Thursday 25 October 2018

साबुन जहर क्यों?


*त्वचा की नमी को खत्म करता है साबुन का प्रयोग*

अपनी त्वचा को खूबसूरत बनाने के लिए हम सभी साबुन का इस्तेमाल करते है. साथ ही साथ हम इसका इस्तेमाल हाथ धोने के लिए भी करते है. बाजार में मिलने वाले तमाम साबुन इस बात का दावा करते है की साबुन से वो आपकी त्वचा को मुलायम और खूबसूरत बनाते है जबकि सच्चाई कुछ और ही है

साबुन का इस्तेमाल कई तरह के त्वचा रोगों का कारण होता है

प्राचीन काल मे त्वचा की सफाई और उनके सौन्दर्य के लिए तमाम तरह के प्राकृतिक लेप जैसे मुल्तानी मिटटी, हल्दी, बेसन आदि का इस्तेमाल किया जाता था. लेकिन अब लगभग हर घर में इन प्राकृतिक उपचारों का इस्तेमाल बंद हो चूका है और सभी लोग केमिकलयुक्त साबुन के इस्तेमाल के आदी हो चुके है

ऐसे लोगो को आज हम बताने वाले है की बाजार के साबुन लगाने से त्वचा को क्या-क्या नुक्सान होते है

*त्वचा की नमी छीन लेते है साबुन-* बाजार में मौजूद ज्यादातर साबुनों में खुशबू, डिटर्जेंट अन्य तरह के केमिकल्स मौजूद होते है यह हमारी त्वचा को साफ़ तो करते है लेकिन इनके इस्तेमाल से हमारे स्किन की नमी छिन जाती है. हमारा शरीर त्वचा की सुरक्षा के लिए एमिनो एसिड्स और क्षार का निर्माण करता है यह त्वचा की परत पर माइस्चराईजर के रूप में मौजूद होते है. साबुन के प्रयोग से यह नेचुरल माइस्चराईजर नष्ट हो जाते है.

*गुड बेक्टीरिया भी हो जाते है खत्म-* साबुन जीवाणुओ को तो खत्म कर ही देते है लेकिन साथ ही साथ यह त्वचा पर मौजूद अच्छे बैक्टीरिया का भी नाश कर देते है. गुड बैक्टीरिया त्वचा के घटक बैक्टीरिया को खत्म करने में मदद करते है
*त्वचा से विटामिन डी हटाते है-* हमारे शरीर के लिए विटामिन डी बहुत ही लाभकारी है. साबुन का इस्तेमाल हमारे शरीर में विटामिन को अवशोषित नही होने देता. इससे पहले की विटामिन डी को त्वचा अवशोषित करे, साबुन उसे त्वचा से ही हटा देते है. विटामिन डी को त्वचा में अवशोषित होने में कम से कम 48 घंटे लगते है.
*केमिकल्स से त्वचा को नुक्सान-* कई तरह के नहाने के साबुनों में ट्रिकलोशन  नाम के रसायन का काफी मात्रा में प्रयोग किया जाता है. यह आपकी त्वचा के लिए बेहद हानिकारक होता है. इस प्रकार के साबुन को रोज प्रयोग में लाने से त्वचा को भारी नुक्सान होता है
*धुल जाता है आकर्षित करने वाला केमिकल-* फेरोमोंस एक ऐसा केमिकल होता है जो विपरीत लिंग को आकर्षित करने में मदद करता है. यह केमिकल हमारे पसीने में मौजूद होता है जो नहाने के साबुन की वजह से धुल जाता है.

*जहरयुक्त साबुन से बचे और हमारी गौ शाला में पंचगव्य और अन्य जड़ी बूटियों के संयोग से बने साबुन, उबटन, फेस पेक का स्तेमाल करे*

सम्पर्क- *ब्रजराज गौ शाला,* रीठी, कटनी, एम् पी,
*9407001528, 9009363221*



Tuesday 23 October 2018

तांबे के बर्तन का पानी पीने के फायदे

  • सेहत के लिए पानी पीना अच्छी आदत है। स्वस्थ रहने के लिए हर इंसान को दिनभर में कम से कम 8-10 गिलास पानी जरूर पीना चाहिए। आयुर्वेद में कहा गया है सुबह के समय तांबे के पात्र का पानी पीना विशेष रूप से लाभदायक होता है। इस पानी को पीने से शरीर के कई रोग बिना दवा ही ठीक हो जाते हैं। साथ ही, इस पानी से शरीर के जहरीले तत्व बाहर निकल जाते हैं। रात को इस तरह तांबे के बर्तन में संग्रहित पानी को ताम्रजल के नाम से जाना जाता है।
  • ये ध्यान रखने वाली बात है कि तांबे के बर्तन में कम से कम 8 घंटे तक रखा हुआ पानी ही लाभकारी होता है । जिन लोगों को कफ की समस्या ज्यादा रहती है, उन्हें इस पानी में तुलसी के कुछ पत्ते डाल देने चाहिए। बहुत कम लोग जानते हैं कि तांबे के बर्तन का पानी पीने के बहुत सारे फायदे हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं। रात को तांबे के बर्तन में रखे पानी को पीने से होने वाले कुछ बेहतरीन फायदों के बारे में।
इन 10 कारणों से प्रतिदिन पिए तांबे के बर्तन में रखा पानी (ताम्रजल)
  1. हमेशा दिखेंगे जवान : कहते हैं, जो पानी ज्यादा पीता है उसकी स्किन पर अधिक उम्र में भी झुर्रियां दिखाई नहीं देती हैं। ये बात एकदम सही है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि अगर आप तांबे के बर्तन में जल को रखकर पिएं तो इससे त्वचा का ढीलापन आदि दूर हो जाता है। डेड स्किन भी निकल जाती है और चेहरा हमेशा चमकता हुआ दिखाई देता है।
  2. थायराइड को करता है नियंत्रित : थायरेक्सीन हार्मोन के असंतुलन के कारण थायराइड की बीमारी होती है। थायराइड के प्रमुख लक्षणों में तेजी से वजन घटना या बढ़ना, अधिक थकान महसूस होना आदि हैं। थायराइड एक्सपर्ट मानते है कि कॉपर के स्पर्श वाला पानी शरीर में थायरेक्सीन हार्मोन को बैलेंस कर देता है। यह इस ग्रंथि की कार्यप्रणाली को भी नियंत्रित करता है। तांबे के बर्तन में रखे पानी को पीने से रोग नियंत्रित हो जाता है।
  3. गठिया में होता है फायदेमंद : आजकल कई लोगों को कम उम्र में ही गठिया और जोड़ों में दर्द की समस्या सताने लगती हैं। यदि आप भी इस समस्या से परेशान हैं तो रोज तांबे के पात्र का पानी पिएं। गठिया की शिकायत होने पर तांबे के बर्तन में रखा हुआ जल पीने से लाभ मिलता है। तांबे के बर्तन में ऐसे गुण आ जाते हैं, जिनसे बॉडी में यूरिक एसिड कम हो जाता है और गठिया व जोड़ों में सूजन के कारण होने वाले दर्द में आराम मिलता है।
  4. स्किन को बनाए स्वस्थ : अधिकतर लोग हेल्दी स्किन के लिए तरह-तरह के कॉस्मेटिक्स का उपयोग करते हैं। वो मानते हैं कि अच्छे कॉस्मेटिक्स यूज करने से त्वचा सुंदर हो जाती है, लेकिन ये सच नहीं है। स्किन पर सबसे अधिक प्रभाव आपकी दिनचर्या और खानपान का पड़ता है। इसलिए अगर आप अपनी स्किन को हेल्दी बनाना चाहते हैं तो तांबे के बर्तन में रातभर पानी रखें और सुबह उस पानी को पी लें। नियमित रूप से इस नुस्खे को अपनाने से स्किन ग्लोइंग और स्वस्थ लगने लगेगी।
  5. दिल को बनाए हेल्दी : तनाव आजकल सभी की दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है। इसलिए दिल के रोग और तनाव से ग्रसित लोगों की संख्या तेजी बढ़ती जा रही है। यदि आपके साथ भी ये परेशानी है तो तो तांबे के जग में रात को पानी रख दें। सुबह उठकर इसे पी लें। तांबे के बर्तन में रखे हुए जल को पीने से पूरे शरीर में रक्त का संचार बेहतरीन रहता है। कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल में रहता है और दिल की बीमारियां दूर रहती हैं।
  6. खून की कमी करता है दूर : एनीमिया या खून की कमी एक ऐसी समस्या है जिससे 30 की उम्र से अधिक की कई भारतीय महिलाएं परेशान हैं। कॉपर के बारे में यह तथ्य सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक है कि यह शरीर की अधिकांश प्रक्रियाओं में बेहद आवश्यक होता है। यह शरीर के लिए आवश्यक पोषक तत्वों को अवशोषित करने का काम करता है। इसी कारण तांबे के बर्तन में रखे पानी को पीने से खून की कमी या विकार दूर हो जाते हैं।
  7. कैंसर​ से लड़ने में सहायक : कैंसर होने पर हमेशा तांबे के बर्तन में रखा हुआ जल पीना चाहिए। इससे लाभ मिलता है। तांबे के बर्तन में रखा हुआ जल वात, पित्त और कफ की शिकायत को दूर करता है। इस प्रकार के जल में एंटी-ऑक्सीडेंट भी होते हैं, जो इस रोग से लड़ने की शक्ति प्रदान करते हैं। अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार, कॉपर कई तरीके से कैंसर मरीज की हेल्प करता है। यह धातु लाभकारी होती है।
  8. सूक्ष्मजीवों को खत्म करता है : तांबे की प्रकृति में ऑलीगोडायनेमिक के रूप में ( बैक्टीरिया पर धातुओं की स्टरलाइज प्रभाव ) माना जाता है। इसीलिए इसके बर्तन में रखे पानी के सेवन से हानिकारक बैक्टीरिया को आसानी से नष्ट किया जा सकता है। इसमें रखे पानी को पीने से डायरिया, दस्त और पीलिया जैसे रोगों के कीटाणु भी मर जाते हैं, लेकिन पानी साफ और स्वच्छ होना चाहिए।
  9. वजन घटाने में मदद करता है : कम उम्र में वजन बढ़ना आजकल एक कॉमन प्रॉब्लम है। अगर कोई भी व्यक्ति वजन घटाना चाहता है तो एक्सरसाइज के साथ ही उसे तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी पीना चाहिए। इस पानी को पीने से बॉडी का एक्स्ट्रा फैट कम हो जाता है। शरीर में कोई कमी या कमजोरी भी नहीं आती है।
  10. पाचन क्रिया को ठीक करता है : एसिडिटी या गैस या पेट की कोई दूसरी समस्या होने पर तांबे के बर्तन का पानी अमृत की तरह काम करता है। आयुर्वेद के अनुसार, अगर आप अपने शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालना चाहते हैं तो तांबे के बर्तन में कम से कम 8 घंटे रखा हुआ जल पिएं। इससे राहत मिलेगी और पाचन की समस्याएं भी दूर होंगी।

