Thursday, 27 October 2016

फिनायल



पाम आयल और एमलूसीफायर के प्रयोग से फिनायल बनाया जाता है
अलग अलग क़्वालिटी के पाम आयल आते है इसलिए उस हिसाब से उस से फिनायल बनाया जाता है

अमूमन फार्मूला जिस पाम आयल से 20 लीटर फिनायल बनता है

पाम आयल और एमुलसीफायर 1 लीटर जिसमे पाम आयल 90 प्रतिशत रहेगा लगभग

17 लीटर पानी और दो लीटर गौ मूत्र और एक किलो निम् पती निम् की पतियो को गौमूत्र में अच्छी तरह उबाल कर छान लें और रख ले

बनाने की विधि
सबसे पहले पाम आयल और एमुलसीफायर मिलाकर उसमे दो लीटर पानी डालें और खूब हिलाए डंडे की सहायता से वो मलाई की तरह गाढ़ा सा हो जाएगा मिश्रण को हिलाते रहे और 4 लीटर पानी और डाल ले और पुनः 5 मिंट तक हिलाए बाकि बचा पानी मिश्रण में डालते जाए और डंडे से हिलाते रहे लास्ट में गौ मूत्र डाले और हिलाते रहे 5 मिंट अछि तरह हिलाए
आपका फिनायल तैयार है बोतेल में भर लीजिए 

साबुन बनाने का तरीका


वैदिक पंचगव्य साबुन बनाने का तरीका

आज के समय में चर्म रोग हर 10 में से 8 व्यक्तियों को प्रभावित कर रहा है और आने वाले समय में ये बढ़ता ही जाएगा इसका कारण है हमने वैदिक संस्कृति को छोड़ पश्चिम के लोगो का अनुशरण करना शुरू कर दिया । 

पुराने समय में लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति बहुत सजग थे आज के दिखावेपन के विज्ञानं से उनका विज्ञानं कहिं अधिक प्रभावशाली था । आप आज के दौर में अगर स्वस्थ रहना चाहते है तो आपको वैदिक संस्कृति को और लौटना होगा ।

चर्म रोग बढ़ने का मुख्य कारण है नहाने का साबुन
आजक्कल प्रयोग किए जाने वाले अधिकतर साबुन में केमिकल पशुओं की चर्बी का प्रयोग होता है जिस से त्वचा रूखी हो जाती है और चर्म रोग उतपन होता है इसी कड़ी में में आज आपको वैदिक पंचगव्य साबुन बनाने की विधि बताता हूं और उम्मीद करूँगा की इसे पढ़ने वालों में से कम से कम 50 प्रतिशत लोग इसका अनुशरण अवश्य करे और इसे घर पर ही तैयार करे

आवश्यक सामान
मुल्तानी मिट्टी 400 ग्राम
सोना गेरू 250 ग्राम
गोमय चूर्ण 150 ग्राम
चने का बेसन 150 ग्राम
हल्दी 100 ग्राम
कपूर भीमसेनी 50 ग्राम
वचा 50 ग्राम
शतावर 50 ग्राम
सफ़ेद चन्दन पाउडर 100 ग्राम
हरड़ छोटी पाउडर 50 ग्राम
फिटकरी 10 ग्राम
एलोविरा गुद्दा 100 ग्राम
शुद्ध तील तेल 100 ग्राम
गुलाब जल 100 ग्राम
गौमूत्र 50 ग्राम
गौ दुग्ध 50 ग्राम
गौ दही 20 ग्राम
गौ घृत 20 ग्राम
निम्बू 2 का रस
रीठा 100 ग्राम
शिकाकाई 80 ग्राम
निम के पते 80 ग्राम

सबसे पहले 200 ग्राम पानी में 50 ग्राम गौमूत्र डाले और रीठा शिकाकाई निम् के पते डाल कर पानी को खूब उबाले और जब पानी 125 ग्राम रह जाए तक आंच से उतार कर ठंडा करके छान लें और रख ले

दूसरे चरण में सभी काष्ठ चीजो को बारीक़ पीस कर पाउडर बना ले और अब एक बड़ा बर्तन लेकर उसमे सभी काष्ठ चीजे जैसे मुल्तानी मिट्टी गोमय चूर्ण हल्दी आदि डाल कर अच्छी तरह मिला ले और एक जान कर ले 

