Tuesday, 18 June 2013

मधुमेह (डायबिटीज)

मधुमेह (डायबिटीज) : राजीव दीक्षित Rajiv Dixit

आजकल मधुमेह की बीमारी आम बीमारी है। डाईबेटिस भारत मे 5 करोड़ 70 लाख लोगोंकों है और 3 करोड़ लोगों को हो जाएगी अगले कुछ सालों मे सरकार ये कह रही है | हर दो मिनट मे एक मौत हो रही है डाईबेटिस से और Complications तो बहुत हो रहे है... किसी की किडनी ख़राब हो रही है, किसीका लीवर ख़राब हो रहा है किसीको ब्रेन हेमारेज हो रहा है, किसीको पैरालाईसीस हो रहा है, किसीको ब्रेन स्ट्रोक आ रहा है, किसीको कार्डियक अरेस्ट हो रहा है, किसी को हार्ट अटैक आ रहा है Complications बहुत है खतरनाक है |

जब किसी व्यक्ति को मधुमेह की बीमारी होती है। इसका मतलब है वह व्यक्ति दिन भर में जितनी भी मीठी चीजें खाता है (चीनी, मिठाई, शक्कर, गुड़ आदि) वह ठीक प्रकार से नहीं पचती अर्थात उस व्यक्ति का अग्नाशय उचित मात्रा में उन चीजों से इन्सुलिन नहीं बना पाता इसलिये वह चीनी तत्व मूत्र के साथ सीधा निकलता है। इसे पेशाब में शुगर आना भी कहते हैं। जिन लोगों को अधिक चिंता, मोह, लालच, तनाव रहते हैं, उन लोगों को मधुमेह की बीमारी अधिक होती है। मधुमेह रोग में शुरू में तो भूख बहुत लगती है। लेकिन धीरे-धीरे भूख कम हो जाती है। शरीर सुखने लगता है, कब्ज की शिकायत रहने लगती है। अधिक पेशाब आना और पेशाब में चीनी आना शुरू हो जाती है और रेागी का वजन कम होता जाता है। शरीर में कहीं भी जख्म/घाव होने पर वह जल्दी नहीं भरता।

तो ऐसी स्थिति मे हम क्या करें ? राजीव भाई की एक छोटी सी सलाह है के आप इन्सुलिन पर जादा निर्भर न करे क्योंकि यह इन्सुलिन डाईबेटिस से भी जादा खतरनाक है, साइड इफेक्ट्स बहुत है |

इस बीमारी के घरेलू उपचार निम्न लिखित हैं।
आयुर्वेद की एक दावा है जो आप घर मे भी बना सकते है -
1. 100 ग्राम मेथी का दाना
2. 100 ग्राम तेजपत्ता
3. 150 ग्राम जामुन की बीज
4. 250 ग्राम बेल के पत्ते
इन सबको धुप मे सुखाके पत्थर मे पिस कर पाउडर बना कर आपस मे मिला ले, यही औषधि है |

औषधि लेने की पद्धति : सुबह नास्ता करने से एक घंटे पहले एक चम्मच गरम पानी के साथ लेले फिर शाम को खाना खाने से एक घंटे पहले लेले | तो सुबह शाम एक एक चम्मच पाउडर खाना खाने से पहले गरम पानी के साथ आपको लेना है | देड दो महीने अगर आप ये दावा ले लिया और साथ मे प्राणायाम कर लिया तो आपकी डाईबेटिस बिलकुल ठीक हो जाएगी |

ये औषधि बनाने मे 20 से 25 रूपया खर्च आएगा और ये औषधि तिन महिना तक चलेगी और उतने दिनों मे आपकी सुगर ठीक हो जाएगी |
सावधानी :
1. सुगर के रोगी ऐसी चीजे जादा खाए जिसमे फाइबर हो रेशे जादा हो, High Fiber Low Fat Diet घी तेल वाली डायेट कम हो और फाइबर वाली जादा हो रेशेदार चीजे जादा खाए| सब्जिया मे बहुत रेशे है वो खाए, डाल जो छिलके वाली हो वो खाए, मोटा अनाज जादा खाए, फल ऐसी खाए जिनमे रेशा बहुत है |
2. चीनी कभी ना खाए, डाईबेटिस की बीमारी को ठीक होने मे चीनी सबसे बड़ी रुकावट है | लेकिन आप गुड़ खा सकते है |
3. दूध और दूध से बनी कोई भी चीज नही खाना |
4. प्रेशर कुकर और अलुमिनम के बर्तन मे खाना न बनाए |
5. रात का खाना सूर्यास्त के पूर्व करना होगा |

