Thursday, 8 November 2018

सब रोगों की सिर्फ एक दवा



*रोज 15ml गौ अर्क* सुबह खाली पेट व् शाम को सोने से पहले पीने से शरीर के सारे रोग दूर होकर शरीर स्वर्ण के समान कान्तिमान बन जाता है
खाज-खुजली, एक्जीमा से छुटकारा मिल जाता है
केंसर केवल इसी से ठीक होता है
खासी
जुकाम
ब्लड प्रेशर- (उच्च या निम्न) सामान्य हो जाता है
बालो में चमक आ जाती है
शरीर में स्फूर्ती और उत्साह का संचार हो जाता है
ह्रदय बलवान बनता है
ब्रद्धाव्स्था दूर रहती है
कब्ज मिट जाती है
उदर रोग शांत हो जाते है
बुद्धि तीव्र हो जाती है
मोटापा कम होता है
दंत रोग नष्ट होकर दांत दृढ हो जाते है
नेत्र रोग दूर होकर आखो की ज्योति बढ़ जाती है
मोतियाबिंद कट जाता है
बालो का सफेद होना रूक जाता है
ज्वर उतर जाता है
शिर का दर्द ठीक होता है
शरीर की सूजन में आराम मिलता है
दमा
हाथी पाँव आदि विकार नष्ट हो जाते है
पथरी गलकर निकल जाती है
एसिडिटी नष्ट होती है
प्रमेह और मधुमेह ठीक हो जाते है

कहा तक वर्णन करे *यह दिव्य रसायन है इसका पान कीजिये और इसके चमत्कारों को देखिये. अर्क पीने में घ्रणा मत करिये.  आप आज एकोपेथी की जिन जहरीली दवाओं को पीते है यह गौ मूत्र अर्क उनसे बहुत उत्कृष्ट है, यह अमृत है. रोगों का काल है और स्वास्थ्य प्रदाता है. गौ की शरण में आईये और लाभ उठाईये*

अर्क प्राप्त करे- *व्रजराज गौ शाला- 9407001528*

टूथपेस्ट से केंसर होता है ?


Chemical Found In Colgate Toothpaste Linked To Cancer


Colgate is one of the most popular brands of toothpaste in the world and one of the most widely used ones as well. If you check your medicine cabinet you probably have one in there as well.
However, according to a recent study it turns out that Colgate contains a dangerous substance called Triclosa, which can be overall health detrimental and could even trigger cancer development.

The Chemical Research in Toxicology journal recently published a study in which it was revealed that Triclosan can boost the proliferation of cancer cells if used in high quantities. Moreover, this isn’t the only study on the matter; previous studies also came to similar conclusions – that this chemical can cause some serious damage to your organism.

Triclosan has the ability to penetrate through the skin and interfere with the function of the hormones and disrupt the endocrine.  According to a study from 2008 published in the journal of Environmental Health Perspective triclosan was detected in the urine of 75% of the 2517 tested people aged 6 and over.
This substance is so widely used in the chemical industry and it can be found in a number of laundry detergents, hand sanitizers, deodorants and antiseptics. The substance is very dangerous because it that can penetrate through the skin and get into the blood, disrupting your hormonal balance.
Despite the fact that a number of studies proved the dangers from using triclosan, Colgate continues to add it in their toothpastes, saying it poses no danger to human health. Triclosan has only been banned for use in Canada.
The American government hasn’t done anything so far to regulate the use of this dangerous substance but this is inevitable to happen, probably after some serious health issues arise just as it was with asbestos, DT and PCB. We hope that they won’t wait for so long and will ban the use of this substance before it has life threatening consequences.


Wednesday, 7 November 2018

लक्ष्मी जी की पूजन संसारी को किस तरह करना चाहिए ?


*प्रश्न* -   लक्ष्मी जी की पूजन  संसारी को किस तरह करना चाहिए ?
पूजन के बाद श्लोक कहा जाता है कि सब देव जाएं सिवाय कुबेर और लक्ष्मी के । क्या यह सम्भव है?
रत्नेश कुमार पटेल, उ,नि, पु, जबलपुर, ।। म, प्र ,।।

*उत्तर* - भागवतो भव ! शास्त्रों के रहस्य को जानने वाले साधक भगवद्भक्ति सम्पन्न गुरू से दूर रहनेवाले स्त्री पुरुष जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त अज्ञानी ही रहते हैं ।इसलिए ऐसे अज्ञानी जनों को हानि का तथा मृत्यु का भय सदा ही बना रहता है ।

भयभीत मनुष्य को लोभ दिखा कर दुष्ट पाखण्डी लोग ठगते रहते हैं और वह बेचारा ठगाता ही रहता है ।खैर ,छोड़िए, ये ठगने ठगाने की परम्परा तो चलती ही रहनी है । सबसे पहले आप लक्ष्मी शब्द का अर्थ समझिए ।

संस्कृतशब्द कोष के *"अमरकोष"* नामक ग्रंथ के प्रथम काण्ड के प्रथम वर्ग के 27 वें श्लोक में लक्ष्मी के पर्यायवाची शब्द कहे गए हैं ।

*"लक्ष्मी पद्मालया पद्मा कमला श्रीर्हरिप्रिया ।*
*इन्दिरा लोकमाता मा क्षीरोदतनया रमा ।*
*भार्गवी लोकजननी क्षीरसागर कन्यका "।।*

(1)    लक्ष्मी (2) पद्मालया (3) पद्मा (4) कमला (5) श्री (6) हरिप्रिया (7) इन्दिरा (8) लोकमाता (9) मा (10) क्षीरोदतनया (11) रमा (12) भार्गवी (13) लोकजननी (14) और  क्षीरसागरकन्या, इतने नामों से लक्ष्मी जानी जाती है ।

