जमाने की लत से बाज आइए, अब तो मोबाइल के रेडिएशन से खबरदार हो जाइए।
विश्व स्वास्थ्य संगठन और वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि इससे कैंसर का खतरा पैदा
हो सकता है। इससे जुड़ी एक कैंसर पीड़ित की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने भी गंभीरता
से लिया है। अपने मोबाइल सेट पर *#07# डायल कर रेडिएशन की खुद भी जांच करते रहिए।
फेसबुक, व्हाटसएप जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने हर
छोटे-बड़े को बुरी तरह व्यस्त और देश-दुनिया से बेखबर सा कर दिया है। इससे लोगों
में बेवजह चिड़चिड़ापन, तनाव,
गुस्सा भी बढ़
रहा है। स्वास्थ्य विज्ञानी आगाह कर चुके हैं कि सबसे खतरनाक साबित हो रहा है
मोबाइल का रेडिएशन।
सफर में हों या बाजार में, घर में हों या सरे राह, जैसे ही आप
अपने चारो तरफ एक नजर डालेंगे, कानो में झुलनी (एयर फोन)
लटकाए, हथेली पर मोबाइल टिकाए तमाम ऐसे युवा और बड़े-बूढ़े दिख
जाएंगे, लगेगा, मानो सारे जहां का दर्द बस
उनके ही जिगर में है। इस बदहवाशी का कोई क्या करे।
मोबाइल पर चौबीसो घंटे नाचते
रहने के अलावा उनके पास जैसे और कोई काम नहीं रह गया। उन्हें क्या पता कि
डब्ल्यूएचओ के बुलावे पर दुनिया भर के वैज्ञानिक रेडिएशन से नुकसान पर गंभीर
मंत्रणा कर रहे हैं। भारत में जब अंग्रेजों का राज था, उन्होंने हिंदुस्तानियों को उस वक्त चाय की चुस्कियां लेने
की आदत पकड़ा दी।
फिर तो ऐसी लत लगी कि बड़े-बड़े चाय बागान, बड़ी-बड़ी टी-कंपनियों के अरबों के सालाना टर्नओवर का आज
तांता लग चुका है।
हर गली, हर दुकान पर और कुछ मिले न मिले, चाय का पैकेट जरूर मिल जाएगा। चाय सुबह-सवेरे की पहली जरूरत
बन चुकी है। भारत ही नहीं, पूरे विश्व-बाजार में आजकल कुछ ऐसी ही लहर मोबाइल की आई हुई
है।
वजह?जरा-सा भी खाता-पीता परिवार हो तो उसके हर सदस्य के हाथ में
मोबाइल सेट। कोई-कोई तो लैपी के साथ कई-कई सेट लिए डोलता रहता है। किसी भी शहर के
बाजार में चले जाइए, सबसे ज्यादा चमकीला, भड़कीला शो
रूम गैजेट्स का ही नजर आता है।
सारा काम-काज छोड़कर जैसे पूरी दुनिया ही मोबाइल
में समाती, ठिठुरती जा रही है। तर्क दिए जाते हैं कि क्या करें, आज हर काम तो मोबाइल के भरोसे हो गया है। ऑफिस के काम तक
मोबाइल पर लाद दिए जाते हैं कि लगे रहो हर वक्त। सर्च, सर्च, सर्च।
मोबाइल और लैपी के
खामियाजे पर चिकित्सकों के लाख आगाह किए जाने के बावजूद कोई ध्यान देने को तैयार
नहीं है।
राष्ट्रीय कैंसर संस्थान की एक
रिपोर्ट में बताया गया है कि मोबाइल, लैपी, गैजेट्स के ज्यादा इस्तेमाल से ब्रेन कैंसर का खतरा बना
रहता है।
इससे सड़क हादसों में भी इजाफा हो रहा है। स्क्रीन को अपलक देखने से
आंखों में जलन के साथ ही रंगों की पहचान की शक्ति भी समाप्त होने लगती है। गैजेट्स
में बच्चों व्यस्त होने का बहुत बुरा अंजाम सामने आ सकता है।
फेसबुक, व्हाटसएप जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स ने हर छोटे-बड़े को
बुरी तरह व्यस्त और देश-दुनिया से बेखबर सा कर दिया है। इससे लोगों में बेवजह
चिड़चिड़ापन, तनाव, गुस्सा भी बढ़ रहा है।
स्वास्थ्य विज्ञानी आगाह कर चुके हैं कि सबसे खतरनाक साबित हो रहा है मोबाइल का
रेडिएशन।
मोबाइल फोन रेडिएशन को गैर
आयनीकरण करार दिया गया है। गैर आयनीकरण रेडिएशन से अणुओं को आयनित किए बिना ऊर्जा
अन्य रूपों में निःसृत होती है।
गैर आयनीकरण रेडिएशन में रेडियो तरंगें, दृश्यमान प्रकाश आदि शामिल होते हैं। इसकी अनदेखी नहीं की
जा सकती है। काफी छानबीन के बाद अब विश्व स्वास्थ्य संगठन (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन-डब्ल्यूएचओ)
ने भी मान लिया है कि मोबाइल रेडिएशन दिमाग के सेल्स को प्रभावित कर रहा है। इससे
पूर्व जब डब्ल्यूएचओ ने कहा था कि मोबाइल के रेडिएशन से किसी भी तरह का कोई नुकसान
नहीं है तो पूरी दुनिया में यह मामला तूल पकड़ गया। इसके बाद डब्ल्यूएचओ को इसकी
हकीकत जानने के लिए चौदह देशों के लगभग इकतीस वैज्ञानिकों के साथ शोधात्मक विमर्श