कैंसर, से बचना हैं तो एकादशी का व्रत करो!!!!!

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●मनोनिग्रह की अदभुत साधनाः एकादशी व्रत,*एकादशी व्रत पर एक वैज्ञानिक विश्लेषण*!!!!!!
सभी धर्मानुष्ठानों का अंतिम लक्ष्य चंचल मन को वश में करना है। मन के संयत होने से सभी इन्द्रियाँ वश में हो जाती हैं। शास्त्रों ने मन को ग्यारहवीं इन्द्रिय माना है। सनातन धर्म के अनुसार ब्रह्म (आत्मा) निष्क्रिय है तथा शरीर जड़ है अर्थात् उसमें कार्य करने का सामर्थ्य नहीं है।
यह मन ही है जो आत्मा की शक्ति (सत्ता) लेकर शरीर से विभिन्न प्रकार की चेष्टाएँ करवाता है। दूसरे शब्दों में, आत्मा को कोई बंधन नहीं और शरीर नश्वर है तो फिर जन्म-मरण के चक्र में कौन ले जाता है ? यह मन ही है जो सूक्ष्म वासनाओं को साथ लेकर एक शरीर के बाद दूसरा शरीर धारण करता है। इसीलिए कहा गया हैः
मन एव मनुष्याणां कारणं बंधमोक्षयो।* मन ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण है।
विभिन्न धर्मानुष्ठानों के द्वारा मन को पवित्र करके इससे मुक्ति का आनंद भी मिल सकता है और यदि इसे स्वतंत्र या उच्छ्रंखल बनने दिया जाये तो यही मन मिल सकता है और यदि इसे स्वतन्त्र या उच्छ्रंखल बनने दिया जाय तो यही मन जीव को जन्म मरण की परम्परा में भटकाकर अनेक कष्टों में डालता रहता है।
हमारे ऋषियों का विज्ञान बड़ा ही सूक्ष्मतम विज्ञान है। उन्होंने मात्र भौतिक जड़ वस्तुओं को ही नहीं अपितु जो परम चैतन्य है और जिससे जड़ चेतन सत्ता प्राप्त करके स्थित हुए हैं उसको भी अनुभव किया।
अपनी संतानों को भी उस परम चैतन्य का अनुभव कराने के लिए उन महापुरूषों ने वेदों, उपनिषदों तथा पुराणों में अनेक प्रकार के विधि-विधानों तथा धर्मानुष्ठानों का वर्णन किया।
ऐसे ही धर्मानुष्ठानों में आता है एकादशीव्रत'।
प्रत्येक माह में दो एकादशियाँ आती हैं एक शुक्ल पक्ष में तथा दूसरी कृष्ण पक्ष में। एकादशी के दिन मनःशक्ति का केन्द्र चन्द्रमा क्षितिज की एकादशवीं (ग्यारहवीं) कक्षा पर अवस्थित होता है। यदि इस अनुकूल समय में मनोनिग्रह की साधना की जाय तो वह अत्य़धिक फलवती होती है।
एकादशी को उपवास किया जाता है। भारतीय योग दर्शन के अनुसार मन का स्वामी प्राण है। जब प्राण सूक्ष्म होते हैं तो मन भी वश हो जाता है।
आधुनिक विज्ञान के अनुसार जब हम भोजन करते हैं तो उसे पचाने के लिए आक्सीजन की आवश्यकता होती है।
इसी आक्सीजन को भारतीय योगियों ने 'प्राणवायु' कहा है। जब हम भोजन नहीं करते तो इतनी प्राणवायु खर्च नहीं होती जितनी भोजन करने पर होती है। योग विज्ञान के अनुसार शरीर में 🌈सात चक्र होते हैं – मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धाख्या, आज्ञाचक्र एवं सहस्रहार।
हृदय में स्थित अनाहत चक्र के नीचे के तीन चक्रों में मन तथा प्राणों की स्थिति साधारण अथवा निम्नकोटि की मानी जाती है जबकि अनाहत चक्र से ऊपर वाले चक्रों में मन तथा प्राणों की स्थिति साधारण अथवा निम्नकोटि की मानी जाती है जबकि अनाहत चक्र से ऊपर वाले चक्रों में मन तथा प्राण स्थित होने से व्यक्ति की गति ऊँची साधनाओं में होने लगती है।
भोजनको पचाने के लिए प्राणवायु को नीचे के केन्द्रों (पेट में स्थित आँतों) में आना पड़ता है। मन तथा प्राणों का आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध है अतः प्राणों के निचले केन्द्रों में आने से मन भी इन केन्द्रों में आता है। *योग शास्त्र में इन्हीं केन्द्रों को काम, क्रोध, लोभ आदि विकारों का स्थान बताया गया है।
उपवास रखने से मन तथा प्राण सूक्ष्म होकर ऊपर के केन्द्रों में रहते हैं जिससे आध्यात्मिक साधनाओं में गति मिलती है तथा एकादशी को मनः शक्ति का केन्द्र चन्द्रमा की ग्यारहवीं कक्षा पर अवस्थित होने से इस समय मनोनिग्रह की साधना अधिक फलित होती है।
अर्थात् उपयुक्त समय भी हो तथा मन और प्राणों की स्थिति ऊँचे केन्द्रों पर हो तो यह सोने में सुहागा वाली बात हो गयी। ऐसे समय जब साधना की जाय तो उससे कितना लाभ मिलेगा इस बात का अनुमान सभी लगा सकते हैं।
*इसी वैज्ञानिक आशय से हमारे ऋषियों द्वारा एकादशेन्द्रियभूत मन को एकादशी के दिन व्रत-उपवास द्वारा निगृहीत करने का विधान किया गया है।*

Saturday 20 October 2018

शरद पूर्णिमा की रात को क्या करें, क्या न करें ?

शरद पूर्णिमा विशेष
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अक्टूबर 23को समस्त भारत वर्ष में शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जायेगा।
इस दिन श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचाया था। साथ ही माना जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी रात के समय भ्रमण में निकलती है यह जानने के लिए कि कौन जाग रहा है और कौन सो रहा है। उसी के अनुसार मां लक्ष्मी उनके घर पर ठहरती है। इसीलिए इस दिन सभी लोग जगते है । जिससे कि मां की कृपा उनपर बरसे और उनके घर से कभी भी लक्ष्मी न जाएं।
इसलिए इसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा ही शरद पूर्णिमा पर्व मनाया जाता है।  इस दिन पूरा चंद्रमा दिखाई देने के कारण इसे महापूर्णिमा भी कहते हैं। 
पूरे साल में केवल इसी दिन चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। हिन्दी धर्म में इस दिन कोजागर व्रत माना गया है। इसी को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। मान्यता है इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है। तभी इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर चाँदनी में रखने का विधान है।

शरद पूर्णिमा विधान 
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इस दिन मनुष्य विधिपूर्वक स्नान करके उपवास रखे और ब्रह्मचर्य भाव से रहे।इस दिन ताँबे अथवा मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढँकी हुई स्वर्णमयी लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित करके भिन्न-भिन्न उपचारों से उनकी पूजा करें, तदनंतर सायंकाल में चन्द्रोदय होने पर सोने, चाँदी अथवा मिट्टी के घी से भरे हुए १०० दीपक जलाए। इसके बाद घी मिश्रित खीर तैयार करे और बहुत-से पात्रों में डालकर उसे चन्द्रमा की चाँदनी में रखें। जब एक प्रहर (३ घंटे) बीत जाएँ, तब लक्ष्मीजी को सारी खीर अर्पण करें। तत्पश्चात भक्तिपूर्वक सात्विक ब्राह्मणों को इस प्रसाद रूपी खीर का भोजन कराएँ और उनके साथ ही मांगलिक गीत गाकर तथा मंगलमय कार्य करते हुए रात्रि जागरण करें। तदनंतर अरुणोदय काल में स्नान करके लक्ष्मीजी की वह स्वर्णमयी प्रतिमा आचार्य को अर्पित करें। इस रात्रि की मध्यरात्रि में देवी महालक्ष्मी अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए संसार में विचरती हैं और मन ही मन संकल्प करती हैं कि इस समय भूतल पर कौन जाग रहा है? जागकर मेरी पूजा में लगे हुए उस मनुष्य को मैं आज धन दूँगी।