 अब देखिए कि लक्ष्मी शब्द का निर्माण कैसे होता है । *"लक्ष्मी"* शब्द में जो *"लक्ष्"* पद है वह धातु (क्रिया) है ,और ई प्रत्यय है । पाणिनि व्याकरण के उणादि प्रकरण के सूत्र *"लक्षेर्मुट् च"* से मुट् का आगम और ई प्रत्यय होता है । लक्ष धातु का अर्थ होता है, देखना और चिह्न ।

*"लक्षयति पश्यति नीतिज्ञं इति लक्ष्मी ।*  जो नीति से चलने वाले मनुष्य को देखती है ,उसे लक्ष्मी कहते हैं ।

नीति रहित दुष्ट स्त्री पुरुषों के यहां जाकर मदिरा मान व्यभिचार में फंसा कर दुष्टों का विनाश करने वाली देवी को लक्ष्मी कहते हैं ।

भगवान की निंदा करने वाले को तथा धर्म की निंदा करने वाले को एवं अहंकारी बलवान स्त्री पुरुषों  को यह लक्ष्मी घोर पापों में धकेल कर अंत में नरक भेजकर स्वयं वहां से विदा हो जाती है ।

अब लक्ष्मी के स्वरूप देखिए । *"मार्कण्डेय पुराण के अन्तर्गत "* दुर्गासप्तशती के चौथे अध्याय के  5 वें श्लोक में  दुर्गा जी की स्तुति करते हुए देवताओं ने कहा है कि

*या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः , पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः ।*
*श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य  लज्जा ,तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्वम् " ।।* 

दुर्गा जी इतने रूपों में संसार के मनुष्यों के साथ रहती है । परोपकारी भगवान के भक्त दयालु धर्म के नियमों को पालने वाले को  सुकृती कहते हैं । ऐसे सुकृती स्त्री पुरुषों के यहां दुर्गा माँ श्री के रूप में अनेक पीढ़ियों तक निवास करतीं हैं ।

श्री का अर्थ होता है "यश शोभा , कान्ति । *श्रेष्ठ पुरुषों का यश ही उनकी लक्ष्मी है ।* भले ही उनके पास गाड़ी बंगला, पैसा नहीं दिखाई देता हो । धनहीन होने पर भी सदाचार के कारण श्रेष्ठ स्त्री पुरुषों का यश अनन्तकाल तक रहता है ।

जैसे -- तुलसीदास, सूरदास,  शिवा जी, भगतसिंह आदि ।इन महापुरुषों का यश ही लक्ष्मी है । पापियों के यहां यही लक्ष्मी दरिद्रता के रूप में निवास करती है । दुष्ट स्त्री पुरुष थोड़े दिन तक ही धनवान दिखाई देते हैं । अंत में उनके देखते देखते सारा धन नष्ट हो जाता है और वे स्वयं भी नष्ट हो जाते हैं ।

फिर अपयश और दरिद्रता छा जाती है । पुण्यात्मा धर्मचारी स्त्री पुरुषों के हृदय में यही लक्ष्मी सद्बुद्धि और विवेक के रूप में निवास करती है । सज्जनों संतजनों के हृदय में यही लक्ष्मी श्रद्धा के रूप में रहती है ।

भगवान में श्रद्धा के कारण ही इनको सबकुछ प्राप्त हो जाता है । महापुरुषों और पतिव्रताओं की श्रद्धा ही लक्ष्मी है । अच्छे कुल में जन्मे स्त्री पुरुषों के हृदय में रहने वाली लज्जा ही लक्ष्मी है । इन अनेक रूपधारिणी भगवती लक्ष्मी को हम सभी देवता प्रणाम करते हैं ।

जिन्हें न तो लक्ष्मी का ज्ञान है और न ही कुबेर का ज्ञान है, वे ही इनके विसर्जन को छोड़कर अन्य का विसर्जन करवाते हैं । *वास्तव में आजकल तो कोई भी पंडित जी बन जाता है ।* धर्म और कर्म को न जानने वाले लोग डरपोंक होते हैं ।

इसलिए पूजा उपासना ,सम्प्रदाय अनेक प्रकार के हो गए हैं । *वैदिक परंपरा का त्याग करनेवाले ब्राह्मण और यजमान दोनों ही एक जैसे होते हैं ।* भगवान इनकी रक्षा करे ।राधे राधे