अब उसमे रीठा वाला पानी जो तैयार किया था वो और अन्य सभी तरल चीजे डाले और अच्छी तरह एक जान मिला ले और अगर मिश्रण ज्यादा गाढ़ा हो तो उसमें थोड़ा पानी मिलाकर अच्छी तरह गूँथ ले और थोड़ी देर के लिए छोड़ दे

करीब आधे घण्टे बाद इसके साबुन जैसी टिकिया बना ले 

टिकिया बनाने के लिए आप एक प्लास्टिक का तीन इंच मोटी पाइप को दो इंच काट ले और इसमें थोड़ा तील तेल लगाकर इसमें दवाब देकर भरे और पाइप के टुकड़े को निकाल ले साबुन बन जाएगा 

अब इसे सूखा ले
आपका साबुन तैयार है इसे प्रयोग करे

इनमें से अगर कोई चीज आपको ना मिले तो उसके अलावा दूसरी चीजे डाल ले । 

इसकी गुणवत्ता का मुकाबला कोई अन्य साबुन नही कर पाएगा
धन्यवाद

बी पी/ bp /blood pressure/ उच्च रक्तचाप का सबसे सरल उपचार ------


अपने घर का नमक बदल कर केवल सेंधा नमक या काला नमक खाए ।
नोट- आयोडीन युक्त नमक न खाए ।
क्यू भाई क्यू न खाए टीवी पे तो दिखाते है है की आयोडीन युक्त नमक ही खाना चाहिए
तो मेरा उत्तर है वो आप को डरा डरा कर अपना नमक बेच रहे है
भारत में सभी लोग दाल सब्जी खाते है इस लिए आयोडीन की कमी किसी को नही होगी जो ये सब खाए ग
अब कुछ लोग कुतर्क देंगे गी टीवी पे तो दिखाते है घेंगा हो जाए ग
मेरा उत्तर आप ने किसी को देखा जिसे घेंगा हुआ हो जो स्वस्थ भोजन दाल सब्जी खाता हो ?
*आयोडीन नमक के नुक्सान*
हमारे शरीर में दाल सब्जी से पर्याप्त मात्रा में आयोडीन है फिर भी यदि हम आयोडीन युक्त नमक खाए गे तो क्या होगा ?
ये होगा ----
नपुंसकता- आज कल जो लोग बच्चा पैदा नही कर पा रहे है उस का सबसे बड़ा कारण ये आप का नमक है
यदि
एसे लोग घर में केवल सेंधा नमक खाए गे तो 1 साल बाद बच्चा पैदा करने की छमता दुबारा उत्पन हो जाए गी
‌और क्या लाभ है
सेंधा नमक के ?
तो जानकारी के लिए बता दू
बी पि नार्मल रहे
अब बात करते है बी पि की
सेंधा नमक खाए केवल
सरसों का तेल या सिंह तेल या देशी घी केवल देशी गाय का ही खाए
अलुमिनिय के बर्तन में पका खाना न खाए
अर्जुन के छाल का पाउडर आधा चम्मच ले और उसे 1 ग्लास पानी में उबाल आधा रह जाने तक पकाए
फिर रोज सुबह खाली पेट चाय की तरह पिए 1 महीने कम से कम
आप का बी पी एक दम सामन्य हो जाए गा
और ये विधि 2 महीने तक निरंत करे फिर ये बंद कर
फिर उपर के नियमो का पालन करे
ये ही उपचार ब्लोकएज वाले मरीजो के लिए भी है और सुगर वालो के लिए भी
अधिक जानकारी के लिए राजीव दिक्षित जी लिख कर गूगल करे या youtube करे बीमारी का नाम लिख कर
यदि पोस्ट शेयर करे तो राजीव दिक्षित जी का नाम न हटाए मेरी विनती है
चूँकि मैंने कई बार देखा है लोग अपने नाम लिख कर राजीव जी का हटा देते है और अपनी लोकप्रियता बढाते है