शरद पूर्णिमा पर खीर खाने का महत्व
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शरद पूर्णिमा की रात का अगर मनोवैज्ञानिक पक्ष देखा जाए तो यही वह समय होता है जब मौसम में परिवर्तन की शुरूआत होती है और शीत ऋतु का आगमन होता है। शरद पूर्णिमा की रात में खीर का सेवन करना इस बात का प्रतीक है कि शीत ऋतु में हमें गर्म पदार्थों का सेवन करना चाहिए क्योंकि इसी से हमें जीवनदायिनी ऊर्जा प्राप्त होगी।

शरद पूर्णिमा व्रत कथा 
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एक साहुकार के दो पुत्रियाँ थी। दोनो पुत्रियाँ पुर्णिमा का व्रत रखती थी। परन्तु बडी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधुरा व्रत करती थी। परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की सन्तान पैदा ही मर जाती थी। उसने पंडितो से इसका कारण पूछा तो उन्होने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी जिसके कारण तुम्हारी सन्तान पैदा होते ही मर जाती है। पूर्णिमा का पुरा विधिपुर्वक करने से तुम्हारी सन्तान जीवित रह सकती है।

उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया। उसके लडका हुआ परन्तु शीघ्र ही मर गया। उसने लडके को पीढे पर लिटाकर ऊपर से पकडा ढक दिया। फिर बडी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पीढा दे दिया। बडी बहन जब पीढे पर बैठने लगी जो उसका घाघरा बच्चे का छू गया। बच्चा घाघरा छुते ही रोने लगा। बडी बहन बोली-” तु मुझे कंलक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता।“ तब छोटी बहन बोली, ” यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। “उसके बाद नगर में उसने पुर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया। 

इस प्रकार प्रतिवर्ष किया जाने वाला यह कोजागर व्रत लक्ष्मीजी को संतुष्ट करने वाला है। इससे प्रसन्न हुईं माँ लक्ष्मी इस लोक में तो समृद्धि देती ही हैं और शरीर का अंत होने पर परलोक में भी सद्गति प्रदान करती हैं।

शरद पूर्णिमा की रात को क्या करें, क्या न करें ?
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दशहरे से शरद पूनम तक चन्द्रमा की चाँदनी में विशेष हितकारी रस, हितकारी किरणें होती हैं । इन दिनों चन्द्रमा की चाँदनी का लाभ उठाना, जिससे वर्षभर आप स्वस्थ और प्रसन्न रहें । नेत्रज्योति बढ़ाने के लिए दशहरे से शरद पूर्णिमा तक प्रतिदिन रात्रि में 15 से 20 मिनट तक चन्द्रमा के ऊपर त्राटक करें। 

अश्विनी कुमार देवताओं के वैद्य हैं। जो भी इन्द्रियाँ शिथिल हो गयी हों, उनको पुष्ट करने के लिए चन्द्रमा की चाँदनी में खीर रखना और भगवान को भोग लगाकर अश्विनी कुमारों से प्रार्थना करना कि ‘हमारी इन्द्रियों का बल-ओज बढ़ायें ।’ फिर वह खीर खा लेना।

इस रात सूई में धागा पिरोने का अभ्यास करने से नेत्रज्योति बढ़ती है । 

शरद पूनम दमे की बीमारी वालों के लिए वरदान का दिन है।

चन्द्रमा की चाँदनी गर्भवती महिला की नाभि पर पड़े तो गर्भ पुष्ट होता है। शरद पूनम की चाँदनी का अपना महत्त्व है लेकिन बारहों महीने चन्द्रमा की चाँदनी गर्भ को और औषधियों को पुष्ट करती है। 
अमावस्या और पूर्णिमा को चन्द्रमा के विशेष प्रभाव से समुद्र में ज्वार-भाटा आता है। जब चन्द्रमा इतने बड़े दिगम्बर समुद्र में उथल-पुथल कर विशेष कम्पायमान कर देता है तो हमारे शरीर में जो जलीय अंश है, सप्तधातुएँ हैं, सप्त रंग हैं, उन पर भी चन्द्रमा का प्रभाव पड़ता है । इन दिनों में अगर काम-विकार भोगा तो विकलांग संतान अथवा जानलेवा बीमारी हो जाती है और यदि उपवास, व्रत तथा सत्संग किया तो तन तंदुरुस्त, मन प्रसन्न और बुद्धि में बुद्धिदाता का प्रकाश आता है । इस दिन हमारे मंदिर में लक्ष्मी जी का अभिषेक संपूर्ण श्री सूक्त से करवाया जाएगा इसके अलावा रात्रि में लक्ष्मी जी के मंत्रों से जो लोग हवन करवाना चाहते हैं वह लोग फोन पर संपर्क कर सकते हैं  इस दिन लक्ष्मी  जी के मंत्रों से हवन Poojan karne se लक्ष्मी जी की विशेष कृपा प्राप्त होगी रात्रि में ओम हरीम श्रीम लक्ष्मी नारायणाय नमः इस मंत्र का चंद्रमा की रोशनी में विष्णु जी और लक्ष्मी जी के सामने बैठकर पूरी रात या ज्यादा से ज्यादा समय तक बैठकर जप करें इससे पूरे साल भर आप पर लक्ष्मी जी की कृपा बनी रहेगी

गौ मूत्र अर्क सभी तरह के रोगों पर प्रभावकारी



गौ मूत्र अर्क सभी तरह के रोगों पर प्रभावकारी है. विशेषतः कोलेस्ट्राल को कम करने और वजन को घटाने के उपोग में आता है. गौ मूत्र घन वटी के साथ लेने से अधिक लाभ होता है

यदि कोई शराबी शराब छोड़ने का इच्छुक हो तो केवल १५ दिन धीरज रखकर इस अर्क का सेवन करे १६ वे दिन शराब की जगह अर्क सेवन करने की ही इच्छा होगी.  

मात्रा २५ से 40 एम एल बिना पानी मिलाये जब भी शराब की तलब हो  कम से कम छेह महीने तक इसका सेवन करे जिससे शराब के दुष्प्रभावो का नाश होकर शरीर स्वस्थ्य  होगा

