*प्रश्न* - लक्ष्मी जी की
पूजन संसारी को किस तरह करना चाहिए ?
पूजन के बाद
श्लोक कहा जाता है कि सब देव जाएं सिवाय कुबेर और लक्ष्मी के । क्या यह सम्भव है?
रत्नेश कुमार
पटेल, उ,नि, पु, जबलपुर, ।। म, प्र ,।।
*उत्तर* - भागवतो भव ! शास्त्रों के रहस्य को जानने वाले
साधक भगवद्भक्ति सम्पन्न गुरू से दूर रहनेवाले स्त्री पुरुष जन्म से लेकर मृत्यु
पर्यन्त अज्ञानी ही रहते हैं ।इसलिए ऐसे अज्ञानी जनों को हानि का तथा मृत्यु का भय
सदा ही बना रहता है ।
भयभीत मनुष्य को
लोभ दिखा कर दुष्ट पाखण्डी लोग ठगते रहते हैं और वह बेचारा ठगाता ही रहता है ।खैर ,छोड़िए, ये ठगने ठगाने की परम्परा तो चलती ही रहनी है । सबसे पहले आप लक्ष्मी शब्द का
अर्थ समझिए ।
संस्कृतशब्द कोष
के *"अमरकोष"* नामक ग्रंथ के प्रथम काण्ड के प्रथम वर्ग के 27 वें श्लोक में लक्ष्मी के पर्यायवाची शब्द कहे
गए हैं ।
*"लक्ष्मी पद्मालया
पद्मा कमला श्रीर्हरिप्रिया ।*
*इन्दिरा लोकमाता मा
क्षीरोदतनया रमा ।*
*भार्गवी लोकजननी
क्षीरसागर कन्यका "।।*
(1)
लक्ष्मी (2)
पद्मालया (3) पद्मा (4) कमला (5) श्री (6) हरिप्रिया (7) इन्दिरा (8) लोकमाता (9)
मा (10) क्षीरोदतनया (11) रमा (12) भार्गवी (13)
लोकजननी (14) और क्षीरसागरकन्या,
इतने नामों से लक्ष्मी जानी जाती है ।
अब देखिए कि लक्ष्मी शब्द का निर्माण कैसे होता
है । *"लक्ष्मी"* शब्द में जो *"लक्ष्"* पद है वह धातु (क्रिया) है ,और ई प्रत्यय है । पाणिनि व्याकरण के उणादि प्रकरण के सूत्र
*"लक्षेर्मुट् च"* से मुट् का आगम और ई प्रत्यय होता है । लक्ष धातु का अर्थ
होता है, देखना और चिह्न ।
*"लक्षयति पश्यति नीतिज्ञं इति लक्ष्मी ।* जो नीति से चलने
वाले मनुष्य को देखती है ,उसे लक्ष्मी कहते
हैं ।
नीति रहित दुष्ट स्त्री
पुरुषों के यहां जाकर मदिरा मान व्यभिचार में फंसा कर दुष्टों का विनाश करने वाली
देवी को लक्ष्मी कहते हैं ।
भगवान की निंदा करने वाले
को तथा धर्म की निंदा करने वाले को एवं अहंकारी बलवान स्त्री पुरुषों को यह लक्ष्मी घोर पापों में धकेल कर अंत में
नरक भेजकर स्वयं वहां से विदा हो जाती है ।
अब लक्ष्मी के स्वरूप
देखिए । *"मार्कण्डेय पुराण के अन्तर्गत "* दुर्गासप्तशती के चौथे अध्याय के 5 वें श्लोक में दुर्गा जी की स्तुति
करते हुए देवताओं ने कहा है कि
*या श्रीः स्वयं सुकृतिनां
भवनेष्वलक्ष्मीः , पापात्मनां
कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः ।*
*श्रद्धा सतां
कुलजनप्रभवस्य लज्जा ,तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्वम्
" ।।*
दुर्गा जी इतने
रूपों में संसार के मनुष्यों के साथ रहती है । परोपकारी भगवान के भक्त दयालु धर्म
के नियमों को पालने वाले को सुकृती कहते
हैं । ऐसे सुकृती स्त्री पुरुषों के यहां दुर्गा माँ श्री के रूप में अनेक पीढ़ियों
तक निवास करतीं हैं ।
श्री का अर्थ
होता है "यश शोभा , कान्ति । *श्रेष्ठ पुरुषों का यश ही उनकी लक्ष्मी है ।* भले ही उनके पास गाड़ी बंगला, पैसा नहीं दिखाई देता हो । धनहीन होने पर भी
सदाचार के कारण श्रेष्ठ स्त्री पुरुषों का यश अनन्तकाल तक रहता है ।
जैसे -- तुलसीदास, सूरदास, शिवा जी, भगतसिंह आदि ।इन महापुरुषों का यश ही लक्ष्मी है । पापियों
के यहां यही लक्ष्मी दरिद्रता के रूप में निवास करती है । दुष्ट स्त्री पुरुष थोड़े
दिन तक ही धनवान दिखाई देते हैं । अंत में उनके देखते देखते सारा धन नष्ट हो जाता
है और वे स्वयं भी नष्ट हो जाते हैं ।
फिर अपयश और
दरिद्रता छा जाती है । पुण्यात्मा धर्मचारी स्त्री पुरुषों के हृदय में यही
लक्ष्मी सद्बुद्धि और विवेक के रूप में निवास करती है । सज्जनों संतजनों के हृदय
में यही लक्ष्मी श्रद्धा के रूप में रहती है ।
भगवान में
श्रद्धा के कारण ही इनको सबकुछ प्राप्त हो जाता है । महापुरुषों और पतिव्रताओं की
श्रद्धा ही लक्ष्मी है । अच्छे कुल में जन्मे स्त्री पुरुषों के हृदय में रहने
वाली लज्जा ही लक्ष्मी है । इन अनेक रूपधारिणी भगवती लक्ष्मी को हम सभी देवता
प्रणाम करते हैं ।
जिन्हें न तो
लक्ष्मी का ज्ञान है और न ही कुबेर का ज्ञान है, वे ही इनके विसर्जन को छोड़कर अन्य का विसर्जन करवाते हैं । *वास्तव में आजकल तो कोई भी पंडित जी बन जाता है ।* धर्म और कर्म को न जानने वाले लोग डरपोंक होते हैं ।
इसलिए पूजा
उपासना ,सम्प्रदाय अनेक प्रकार के
हो गए हैं । *वैदिक परंपरा का त्याग
करनेवाले ब्राह्मण और यजमान दोनों ही एक जैसे होते हैं ।* भगवान इनकी रक्षा करे ।राधे राधे
*-आचार्य ब्रजपाल शुक्ल,
श्री धाम वृन्दाबन*
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