गौमाता के चमत्कार


छोटी बछड़ी का गौमूत्र प्रतिदिन 4 चम्मच पीने से पेट के रोग दूर होते है।
स्वास (दमा) के रोगी छोटी बछिया का गौमूत्र प्रातः खाली पेट चार चम्मच ले तो 6 महीने मे पूर्ण आराम मिल जायेगा
फाइलेरिया के कीड़े भी गौमूत्र के सेवन से समाप्त होते है
सूखे गोबर को जलाने से मक्खी, मच्छर मरते है। लाखो विषैले कीट हवा मे ही तुरन्त मर जाते है।
कई संक्रामक रोग तो गौ को स्पर्श की हुई वायु लगने से ही समाप्त हो जाते है
जो बच्चे गाय के सम्पर्क मे रहते है उन्हें चेचक नही होता
गाय के घी से - गठिया, कुष्ठ, जले कटे घाव, दाग, चहरे की झाईया,नेत्र विकार जलना, मुह का फटना आदि अभी ठीक होते है
केन्सर - काली गाय का दूध, काली तुलसी (6 माह तक) ही लेवे
स्वाद बदलने के लिए मूंग की डाल का रस और जौ की रोटी भी ले सकते है
केन्सर ठीक हो जायेगा

*नवग्रहों की पीड़ा में राहत पाने के लिए*


प्रत्येक वार को गौ माता को खिलाएं
अलग-अलग अन्न
*सूर्य ग्रह के शुभ प्रभाव के लिए*
रविवार को रोटी के ऊपर थोड़ा सा गुड़ रखकर लाल गाय को खिलाएं।
*चंद्र ग्रह के शुभ प्रभाव के लिए*
सोमवार को रोटी के ऊपर हल्का से घी लगाकर गाय को खिलाएं। कच्चे या पके चावल को दुध में भिगोकर सफेद गाय को खिलाएं।
*मंगल ग्रह के शुभ प्रभाव के लिए*
मंगलवार को रोेटी पर गुड़ रखकर लाल गाय को खिलाएं। कोई भी मीठा पदार्थ गाय को खिलाने से मंगल ग्रह की प्रसन्नता प्राप्त होती है।
*बुध ग्रह के शुभ प्रभाव के लिए*
बुधवार के दिन साबूत मूंग के दाने रखकर सफेद गाय को खिलाएं। बुध की प्रसन्नता के लिए हरा चारा गाय माता को अवश्य खिलाएं।
*गुरु ग्रह के शुभ प्रभाव के लिए*
गुरूवार को घी व हल्दी चुपड़कर पीली गाय को खिलाए। चने की दाल और गुड़ मिलाकर खिलाने से गुरु ग्रह के शुभ प्रभाव में वृद्धि होती है।
*शुक्र ग्रह के शुभ प्रभाव के लिए*
शुक्रवार को दही चावल खिलाने से शुक ग्रह की अनुकूलता में वृद्धि होती है। यह उपाय लक्ष्मी कारक है। केवल चावल भी खिलाया जा सकता है।
*शनि, राहु, केतु के शुभ प्रभाव के लिए*
शनिवार को सरसों का तेल चुपड़कर तिल के कुछ दाने रोटी पर रखकर चितकबरी या काली गाय को खिलाएं। उड़द और चावल की बनी नमकीन खिचड़ी खिलाने से द्ररिद्रता दूर होती हैं।
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प्रस्तुति-व्रजराज गौशाला एवम् पंचगव्य अनुसन्धान केंद्र, रीठी, कटनी, एम.पी.
9407001528