हमारे गौ शाला में उपलब्द्ध
9009363221, 9407001528

Friday 19 October 2018

अलसी के फायदे

अलसी एक प्रकार का तिलहन है। इसका बीज सुनहरे रंग का तथा अत्यंत चिकना होता है। फर्नीचर के वार्निश में इसके तेल का आज भी प्रयोग होता है। आयुर्वेदिक मत के अनुसार अलसी वातनाशक, पित्तनाशक तथा कफ निस्सारक भी होती है। मूत्रल प्रभाव एवं व्रणरोपण, रक्तशोधक, दुग्धवर्द्धक, ऋतुस्राव नियामक, चर्मविकारनाशक, सूजन एवं दरद निवारक, जलन मिटाने वाला होता है। यकृत, आमाशय एवं आँतों की सूजन दूर करता है। बवासीर एवं पेट विकार दूर करता है। सुजाकनाशक तथा गुरदे की पथरी दूर करता है। अलसी में विटामिन बी एवं कैल्शियम, मैग्नीशियम, काॅपर, लोहा, जिंक, पोटेशियम आदि खनिज लवण होते हैं। इसके तेल में 36 से 40 प्रतिशत ओमेगा-3 होता है।
जब से परिष्कृत यानी “रिफाइन्ड तेल” (जो बनते समय उच्च तापमान, हेग्जेन, कास्टिक सोडा, फोस्फोरिक एसिड, ब्लीचिंग क्ले आदि घातक रसायनों के संपर्क से गुजरता है), ट्रांसफेट युक्त पूर्ण या आंशिक हाइड्रोजिनेटेड वसा यानी वनस्पति घी (जिसका प्रयोग सभी पैकेट बंद खाद्य पदार्थों व बेकरी उत्पादनों में धड़ल्ले से किया जाता है), रासायनिक खाद, कीटनाशक, प्रिजर्वेटिव, रंग, रसायन आदि का प्रयोग बढ़ा है तभी से डायबिटीज के रोगियों की संख्या बढ़ी है। हलवाई और भोजनालय भी वनस्पति घी या रिफाइन्ड तेल का प्रयोग भरपूर प्रयोग करते हैं और व्यंजनों को तलने के लिए तेल को बार-बार गर्म करते हैं जिससे वह जहर से भी बदतर हो जाता है।
शोधकर्ता इन्ही को डायबिटीज का प्रमुख कारण मानते हैं। पिछले तीन-चार दशकों से हमारे भोजन में ओमेगा-3 वसा अम्ल की मात्रा बहुत ही कम हो गई है और इस कारण हमारे शरीर में ओमेगा-3 व ओमेगा-6 वसा अम्ल यानी हिंदी में कहें तो Omega-3 और Omega-6 वसा अम्लों का अनुपात 1:40 या 1:80 हो गया है जबकि यह 1:1 होना चाहिये। यह भी डायबिटीज का एक बड़ा कारण है। डायबिटीज के नियंत्रण हेतु आयुवर्धक, आरोग्यवर्धक व दैविक भोजन अलसी को “अमृत“ तुल्य माना गया है।
अलसी शरीर को स्वस्थ रखती है व आयु बढ़ाती है। अलसी में 23 प्रतिशत ओमेगा-3 फेटी एसिड, 20 प्रतिशत प्रोटीन, 27 प्रतिशत फाइबर, लिगनेन, विटामिन बी ग्रुप, सेलेनियम, पोटेशियम, मेगनीशियम, जिंक आदि होते हैं। सम्पूर्ण विश्व ने अलसी को सुपर स्टार फूड के रूप में स्वीकार कर लिया है और इसे आहार का अंग बना लिया है, लेकिन हमारे देश की स्थिति बिलकुल विपरीत है । अलसी को अतसी, उमा, क्षुमा, पार्वती, नीलपुष्पी, तीसी आदि नामों से भी पुकारा जाता है। अलसी दुर्गा का पांचवा स्वरूप है। प्राचीनकाल में नवरात्री के पांचवे दिन स्कंदमाता यानी अलसी की पूजा की जाती थी और इसे प्रसाद के रूप में खाया जाता था। जिससे वात, पित्त और कफ तीनों रोग दूर होते है। अलसी को आयुर्वेद में लगभग 500 रोगों की एक औषिधि बताया गया है।
ओमेगा-3 हमारे शरीर की सारी कोशिकाओं, उनके न्युक्लियस, माइटोकोन्ड्रिया आदि संरचनाओं के बाहरी खोल या झिल्लियों का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। यही इन झिल्लियों को वांछित तरलता, कोमलता और पारगम्यता प्रदान करता है। ओमेगा-3 का अभाव होने पर शरीर में जब हमारे शरीर में ओमेगा-3 की कमी हो जाती है तो ये भित्तियां मुलायम व लचीले ओमेगा-3 के स्थान पर कठोर व कुरुप ओमेगा-6 फैट या ट्रांस फैट से बनती है, ओमेगा-3 और ओमेगा-6 का संतुलन बिगड़ जाता है, प्रदाहकारी प्रोस्टाग्लेंडिन्स बनने लगते हैं, हमारी कोशिकाएं इन्फ्लेम हो जाती हैं, सुलगने लगती हैं और यहीं से ब्लडप्रेशर, डायबिटीज, मोटापा, डिप्रेशन, आर्थ्राइटिस और कैंसर आदि रोगों की शुरूवात हो जाती है।
आयुर्वेद के अनुसार हर रोग की जड़ पेट है और पेट साफ रखने में यह इसबगोल से भी ज्यादा प्रभावशाली है। आई.बी.एस., अल्सरेटिव कोलाइटिस, अपच, बवासीर, मस्से आदि का भी उपचार करती है अलसी।
अलसी शर्करा ही नियंत्रित नहीं रखती, बल्कि मधुमेह के दुष्प्रभावों से सुरक्षा और उपचार भी करती है। अलसी में रेशे भरपूर 27% पर शर्करा 1.8% यानी नगण्य होती है। इसलिए यह शून्य-शर्करा आहार कहलाती है और मधुमेह के लिए आदर्श आहार है। अलसी बी.एम.आर. बढ़ाती है, खाने की ललक कम करती है, चर्बी कम करती है, शक्ति व स्टेमिना बढ़ाती है, आलस्य दूर करती है और वजन कम करने में सहायता करती है। चूँकि ओमेगा-3 और प्रोटीन मांस-पेशियों का विकास करते हैं अतः बॉडी बिल्डिंग के लिये भी नम्बर वन सप्लीमेन्ट है अलसी।
अलसी कॉलेस्ट्रॉल, ब्लड प्रेशर और हृदयगति को सही रखती है। रक्त को पतला बनाये रखती है अलसी। रक्तवाहिकाओं को साफ करती रहती है अलसी।
चश्में से भी मुक्ति दिला देती है अलसी। दृष्टि को स्पष्ट और सतरंगी बना देती है अलसी।
अलसी एक फीलगुड फूड है, क्योंकि अलसी से मन प्रसन्न रहता है, झुंझलाहट या क्रोध नहीं आता है, पॉजिटिव एटिट्यूड बना रहता है यह आपके तन, मन और आत्मा को शांत और सौम्य कर देती है। अलसी के सेवन से मनुष्य लालच, ईर्ष्या, द्वेश और अहंकार छोड़ देता है। इच्छाशक्ति, धैर्य, विवेकशीलता बढ़ने लगती है, पूर्वाभास जैसी शक्तियाँ विकसित होने लगती हैं। इसीलिए अलसी देवताओं का प्रिय भोजन थी। यह एक प्राकृतिक वातानुकूलित भोजन है।
माइन्ड का Sim card है अलसी यहां सिम का मतलब सेरीनिटी, इमेजिनेशन और मेमोरी तथा कार्ड का मतलब कन्सन्ट्रेशन, क्रियेटिविटी, अलर्टनेट, रीडिंग राईटिंग थिंकिंग एबिलिटी और डिवाइन है।
त्वचा, केश और नाखुनों का नवीनीकरण या जीर्णोद्धार करती है अलसी। अलसी के शक्तिशाली एंटी-ऑक्सीडेंट ओमेगा-3 व लिगनेन त्वचा के कोलेजन की रक्षा करते हैं और त्वचा को आकर्षक, कोमल, नम, बेदाग व गोरा बनाते हैं। अलसी सुरक्षित, स्थाई और उत्कृष्ट भोज्य सौंदर्य प्रसाधन है जो त्वचा में अंदर से निखार लाता है। त्वचा, केश और नाखून के हर रोग जैसे मुहांसे, एग्ज़ीमा, दाद, खाज, खुजली, सूखी त्वचा, सोरायसिस, ल्यूपस, डेन्ड्रफ, बालों का सूखा, पतला या दोमुंहा होना, बाल झड़ना आदि का उपचार है अलसी। चिर यौवन का स्रोता है अलसी। बालों का काला हो जाना या नये बाल आ जाना जैसे चमत्कार भी कर देती है अलसी। किशोरावस्था में अलसी के सेवन करने से कद बढ़ता है।
लिगनेन का सबसे बड़ा स्रोत अलसी ही है जो जीवाणुरोधी, विषाणुरोधी, फफूंदरोधी और कैंसररोधी है। अलसी शरीर की रक्षा प्रणाली को सुदृढ़ कर शरीर को बाहरी संक्रमण या आघात से लड़ने में मदद करती हैं और शक्तिशाली एंटी-आक्सीडेंट है। लिगनेन वनस्पति जगत में पाये जाने वाला एक उभरता हुआ सात सितारा पोषक तत्व है जो स्त्री हार्मोन ईस्ट्रोजन का वानस्पतिक प्रतिरूप है और नारी जीवन की विभिन्न अवस्थाओं जैसे रजस्वला, गर्भावस्था, प्रसव, मातृत्व और रजोनिवृत्ति में विभिन्न हार्मोन्स् का समुचित संतुलन रखता है। लिगनेन मासिकधर्म को नियमित और संतुलित रखता है। लिगनेन रजोनिवृत्ति जनित-कष्ट और अभ्यस्त गर्भपात का प्राकृतिक उपचार है। लिगनेन दुग्धवर्धक है। लिगनेन स्तन, बच्चेदानी, आंत, प्रोस्टेट, त्वचा व अन्य सभी कैंसर, एड्स, स्वाइन फ्लू तथा एंलार्ज प्रोस्टेट आदि बीमारियों से बचाव व उपचार करता है।
जोड़ की हर तकलीफ का तोड़ है अलसी। जॉइन्ट रिप्लेसमेन्ट सर्जरी का सस्ता और बढ़िया उपचार है अलसी। आर्थ्राइटिस, शियेटिका, ल्युपस, गाउट, ओस्टियोआर्थ्राइटिस आदि का उपचार है अलसी।
कई असाध्य रोग जैसे अस्थमा, एल्ज़ीमर्स, मल्टीपल स्कीरोसिस, डिप्रेशन, पार्किनसन्स, ल्यूपस नेफ्राइटिस, एड्स, स्वाइन फ्लू आदि का भी उपचार करती है अलसी। कभी-कभी चश्में से भी मुक्ति दिला देती है अलसी। दृष्टि को स्पष्ट और सतरंगी बना देती है अलसी।
मीनोपोज़ (माहवारी सम्बंधित) की तकलीफों पर पॉज़ लगा देती है अलसी।
पौरुष शक्ति बढ़ाने में अलसी सबसे अच्छी औषिधि है। जो अलसी खाये वो गाये जवानी ज़िंदाबाद बुढ़ापा बाय बाय।
पुरूष को का*मदेव तो स्त्रियों को रति बनाती है अलसी।
बॉडी बिल्डिंग के लिये नम्बर वन सप्लीमेन्ट है अलसी।
जोड़ की तकलीफों का तोड़ है अलसी। जॉइन्ट रिप्लेसमेन्ट सर्जरी का सस्ता और बढ़िया विकल्प है अलसी।
क्रूर, कुटिल, कपटी, कठिन, कष्टप्रद कर्करोग का सस्ता, सरल, सुलभ, संपूर्ण और सुरक्षित समाधान है अलसी।
1952 में डॉ. योहाना बुडविग ने ठंडी विधि से निकले अलसी के तेल, पनीर, कैंसररोधी फलों और सब्ज़ियों से कैंसर के उपचार का तरीका विकसित किया था जो बुडविग प्रोटोकोल के नाम से जाना जाता है। यह कर्करोग का सस्ता, सरल, सुलभ, संपूर्ण और सुरक्षित समाधान है। उन्हें 90 प्रतिशत से ज्यादा सफलता मिलती थी। इसके इलाज से वे रोगी भी ठीक हो जाते थे जिन्हें अस्पताल में यह कहकर डिस्चार्ज कर दिया जाता था कि अब कोई इलाज नहीं बचा है, वे एक या दो धंटे ही जी पायेंगे सिर्फ दुआ ही काम आयेगी। उन्होंने सशर्त दिये जाने वाले नोबल पुरस्कार को एक नहीं सात बार ठुकराया।
अलसी सेवन का तरीका :
हमें प्रतिदिन 30 – 60 ग्राम अलसी का सेवन करना चाहिये। 30 ग्राम आदर्श मात्रा है। अलसी को रोज मिक्सी के ड्राई ग्राइंडर में पीसकर आटे में मिलाकर रोटी, पराँठा आदि बनाकर खाना चाहिये। डायबिटीज के रोगी सुबह शाम अलसी की रोटी खायें। कैंसर में बुडविग आहार-विहार की पालना पूरी श्रद्धा और पूर्णता से करना चाहिये। इससे ब्रेड, केक, कुकीज, आइसक्रीम, चटनियाँ, लड्डू आदि स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाये जाते हैं।
अलसी को सूखी कढ़ाई में डालिये, रोस्ट कीजिये (अलसी रोस्ट करते समय चट चट की आवाज करती है) और मिक्सी से पीस लीजिये. इन्हें थोड़े दरदरे पीसिये, एकदम बारीक मत कीजिये. भोजन के बाद सौंफ की तरह इसे खाया जा सकता है।
अलसी की पुल्टिस का प्रयोग गले एवं छाती के दर्द, सूजन तथा निमोनिया और पसलियों के दर्द में लगाकर किया जाता है। इसके साथ यह चोट, मोच, जोड़ों की सूजन, शरीर में कहीं गांठ या फोड़ा उठने पर लगाने से शीघ्र लाभ पहुंचाती है। यह श्वास नलियों और फेफड़ों में जमे कफ को निकाल कर दमा और खांसी में राहत देती है।
इसकी बड़ी मात्रा विरेचक तथा छोटी मात्रा गुर्दो को उत्तेजना प्रदान कर मूत्र निष्कासक है। यह पथरी, मूत्र शर्करा और कष्ट से मूत्र आने पर गुणकारी है। अलसी के तेल का धुआं सूंघने से नाक में जमा कफ निकल आता है और पुराने जुकाम में लाभ होता है। यह धुआं हिस्टीरिया रोग में भी गुण दर्शाता है। अलसी के काढ़े से एनिमा देकर मलाशय की शुद्धि की जाती है। उदर रोगों में इसका तेल पिलाया जाता हैं।
अलसी के तेल और चूने के पानी का इमल्सन आग से जलने के घाव पर लगाने से घाव बिगड़ता नहीं और जल्दी भरता है। पथरी, सुजाक एवं पेशाब की जलन में अलसी का फांट पीने से रोग में लाभ मिलता है। अलसी के कोल्हू से दबाकर निकाले गए (कोल्ड प्रोसेस्ड) तेल को फ्रिज में एयर टाइट बोतल में रखें। स्नायु रोगों, कमर एवं घुटनों के दर्द में यह तेल पंद्रह मि.ली. मात्रा में सुबह-शाम पीने से काफी लाभ मिलेगा।
इसी कार्य के लिए इसके बीजों का ताजा चूर्ण भी दस-दस ग्राम की मात्रा में दूध के साथ प्रयोग में लिया जा सकता है। यह नाश्ते के साथ लें।
बवासीर, भगदर, फिशर आदि रोगों में अलसी का तेल (एरंडी के तेल की तरह) लेने से पेट साफ हो मल चिकना और ढीला निकलता है। इससे इन रोगों की वेदना शांत होती है।
अलसी के बीजों का मिक्सी में बनाया गया दरदरा चूर्ण पंद्रह ग्राम, मुलेठी पांच ग्राम, मिश्री बीस ग्राम, आधे नींबू के रस को उबलते हुए तीन सौ ग्राम पानी में डालकर बर्तन को ढक दें। तीन घंटे बाद छानकर पीएं। इससे गले व श्वास नली का कफ पिघल कर जल्दी बाहर निकल जाएगा। मूत्र भी खुलकर आने लगेगा।
इसकी पुल्टिस हल्की गर्म कर फोड़ा, गांठ, गठिया, संधिवात, सूजन आदि में लाभ मिलता है।
डायबिटीज के रोगी को कम शर्करा व ज्यादा फाइबर खाने की सलाह दी जाती है। अलसी व गैहूं के मिश्रित आटे में (जहां अलसी और गैहूं बराबर मात्रा में हो)

