जब से उत्तर प्रदेश में योगी सरकार आयी और अवैध बूचड़ खानों पर प्रतिबंध लगा व गाय के कत्ल को गंभीर अपराध की श्रेणी में डाला गया विरोधियों का होहल्ला मचा है।
कोई दिन नहीं बीत रहा जब कोई अनहोनी सुनने को न मिल रही हो। अवैध बूचड़ खाने बंद होने से जैसे आकाओं के हाथ पाव फूल गये.
सवाल उठता है कि क्या अवैध कारोबार किसी का रोजगार माना जा सकता है। जिनके पास लाइसेंस हैं वे सब चल रहे हैं।
पिछली सरकारें उनके अवैध कारोंबार से आँखें मूँदें हुए थीं तो क्या इसका मतलब अवैध कारोबार किसी का जन्मसि़द्ध अधिकार हो गया। यह तो बंद होना ही चाहिए.
ममता की पार्टी, करूणानिधि की पार्टी, वामपंथी, सोनिया की पार्टी आदि अराजक तत्वों को परोक्ष रूप से उकसा रहे हैं।
केरल में तो खुलेआम बीच सड़क पर गाय और बछडे का कत्ल करके ‘ बीफ‘ की दावत देकर दूसरे पक्ष की भावनाओं को चुनौती दी गयी।
कम्युनिस्ट नेता सीताराम येचुरी ने यहाँ तक कह दिया कि क्या केन्द्र सरकार तय करेगी कि किसको क्या खाना है ? जिसका जो मन कहेगा वह खायेगा।
इसका मतलब तो फिर यह भी हुआ कि कल एक इन्सान दूसरे इन्सान को खाने लगे या प्रतिबंधित पशु- पक्षियों का भी शिकार करके खा जाय। किसी के खाने पर कोई रूकावट नहीं है लेकिन खाने की सीमा तय तो होनी ही चाहिए। आखिर हम इन्सान है पशु नहीं ?
भारतीय संविधान की कमजोरी यही है की किसी की धार्मिक – भावना को ठेस पहुँचाने का हक किसी को नहीं। सबको धार्मिक – स्वतंत्रता है।
हिन्दू -धर्म में गाय का आदिकाल से विशेष दर्जा रहा है। हिन्दुओं के प्राचीनतम ग्रन्थ – अथर्ववेद में लिखा है ‘‘धेनु सदानाम रईनाम‘‘ – गाय समृद्धि का मूल स्रोत है। वह सृष्टि के पोषण का भी स्रोत है। वह जननी है।
गाय केवल इसलिए ही नहीं महत्वपूर्ण है कि वह दूध देती है। हिन्दू धर्म की यह भी मान्यता है कि जीव 84 लाख योनियों के भ्रमणके बाद अंत में गाय के रूप में जन्म लेता है। जो आत्मा का एक विश्रामस्थल है और नये जीवन का प्रारम्भ फिर यहीं से होता है।
हिन्दुओं के दो सबसे बड़े मान्य देवता जिन्हें वह भगवान के रूपमें हजारों साल से पूजते आया हैं – एक श्री राम और दूसरे श्री कृष्ण। इनका नाम गाय के साथ सबसे ज्यादा जुड़ा हुआ है।
वैज्ञानिक पक्ष लें तो गाय एक मात्र ऐसा जीव है जिसका सब कुछ मनुष्य के काम आ जाता है।
दूध और दूध से बनने वाली तमाम चीजें तो अपनी जगह हयी हैं।
धरती पर यही अकेला प्राणी है जिसका मल-मूत्र तक हमारे काम आ जाता है।
तमाम औषधियों में गोमूत्र का प्रयेाग किया जाता है।
‘‘पंचगव्य‘’ का निर्माण गाय के दूध, छाछ, घी, मूत्र और गोबर से किया जाता है।
कांचीपुरम स्थित महर्षि वाग्भट गोशाला की बात मानें तो सभी रोगों का उपचार गोमाता के गव्यों से हो रहा है. अभी तक 40 हजार मरीजों पर इसका सफल उपचार क्रिया किया जा चुका है.
वैज्ञानिकों का यह भी दावा है कि गाय ही एक ऐसा प्राणी है जो सदैव आक्सीजन ही लेता है और आक्सीजन ही निकालता है।
इसके गव्यों में भी भरपूर आक्सीजन है.
पंचगव्य गुरूकुलम, कांचीपुरम ने तो गोमाता के गव्यों से सम्पूर्ण चिकित्सा थेरेपी ही विकसित कर दिया है. और इस पर एक सम्पूर्ण मेडिकल साईंस की पढाई भी करवा रहा है. अभी तक हजारों युवा इस कार्य में लग भी चुके हैं.
जहाँ एक ओर गोमाता को कटाने से हजारों लोगों को रोजगार मिलने का दावा किया जाता है वहीँ अब गोमाता के पालन से प्राप्त उनके गव्यों से हजारों को रोजगार मिल रहा है.
इसे कैसे झुठला दोगे ?
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