*पंचगव्य चिकित्सा मे ध्यान रखने योग्य बाते*



प्रस्तुति- व्रजराज गौशाला एवम् पंचगव्य अनुसन्धान केंद्र रीठी
वाट्सऐप-9407001528
किसी भी औषधि की सफलता उसकी गुणवत्ता पर आधारित होती है। पंचगव्य चिकित्सा मे गाय से ही प्राप्त चीज9 का मुख्यतः प्रयोग होता है
*अतः गाय कैसी हो-*
1) गाय देशी नस्ल की हो अर्थात जिसके ककुद (hump) हो।
जर्सी, रेड डेन, होलस्टाइंन, फ्रीजियन आदि नही।
2) गाय स्वस्थ व सशक्त हो
3) गाव मे घूमकर प्लास्टिक या कचरा खाने वाली न हो
4) गाय जंगल या गोचर मे चरने जाती हो तथा हमेशा रसायन मुक्त चारा खाती हो
5) गाय सेवा से प्रसन्न हो।
एलोपेथी की जड़ औषधियों की तरह पंचगव्य जड़ नही है, वह प्राणवान व चैतन्य है, उसमे देवताओ का वास है।
इसलिए इसे ग्रहण करते समय उसकी दिव्यता का स्मरण कर ग्रहण करे।
जैसे गौमूत्र लेते समय यह विचार करे कि इसमे गंगा का वास है
और यह श्रष्टिपालक भगवान विष्णु का चरणामृत है।
यह शीघ्र प्रसन्न होने वाले भगवान शिव की जटा से निकली अमृत की धारा है।
*गाय मे 33 कोटि देवता है इसलिए गौमूत्र तो 33 कोटि तीर्थो का जल है।*
ऐसे बार-बार नमस्कार कर शरणागति भाव से गौमूत्र ग्रहण करने पर इसका प्रभाव भी दिव्य होता है।
इसे सामान्य औषधि मानने पर इसका प्रभाव भी सामान्य होता है।
अविश्वास या घृणा भाव से लेने पर इसका प्रभाव *होता भी है और नही भी होता।*
जय गौ माता

*घी क्यो फायदेकारक नही है???*



आजकल लोगो को घी के नाम पर बहुत वेवकूफ बनाया जा रहा है
असली देशी घी के नाम पर भ्रमित है हम सभी

*शुद्ध घी बनाने की वैदिक विधि*
देशी गाय के दूध मे सूर्यास्त के बाद जामन (थोड़ा सा दही) डाला जाता है और अगले दिन सूर्योदय के पहले इस दही को मथकर निकाले गए मक्खन को तपाकर जो घी बनाया जाता है वही अमृत होता है
आजकल यन्त्र से दूध से क्रीम (बटर) निकाला जाता है।

यह वास्तव मे घी नही बटर आयल है।

इसके गुणधर्म बिल्कुल अलग है और यह औषधि के लायक नही है।
आजकल बाजार मे शुद्ध गाय के घी के नाम पर भी बटर आयल ही बिक रहा है।

देशी गाय का घी इससे दुगना और तिगुना महगा है।

और जैसे-जैसे इसका औषधीय महत्व लोगो को पता चलता जायेगा यह और भी महगा होता जायगा।

इसे सस्ता रखने का एक ही उपाय है की गौ रक्षण व गौ संवर्धन किया जाय और उसके गोबर-गौमूत्र का उपयोग किया जाय।

ऐसे घी को नाक मे एक-एक बूद डालने से गले के ऊपर के सभी रोगों पर आराम मिलता है।

*लेटकर नासा छिद्र मे दो-दो बूंद घी डाले।*
5 मिनिट ऐसे ही लेटे रहे। मौन रहे। घी को खींचे नही, सामान्य सास लेते रहे।
घी का तापमान हमेशा शरीर के तापमान से अधिक होना चाहिए।

*सिगरेट से भी खतरनाक रासायनिक अगरबत्ती का धुंआ?*



केवल भारत में ही नहीं बल्कि संसार भर में आज रासायनिक धूप जलाई जा रही है। इन सुगंधित अगरबत्तियों और धूप बत्तियों से निकलने वाला धुंआ शरीर की कोशिकाओं के लिए सिगरेट के धुंए से अधिक जहरीला साबित हो रहा है।

शोधकर्ताओं ने सिगरेट के धुंए की अगरबत्ती के धुंए से तुलना की और पाया कि *रासायनिक अगरबत्ती का धुंआ कोशिकाओं में जेनेटिक म्यूटेशन करता है।*

इससे कोशिकाओं के डीएनए में बदलाव होता है, जिससे *कैंसर* होने का खतरा बढ़ जाता है।