Thursday 18 October 2018

देसी गाय के सींग से खाद

देसी गाय के सींग से खाद बनाने के लिए मुख्यतया दो वस्तुओं की आवश्यकता होती है- मृत गाय के सींग का खोल तथा दूध देती गाय का गोबर। यह सभी जानते हैं कि भारतीय संस्कृति में गाय का स्थान अत्यधिक महत्वपूर्ण है तथा गाय का गोबर नक्षत्रीय एवं आकाशीय प्रभावों से युक्त होता है। नक्षत्रीय प्रभाव नार्इट्रोजन बढ़ाने वाली ताकतों से युक्त होता है तथा आकाशीय प्रभाव आक्सीजन बढ़ाने वाली ताकतों से युक्त है। इन्हीं शक्तियों के प्रभाव से गोबर का भूमि पर जीवनदायी असर होता है। गोबर में जीवों को आकर्षित करने की ताकत होती है तथा गाय के चार पेट वाले पाचन संस्थान का इसमें बहुत योग होता है। गाय के सींग नक्षत्रीय ताकतों को ग्रहण करके उन्हें पाचन संस्थान तक पहुंचाते हैं। गाय के सींग के खोल गोबर का असर बढ़ाने के लिए उत्तम पात्र होते हैं। जीवाणुओं की जांच के अनुसार सींग में उपस्थित गोबर बनाने वाले जीवाणु कम होकर ह्यमस बनाने वाले जीवाणुओं की संख्या अधिक हो जाती है जबकि गोबर को किसी अन्य पात्र में रखकर गाड़ा जाए तो उसका वह प्रभाव नहीं होता।
सीग खाद बनाने के लिए प्रमुख आवश्यकताएं
सींग खाद बनाने के लिए प्रमुख आवश्यकता होगी-
(क) ऐसी मृत गाय के सींग जो कम से कम एक-दो बार ब्याही हुर्इ हो;
(ख) सीग पर रंग न हो तथा इसमें दरारें न हों; तथा
(ग) दुधारू गाय का गोबर। यह गोबर ऐसी गाय का ही होना चाहिए जो स्वस्थ हों तथा गोबर प्राप्त करने से 15 दिन पूर्व तक इस गाय को कोर्इ औषधि न दी गर्इ हो। सींग के खोल में भरने के लिए सदा ताजा गोबर ही प्रयुक्त किया जाना चाहिए।
सींग खोल #गाड़ने के लिए #गड्ढा
सींग खोल गाड़ने के लिए अच्छी उपजाऊ जमीन में गड्ढा बना लिया जाना चाहिए। सींग गाड़ने के लिए एक से सवा फीट गहरा गड्ढा किसी ऐसी जगह पर खोद लिया जाना चाहिए जहां जल भराव न होता हो। गड्ढे की लंबार्इ-चौड़ार्इ उतनी होनी चाहिए जितनी मात्रा में इसमें सींग रखे जाने प्रस्तावित हों।
सींग खाद बनाने का उपयुक्त #समय
सींग खाद बनाने का सर्वाधिक उपयुक्त समय अक्टूबर का महीना होगा। भारतीय पंचांग के अनुसार कुंवार महीने की नवरात्रि में या शरदपूर्णिमा तक का समय सींग खाद बनाने के लिए सर्वाधिक उत्तम होता है। इस समय सींग खाद में चन्द्रमा की शक्तियों को काम करने का समय मिलता है। ठण्ड के दिनों में दिन छोटे होते हैं तथा सूर्य की गरमी भी कम होती है अत: चन्द्रमा की शक्तियों को अपना असर बढ़ाने के लिए काफी समय मिलता है। बायोडायनामिक पंचांग के अनुसार अक्टूबर माह में जब चन्द्रमा दक्षिणायन हो तो सींग खाद बनाया जाना चाहिए। अत: इस समय दूध दे रही गाय का गोबर नर्म करके सींग में अच्छी प्रकार से भरकर गड्ढे में गाड़ दिया जाना चाहिए। सींग इस प्रकार गाड़े जाने चाहिए कि उनका नुकीला सिरा ऊपर रहे।
गोबर से भरे सींग के खोलों को सामान्यतया छ: माह तक गड्ढे में रखा जाता है। चैत्र नवरात्रि में या मार्च-अप्रैल महीने में जब चन्द्रमा दक्षिणायन हो तो सींगों को जमीन से निकाल करके उनके ऊपर लगी मिट्टी को साफ कर लिया जाता है। तदुपरान्त एक पौलीथीन की शीट अथवा अखबार पर इन सींगों को झाड़ करके इनमें से पका हुआ गोबर (खाद) एकत्रित कर लिया जाता है।
खाद का भण्डारण
सींगों से खाद निकाल लिए जाने के उपरान्त मिट्टी में उसके ढेले आदि तोड़कर अथवा मसलकर एक मिट्टी के मटके में संग्रहित कर लिया जाता है। मटके में नमी का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए ताकि यह सूखे नहीं। इस घड़े को किसी ठंडे स्थान पर रखा जाता है तथा इसका ढक्कन थोड़ा ढीला रखा जाता है ताकि उसके अंदर हवा का आवागमन हो सके। इस समय जीवाणुओं के प्रभाव से सींग में से निकले हुए खाद बारीक खाद में परिवर्तित हो जाती हैं। इ. सींग खाद के उपयोग का समय सींग खाद का उपयोग फसल पर तीन बार करना चाहिए। पहली बार बोनी से एक दिन पहले सायंकाल में, दूसरी बार जब फसल बीस दिन की हो जाए तथा तीसरी बार तब जब फसल 50-60 दिन की हो जाए। क्योंकि इस खाद में चन्द्रमा का प्रभाव होता है अत: बेहतर परिणाम प्राप्त करने हेतु इसे शुक्ल पक्ष में पंचमी से पूर्णिमा के बीच प्रयुक्त किया जाना चाहिए। इस प्रकार जब भी चन्द्रमा दक्षिणायन हो तब इसका उपयोग किया जा सकता है। अमावस के आस-पास किया गया इसका उपयोग चन्द्रवल की कमी के कारण लाभप्रद नहीं रहता।
#प्रयोग करने की विधि
30 ग्राम सींग खाद 13 लीटर पानी में मिलाएं पानी कुएं अथवा ट्यूबवेल का होना चाहिए नल का नहीं। इस मिश्रण को एक बाल्टी में निकाल कर एक डंडे की मदद से गोल घुमाया जाता है ताकि उसमें भंवर पड़ जायें। एक बार भंवर पड़ जाने पर उसे उल्टी दिशा में घुमाया जाता है तथा तदुपरान्त पुन: उसे दिशा पलट कर घुमाया जाता है। इस प्रकार यह प्रक्रिया एक घंटे तक जारी रखी जाती है। पूरी तरह घुल जाने पर झाड़ू की मदद से इस मिश्रण को खेत में छिड़क दिया जाता है। इस मिश्रण का उपयोग एक घंटे के भीतर हो जाना चाहिए तथा इसका उपयोग शाम में ही किया जाना चाहिए जब भूमि में नमी हो। घोल अधिक हो तो बड़े बर्तन तथा स्प्रे पम्प का उपयोग भी किया जा सकता है। ऐसा स्प्रे पम्प साफ होना चाहिए ताकि इसमें किसी प्रकार का रासायनिक अवशेष नहीं होना चाहिए।
सींग खाद के #लाभ
सींग खाद का दो-तीन साल तक नियमित उपयोग करने से जमीन में गुणात्मक सुधार आ जाते हैं। इससे जमीन में जीवाणुओं की संख्या के साथ-साथ केंचुओं तथा ह्यूमस बनाने वाले जीवों की संख्या भी बढ़ जाती है। इससे जमीन भुरभुरी हो जाती है, जड़ें ज्यादा गहरार्इ तक जाती हैं तथा मिट्टी अधिक समय तक नम रहती है इससे भूमि की नमी धारण की क्षमता चार गुना बढ़ जाती है तथा दलहनी फसलों की जड़ों में नोड्यूल्स की संख्या बढ़ जाने से जमीन की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ जाती है।