जो डाईबेटिस आनुवंशिक होतें है वो कभी पूरी ठीक नही होता सिर्फ कण्ट्रोल होता है उनको ये दावा पूरी जिन्दगी खानी पड़ेगी पर जिनको आनुवंशिक नही है उनका पूरा ठीक होता है |

अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें:
http://www.youtube.com/watch?v=oiRf-LLSq0U

Monday, 10 June 2013

*.ॐ के उच्चारण के शारीरिक लाभ -

*.ॐ के उच्चारण के शारीरिक लाभ -
1.अनेक बार ॐ का उच्चारण करने से पूरा शरीर तनाव-रहित हो जाता है।
2.अगर आपको घबराहट या अधीरता होती है तो ॐ के उच्चारण से उत्तम कुछ भी नहीं।
3.यह शरीर के विषैलेतत्त्वों को दूर करता है, अर्थात तनाव के कारण पैदा होने वाले द्रव्यों पर नियंत्रण करता है।
4.यह हृदय और ख़ून के प्रवाह को संतुलित रखता है।
5.इससे पाचन शक्ति तेज़ होती है।
6.इससे शरीर में फिरसे युवावस्था वाली स्फूर्ति का संचार होता है।
7.थकान से बचाने के लिए इससे उत्तम उपाय कुछ और नहीं।
8.नींद न आने की समस्या इससे कुछ हीसमय में दूर हो जाती है। रात को सोते समय नींद आने तक मन में इसको करने से निश्चित नींद आएगी।
9.कुछ विशेष प्राणायाम के साथ इसे करने से फेफड़ों में मज़बूती आती ह

Sunday, 9 June 2013

क्या लिखा अंग्रेज़ macaulay ने 1835 मे अंग्रेज़ो की संसद को !!!


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मैं भारत के कोने कोने मे घूमा हूँ मुझे एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं दिखाई
दिया जो भिखारी हो चोर हो !

इस देश में मैंने इतनी धन दोलत देखी है इतने ऊंचे चारित्रिक आदर्श गुणवान
मनुष्य देखे हैं की मैं नहीं समझता हम इस देश को जीत पाएंगे , जब तक इसकी
रीड की हड्डी को नहीं तोड़ देते !

जो है इसकी आध्यात्मिक संस्कृति और इसकी विरासत !

इस लिए मैं प्रस्ताव रखता हूँ ! की हम पुरातन शिक्षा व्यवस्था और
संस्कृति को बादल डाले !

क्यूंकि यदि भारतीय सोचने लगे की जो भी विदेशी है और अँग्रेजी है वही
अच्छा है और उनकी अपनी चीजों से बेहतर है तो वे अपने आत्म गौरव और अपनी
ही संस्कृति को भुलाने लगेंगे !! और वैसे बन जाएंगे जैसा हम चाहते है !
एक पूरी तरह से दमित देश !!

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और बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है की macaulay अपने इस मकसद मे कामयाब हुआ !!
और जैसा उसने कहा था की मैं भारत की शिक्षा व्यवस्था को ऐसा बना दूंगा की
इस मे पढ़ के निकलने वाला व्यक्ति सिर्फ शक्ल से भारतीय होगा ! और अकल से
पूरा अंग्रेज़ होगा !!

और यही आज हमारे सामने है दोस्तो ! आज हम देखते है देश के युवा पूरी
तरह काले अंग्रेज़ बनते जा रहे है !!

उनकी अँग्रेजी भाषा बोलने पर गर्व होता है !!
अपनी भाषा बोलने मे शर्म आती है !!

madam बोलने मे कोई शर्म नहीं आती !
श्री मती बोलने मे शर्म आती है !!

अँग्रेजी गाने सुनने मे गर्व होता है !!
मोबाइल मे अँग्रेजी tone लगाने मे गर्व होता है !!