*-आचार्य ब्रजपाल शुक्ल, श्री धाम वृन्दाबन*

Monday, 5 November 2018

कैंसर से लड़ने की अचूक क्षमता

*रात को सोते वक़्त नाक में पंचगव्य घृत की सिर्फ़ 2 बूँदे डालने के ये फ़ायदे*
आज हम आपको रात को सोते वक़्त नाक में पंचगव्य नस्य की सिर्फ़ 2 बूँदे डालने के 33 फ़ायदो के बारे में बताएँगे। 
इतिहास गवाह है कि
देशी गाय के घी में ऐसे औषधीय गुण होते हैं जो और किसी चीज़ में नहीं मिलते। यहाँ तक की इसमें ऐसे माइक्रोन्यूट्रींस होते हैं जिनमें कैंसर युक्त तत्वों से लड़ने की क्षमता होती है। 
देशी गाय का घी शारीरिक, मानसिक व बौद्धिक विकास एवं रोग-निवारण के साथ पर्यावरण-शुद्धि का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। 
शुद्ध देशी गाय की घी से बना *पंचगव्य नस्य* रात को सोते वक़्त नाक में 2 – 2 बूँद गाय के देशी घी डालना हमें बहुत सारे लाभ देता है। पंचगव्य नस्य को लेट कर नाक में डाले और पाच मिनट लेटे रहे इसे प्रतिमर्श नस्य कहा जाता है।
*हार्ट अटैक* : हार्ट अटैक जिस व्यक्ति को हार्ट अटैक की तकलीफ है और चिकनाइ खाने की मनाही है तो गाय का घी खाएं, ह्रदय मज़बूत होता है।
*सोरायसिस और त्वचा सम्बन्धी हर चर्म रोगों में चमत्कारिक* : सोरायसिस गाय के घी को ठन्डे जल में फेंट ले और फिर घी को पानी से अलग कर ले यह प्रक्रिया लगभग सौ बार करे और इसमें थोड़ा सा कपूर डालकर मिला दें। इस विधि द्वारा प्राप्त घी एक असर कारक औषधि में परिवर्तित हो जाता है जिसे त्वचा सम्बन्धी हर चर्म रोगों में चमत्कारिक कि तरह से इस्तेमाल कर सकते है। यह सोरायसिस के लिए भी कारगर है।
*बाल झडना* : बाल झडना पंचगव्य नस्य नाक में डालने से बाल झडना समाप्त होकर नए बाल भी आने लगते है।
*आँखों की ज्योति बढ़ती है  लम्बे समय तक सेवन करने से आप देखेंगे कि आपकी आंखों की रौशनी में गजब का सुधार हो रहा है।
*कोमा से जगाए  पंचगव्य नस्य नाक में डालने से कोमा से बाहर निकल कर चेतना वापस लौट आती है।
*हथेली और पांव के तलवो में जलन  हथेली और पांव के तलवो में जलन होने पर पंचगव्य नस्य की मालिश करने से जलन में आराम आयेगा।
*कफ की शिकायत  कफ की शिकायत नासिका घृत से बच्चों को छाती और पीठ पर मालिश करने से कफ की शिकायत दूर हो जाती है। यहां पर मैं आपको बता दूं कि नस्य जितना पुराना होगा रिजल्ट उतना जल्दी आएगा
*नस्य ना लेने का समय* : नस्य ना लेने का समय बीमार पड़ने पर, आघात होने पर या बहुत थका हुआ होने पर, वर्षा ऋतू में जब सूर्य ना हो, गर्भवती या प्रसव के बाद, बाल धोने के बाद, भूख या प्यास लगने पर, अजीर्ण होने पर, आघात होने पर या बहुत थका हुआ होने पर, अनुवासन बस्ती या विरेचन के बाद।
*कैंसर से लड़ने की अचूक क्षमता  कैंसर पंचगव्य नस्य न सिर्फ कैंसर को पैदा होने से रोकता है और इस बीमारी के फैलने को भी आश्चर्यजनक ढंग से रोकता है। देसी गाय के घी में कैंसर से लड़ने की अचूक क्षमता होती है।

*पंचगव्य नस्य* के अन्य ज़बर्दस्त फायदे
● *पंचगव्य नस्य* को रसायन कहा गया है। जो जवानी को कायम रखते हुए, बुढ़ापे को दूर रखता है। इस नस्य से बूढ़ा व्यक्ति भी जवान जैसा हो जाता है। इस नस्य में स्वर्ण छार पाए जाते हैं जिसमे अदभुत औषधिय गुण होते है, जो की साधारण नस्य में नहीं मिलते।
*पंचगव्य नस्य* से बेहतर कोई दूसरी चीज नहीं है। इस घृत में वैक्सीन एसिड, ब्यूट्रिक एसिड, बीटा-कैरोटीन जैसे माइक्रोन्यूट्रींस मौजूद होते हैं। जिस के सेवन करने से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से बचा जा सकता है। *पंचगव्य नस्य* से उत्पन्न शरीर के माइक्रोन्यूट्रींस में कैंसर युक्त तत्वों से लड़ने की क्षमता होती है।
*पंचगव्य नस्य* नाक में डालने से पागलपन दूर होता है।
*पंचगव्य नस्य* नाक में डालने से एलर्जी खत्म हो जाती है।
*पंचगव्य नस्य* नाक में डालने से लकवा का रोग में भी उपचार होता है।
*पंचगव्य नस्य* से शराब, भांग व गांझे का नशा कम हो जाता है।
*पंचगव्य नस्य* नाक में डालने से कान का पर्दा बिना ओपरेशन के ही ठीक हो जाता है।
*पंचगव्य नस्य* डालने से नाक की खुश्की दूर होती है और दिमाग तारो ताजा हो जाता है।
*पंचगव्य नस्य* नाक में डालने से कोमा से बहार निकल कर चेतना वापस लोट आती है।
*पंचगव्य नस्य* नाक में डालने से बाल झडना समाप्त होकर नए बाल भी आने लगते है।
*पंचगव्य नस्य* को नाक में डालने से मानसिक शांति मिलती है, याददाश्त तेज होती है।
10) हाथ पाव मे जलन होने पर *पंचगव्य नस्य* को तलवो में मालिश करें जलन ढीक होता है
11) हिचकी के न रुकने पर *पंचगव्य नस्य* नाक में डालने से हिचकी स्वयं रुक जाएगी
*पंचगव्य नस्य* से एसिडिटी व कब्ज की शिकायत कम हो जाती है।
*पंचगव्य नस्य* से बल और वीर्य बढ़ता है और शारीरिक व मानसिक ताकत में भी इजाफा होता है
*पंचगव्य नस्य* से बच्चों को छाती और पीठ पर मालिश करने से कफ की शिकायत दूर हो जाती है।
अगर अधिक कमजोरी लगे, तो *पंचगव्य नस्य* का उपयोग सराहनीय है।
हथेली और पांव के तलवो में जलन होने पर *पंचगव्य नस्य* की मालिश करने से जलन में आराम आयेगा।
फफोलो पर *पंचगव्य नस्य* लगाने से आराम मिलता है।
गाय के घी की छाती पर मालिस करने से बच्चो के बलगम को बहार निकालने मे सहायक होता है।
दो बूंद *पंचगव्य नस्य* नाक में सुबह शाम डालने से माइग्रेन दर्द ढीक होता है।
 सिर दर्द होने पर शरीर में गर्मी लगती हो, तो इससे पैरों के तलवे पर मालिश करे, सर दर्द ठीक हो जायेगा।
यह स्मरण रहे कि *पंचगव्य नस्य* के सेवन से कॉलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता है। 
वजन भी नही बढ़ता, बल्कि वजन को संतुलित करता है । 
यानी के कमजोर व्यक्ति का वजन बढ़ता है, मोटे व्यक्ति का मोटापा (वजन) कम होता है।
*पंचगव्य नस्य* के सेवन से प्रगाढ़ निद्रा आ जायेगी ।
☆ *पंचगव्य नस्य* में मनुष्य – शरीर में पहुंचे रेडियोधर्मी विकिरणों का दुष्प्रभाव नष्ट करने की असीम क्षमता है.
सम्पर्क-व्रजराज गौ शाला-9407001528