Tuesday 16 October 2018

प्राकृतिक स्वाद एवं पोषणयुक्त रोटी

प्राकृतिक स्वाद एवं पोषणयुक्त रोटी तथा स्वादिष्ट चटनियां
🔘आटा अम्लीय होता है,, मात्र चोकर वाला अंश क्षारीय होता है। । मानवीय स्वास्थ्य के लिए रोटी को प्राकृतिक गुणों से भरपूर बनाने का तरीक़ा यह है कि रोटी बनाने वाले आटे में शाक सब्जियों को पीसकर या उनका रस मिलाकर रोटी बनाएं। । यहां पर कुछ तरीके प्रयोग के तौर पर दिए गए हैं--
🔘 (1) मूली की रोटी-- मूली को कसकर आटे में मिला दें,, स्वादानुसार सेंधा नमक,, काली मिर्च,, अजवायन,, जीरा,, हल्दी मिलाकर आटा गूंथकर आधे घंटे बाद रोटी बना लें। ।
लाभ-- बवासीर,, कब्ज दूर करता है। । लीवर को बल मिलता है। ।
🔘(2) बथुआ की रोटी-- बथुआ की पत्तियों को धोकर,, पीसकर आटे में मिलाकर रोटी बनाएं। । स्वादानुसार क्र0 1 के अनुसार खाद्य मसाले डालें। ।
लाभ-- रक्तवृद्धि,, रक्तशुद्धि,, वात दोश नाशक,, जीवनीशक्ति वर्द्धक। ।
🔘(3) पालक की रोटी-- पालक के पत्ते धोकर पीस लें तथा इसमें नमक,, जीरा,, अजवायन,, सेंधा नमक मिलाकर रोटी बनाएं। ।
लाभ-- कब्ज निवृत्ति तथा एनीमिया में लाभप्रद। ।
🔘(4) लौकी की रोटी-- आटे में लौकी का रस मिलाकर उपरोक्त विधि के अनुसार जीरा,, सेंधा नमक मिलाकर आटे को गूंथकर रोटी बनाकर खाएं। ।
लाभ-- यह रोटी उच्च रक्तचाप,, हृदय रोग से बचाती है। ।
🔘(5) मेथी की रोटी-- मेथी के पत्तों को धोकर,, पीसकर आटे में गूंथकर रोटी बनाएं। । स्वाद के लिए सेंधा नमक,, जीरा अजवायन,, काली मिर्च मिलाएं।।
लाभ-- रक्तशोधक,, वातरोगनाशक, कब्ज नाशक।।
🔘(6) एलोवेरा की रोटी-- एलोवेरा के पत्तों को धोकर चाकू से ऊपर का छिलका हटाकर गूदे को निकाल कर छान लें। । इसमें धनियां,, जीरा,, अजवायन,, सेंधा नमक,, काली मिर्च,, हल्दी मिलाकर आटे को गूंथकर रोटी बनाकर खाएं। ।
लाभ-- संधिवात,, गठिया इत्यादि वातरोगों में लाभप्रद। । यकृत अमाशय एवं आंतों के रोग से बचाव।। आंतो के कैंसर से बचाव करता है। ।
🔘(7) आलू की रोटी-- आलू को कद्दू कस करके,, कपड़े मे रखकर दबा कर पानी निचोड़ कर आटे में मिला लें तथा स्वादानुसार नमक,, जीरा,, अजवायन,, धनिया हल्दी मिलाकर रोटी बनाएं। ।
लाभ-- यह रोटी नेत्रज्योति बढ़ाती है तथा रक्तशोधक है।।
🔘घी या तेल के परांठे-- यकृत के लिए हानिकारक होते हैं। । अतः परांठों के स्थान पर उपरोक्तानुसार रोटियां बनाकर खाएं तथा रोटी बनने के बाद घी लगा कर सेवन कर सकते हैं परन्तु हृदय के रोगियों को घी का सेवन नहीं करना चाहिए। ।
🔘प्राकृतिक सात्विक स्वादिष्ट चटनियां खाएं-- भोजन में रुचि जगाने के लिए प्राकृतिक तरीके से चटनी बनाएं। । इनमें स्वाद तो होता ही है सभी पोषक तत्व भी न पकाने की वजह से सुरक्षित रहते हैं जो हमारी सेहत के लिए बेहद लाभदायक होता है। । सभी विटामिन्स एवं खनिज लवणों से युक्त चटनी अपने भोजन में सम्मिलित कर भोजन का स्वाद बढ़ाएं।।
अमरूद की चटनी-- 100 ग्राम अमरूद,, 50 ग्राम अनारदाना तथा 1-2 हरी मिर्च,, काला नमक,, सफेद नमक स्वादानुसार मिलाकर पीस लें। । यह चटनी कब्ज निवारक होती है ।।
पुदीने की चटनी-- पुदीने की पत्तियां 100 ग्राम तथा 50 ग्राम धनिया पत्ती,, 100 ग्राम दही 1-2 हरी मिर्च स्वादानुसार नमक मिलाकर पीस लें। । यह चटनी गैस अपच को दूर करती है। ।
टमाटर की चटनी-- 100 ग्राम टमाटर 50 ग्राम धनिया पत्ती,, 2 हरी मिर्च,, 20 ग्राम अदरक तथा स्वादानुसार नमक,, जीरा,, भुनी हुई हींग मिलाकर पीस लें। । यह चटपटी चटनी भूख बढ़ाती है। । इससे जठराग्नि तेज होती है। ।
नारियल की चटनी-- कच्चा नारियल 100 ग्राम धनिया पत्ती 50 ग्राम 2 हरी मिर्च नमक तथा भुना हुआ जीरा अजवायन स्वादानुसार मिलाकर थोड़ा पानी मिला लें जिससे पीसने में आसानी हो। । यह चटनी स्वाद बढ़ाने के लिए तथा संधिवात में लाभदायक है। ।
मूंगफली की चटनी-- मूंगफली के दाने 50 ग्राम लेकर 200 ग्राम पानी में 8 घंटे भिगो कर रखें तत्पश्चात उसे 50 ग्राम दही 50 ग्राम धनिया पत्ती 2 हरी मिर्च तथा भुना हुआ जीरा अजवायन हींग के साथ पीस लें। । चटनी तैयार है। ।
आंवला की चटनी--100 ग्राम आंवला बिना गुठली के,, धनिया पत्ती 100 ग्राम,, अदरक,, हरी मिर्च,, नमक,, जीरा,, अजवायन मिलाकर पीस लें। । यह चटनी विटामिन सी से भरपूर है।। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है। ।
धनिया की चटनी-- धनिया पत्ती 100 ग्राम मुनक्का 20 ग्राम खजूर 20 ग्राम अदरक 10 ग्राम हरी मिर्च काला नमक दही जीरा काली मिर्च अजवायन को स्वादानुसार मिलाकर पीसकर नीबू का रस मिलाकर आंवला उपलब्ध है तो पीसकर मिला दें। । यह चटनी पाचक स्वादिष्ट एवं पित्त नाशक होता है। ।
पालक की चटनी-- पालक 100 ग्राम, मूली धनिया 50-50 ग्राम,, हरी मिर्च,, अदरक,, गुड़,, काला नमक,, सेंधा नमक तथा आंवला,, अजवायन स्वादानुसार मिलाएं। । चटनी तैयार है। । यह चटनी बहुमूत्र विकार दूर करती है। ।
इमली की चटनी-- 50 ग्राम पकी इमली को गरम पानी में आधा घंटा भिगो कर रखें तत्पश्चात मसलकर छान लें। । इसमें हरी मिर्च,, हींग,, जीरा,, अजवायन, पुदीना,, अदरक एवं गुड़ मिलाकर पीस लें। । यह चटनी पेचिस के रोगियों के लिए लाभप्रद होती है ।।
किसमिश की चटनी-- 50 ग्राम किसमिस 50 ग्राम अनारदाना छुहारा 50 ग्राम 8 घंटे पानी में भिगो कर रखें।। छुहारे की गुठली निकाल दें। । नारियल 50 ग्राम तथा पुदीना,, धनिया,, काली मिर्च,, हरी मिर्च तथा नमक स्वादानुसार मिलाकर पीस लें थोड़ा सा नीबू का रस मिला दें। । यह चटनी एनीमिया दूर करती है ,, खून बढ़ाती हैं। ।
तिल की चटनी-- 100 ग्राम तिल 10 ग्राम सौंफ 10 ग्राम मुनक्का 2 अंजीर को 8-10 घंटे पानी में भिगो कर रखें तत्पश्चात नमक हरी मिर्च जीरा अजवायन भुने हुए आदि स्वादानुसार मिलाकर चटनी बनाएं। यह चटनी लीवर के रोगों में लाभदायक और पौष्टिक है। । हड्डी मजबूत करती है। कैल्सियम की कमी दूर करती है ।।
खजूर की चटनी-- खजूर 100 ग्राम लौकी 50 ग्राम बंदगोभी 50 ग्राम अमरूद 50 ग्राम (बिना बीज,, गुठली के) अजवायन हरी मिर्च धनिया अदरक नीबू का रस सेंधा नमक स्वादानुसार मिलाकर पीस लें। । यह चटनी कब्ज दूर करती है ,, रक्तचाप संतुलित करती है तथा हीमोग्लोबिन बढ़ाती है। ।
सेब की चटनी-- 100 ग्राम सेब 50 ग्राम पत्ता गोभी 50 ग्राम गाजर 50 ग्राम टमाटर 50 ग्राम खजूर तथा अदरक सेंधा नमक हरी मिर्च तथा जीरा अजवायन भुने हुए आदि स्वादानुसार मिलाकर पीस लें। । यह चटनी हृदय रोग उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए फायदेमंद है। ।
कच्चे आम की चटनी-- आम 100 ग्राम धनिया पत्ती 100 ग्राम पुदीना 100 ग्राम अदरक 5 ग्राम हरी मिर्च नमक जीरा अजवायन हींग आदि स्वादानुसार मिलाकर चटनी बनाएं। । गरमी के दिनों में यह लाभप्रद है।।
कब्ज दूर करने के लिए क्या करें-- हमारे भोजन में रेशे की मात्रा न होने से कब्ज होता है। । इसका सरल उपाय है कि हम भोजन में छिलका युक्त हरी सब्जियों का प्रयोग अवश्य करें। । मैदा चीनी बेसन के व्यंजन तथा फास्ट फूड कब्ज पैदा करते हैं।। सलाद अर्थात जिन सब्जियों को कच्चा खाया जाता है जैसे-- मूली गाजर टमाटर पत्ता गोभी खीरा ककड़ी आदि इन्हें प्राकृतिक रूप से अवश्य खाएं। । इनसे रेशे की पूर्ति होती है। । अनावश्यक गरमी भी बाहर निकलती है। ।
🔻युग निर्माण योजना 🔺अप्रैल 2018🔻पेज--19/20🔺टाइप-- कंचन कुमार गुप्ता 🔻पालम कालोनी 🔺नई दिल्ली 🔻