विदेशी समान प्रयोग करने मे गर्व होता है !
विदेशी कपड़े विदेशी जूते विदेशी hair style बड़े गर्व से कहते है मेरी
ये चीज इस देश की है उस देश की है !ये made in uk है ये made इन america
है !!

अपने बच्चो को convent school पढ़ाने मे गर्व होता है !!
बच्चा ज्यादा अच्छी अँग्रेजी बोलने लगे तो बहुत गर्व ! हिन्दी मे बात करे तो अनपद !
विदेशी खेल क्रिकेट से प्रेम कुशती से नफरत !!!

विदेशी कंपनियो pizza hut macdonald kfc पर जाकर कुछ खाना तो गर्व करना !!
और गरीब रेहड़ी वाले भाई से कुछ खाना तो शर्म !!

अपने देश धर्म संस्कृति को गालिया देने मे सबसे आगे !! सारे साधू संत
इनको चोर ठग नजर आते है !!

लेकिन कोई ईसाई मिशनरी अँग्रेजी मे बोलता देखे तो जैसे बहुत समझदार लगता है !!

करोड़ो वर्ष पुराने आयुर्वेद को गालिया ! और अँग्रेजी ऐलोपैथी को तालिया !!!

विदेशी त्योहार वैलंटाइन मनाने पर गर्व !! स्वामी विवेकानद का जन्मदिन
याद नहीं !!!!

दोस्तो macaulay अपनी चाल मे कामयाब हुआ !! और ये सब उसने कैसे किया
!!अगर आपका बच्चा शक्ल से भारतीय और अकल से अंग्रेज़ होता जा रहा है !

तो एक बार जरूर देखे आपको जवाब मिल जाएगा !

गोमूत्र से चार्ज होगी बैटरी, जलेगा लालटेन


रायपुर। छत्तीसगढ़ के एक व्यक्ति ने बैटरी से
जलने वाले लालटेन का निर्माण किया है।
बैटरी को बिजली से चार्ज करने की जरूरत
भी नहीं पड़ती है। बैटरी में एसिड की जगह गोमूत्र
का इस्तेमाल होता है।बैटरी लो होने पर बिजली से
चार्ज करने के बजाय गोमूत्र बदलने से
ही लालटेन में लगी 12वोल्ट की बैटरी फुल चार्ज
हो जाएगी और लालटेन जलने लगेगा।
ग्रामीणों के लिए बेहद उपयोगीइस लालटेन और
बैटरी को ईजाद किया है कामधेनु पंचगव्य एवं
अनुसंधान संस्थान अंजोरा के निदेशक डॉ. पीएल
चौधरी ने। बैटरी की गुणवत्ता पर नेशनल
इंस्टीट्यूट ऑफ रायपुर ने भी अपनी मुहर
लगा दी है।
बताया जाता है कि इस बैटरी में500 ग्राम
गोमूत्र का उपयोग कर 400 घंटे तक तीन वॉट के
एलईडी (लेड) बल्ब से भरपूर रोशनी प्राप्त
की जा सकती है। बैटरी बनाने वाले चौधरी के इस
मॉडल को प्रदेश के मुख्यमंत्री के समक्ष
भी प्रदर्शित किया गया है। उन्होंने खुशी जाहिर
करते हुएइसे प्रदेश पंचगव्य संस्थान के लिए
बड़ी उपलब्धि बताया।
डॉ. चौधरी बताते हैं कि इस लालटेन में बैटरी के
भीतर डाले जाने वाली एसिड की जगह गोमूत्र
डाला गया। इसमें किसीभी प्रकार का कोई
केमिकल नहीं मिलाया गया है, न ही बैटरी में कोई
बदलाव किया गया है। इसकी सबसे
बड़ी खासियत यह है कि बैटरी सिर्फ देसी गाय
के गोमूत्र से ही चलेगी। इसे मोटरसाइकिल
की पुरानी बैटरी को विकसित कर तैयार
किया गया है। लालटेन में जब बल्ब
की रोशनी कम होने लगती है तो बैटरी में गोमूत्र
को बदलना होता है। यह चमत्कारी प्रयोग है
जो जनजातीय या अन्य इलाकों में
जहां बिजली की कमी होती है, उन क्षेत्रों में
काफी उपयोगी साबित होगा।
डॉ. चौधरी ने इस प्रयोग को पेटेंट कराकर
अनुसंधान को आगेजारी रखने की बात कही।
इसके लिए वह खुद अपने स्तर पर लगातार
अनुसंधान कर रहे हैं। एनआईटी-रायपुर के कुछ
युवा वैज्ञानिकों ने इस प्रयोग को पर्यावरण
मित्र और गैर पंरापरागत साफ-
सुथरी ऊर्जा कास्रोत बताते हुए इसे ग्रामीण
क्षेत्रों के लिए काफी उपयोगीबताया है।
डॉ.पीएल चौधरी ने बताया कि बैटरी चालित
लालटेन बिजली गुलहोने पर इमरजेंसी लाइट
की तरह कार्य करेगा। इस बैटरी से मोबाइल
को भी चार्ज किया जा सकता है। उन्होंने
कहा कि गोमूत्र से चलने वाली बैटरी के उपयोग
से बिजली की खपत कम होगी और गोमूत्र
का सदुपयोग होगा, जिससे किसानों को पशुपालन
के लिए प्रेरणा मिलेगी। यह कमाल केवल
देसी नस्ल की गाय के मूत्र ही संभव है।

