●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●●मनोनिग्रह की अदभुत साधनाः एकादशी व्रत,*एकादशी व्रत पर एक वैज्ञानिक विश्लेषण*!!!!!!
सभी धर्मानुष्ठानों का अंतिम लक्ष्य चंचल मन को वश में करना है। मन के संयत होने से सभी इन्द्रियाँ वश में हो जाती हैं। शास्त्रों ने मन को ग्यारहवीं इन्द्रिय माना है। सनातन धर्म के अनुसार ब्रह्म (आत्मा) निष्क्रिय है तथा शरीर जड़ है अर्थात् उसमें कार्य करने का सामर्थ्य नहीं है।
यह मन ही है जो आत्मा की शक्ति (सत्ता) लेकर शरीर से विभिन्न प्रकार की चेष्टाएँ करवाता है। दूसरे शब्दों में, आत्मा को कोई बंधन नहीं और शरीर नश्वर है तो फिर जन्म-मरण के चक्र में कौन ले जाता है ? यह मन ही है जो सूक्ष्म वासनाओं को साथ लेकर एक शरीर के बाद दूसरा शरीर धारण करता है। इसीलिए कहा गया हैः
मन एव मनुष्याणां कारणं बंधमोक्षयो।* मन ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण है।
विभिन्न धर्मानुष्ठानों के द्वारा मन को पवित्र करके इससे मुक्ति का आनंद भी मिल सकता है और यदि इसे स्वतंत्र या उच्छ्रंखल बनने दिया जाये तो यही मन मिल सकता है और यदि इसे स्वतन्त्र या उच्छ्रंखल बनने दिया जाय तो यही मन जीव को जन्म मरण की परम्परा में भटकाकर अनेक कष्टों में डालता रहता है।
हमारे ऋषियों का विज्ञान बड़ा ही सूक्ष्मतम विज्ञान है। उन्होंने मात्र भौतिक जड़ वस्तुओं को ही नहीं अपितु जो परम चैतन्य है और जिससे जड़ चेतन सत्ता प्राप्त करके स्थित हुए हैं उसको भी अनुभव किया।
अपनी संतानों को भी उस परम चैतन्य का अनुभव कराने के लिए उन महापुरूषों ने वेदों, उपनिषदों तथा पुराणों में अनेक प्रकार के विधि-विधानों तथा धर्मानुष्ठानों का वर्णन किया।
ऐसे ही धर्मानुष्ठानों में आता है एकादशीव्रत'।
प्रत्येक माह में दो एकादशियाँ आती हैं एक शुक्ल पक्ष में तथा दूसरी कृष्ण पक्ष में। एकादशी के दिन मनःशक्ति का केन्द्र चन्द्रमा क्षितिज की एकादशवीं (ग्यारहवीं) कक्षा पर अवस्थित होता है। यदि इस अनुकूल समय में मनोनिग्रह की साधना की जाय तो वह अत्य़धिक फलवती होती है।
एकादशी को उपवास किया जाता है। भारतीय योग दर्शन के अनुसार मन का स्वामी प्राण है। जब प्राण सूक्ष्म होते हैं तो मन भी वश हो जाता है।
आधुनिक विज्ञान के अनुसार जब हम भोजन करते हैं तो उसे पचाने के लिए आक्सीजन की आवश्यकता होती है।
इसी आक्सीजन को भारतीय योगियों ने 'प्राणवायु' कहा है। जब हम भोजन नहीं करते तो इतनी प्राणवायु खर्च नहीं होती जितनी भोजन करने पर होती है। योग विज्ञान के अनुसार शरीर में 🌈सात चक्र होते हैं – मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धाख्या, आज्ञाचक्र एवं सहस्रहार।
हृदय में स्थित अनाहत चक्र के नीचे के तीन चक्रों में मन तथा प्राणों की स्थिति साधारण अथवा निम्नकोटि की मानी जाती है जबकि अनाहत चक्र से ऊपर वाले चक्रों में मन तथा प्राणों की स्थिति साधारण अथवा निम्नकोटि की मानी जाती है जबकि अनाहत चक्र से ऊपर वाले चक्रों में मन तथा प्राण स्थित होने से व्यक्ति की गति ऊँची साधनाओं में होने लगती है।
भोजनको पचाने के लिए प्राणवायु को नीचे के केन्द्रों (पेट में स्थित आँतों) में आना पड़ता है। मन तथा प्राणों का आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध है अतः प्राणों के निचले केन्द्रों में आने से मन भी इन केन्द्रों में आता है। *योग शास्त्र में इन्हीं केन्द्रों को काम, क्रोध, लोभ आदि विकारों का स्थान बताया गया है।
उपवास रखने से मन तथा प्राण सूक्ष्म होकर ऊपर के केन्द्रों में रहते हैं जिससे आध्यात्मिक साधनाओं में गति मिलती है तथा एकादशी को मनः शक्ति का केन्द्र चन्द्रमा की ग्यारहवीं कक्षा पर अवस्थित होने से इस समय मनोनिग्रह की साधना अधिक फलित होती है।
अर्थात् उपयुक्त समय भी हो तथा मन और प्राणों की स्थिति ऊँचे केन्द्रों पर हो तो यह सोने में सुहागा वाली बात हो गयी। ऐसे समय जब साधना की जाय तो उससे कितना लाभ मिलेगा इस बात का अनुमान सभी लगा सकते हैं।
*इसी वैज्ञानिक आशय से हमारे ऋषियों द्वारा एकादशेन्द्रियभूत मन को एकादशी के दिन व्रत-उपवास द्वारा निगृहीत करने का विधान किया गया है।*
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