Monday 15 October 2018

मन्दिर में गाय का घी दान देना चाहिए

यदि आपके घर में रहने वाले सदस्यों में हमेशा अनबन रहती है, कोई सदस्य हमेशा बीमार रहता है। सारा पैसा बीमारी में चला जाता है या घर में पैसों की बरकत नही होती है और आपके घर में शांति नही है तो बिना पूजा पाठ एवं तंत्र मंत्र से आप गृह शांति कर सकते है। अगर आप राशि के अनुसार कुछ छोटे छोटे प्रयोग करें तो निश्चित ही आपके घर में शांति हो जाएगी।
मेष- मेष राशि वाले लोग अपनी राशि के अनुसार घर में लाल गाय का गौमूत्र छीटें और शाम को गुग्गल का धूप दें।
वृष- आपकी राशि का स्वामी शुक्र है इसलिए आपको लक्ष्मी जी के मन्दिर में गाय का घी दान देना चाहिए।
मिथुन- अगर आप बुध से संबंधीत वस्तुओं का दान दें तो आपके घर में निश्चित ही शांति रहेगी। आप किन्नरों को हरे वस्त्र के साथ हरी चुड़ीयां दान दें।
कर्क- आप पर चंद्रमा का विशेष प्रभाव है चंद्रमा के शुभ प्रभाव के लिए आप 10 वर्ष से कम उम्र की कन्याओं को भोजन कराएं और दक्षिणा दें।
सिंह- आपकी राशि का स्वामी सूर्य है और आप पर सूर्य का विशेष प्रभाव है। इसलिए आप रोज सूर्योदय के समय तांबे के पात्र से सूर्य को जल चढ़ाए।
कन्या- कन्या राशि वाले लोगों को गले हुए मूंग गाय को खिलाना चाहिए। इससे आपके धर में शांति बनी रहेगी।
तुला- आपकी राशि शुक्र की राशि है इसलिए आप नव विवाहित वधू को भोजन कराएं तो आप पर लक्ष्मी जी प्रसन्न होंगी और घर में बरकत बनी रहेगी।
वृश्चिक- आपकी राशि का स्वामी मंगल है इसलिए आप रोज रात को तांबे के बर्तन में पानी भर कर उसे अपने सिरहाने रख कर सोए और सुबह कांटेदार वृक्ष में डाल दें तो आपके घर में शांति रहेगी और सारी नकारात्मकता खत्म हो जाएगी।
धनु- धनु राशि वाले गुरु के उपाय करें यानी रोज पीली गाय को चारा दें और हर गुरुवार को किसी ब्राह्मण को भोजन कराए।
मकर- घर मे शांति बनाए रखने के लिए आप किसी जरूरतमंद व्यक्ति को काला कंबल दान दें।
कुंभ- आपकी राशि पर शनि देव का विशेष प्रभाव है इसलिए आप चिंटीयों को आटा और चिनी खिलाए।
मीन- अपनी राशि के अनुसार आपको रोज मछलियों को आटे की गोलियां खिलाना चाहिए या दाना डालना चाहिए।

गोबर में रेडियेशन अवशोषित करने का गुण है.

गोबर के गुण ---
- जब बाल कृष्ण को पूतना ने विषयुक्त दुग्धपान कराया था तो उस विष का दुष्प्रभाव दूर करने के लिए उन्हें गोबर से नहलाया गया था. गोबर में विष को अवशोषित करने के गुण होते है. गोबर का लेप लगा कर फिर स्नान करने से थोड़े समय बाद शरीर से एक अद्भुत सुगंध आती है.

- गोबर में रेडियेशन अवशोषित करने का गुण है.

- गोमय वसते लक्ष्मी- वेदों में कहा गया है कि गाय के गोबर में लक्ष्मी का वास होता है. गोमय गाय के गोबर रस को कहते है. यह कसैला एवं कड़वा होता है तथा कफजन्य रोगों में प्रभावशाली है. गोबर को अन्य नाम भी है. गोविन्द, गोशकृत, गोपरीषम, गोविष्ठा, गोमल आदि
- अग्रंमग्रं चरंतीना, औषधिना रसवने.
तासां ऋषभपत्नीना, पवित्रकायशोधनं..
यन्मे रोगांश्वशोकांश्व, पापं में हर गोमय.
अर्थात्- वन में अनेक औषधि के रस का भक्षण करने वाली गाय, उसका पवित्र और शरीर शोधन करने वाला गोबर. तुम मेरे रोग और मानसिक शोक और ताप का नाश करो.

- गोबर गणेश की प्रथम पूजा होती है और वह शुभ होता है. मांगलिक अवसरों पर गाय के गोबर का प्रयोग सर्वविदित है. जलावन एवं जैविक खाद आदि के रूप में गाय के गोबर की श्रेष्ठता जगत प्रसिद्द है.

- गाय का गोबर दुर्गन्धनाशक, शोधक, क्षारक, वीर्यवर्धक, पोषक, रसयुक्त, कान्तिप्रद और लेपन के लिए स्निग्ध तथा व्याधि को दूर करने वाला होता है. 

