केवल
भारत में ही नहीं बल्कि संसार भर में आज रासायनिक धूप जलाई जा रही है। इन सुगंधित
अगरबत्तियों और धूप बत्तियों से निकलने वाला धुंआ शरीर की कोशिकाओं के लिए सिगरेट
के धुंए से अधिक जहरीला साबित हो रहा है।
शोधकर्ताओं
ने सिगरेट के धुंए की अगरबत्ती के धुंए से तुलना की और पाया कि *रासायनिक अगरबत्ती
का धुंआ कोशिकाओं में जेनेटिक म्यूटेशन करता है।*
इससे
कोशिकाओं के डीएनए में बदलाव होता है, जिससे
*कैंसर* होने का खतरा बढ़ जाता है।
इस
सर्वेक्षण को ब्रिटेन की एक एजेंसी ने किया है। जिसके पीछे दो कारण हो सकते हैं।
१)
अगरबत्ति और धूपबत्ति दोनों का अधिकांश उत्पादन गृह उद्योग में बनता है। सर्वज्ञात
है कि सर्वेक्षण करने वाली एजेंसियां मल्टिनेशनल वं कपनियों के पैसे से चलती है।
ये एजेंसियां पैसे खाकर गृह उद्योग को बंद कराती है और उस उत्पाद के लिए लोगों को
मल्टिनेशनल कंपनियों पर निर्भर कराती हैं।
क्योकि
मल्टिनेशनल कंपनियाँ ही अपने उत्पाद को बड़े स्तर पर झूठ बोल कर बेच सकती है। *टी
वी आदि मीडिया में झूठे विज्ञापन और खोखले दावे पेश करती है।*
२)
अगरबत्ति और धूपबत्ति दोनों वस्तुएं हिन्दू और ईस्लाम के धार्मिक संस्कारों में
उपयोग में आने वाली वस्तु है। बाजारवाद पर कार्य करने वाली एजेंसियां धार्मिक
कृत्यों को तोड़ने और उसे गलत बताने पर ध्यान केन्द्रीत करती है।
क्योंकि
धार्मिक कृत्य से हममें संतोष का भाव पैदा होता ह।
लेकिन
इससे हट कर एक सत्य यह है कि *रासायनिक अगरबत्तियों की तिलि जो बांस की होती है यह
जलने के बाद वायुमंडल में बहुतायत मात्रा में कार्बनडायऑक्साइड छोड़ता है।*
लेकिन
धूपबत्ति में ऐसा नहीं होता। इस कारण अगरबत्ति की तुलना में धूपबत्ति ठीक है।
इस
सर्वेक्षण को करने वाला एजेंसी – ब्रिटिश
लंग फाउंडेशन के मेडिकल एडवाइजर डॉक्टर निक रॉबिन्सन ने अध्ययन पर टिप्पणी करते
हुए हालांकि, उन्होंने
बताया कि यह शोध छोटे आकार में चूहों पर किया गया था। ऐसे में स्वास्थ्य पर पड़ने
वाले प्रभावों के बारे में कोई ठोस निष्कर्ष नहीं दिया जा सकता।
शोध
के नतीजों के आधार पर पेफड़ों की बीमारी से जूझ रहे लोगों के लिए यह अच्छा होगा कि
वह बाजार मे आ रही रासायनिक धूप के धुंए से बचें।
*बांस से बनी अगरबत्ती जलने के बाद हवा में कार्बन के
पार्टिकल रिलीज करती है, जो
सांस के साथ फेफडों में जाकर अटक जाते हैं।* अभी तक धूपबत्ती को वायु प्रदूषण के
स्रोत के रूप में मानते हुए अधिक शोधकार्य नहीं हुआ था।
अगरबत्ती
और धूपबत्ती को *फेफड़ों के कैंसर, ब्रेन
टयूमर और बच्चों के ल्यूकेमिया के विकास के साथ जोड़ा जा रहा है।*
शोधकर्ताओं
ने बताया कि अगरबत्ती के धुंए में अल्ट्राफाइन और फाइन र्पािटकल्स मौजूद थे।
ये
सांस के साथ आसानी से शरीर के अंदर पहुंच जाते हैं और स्वास्थ्य पर बुरा असर डालते
हैं।
*इसके पीछे जो कारण है वह यह कि आज – कल धूपबत्ति में भी भरपूर रासायन का उपयोग किया जा रहा
है।*
इसी
के आड़ में ब्रिटिश लंग फाउंडेशन इस पर विवाद खड़ा करना चाहता है।
इसके
लिए हमें चाहिए धूप बनाने में शुद्ध घृत का उपयोग पहले किया जाता था जो कि जलने के
बाद वायुमंडल में अन्य गैसों से ऑक्सिजन परावर्तित करता है।
*कांचिपुरम स्थित महिर्ष वाग्भट्ट गौशाला एवं पंचगव्य
अनुसंधान केन्द्र द्वारा किए जा रहे सतत् प्रयोग के बाद पता चला है कि १० ml शुद्ध घृत को यदि वायुमंडल में जलाया जाता है तब १६००
किलोग्राम वायु का रुपांतरण ऑक्सिजन में होता है।*
इसके
स्थान पर सस्ते पेट्रोलियम के उपयोग के कारण शोध में धूप के बुरे असर मिले हैं।