हजारों साल पहले ऋषियों के आविष्कार, पढ़कर रह जाएंगे हैरान

 हजारों साल पहले ऋषियों के आविष्कार, पढ़कर रह जाएंगे हैरान

By | Source भास्कर / धर्मडेस्क


भारत की धरती को ऋषि, मुनि, सिद्ध और देवताओं की भूमि पुकारा जाता है। यह कई तरह के विलक्षण ज्ञान व चमत्कारों से अटी पड़ी है। सनातन धर्म वेद को मानता है। प्राचीन ऋषि-मुनियों ने घोर तप, कर्म, उपासना, संयम के जरिए वेद में छिपे इस गूढ़ ज्ञान व विज्ञान को ही जानकर हजारों साल पहले ही कुदरत से जुड़े कई रहस्य उजागर करने के साथ कई आविष्कार किए व युक्तियां बताईं। ऐसे विलक्षण ज्ञान के आगे आधुनिक विज्ञान भी नतमस्तक होता है।

कई ऋषि-मुनियों ने तो वेदों की मंत्र-शक्ति को कठोर योग व तपोबल से साधकर ऐसे अद्भुत कारनामों को अंजाम दिया कि बड़े-बड़े राजवंश व महाबली राजाओं को भी झुकना पड़ा।

जानिए ऐसे ही असाधारण या यूं कहें कि प्राचीन वैज्ञानिक ऋषि-मुनियों द्वारा किए आविष्कार व उनके द्वारा उजागर रहस्यों को जिनसे आप भी अब तक अनजान होंगे –
महर्षि दधीचि -
महातपोबलि और शिव भक्त ऋषि थे। वे संसार के लिए कल्याण व त्याग की भावना रख वृत्तासुर का नाश करने के लिए अपनी अस्थियों का दान करने की वजह से महर्षि दधीचि बड़े पूजनीय हुए। इस संबंध में पौराणिक कथा है कि
एक बार देवराज इंद्र की सभा में देवगुरु बृहस्पति आए। अहंकार से चूर इंद्र गुरु बृहस्पति के सम्मान में उठकर खड़े नहीं हुए। बृहस्पति ने इसे अपना अपमान समझा और देवताओं को छोड़कर चले गए। देवताओं ने विश्वरूप को अपना गुरु बनाकर काम चलाना पड़ा, किंतु विश्वरूप देवताओं से छिपाकर असुरों को भी यज्ञ-भाग दे देता था। इंद्र ने उस पर आवेशित होकर उसका सिर काट दिया। विश्वरूप त्वष्टा ऋषि का पुत्र था। उन्होंने क्रोधित होकर इंद्र को मारने के लिए महाबली वृत्रासुर को पैदा किया। वृत्रासुर के भय से इंद्र अपना सिंहासन छोड़कर देवताओं के साथ इधर-उधर भटकने लगे।
ब्रह्मादेव ने वृत्तासुर को मारने के लिए वज्र बनाने के लिए देवराज इंद्र को तपोबली महर्षि दधीचि के पास उनकी हड्डियां मांगने के लिये भेजा। उन्होंने महर्षि से प्रार्थना करते हुए तीनों लोकों की भलाई के लिए अपनी हड्डियां दान में मांगी। महर्षि दधीचि ने संसार के कल्याण के लिए अपना शरीर दान कर दिया। महर्षि दधीचि की हड्डियों से वज्र बना और वृत्रासुर मारा गया। इस तरह एक महान ऋषि के अतुलनीय त्याग से देवराज इंद्र बचे और तीनों लोक सुखी हो गए।
आचार्य कणाद -
कणाद परमाणुशास्त्र के जनक माने जाते हैं। आधुनिक दौर में अणु विज्ञानी जॉन डाल्टन के भी हजारों साल पहले आचार्य कणाद ने यह रहस्य उजागर किया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं।
भास्कराचार्य -
आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्यजी ने उजागर किया। भास्कराचार्यजी ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस वजह से आसमानी पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है’।