दूध नही जहर पी रहे हम


सन् 2000 में ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ( WHO ) ने रिपोर्ट दे कर चेताया था कि माँ के दूध में भी 4% जहर हो गया है । इससे आने वाली बच्चों की पिढी में भंयकर बिमारियों के आने का खतरा है ।

अब जब 2007 में एक विशेषज्ञ ने न्यूजीलैंड में एक किताब लिख कर बताया कि गाय के विदेशी नस्लों से प्राप्त दूध A.1 से पांच तरह कि बिमारी फैल रही है । डायबिटीज , धमनियों में खुन जमता है, सनायू रोग,  हार्ट, अकाल मृत्यु ।

इस के बाद आज पूरी दुनिया में तहलका मच गया । भारतीय गायों की देशी नस्लें A. 2  दूध देती हैं यह स्वास्थ्य के लिये अमृत है । 

अब चीन, फ्रांस, ब्राजील आदि बहुत से देश A.2 दूध के उत्पान बढाने पर जोर दे रहे हैं ।

भारतीय ऋषियों ने हजारों साल पहले कहा था कि जैसी दूधी - वैसी बुद्धि पर हमारी सरकारों ने इसे नकार कर क्रास ब्रीड व विदेशी नस्ल की गायों पर जोर दिया इस से लोगों का मानसिक संतुलन बिगड़ गया ।

आज आदमी छोट्टी बच्चीयों से बलात्कार करने जैसी घिनौनी हरकतें करने लग गया ।

हमारे देश में एक गम्भीर समस्या ये है कि नेता व सरकारें लोगों के स्वास्थ्य के प्रती गम्भीर नहीं है । इसका कारण है कि अंग्रेजी मानसिकता वाले लोग नेतृत्व के शिखर पर होते हैं और जो भारत को भारतीयता पर रखने के लिए प्रयत्नशील हो रहे होते हैं, उन्हें चंद लालची लोग मरवा देते हैं

अतः सभी साथियों से निवेदन है कि अखंड भारत के लिए काम शुरू करें | फिर जैसे अंग्रेज भागे थे, अब तो अंग्रेजियत भगानी है | मुश्किल है पर असंभव नहीं

वंदे मातरम...


Thursday, 25 October 2018

साबुन जहर क्यों?


*त्वचा की नमी को खत्म करता है साबुन का प्रयोग*

अपनी त्वचा को खूबसूरत बनाने के लिए हम सभी साबुन का इस्तेमाल करते है. साथ ही साथ हम इसका इस्तेमाल हाथ धोने के लिए भी करते है. बाजार में मिलने वाले तमाम साबुन इस बात का दावा करते है की साबुन से वो आपकी त्वचा को मुलायम और खूबसूरत बनाते है जबकि सच्चाई कुछ और ही है

साबुन का इस्तेमाल कई तरह के त्वचा रोगों का कारण होता है

प्राचीन काल मे त्वचा की सफाई और उनके सौन्दर्य के लिए तमाम तरह के प्राकृतिक लेप जैसे मुल्तानी मिटटी, हल्दी, बेसन आदि का इस्तेमाल किया जाता था. लेकिन अब लगभग हर घर में इन प्राकृतिक उपचारों का इस्तेमाल बंद हो चूका है और सभी लोग केमिकलयुक्त साबुन के इस्तेमाल के आदी हो चुके है

ऐसे लोगो को आज हम बताने वाले है की बाजार के साबुन लगाने से त्वचा को क्या-क्या नुक्सान होते है

*त्वचा की नमी छीन लेते है साबुन-* बाजार में मौजूद ज्यादातर साबुनों में खुशबू, डिटर्जेंट अन्य तरह के केमिकल्स मौजूद होते है यह हमारी त्वचा को साफ़ तो करते है लेकिन इनके इस्तेमाल से हमारे स्किन की नमी छिन जाती है. हमारा शरीर त्वचा की सुरक्षा के लिए एमिनो एसिड्स और क्षार का निर्माण करता है यह त्वचा की परत पर माइस्चराईजर के रूप में मौजूद होते है. साबुन के प्रयोग से यह नेचुरल माइस्चराईजर नष्ट हो जाते है.

