी फल नहीं मिलता है । *ऐसा मनुस्मृति में लिखा हुआ है ।* 

राधे राधे ।

*-आचार्य ब्रजपाल शुक्ल , वृन्दावनधाम*

गौ मूत्र फिनायल बनाने की विधि (केमिकल रहित)

             *सामग्री* गौ मूत्र      *एक लीटर* नीम पत्र    *200 ग्राम सूखा* पाइन आयल इमल्सीफायर युक्त     *50 ग्राम* उबाला हुआ पा...