आचार्य चरक -
‘चरकसंहिता’ जैसा महत्तवपूर्ण आयुर्वेद ग्रंथ रचने वाले आचार्य चरक आयुर्वेद विशेषज्ञ व ‘त्वचा चिकित्सक’ भी बताए गए हैं। आचार्य चरक ने शरीरविज्ञान, गर्भविज्ञान, औषधि विज्ञान के बारे में गहन खोज की। आज के दौर की सबसे ज्यादा होने वाली डायबिटीज, हृदय रोग व क्षय रोग जैसी बीमारियों के निदान व उपचार की जानकारी बरसों पहले ही उजागर की।
भारद्वाज -
आधुनिक विज्ञान के मुताबिक राइट बंधुओं ने वायुयान का आविष्कार किया। वहीं हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक कई सदियों पहले ऋषि भारद्वाज ने विमानशास्त्र के जरिए वायुयान को गायब करने के असाधारण विचार से लेकर, एक ग्रह से दूसरे ग्रह व एक दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाने के रहस्य उजागर किए। इस तरह ऋषि भारद्वाज को वायुयान का आविष्कारक भी माना जाता है।
कण्व - वैदिक कालीन ऋषियों में कण्व का नाम प्रमुख है। इनके आश्रम में ही राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला और उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था। माना जाता है कि उसके नाम पर देश का नाम भारत हुआ। सोमयज्ञ परंपरा भी कण्व की देन मानी जाती है।
कपिल मुनि -
भगवान विष्णु का पांचवां अवतार माने जाते हैं। इनके पिता कर्दम ऋषि थे। इनकी माता देवहूती ने विष्णु के समान पुत्र चाहा। इसलिए भगवान विष्णु खुद उनके गर्भ से पैदा हुए। कपिल मुनि 'सांख्य दर्शन' के प्रवर्तक माने जाते हैं। इससे जुड़ा प्रसंग है कि जब उनके पिता कर्दम संन्यासी बन जंगल में जाने लगे तो देवहूती ने खुद अकेले रह जाने की स्थिति पर दुःख जताया। इस पर ऋषि कर्दम देवहूती को इस बारे में पुत्र से ज्ञान मिलने की बात कही। वक्त आने पर कपिल मुनि ने जो ज्ञान माता को दिया, वही 'सांख्य दर्शन' कहलाता है।
इसी तरह पावन गंगा के स्वर्ग से धरती पर उतरने के पीछे भी कपिल मुनि का शाप भी संसार के लिए कल्याणकारी बना। इससे जुड़ा प्रसंग है कि भगवान राम के पूर्वज राजा सगर ने द्वारा किए गए यज्ञ का घोड़ा इंद्र ने चुराकर कपिल मुनि के आश्रम के करीब छोड़ दिया। तब घोड़े को खोजते हुआ वहां पहुंचे राजा सगर के साठ हजार पुत्रों ने कपिल मुनि पर चोरी का आरोप लगाया। इससे कुपित होकर मुनि ने राजा सगर के सभी पुत्रों को शाप देकर भस्म कर दिया। बाद के कालों में राजा सगर के वंशज भगीरथ ने घोर तपस्या कर स्वर्ग से गंगा को जमीन पर उतारा और पूर्वजों को शापमुक्त किया।
पतंजलि -
आधुनिक दौर में जानलेवा बीमारियों में एक कैंसर या कर्करोग का आज उपचार संभव है। किंतु कई सदियों पहले ही ऋषि पतंजलि ने कैंसर को रोकने वाला योगशास्त्र रचकर बताया कि योग से कैंसर का भी उपचार संभव है।
शौनक :
वैदिक आचार्य और ऋषि शौनक ने गुरु-शिष्य परंपरा व संस्कारों को इतना फैलाया कि उन्हें दस हजार शिष्यों वाले गुरुकुल का कुलपति होने का गौरव मिला। शिष्यों की यह तादाद कई आधुनिक विश्वविद्यालयों तुलना में भी कहीं ज्यादा थी।