*गुड बेक्टीरिया भी हो जाते है खत्म-* साबुन जीवाणुओ को तो खत्म कर ही देते है लेकिन साथ ही साथ यह त्वचा पर मौजूद अच्छे बैक्टीरिया का भी नाश कर देते है. गुड बैक्टीरिया त्वचा के घटक बैक्टीरिया को खत्म करने में मदद करते है
*त्वचा से विटामिन डी हटाते है-* हमारे शरीर के लिए विटामिन डी बहुत ही लाभकारी है. साबुन का इस्तेमाल हमारे शरीर में विटामिन को अवशोषित नही होने देता. इससे पहले की विटामिन डी को त्वचा अवशोषित करे, साबुन उसे त्वचा से ही हटा देते है. विटामिन डी को त्वचा में अवशोषित होने में कम से कम 48 घंटे लगते है.
*केमिकल्स से त्वचा को नुक्सान-* कई तरह के नहाने के साबुनों में ट्रिकलोशन  नाम के रसायन का काफी मात्रा में प्रयोग किया जाता है. यह आपकी त्वचा के लिए बेहद हानिकारक होता है. इस प्रकार के साबुन को रोज प्रयोग में लाने से त्वचा को भारी नुक्सान होता है
*धुल जाता है आकर्षित करने वाला केमिकल-* फेरोमोंस एक ऐसा केमिकल होता है जो विपरीत लिंग को आकर्षित करने में मदद करता है. यह केमिकल हमारे पसीने में मौजूद होता है जो नहाने के साबुन की वजह से धुल जाता है.

*जहरयुक्त साबुन से बचे और हमारी गौ शाला में पंचगव्य और अन्य जड़ी बूटियों के संयोग से बने साबुन, उबटन, फेस पेक का स्तेमाल करे*

सम्पर्क- *ब्रजराज गौ शाला,* रीठी, कटनी, एम् पी,
*9407001528, 9009363221*



Tuesday, 23 October 2018

तांबे के बर्तन का पानी पीने के फायदे

  • सेहत के लिए पानी पीना अच्छी आदत है। स्वस्थ रहने के लिए हर इंसान को दिनभर में कम से कम 8-10 गिलास पानी जरूर पीना चाहिए। आयुर्वेद में कहा गया है सुबह के समय तांबे के पात्र का पानी पीना विशेष रूप से लाभदायक होता है। इस पानी को पीने से शरीर के कई रोग बिना दवा ही ठीक हो जाते हैं। साथ ही, इस पानी से शरीर के जहरीले तत्व बाहर निकल जाते हैं। रात को इस तरह तांबे के बर्तन में संग्रहित पानी को ताम्रजल के नाम से जाना जाता है।
  • ये ध्यान रखने वाली बात है कि तांबे के बर्तन में कम से कम 8 घंटे तक रखा हुआ पानी ही लाभकारी होता है । जिन लोगों को कफ की समस्या ज्यादा रहती है, उन्हें इस पानी में तुलसी के कुछ पत्ते डाल देने चाहिए। बहुत कम लोग जानते हैं कि तांबे के बर्तन का पानी पीने के बहुत सारे फायदे हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं। रात को तांबे के बर्तन में रखे पानी को पीने से होने वाले कुछ बेहतरीन फायदों के बारे में।
इन 10 कारणों से प्रतिदिन पिए तांबे के बर्तन में रखा पानी (ताम्रजल)
  1. हमेशा दिखेंगे जवान : कहते हैं, जो पानी ज्यादा पीता है उसकी स्किन पर अधिक उम्र में भी झुर्रियां दिखाई नहीं देती हैं। ये बात एकदम सही है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि अगर आप तांबे के बर्तन में जल को रखकर पिएं तो इससे त्वचा का ढीलापन आदि दूर हो जाता है। डेड स्किन भी निकल जाती है और चेहरा हमेशा चमकता हुआ दिखाई देता है।
  2. थायराइड को करता है नियंत्रित : थायरेक्सीन हार्मोन के असंतुलन के कारण थायराइड की बीमारी होती है। थायराइड के प्रमुख लक्षणों में तेजी से वजन घटना या बढ़ना, अधिक थकान महसूस होना आदि हैं। थायराइड एक्सपर्ट मानते है कि कॉपर के स्पर्श वाला पानी शरीर में थायरेक्सीन हार्मोन को बैलेंस कर देता है। यह इस ग्रंथि की कार्यप्रणाली को भी नियंत्रित करता है। तांबे के बर्तन में रखे पानी को पीने से रोग नियंत्रित हो जाता है।
