एक समय था जब जीवन में सभी लोग अपनी मर्यादा में रहते थे।
मर्यादा में रहने से कोई किसी कि सीमा का अतिक्रमण नही करता था तो सभी सुख- शांति से जीवन व्यतीत करते हुए उसके उत्कर्ष तक पहुंचते थे।
प्रकृति और पर्यावरण की गरिमा भी इसी मर्यादा में अंतर्निहित थी।
उदाहरण के रूप में राजा ही महलों और किलों का निर्माण करते थे,और वो महल बेशकीमती पत्थरों से बनी अतभूत वास्तुकला के द्योतक थे।
इसी प्रकार राजा और प्रजा के सहयोग से अति सुंदर मंदिर भी बनते थे जिसमें भी पत्थरों और सोने चांदी का प्रयोग होता था।
किन्तु वहीं प्रजा सभी संसाधनों से समृद्ध होते हुए भी साधारण भवनों में ही रहती थी। प्रजा के घरों के लिए पत्थरों और सोने -चांदी का प्रयोग वर्जित था।क्योंकि यही उनकी मर्यादा थी।
इससे समाज को दो लाभ हुए की प्रकृति का अनावश्यक दोहन ना हो और प्रजा अपने धन का अपव्यय ना करते हुए एकरूपता के साथ प्रेम से रहे।
किन्तु आज सभी संसाधन सभी के लिए खोल दिये गए हैं। जैसे आज बड़े-बड़े घर और वो भी संगेमर्मर से साज-सज्जा के साथ बन रहे हैं। जिससे पत्थरों के पहाड़ के पहाड़ समाप्त हो रहे हैं। और प्रकृति का भयंकर विनाश हो रहा है।
एक व्यक्ति बहुत साधन संपन्न है तो दूसरा बेहद गरीब जिससे समाज की समरसता समाप्त हो रही है।
पत्थरों से बने भवन बेहद गर्म होते हैं तो सबको गर्मी से बचने के लिए बिजली और ए-सी चाहिए। बिजली बनाने के लिए कोयले की खदानों से भयंकर कोयला निकाल कर कुछ गिने चुने लोग अरबपति बन रहे हैं और उससे बनने वाली बिजली का प्रयोग करके प्रकृति का विनाश हो रहा है।
तीर्थ स्थानों को सभी के लिए मौज -मस्ती के साधन के रूप में खोला जा रहा है। पहले ये तीर्थ स्थान वानप्रस्थियों के लिए ही होते थे किंतु आज आल- वेदर रोड्स के माध्यम से इन्हें हर समय और बच्चे जवानों की मौज मस्ती के लिए खोल दिया गया है।
जैसे चार धाम रूपी बद्री-केदार एवं गंगोत्री-यमुनोत्री को सबके लिए चैबीस घंटे खोल दिया गया है। अब ऐसा करने के लिए प्रकृति की अद्भुत और बेहद सुंदर वादियों का निर्लज्जता से दोहन हो रहा है।
हजारों दुर्लभ वृक्षों की हत्या करके सड़कें बनाई जा रही हैं और पहाड़ों को काटने के बाद उसका मलबा अंतिम सांस ले रही पवित्र गंगा में डाला जा रहा है।
अब ये पवित्र तीर्थ स्थल वानप्रस्थियों का स्वर्ग नही बल्कि नवदम्पत्तियों का हनीमून स्थल और शराबियों के ऐय्याशी के अड्डे बन गए हैं। इन सुंदर पहाड़ों को कंक्रीट का जंगल बना दिया है।
अर्थात यहां भी मर्यादा को लांघा गया है।
दूरसंचार क्रांति को जनता की क्रांति कहने वाले असल में कुछ सरकारी लोग और बड़े उद्योगपति हैं और अरबों रुपया अपनी जेब में भरकर लोगों को और अधिक गरीब बनाने का काम व्यापक एवं सुनियोजित तरीके से किया जा रहा है।जैसे 2जी के बाद 3जी और अब 4 जी सुविधा और वो भी असीमित और केवल 49 रुपये प्रतिमाह में देना आने वाले समय में समाज के लिए बेहद घातक सिद्ध होगा।
आज शायद इस विचार से बहुत लोग असहमत और अप्रसन्न हों कि ये तो आम आदमी को सस्ती तकनीक और सुविधा देना बहुत अच्छा है। किंतु अगर इसके प्रारंभिक और दूरगामी परिणामों को देखें तो पता चलेगा कि ये कितना खतरनाक है।
आज जो मेहनत करके दो वक्त की रोटी भी नही कमा रहा उसे भी सस्ते के लालच देकर एक पूर्णतया अनावश्यक तकनीक हाथ में दे दी गयी है। आज अम्बानी ने करोड़ों गरीबों की जेब से 49 रुपये प्रति माह निकाल कर अपना खजाना भर लिया और उस गरीब को क्या मिला ???
उसको मिली तीन से चार बेशकीमती घंटों को फेसबुक,वॉट्सएप्प और यूट्यूब पर उपलब्ध निरर्थक,असामाजिक और सभी के लिए उपलब्ध अश्लील सामग्री पर बर्बादी।
जिस प्रकार गांव समाज में एक गाँव के सभी बच्चे भाई-बहन के सुंदर और पवित्र रिश्ते से बंधे थे उसे यूट्यूब की अश्लीलता ने ध्वस्त कर दिया। आज देश प्रतिदिन हजारों बलात्कारों का साक्षी बन रहा है। छोटी-छोटी बच्चियां हवस का शिकार हो रही हैं।
आज सर्वसमाज बेशकीमती घंटो को चैटिंग और सोशल वेबसाइट्स पर खराब कर रहा है।
गरीब और गरीब हो रहा है और अम्बानी-अडानी जैसे और अमीर हो रहे हैं।
गरीब और गरीब हो रहा है और अम्बानी-अडानी जैसे और अमीर हो रहे हैं।
उज्ज्वला योजना के तहत एलपीजी जैसे संसाधन भी बांटे जा रहे हैं और गरीबों का निशुल्क ईंधन रूपी गोबर के कंडे समाज से समाप्त करा दिए गए हैं। और तो और हर महीने खत्म होने वाला सिलिंडर पैसों में ही दिया जा रहा है।
गांव समाज की महिलाएं अब गोबर के कंडे बनाने का समय अब टीवी के नाटकों और विज्ञापनों में लगा रही हैं।
दूध देने वाली गाय-भैंस अब समय की बर्बादी लगती है और दिन भर निकम्मेपन से महिलाये बीमार हो रही हैं। उनका पैसा बड़ी-बड़ी पेट्रोल कंपनियों को जा रहा है और टी वी के विज्ञापन देखकर अनावश्यक वस्तुएं खरीदकर अपव्यय होने से और गरीब हो रही हैं।
तो हम देख सकते हैं किस प्रकार मर्यादा से निकलने पर ना सिर्फ समाज अनियंत्रित होता है बल्कि प्रकृति का भारी विनाश भी होकर उसका पतन होता है।
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