इस सर्वेक्षण को ब्रिटेन की एक एजेंसी ने किया है। जिसके पीछे दो कारण हो सकते हैं।

१) अगरबत्ति और धूपबत्ति दोनों का अधिकांश उत्पादन गृह उद्योग में बनता है। सर्वज्ञात है कि सर्वेक्षण करने वाली एजेंसियां मल्टिनेशनल वं कपनियों के पैसे से चलती है। ये एजेंसियां पैसे खाकर गृह उद्योग को बंद कराती है और उस उत्पाद के लिए लोगों को मल्टिनेशनल कंपनियों पर निर्भर कराती हैं।

क्योकि मल्टिनेशनल कंपनियाँ ही अपने उत्पाद को बड़े स्तर पर झूठ बोल कर बेच सकती है। *टी वी आदि मीडिया में झूठे विज्ञापन और खोखले दावे पेश करती है।*

२) अगरबत्ति और धूपबत्ति दोनों वस्तुएं हिन्दू और ईस्लाम के धार्मिक संस्कारों में उपयोग में आने वाली वस्तु है। बाजारवाद पर कार्य करने वाली एजेंसियां धार्मिक कृत्यों को तोड़ने और उसे गलत बताने पर ध्यान केन्द्रीत करती है।

क्योंकि धार्मिक कृत्य से हममें संतोष का भाव पैदा होता ह।
लेकिन इससे हट कर एक सत्य यह है कि *रासायनिक अगरबत्तियों की तिलि जो बांस की होती है यह जलने के बाद वायुमंडल में बहुतायत मात्रा में कार्बनडायऑक्साइड छोड़ता है।*

लेकिन धूपबत्ति में ऐसा नहीं होता। इस कारण अगरबत्ति की तुलना में धूपबत्ति ठीक है।

इस सर्वेक्षण को करने वाला एजेंसी ब्रिटिश लंग फाउंडेशन के मेडिकल एडवाइजर डॉक्टर निक रॉबिन्सन ने अध्ययन पर टिप्पणी करते हुए हालांकि, उन्होंने बताया कि यह शोध छोटे आकार में चूहों पर किया गया था। ऐसे में स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में कोई ठोस निष्कर्ष नहीं दिया जा सकता।

शोध के नतीजों के आधार पर पेफड़ों की बीमारी से जूझ रहे लोगों के लिए यह अच्छा होगा कि वह बाजार मे आ रही रासायनिक धूप के धुंए से बचें।
*बांस से बनी अगरबत्ती जलने के बाद हवा में कार्बन के पार्टिकल रिलीज करती है, जो सांस के साथ फेफडों में जाकर अटक जाते हैं।* अभी तक धूपबत्ती को वायु प्रदूषण के स्रोत के रूप में मानते हुए अधिक शोधकार्य नहीं हुआ था।

अगरबत्ती और धूपबत्ती को *फेफड़ों के कैंसर, ब्रेन टयूमर और बच्चों के ल्यूकेमिया के विकास के साथ जोड़ा जा रहा है।*
शोधकर्ताओं ने बताया कि अगरबत्ती के धुंए में अल्ट्राफाइन और फाइन र्पािटकल्स मौजूद थे।

ये सांस के साथ आसानी से शरीर के अंदर पहुंच जाते हैं और स्वास्थ्य पर बुरा असर डालते हैं।

*इसके पीछे जो कारण है वह यह कि आज कल धूपबत्ति में भी भरपूर रासायन का उपयोग किया जा रहा है।*

इसी के आड़ में ब्रिटिश लंग फाउंडेशन इस पर विवाद खड़ा करना चाहता है।
इसके लिए हमें चाहिए धूप बनाने में शुद्ध घृत का उपयोग पहले किया जाता था जो कि जलने के बाद वायुमंडल में अन्य गैसों से ऑक्सिजन परावर्तित करता है।

*कांचिपुरम स्थित महिर्ष वाग्भट्ट गौशाला एवं पंचगव्य अनुसंधान केन्द्र द्वारा किए जा रहे सतत् प्रयोग के बाद पता चला है कि १० ml शुद्ध घृत को यदि वायुमंडल में जलाया जाता है तब १६०० किलोग्राम वायु का रुपांतरण ऑक्सिजन में होता है।*