  3. गठिया में होता है फायदेमंद : आजकल कई लोगों को कम उम्र में ही गठिया और जोड़ों में दर्द की समस्या सताने लगती हैं। यदि आप भी इस समस्या से परेशान हैं तो रोज तांबे के पात्र का पानी पिएं। गठिया की शिकायत होने पर तांबे के बर्तन में रखा हुआ जल पीने से लाभ मिलता है। तांबे के बर्तन में ऐसे गुण आ जाते हैं, जिनसे बॉडी में यूरिक एसिड कम हो जाता है और गठिया व जोड़ों में सूजन के कारण होने वाले दर्द में आराम मिलता है।
  4. स्किन को बनाए स्वस्थ : अधिकतर लोग हेल्दी स्किन के लिए तरह-तरह के कॉस्मेटिक्स का उपयोग करते हैं। वो मानते हैं कि अच्छे कॉस्मेटिक्स यूज करने से त्वचा सुंदर हो जाती है, लेकिन ये सच नहीं है। स्किन पर सबसे अधिक प्रभाव आपकी दिनचर्या और खानपान का पड़ता है। इसलिए अगर आप अपनी स्किन को हेल्दी बनाना चाहते हैं तो तांबे के बर्तन में रातभर पानी रखें और सुबह उस पानी को पी लें। नियमित रूप से इस नुस्खे को अपनाने से स्किन ग्लोइंग और स्वस्थ लगने लगेगी।
  5. दिल को बनाए हेल्दी : तनाव आजकल सभी की दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है। इसलिए दिल के रोग और तनाव से ग्रसित लोगों की संख्या तेजी बढ़ती जा रही है। यदि आपके साथ भी ये परेशानी है तो तो तांबे के जग में रात को पानी रख दें। सुबह उठकर इसे पी लें। तांबे के बर्तन में रखे हुए जल को पीने से पूरे शरीर में रक्त का संचार बेहतरीन रहता है। कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल में रहता है और दिल की बीमारियां दूर रहती हैं।
  6. खून की कमी करता है दूर : एनीमिया या खून की कमी एक ऐसी समस्या है जिससे 30 की उम्र से अधिक की कई भारतीय महिलाएं परेशान हैं। कॉपर के बारे में यह तथ्य सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक है कि यह शरीर की अधिकांश प्रक्रियाओं में बेहद आवश्यक होता है। यह शरीर के लिए आवश्यक पोषक तत्वों को अवशोषित करने का काम करता है। इसी कारण तांबे के बर्तन में रखे पानी को पीने से खून की कमी या विकार दूर हो जाते हैं।
  7. कैंसर​ से लड़ने में सहायक : कैंसर होने पर हमेशा तांबे के बर्तन में रखा हुआ जल पीना चाहिए। इससे लाभ मिलता है। तांबे के बर्तन में रखा हुआ जल वात, पित्त और कफ की शिकायत को दूर करता है। इस प्रकार के जल में एंटी-ऑक्सीडेंट भी होते हैं, जो इस रोग से लड़ने की शक्ति प्रदान करते हैं। अमेरिकन कैंसर सोसायटी के अनुसार, कॉपर कई तरीके से कैंसर मरीज की हेल्प करता है। यह धातु लाभकारी होती है।
  8. सूक्ष्मजीवों को खत्म करता है : तांबे की प्रकृति में ऑलीगोडायनेमिक के रूप में ( बैक्टीरिया पर धातुओं की स्टरलाइज प्रभाव ) माना जाता है। इसीलिए इसके बर्तन में रखे पानी के सेवन से हानिकारक बैक्टीरिया को आसानी से नष्ट किया जा सकता है। इसमें रखे पानी को पीने से डायरिया, दस्त और पीलिया जैसे रोगों के कीटाणु भी मर जाते हैं, लेकिन पानी साफ और स्वच्छ होना चाहिए।
  9. वजन घटाने में मदद करता है : कम उम्र में वजन बढ़ना आजकल एक कॉमन प्रॉब्लम है। अगर कोई भी व्यक्ति वजन घटाना चाहता है तो एक्सरसाइज के साथ ही उसे तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी पीना चाहिए। इस पानी को पीने से बॉडी का एक्स्ट्रा फैट कम हो जाता है। शरीर में कोई कमी या कमजोरी भी नहीं आती है।
  10. पाचन क्रिया को ठीक करता है : एसिडिटी या गैस या पेट की कोई दूसरी समस्या होने पर तांबे के बर्तन का पानी अमृत की तरह काम करता है। आयुर्वेद के अनुसार, अगर आप अपने शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालना चाहते हैं तो तांबे के बर्तन में कम से कम 8 घंटे रखा हुआ जल पिएं। इससे राहत मिलेगी और पाचन की समस्याएं भी दूर होंगी।