गोबर में नाईट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, आयरन, जिंक, मैग्निज, ताम्बा, बोरोन, मोलिब्दनम, बोरेक्स, कोबाल्ट-सलफेट, चूना, गंधक, सोडियम आदि मिलते है.

- गाय के गोबर में एंटीसैफ्टिक, एंटीडीयोएक्टिव एवं एंटीथर्मल गुण होता है गाय के गोबर में लगभग १६ प्रकार के उपयोगी खनिज तत्व पाये जाते है.

- मैकफर्सन के अनुसार गोबर के समान सुलभ कीटनाशक द्रव्य दूसरा नहीं है रुसी वैज्ञानिक के अनुसार आण्विक विकिरण का प्रतिकार करने में गोबर से पुती दीवारें पूर्ण सक्षम है. भोजन का आवश्यक तत्व विटामिन बी-12 शाकाहारी भोजन में नहीं के बराबर होता है.

- गाय की बड़ी आँतों में विटामिन बी-12 की उत्पत्ति प्रचुर मात्रा में होती है पर वहां इसका अवशोषण नहीं हो पाता अतः यह विटामिन गोबर के साथ बाहर निकल आता है. प्राचीनकाल में ऋषि-मुनि गोबर के सेवन से पर्याप्त विटामिन-बी-12 प्राप्त कर स्वास्थ्य लाभ देते थे. गोबर के सेवन तथा लेपन से अनेक व्याधियां समाप्त होती है.

- प्रो.जी.ई. बिगेंड- इटली के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक ने गोबर पर सतत प्रयोग से सिद्ध किया की गोबर में मलेरिया एवं क्षयरोग के जीवाणुओं को तुरंत नष्ट करने की क्षमता होती है.

- चेन्नई के डॉ. किंग के अनुसार गाय के गोबर में कीटाणु मारने की क्षमता रहती है, इसमें ऐसी बिमारी के समय दूषित पानी में गाय का गोबर पानी में मिलाकर पानी शुद्ध कर उपयोग करने से प्लेग नहीं होता है और जिस भाग में बिजली का करंट लगा हो उस भाग पर गाय का गोबर लगाने से बिजली के करंट के असर में कमी आती है.

- गाय के गोबर से बनी राख का उपयोग किसान भाई अपनी फसल को कीटाणुओं, बिमारियों व जीवजंतुओं से बचाने के लिए आदिकाल से प्रयोग करते आ रहे है.

- गाय का गोबर मल नहीं है यह मलशोधक है, दुर्गन्धनाशक है एवं उत्तम, वृद्धिकारक तथा मृदा उर्वरता पोषक है. यह त्वचा रोग खाज, खुजली, श्वासरोग, जोड़ों के दर्द सायटिका आदि में लाभदायक है. गोबर में बारीक़ सूती कपड़े को गोबर में दबाकर छोड़ दे थोड़ी देर बाद इस कपड़े को निचोड़कर गोमय प्राप्त कर सकते है. इससे अनेक लोग त्वचा रोगों में स्नान करते है. मुहासे दूर करके चेहरे की कान्ति बनाये रखता है, गोमय के साथ गेरू तथा मुल्तानी मिट्टी व नीम के पत्तों को मिलाकर नहाने का साबुन बनाया जाता है यह चेहरे की झुर्रियां दूर करता है.

- अपाने सर्वतीर्थानी गोमुत्रे जह्वन्वी स्वयं.
अष्टऐश्वर्य लक्ष्मी गोमय वसते सदा.
अर्थात्- गाय के मुख से निकली श्वास सभी तीर्थों के समान पवित्र होती है तथा गौमूत्र में सदा गंगा जी का वास रहता है और आठ ऐश्वर्यों से संपन्न लक्ष्मी गाय के गोबर में वास करती है.

- तृणं चरन्ती अमृतं क्षरंती :- गायमाता घास चरती है और अमृत की वर्षा करती है तथा गाय का गोबर देह पर लगाकर शरीर शुद्ध करते समय हमारे धर्म-कर्म में महत्व अधिक रहता है. इसलिए धर्मशास्त्र में गौ के गोबर को उच्च स्नान प्राप्त है. गोबर को सारे शरीर पर मलकर धूप में बैठने से दाद, खाज, खुजली, एग्जिमा, सोराइसिस आदि त्वचा रोग नष्ट हो जाते है.
- हमारे प्रायश्चित विधान में पञ्चगव्य (गोबर, गोमूत्र, दुग्ध, दही, घी) सेवन का बड़ा महत्त्व बताया गया है. जैसे अग्नि में ईंधन जल आता है, वैसे ही पञ्चगव्य प्राशन से पाप के दूषित संस्कार नष्ट हो जाते है. गोबर रोगों के कीटाणु और गन्ध को दूर करने में अद्वितीय है.

- छोटे बच्चों को संस्पर्श के रोग से मुक्त करने के लिए गोबर का तिलक देने की प्रथा है. भगवान की मूर्ति की प्रतिष्ठा में गोबर के भस्म से मूर्ति का मार्जन किया जाता है तथा उच्छिष्ठ स्थान को शुद्ध करने के लिए, गोबर का चौका लगाया जाता है.

- मृतगर्भ (पेट में गया हुआ बच्चा) बाहर निकालने के लिए (गोमय) गोबर का रस 7 तोला, गौदुग्ध में मिलाकर पिलाना चाहिए. बच्चा आराम से बाहर आ जायेगा और गोबर को उबालकर लेप करने से गठियारोग दूर होता है.
- पसीना बंद करने के लिए सुखाये हुए गोबर और नमक के पुराने मिट्टी के बर्तन इन दोनों के चूर्ण का शरीर पर लेप करना चाहिए और गुदाभ्रंश के लिए गोबर गर्म करके सेंक करना चाहिए और खुजली के लिए गोबर शरीर में लगाकर गरम पानी से स्नान करना चाहिए.

- शीतला माता के फूट निकले छालों पर गाय के गोबर को सुखाकर जलाकर राख को कपड़े में छानकर उसमें भर दें. इस पर यही श्रेष्ठ उपाय है और साधारण व्रण (घाव) के ऊपर घी में राख मिलाकर लेप करना चाहिए. गाय के ताजे गोबर की गन्ध से बुखार एवं मलेरिया रोगाणु का नाश होता है.

- पेट में छोटे-छोटे कीड़े हुए हो तो, गोबर की सफेद रख 2 तोला लेकर 10 टोला पानी मिलाकर, पानी कपड़े में छान ले. तीन दिन तक सुबह-शाम यही पानी पिलायें और रतौंधी में ताजे गोमय को लेकर के आँखे आंजने से दस दिन में रोग छुटकारा हो जायेगा.

- दांत की दुर्गन्ध, जंतु और मसुडे के दर्द पर गाय के गोबर को जलावें, जब उसका धुँआ निकल जायें तब उसे पानी में डालकर बुझा ले, सुख जाने पर चूर्ण बनाकर कपड़े से छान ले, इस मंजन से प्रतिदिन दांत साफ करने से दांत के सब रोग नष्ट हो जाते है.

- आयुर्वेदानुसार गाय के सूखे गोबर पावडर से ध्रूमपान करने से दमे, श्वास के रोगी ठीक होते है और हैजा के कीटाणु से बचने के लिए शुद्ध पानी में गोबर घोल कर छानकर पीने से कीटाणुओं से बचाव होता है और हैजा से मुक्त रहते है.

- लक्ष्मीश्च गोमय नित्यं पवित्रा सर्ममंगलता.
गोमयालेपनं तस्मात् कर्तव्यं पांडूनन्दन.
अर्थात् – गाय के गोबर में परम पवित्र सर्वमंगलमयी श्री लक्ष्मी जी नित्यनिवास करती है, इसलिए गोबर से लेपन करना चाहिए.

- सामन्यता गोमय कटु, उष्ण, वीर्यवर्धक, त्रिदोषशामक तथा कुष्ठघ्न, छर्दीनिग्रहण, रक्तशोधक, श्वासघ्न और विषघ्न है. यह विष नाशक है विषों में गोमय-स्वरस का लेप एवं अंजन उपयोगी साबित हुए है. गाय का गोबर मिर्गी रोग में, नस्य रूप में प्रयुक्त होता है. बिजौरा नींबू की जड़, गौघृत, मनःशिला को गोमय में पीसकर लेप करने से मुख की कान्ति बढ़ती है.

- आग से जल जाने पर गोबर का लेपन रामबाण औषधि है. ताजा गोबर का बार-बार लेप करते हुए उसे ठंडे पानी से धोते रहना चाहिए यह व्रणरोपण एवं कीटाणुनाशक है.

- सर्पदंश, विषधर सांप, बिच्छु या अन्य जीव के काटने पर रोगी को गोबर पिलाने तथा शरीर पर गोबर का लेप करने से विष नष्ट होता है. अति विषाक्ता की अवस्था में मस्तिष्क तथा ह्रदय को सुरक्षित रखता है. बिच्छु के काटने पर उस स्थान पर गोबर लगाने से भी उसका जहर उतर जाता है.

- पञ्चगव्य घृत के सेवन से उन्माद, अपस्मार शोध, उदररोग, बवासीर, भगंदर, कामला, विषज्वर तथा गुल्म का निवारण होता है. मनोविकारों को दूर कर पञ्चगव्य घृतस्नायुतंत्र को परिपुष्ट करता है.

गौ मूत्र फिनायल बनाने की विधि (केमिकल रहित)

             *सामग्री* गौ मूत्र      *एक लीटर* नीम पत्र    *200 ग्राम सूखा* पाइन आयल इमल्सीफायर युक्त     *50 ग्राम* उबाला हुआ पा...