करना पड़ा।
नए सिरे से रिसर्च हुए, तब पता चला कि मोबाइल के रेडिएशन से दो तरह का कैंसर
(ग्लिमा और ध्वनिक न्यूरोमास) हो सकता है।
रेडिएशन के दुष्प्रभाव के सिलसिले में
दायर एक जनहित याचिका पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक कैंसर रोगी की अर्जी पर
ग्वालियर में मोबाइल टावर बंद करने का आदेश दिया है। यद्यपि सरकार का कहना है कि
हमारे देश में मोबाइल टावर उत्सर्जन नियम वैश्विक नियमों से दसना कड़े हैं।
इस बीच
यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ तिरुवनंतपुरम के जीव विज्ञानी विभाग के शोध-निष्कर्ष में
बताया गया है कि रिसर्चर्स ने कॉकरोच पर मोबाइल रेडिएशन का प्रयोग किया।
अध्ययन के
दौरान पता चला कि मोबाइल से निकलने वाला इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन कॉकरोच के
शारीरिक रसायनों (बॉडी फैट और हीमैटोलॉजिकल प्रोफाइल) को तेजी से परिवर्तित कर रहा
है यानी इस रेडिएशन से तंत्रिका तंत्र के रसायन में तेजी से बदलाव होता है।
इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन
बॉडी फैट में मौजूद प्रोटीन को तेजी से घटाने और अमीनो एसिड को बढ़ाने लगता है।
शरीर में ग्लूकोज और यूरिक एसिड बढ़ जाता है। अंतर्राष्ट्रीय एवं भारतीय मानक के
अनुसार मोबाइल फोन का रेडिएशन लेवल 1.6 वाट/किलोग्राम
से अधिक नहीं होना चाहिए मगर प्रतिस्पर्धा के दौर में तमाम कंपनियां कम कीमत पर
मोबाइल हैंडसेट बाजार में लाने के लिए मानक की अनदेखी कर रही हैं।
सेल्युलर
टेलीकम्यूनिकेशन एंड इंटरनेट एसोसिएशन के अनुसार सभी मोबाइल हैंडसेट पर रेडिएशन
संबंधी जानकारी देनी जरूरी है मगर कई बड़ी कंपनियां इसे नजरअंदाज कर रही हैं।
इससे पता चलता है कि मोबाइल ‘साइलेंट
किलर’ का काम कर रहा है। इन दिनो दुनिया के तमाम मशहूर ब्रांड के
ऐसे मोबाइल हैंडसेट बाजारों में भरे पड़े हैं, जिनसे
निकलने वाला रेडिएशन मानक से ज्यादा पाया गया है।
अपने मोबाइल सेट पर *#07# डायल कर रेडिएशन की खुद भी जांच की जा सकती है। यह नंबर
डायल करते ही मोबाइल स्क्रीन पर रेडिएशन वैल्यू आ जाती है।
इंडियाज नेशनल
स्पेसिफिक एब्जॉर्बशन रेट लिमिट (आईएनएसएआरएल) के अनुसार भी मोबाइल के रेडिएशन का
मानक अधिकतम 1.6 वाट प्रति किलोग्राम तक ही होना चाहिए।
रेडिएशन के जानकार अब दुनिया भर
में लोगों को लगातार आगाह कर रहे हैं कि मोबाइल का इस्तेमाल बहुत ही सावधानी के
साथ करें।
मसलन, सेट के साथ प्रोटेक्टिव केस का जरूर इस्तेमाल करें।
सेट को
शरीर से दूर रखें।
शर्ट-पैंट की जेब में मोबाइल न रखें।
शरीर से सटे होने पर
मोबाइल का रेडिएशन और ज्यादा तीव्रता से प्रभावित करता है।
लैंडलाइन फोन का ज्यादा
इस्तेमाल करें।
जब जरूरत न हो, मोबाइल स्विच ऑफ करके रखें।
रात में मोबाइल बंद रखें।
सेट को देर तक कान से लगाकर बात न करें।
चार्जिंग के
दौरान मोबाइल पर बात करने से जरूर परहेज करें क्योंकि ऐसे में रेडिएशन लेवल दसगुना
तक बढ़ जाता है।
मोबाइल में सिग्नल कमजोर होने
पर, बैट्री डिस्चार्ज होने की स्थितियों में भी इस्तेमाल न
करें।
आजकल टेलिकॉम डिपार्टमेंट ने एक 'तरंग संचार' नाम का एक वेब पोर्टल शुरू किया है, जो मोबाइल टावरों से निकलने वाले रेडिएशन की स्थिति बताता
है।
अपने टावर को लोकेट करने के लिए या तो आप पीसी, टैबलेट या
मोबाइल के जीपीएस की मदद ले सकते हैं या फिर अपने एरिया को सर्च कर सकते हैं।
निर्देशित प्वॉइंट पर क्लिक करते ही टावर के बारे में विस्तृत जानकारी ई-मेल से
मिल जाती है।
रेसियेसन से बचाव के लिए पंचगव्य से निर्मित एंटी रेदियेसन चिप का इस्तेमाल करे - गोबर और गोऔमुत्र रेडिएसन से बचाते है जिसे वैज्ञानिक भी सिद्ध कर चुके है.
इसे आप रेडियेशन मीटर लगाकर भी जाँच सकते है
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Vrajraj Gaushala, Rithi, Katni, MP चिप का निर्माण किया है
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Vrajraj Gaushala, Rithi, Katni, MP
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