कैंसर, से बचना हैं तो एकादशी का व्रत करो!!!!!

●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●मनोनिग्रह की अदभुत साधनाः एकादशी व्रत,*एकादशी व्रत पर एक वैज्ञानिक विश्लेषण*!!!!!!
सभी धर्मानुष्ठानों का अंतिम लक्ष्य चंचल मन को वश में करना है। मन के संयत होने से सभी इन्द्रियाँ वश में हो जाती हैं। शास्त्रों ने मन को ग्यारहवीं इन्द्रिय माना है। सनातन धर्म के अनुसार ब्रह्म (आत्मा) निष्क्रिय है तथा शरीर जड़ है अर्थात् उसमें कार्य करने का सामर्थ्य नहीं है।
यह मन ही है जो आत्मा की शक्ति (सत्ता) लेकर शरीर से विभिन्न प्रकार की चेष्टाएँ करवाता है। दूसरे शब्दों में, आत्मा को कोई बंधन नहीं और शरीर नश्वर है तो फिर जन्म-मरण के चक्र में कौन ले जाता है ? यह मन ही है जो सूक्ष्म वासनाओं को साथ लेकर एक शरीर के बाद दूसरा शरीर धारण करता है। इसीलिए कहा गया हैः
मन एव मनुष्याणां कारणं बंधमोक्षयो।* मन ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण है।
विभिन्न धर्मानुष्ठानों के द्वारा मन को पवित्र करके इससे मुक्ति का आनंद भी मिल सकता है और यदि इसे स्वतंत्र या उच्छ्रंखल बनने दिया जाये तो यही मन मिल सकता है और यदि इसे स्वतन्त्र या उच्छ्रंखल बनने दिया जाय तो यही मन जीव को जन्म मरण की परम्परा में भटकाकर अनेक कष्टों में डालता रहता है।
हमारे ऋषियों का विज्ञान बड़ा ही सूक्ष्मतम विज्ञान है। उन्होंने मात्र भौतिक जड़ वस्तुओं को ही नहीं अपितु जो परम चैतन्य है और जिससे जड़ चेतन सत्ता प्राप्त करके स्थित हुए हैं उसको भी अनुभव किया।
अपनी संतानों को भी उस परम चैतन्य का अनुभव कराने के लिए उन महापुरूषों ने वेदों, उपनिषदों तथा पुराणों में अनेक प्रकार के विधि-विधानों तथा धर्मानुष्ठानों का वर्णन किया।
ऐसे ही धर्मानुष्ठानों में आता है एकादशीव्रत'।
प्रत्येक माह में दो एकादशियाँ आती हैं एक शुक्ल पक्ष में तथा दूसरी कृष्ण पक्ष में। एकादशी के दिन मनःशक्ति का केन्द्र चन्द्रमा क्षितिज की एकादशवीं (ग्यारहवीं) कक्षा पर अवस्थित होता है। यदि इस अनुकूल समय में मनोनिग्रह की साधना की जाय तो वह अत्य़धिक फलवती होती है।
एकादशी को उपवास किया जाता है। भारतीय योग दर्शन के अनुसार मन का स्वामी प्राण है। जब प्राण सूक्ष्म होते हैं तो मन भी वश हो जाता है।
आधुनिक विज्ञान के अनुसार जब हम भोजन करते हैं तो उसे पचाने के लिए आक्सीजन की आवश्यकता होती है।
इसी आक्सीजन को भारतीय योगियों ने 'प्राणवायु' कहा है। जब हम भोजन नहीं करते तो इतनी प्राणवायु खर्च नहीं होती जितनी भोजन करने पर होती है। योग विज्ञान के अनुसार शरीर में 🌈सात चक्र होते हैं – मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धाख्या, आज्ञाचक्र एवं सहस्रहार।
हृदय में स्थित अनाहत चक्र के नीचे के तीन चक्रों में मन तथा प्राणों की स्थिति साधारण अथवा निम्नकोटि की मानी जाती है जबकि अनाहत चक्र से ऊपर वाले चक्रों में मन तथा प्राणों की स्थिति साधारण अथवा निम्नकोटि की मानी जाती है जबकि अनाहत चक्र से ऊपर वाले चक्रों में मन तथा प्राण स्थित होने से व्यक्ति की गति ऊँची साधनाओं में होने लगती है।
भोजनको पचाने के लिए प्राणवायु को नीचे के केन्द्रों (पेट में स्थित आँतों) में आना पड़ता है। मन तथा प्राणों का आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध है अतः प्राणों के निचले केन्द्रों में आने से मन भी इन केन्द्रों में आता है। *योग शास्त्र में इन्हीं केन्द्रों को काम, क्रोध, लोभ आदि विकारों का स्थान बताया गया है।
उपवास रखने से मन तथा प्राण सूक्ष्म होकर ऊपर के केन्द्रों में रहते हैं जिससे आध्यात्मिक साधनाओं में गति मिलती है तथा एकादशी को मनः शक्ति का केन्द्र चन्द्रमा की ग्यारहवीं कक्षा पर अवस्थित होने से इस समय मनोनिग्रह की साधना अधिक फलित होती है।
अर्थात् उपयुक्त समय भी हो तथा मन और प्राणों की स्थिति ऊँचे केन्द्रों पर हो तो यह सोने में सुहागा वाली बात हो गयी। ऐसे समय जब साधना की जाय तो उससे कितना लाभ मिलेगा इस बात का अनुमान सभी लगा सकते हैं।
*इसी वैज्ञानिक आशय से हमारे ऋषियों द्वारा एकादशेन्द्रियभूत मन को एकादशी के दिन व्रत-उपवास द्वारा निगृहीत करने का विधान किया गया है।*

Saturday, 20 October 2018

शरद पूर्णिमा की रात को क्या करें, क्या न करें ?

शरद पूर्णिमा विशेष
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अक्टूबर 23को समस्त भारत वर्ष में शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जायेगा।
इस दिन श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचाया था। साथ ही माना जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी रात के समय भ्रमण में निकलती है यह जानने के लिए कि कौन जाग रहा है और कौन सो रहा है। उसी के अनुसार मां लक्ष्मी उनके घर पर ठहरती है। इसीलिए इस दिन सभी लोग जगते है । जिससे कि मां की कृपा उनपर बरसे और उनके घर से कभी भी लक्ष्मी न जाएं।
इसलिए इसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा ही शरद पूर्णिमा पर्व मनाया जाता है।  इस दिन पूरा चंद्रमा दिखाई देने के कारण इसे महापूर्णिमा भी कहते हैं। 
पूरे साल में केवल इसी दिन चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। हिन्दी धर्म में इस दिन कोजागर व्रत माना गया है। इसी को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। मान्यता है इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है। तभी इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर चाँदनी में रखने का विधान है।

शरद पूर्णिमा विधान 
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इस दिन मनुष्य विधिपूर्वक स्नान करके उपवास रखे और ब्रह्मचर्य भाव से रहे।इस दिन ताँबे अथवा मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढँकी हुई स्वर्णमयी लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित करके भिन्न-भिन्न उपचारों से उनकी पूजा करें, तदनंतर सायंकाल में चन्द्रोदय होने पर सोने, चाँदी अथवा मिट्टी के घी से भरे हुए १०० दीपक जलाए। इसके बाद घी मिश्रित खीर तैयार करे और बहुत-से पात्रों में डालकर उसे चन्द्रमा की चाँदनी में रखें। जब एक प्रहर (३ घंटे) बीत जाएँ, तब लक्ष्मीजी को सारी खीर अर्पण करें। तत्पश्चात भक्तिपूर्वक सात्विक ब्राह्मणों को इस प्रसाद रूपी खीर का भोजन कराएँ और उनके साथ ही मांगलिक गीत गाकर तथा मंगलमय कार्य करते हुए रात्रि जागरण करें। तदनंतर अरुणोदय काल में स्नान करके लक्ष्मीजी की वह स्वर्णमयी प्रतिमा आचार्य को अर्पित करें। इस रात्रि की मध्यरात्रि में देवी महालक्ष्मी अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए संसार में विचरती हैं और मन ही मन संकल्प करती हैं कि इस समय भूतल पर कौन जाग रहा है? जागकर मेरी पूजा में लगे हुए उस मनुष्य को मैं आज धन दूँगी।