इसके स्थान पर सस्ते पेट्रोलियम के उपयोग के कारण शोध में धूप के बुरे असर मिले हैं।


*कामधेनु धूप*


*यदि आप गौपालक है तो आप स्वयं बना सकते है*

*मुख्य घटक द्रव्य - प्रति 1 किलो*
1) गीला गोबर - 1 किलो
2) खस बुरादा - 500 ग्राम
3) गाय का घी - 200 ग्राम
4) चावल - 200 ग्राम
5) राल - 250 गाम
6) गौ मूत्र। - आवश्यकतानुसार

*निर्माण विधि-*
खस बुरादा, गाय का घी, चावल, राल अच्छी तरह हाथो से मसल ले। फिर इसमें गीला गोबर मिलाकर मसले। बाद में गौमूत्र मिलाकर जरूरत अनुसार गीला बनाये।

आटा जैसा गूथ ले। फिर बत्ती बनाने के पाइप में भर ले। या 5 ml की सीरीज का प्रयोग करे।

पीछे से धक्का देवे जिससे बत्तिया बनकर निकलेगी।
बत्तियों को ट्रे में रखकर दुखाये।

*उपयोग -*
*वातावरण की शुद्धि, पर्यावरण सन्तिलन, स्वास्थ्यरक्षक, कीटाणुनाशक है।*
*मन प्रसन्न कारक तथा मन को शांति देता है।*

गौशाला को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास

प्राप्ति स्थान-
व्रजराज गौशाला एवं पंचगव्य अनुसंधान केंद्र, रीठी, कटनी, एम् पी
Mob-9009363221


*यदि आप गौ पालते है तो आप स्वयं बना सकते है*



*दन्तमंजन*
*प्रमुख द्रव्य - प्रति 6 किलो*
1) गोबर 5 किलो
2) कपूर। 100 ग्राम
3) अजवायन सत 100 ग्राम
4) सेंधा नमक 800 ग्राम

*निर्माण विधि*
मंजन पावडर निर्माण के लिए जमीन में 4*4*4 फिट का गड्ढा तैयार करे।
यह गड्ढा ईटो से चारो तरफ से बाढ़ दे। इस गड्ढे में बाहर ही जले गोबर के कण्डे डालें।

इन जले हुए कन्डो पर एक ही तरफ से बाकि कन्डो को डालें। जब कण्डे अच्छी तरह से जलने लगे तब पूरा गड्ढा भरने के बाद ऊपर से ढक्कन रखकर गोबर तथा मिटटी का मिश्रण कर ढक्कन तथा जमीन के बीच में यह मिश्रण लगाये।

एक दिन बाद ढक्कन निकालकर कला, पका कोयला निकाल ले। इस कोयले को खरल से बारीक कर के छान लें।

कपूर तथा अजवायन सत का बारीक चूर्ण बॉटल में एकत्र कर द्रावण तैयार करे। नमक में पानी डालकर पिघलने दे। एक बर्तन में मंजन का उपरोक्त काला पावडर, कपूर तथा अजवायन सत का द्रावण अच्छी तरह से मिला दे। इस मिश्रण में नमक का पानी डालकर पुनः अच्छी प्रकार सभी को मिला ले।
अच्छी तरह से मिश्रित उपरोक्त मिश्रण शीशियों में भर ले।

*टीप - तैयार होने के 8 दिन बाद ही प्रयोग में लाये।*

*निम्न व्याधियो में उपयोगी*
1) दातो के विकार जैसे क्रमि दन्त (dental caries)
2) पायरिया
3) मुख दुर्गन्ध (removes bad odour)
4) मुख रोग (oral disorders, oral submucous fibrosis)
5) सेंसिविटी
6)नियमित प्रयोग से मसूड़ो से खून आना बंद होता है।
7) मसूड़े स्वस्थ व् मजबूत होते है।

गौ मूत्र फिनायल बनाने की विधि (केमिकल रहित)

             *सामग्री* गौ मूत्र      *एक लीटर* नीम पत्र    *200 ग्राम सूखा* पाइन आयल इमल्सीफायर युक्त     *50 ग्राम* उबाला हुआ पा...