शरद पूर्णिमा पर खीर खाने का महत्व
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शरद पूर्णिमा की रात का अगर मनोवैज्ञानिक पक्ष देखा जाए तो यही वह समय होता है जब मौसम में परिवर्तन की शुरूआत होती है और शीत ऋतु का आगमन होता है। शरद पूर्णिमा की रात में खीर का सेवन करना इस बात का प्रतीक है कि शीत ऋतु में हमें गर्म पदार्थों का सेवन करना चाहिए क्योंकि इसी से हमें जीवनदायिनी ऊर्जा प्राप्त होगी।

शरद पूर्णिमा व्रत कथा 
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एक साहुकार के दो पुत्रियाँ थी। दोनो पुत्रियाँ पुर्णिमा का व्रत रखती थी। परन्तु बडी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधुरा व्रत करती थी। परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की सन्तान पैदा ही मर जाती थी। उसने पंडितो से इसका कारण पूछा तो उन्होने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी जिसके कारण तुम्हारी सन्तान पैदा होते ही मर जाती है। पूर्णिमा का पुरा विधिपुर्वक करने से तुम्हारी सन्तान जीवित रह सकती है।

उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया। उसके लडका हुआ परन्तु शीघ्र ही मर गया। उसने लडके को पीढे पर लिटाकर ऊपर से पकडा ढक दिया। फिर बडी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पीढा दे दिया। बडी बहन जब पीढे पर बैठने लगी जो उसका घाघरा बच्चे का छू गया। बच्चा घाघरा छुते ही रोने लगा। बडी बहन बोली-” तु मुझे कंलक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता।“ तब छोटी बहन बोली, ” यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। “उसके बाद नगर में उसने पुर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया। 

इस प्रकार प्रतिवर्ष किया जाने वाला यह कोजागर व्रत लक्ष्मीजी को संतुष्ट करने वाला है। इससे प्रसन्न हुईं माँ लक्ष्मी इस लोक में तो समृद्धि देती ही हैं और शरीर का अंत होने पर परलोक में भी सद्गति प्रदान करती हैं।

शरद पूर्णिमा की रात को क्या करें, क्या न करें ?
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दशहरे से शरद पूनम तक चन्द्रमा की चाँदनी में विशेष हितकारी रस, हितकारी किरणें होती हैं । इन दिनों चन्द्रमा की चाँदनी का लाभ उठाना, जिससे वर्षभर आप स्वस्थ और प्रसन्न रहें । नेत्रज्योति बढ़ाने के लिए दशहरे से शरद पूर्णिमा तक प्रतिदिन रात्रि में 15 से 20 मिनट तक चन्द्रमा के ऊपर त्राटक करें। 

अश्विनी कुमार देवताओं के वैद्य हैं। जो भी इन्द्रियाँ शिथिल हो गयी हों, उनको पुष्ट करने के लिए चन्द्रमा की चाँदनी में खीर रखना और भगवान को भोग लगाकर अश्विनी कुमारों से प्रार्थना करना कि ‘हमारी इन्द्रियों का बल-ओज बढ़ायें ।’ फिर वह खीर खा लेना।

इस रात सूई में धागा पिरोने का अभ्यास करने से नेत्रज्योति बढ़ती है । 

शरद पूनम दमे की बीमारी वालों के लिए वरदान का दिन है।

चन्द्रमा की चाँदनी गर्भवती महिला की नाभि पर पड़े तो गर्भ पुष्ट होता है। शरद पूनम की चाँदनी का अपना महत्त्व है लेकिन बारहों महीने चन्द्रमा की चाँदनी गर्भ को और औषधियों को पुष्ट करती है। 
अमावस्या और पूर्णिमा को चन्द्रमा के विशेष प्रभाव से समुद्र में ज्वार-भाटा आता है। जब चन्द्रमा इतने बड़े दिगम्बर समुद्र में उथल-पुथल कर विशेष कम्पायमान कर देता है तो हमारे शरीर में जो जलीय अंश है, सप्तधातुएँ हैं, सप्त रंग हैं, उन पर भी चन्द्रमा का प्रभाव पड़ता है । इन दिनों में अगर काम-विकार भोगा तो विकलांग संतान अथवा जानलेवा बीमारी हो जाती है और यदि उपवास, व्रत तथा सत्संग किया तो तन तंदुरुस्त, मन प्रसन्न और बुद्धि में बुद्धिदाता का प्रकाश आता है । इस दिन हमारे मंदिर में लक्ष्मी जी का अभिषेक संपूर्ण श्री सूक्त से करवाया जाएगा इसके अलावा रात्रि में लक्ष्मी जी के मंत्रों से जो लोग हवन करवाना चाहते हैं वह लोग फोन पर संपर्क कर सकते हैं  इस दिन लक्ष्मी  जी के मंत्रों से हवन Poojan karne se लक्ष्मी जी की विशेष कृपा प्राप्त होगी रात्रि में ओम हरीम श्रीम लक्ष्मी नारायणाय नमः इस मंत्र का चंद्रमा की रोशनी में विष्णु जी और लक्ष्मी जी के सामने बैठकर पूरी रात या ज्यादा से ज्यादा समय तक बैठकर जप करें इससे पूरे साल भर आप पर लक्ष्मी जी की कृपा बनी रहेगी

गौ मूत्र फिनायल बनाने की विधि (केमिकल रहित)

             *सामग्री* गौ मूत्र      *एक लीटर* नीम पत्र    *200 ग्राम सूखा* पाइन आयल इमल्सीफायर युक्त     *50 ग्राम* उबाला हुआ पा...