महर्षि सुश्रुत - ये शल्यचिकित्सा विज्ञान यानी सर्जरी के जनक व दुनिया के पहले शल्यचिकित्सक
(सर्जन) माने जाते हैं। वे शल्यकर्म या आपरेशन में दक्ष थे। महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखी गई ‘सुश्रुतसंहिता’ ग्रंथ में शल्य चिकित्सा के बारे में कई अहम ज्ञान विस्तार से बताया है। इनमें सुई, चाकू व चिमटे जैसे तकरीबन 125 से भी ज्यादा शल्यचिकित्सा में जरूरी औजारों के नाम और 300 तरह की शल्यक्रियाओं व उसके पहले की जाने वाली तैयारियों, जैसे उपकरण उबालना आदि के बारे में पूरी जानकारी बताई गई है।
जबकि आधुनिक विज्ञान ने शल्य क्रिया की खोज तकरीबन चार सदी पहले ही की है। माना जाता है कि महर्षि सुश्रुत मोतियाबिंद, पथरी, हड्डी टूटना जैसे पीड़ाओं के उपचार के लिए शल्यकर्म यानी आपरेशन करने में माहिर थे। यही नहीं वे त्वचा बदलने की शल्यचिकित्सा भी करते थे।
वशिष्ठ :
वशिष्ठ ऋषि राजा दशरथ के कुलगुरु थे। दशरथ के चारों पुत्रों राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न ने इनसे ही शिक्षा पाई। देवप्राणी व मनचाहा वर देने वाली कामधेनु गाय वशिष्ठ ऋषि के पास ही थी।
विश्वामित्र : ऋषि बनने से पहले
विश्वामित्र क्षत्रिय थे। ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को पाने के लिए हुए युद्ध में मिली हार के बाद तपस्वी हो गए। विश्वामित्र ने भगवान शिव से अस्त्र विद्या पाई। इसी कड़ी में माना जाता है कि आज के युग में प्रचलित प्रक्षेपास्त्र या मिसाइल प्रणाली हजारों साल पहले विश्वामित्र ने ही खोजी थी।
ऋषि विश्वामित्र ही ब्रह्म गायत्री मंत्र के दृष्टा माने जाते हैं। विश्वामित्र का अप्सरा मेनका पर मोहित होकर तपस्या भंग होना भी प्रसिद्ध है। शरीर सहित त्रिशंकु को स्वर्ग भेजने का चमत्कार भी विश्वामित्र ने तपोबल से कर दिखाया।
महर्षि अगस्त्य -
वैदिक मान्यता के मुताबिक मित्र और वरुण देवताओं का दिव्य तेज यज्ञ कलश में मिलने से उसी कलश के बीच से तेजस्वी महर्षि अगस्त्य प्रकट हुए। महर्षि अगस्त्य घोर तपस्वी ऋषि थे। उनके तपोबल से जुड़ी पौराणिक कथा है कि एक बार जब समुद्री राक्षसों से प्रताड़ित होकर देवता महर्षि अगस्त्य के पास सहायता के लिए पहुंचे तो महर्षि ने देवताओं के दुःख को दूर करने के लिए समुद्र का सारा जल पी लिया। इससे सारे राक्षसों का अंत हुआ।
गर्गमुनि -
गर्ग मुनि नक्षत्रों के खोजकर्ता माने जाते हैं। यानी सितारों की दुनिया के जानकार। ये गर्गमुनि ही थे, जिन्होंने श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के के बारे नक्षत्र विज्ञान के आधार पर जो कुछ भी बताया, वह पूरी तरह सही साबित हुआ। कौरव-पांडवों के बीच महाभारत युद्ध विनाशक रहा। इसके पीछे वजह यह थी कि युद्ध के पहले पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस थी। इसके दूसरे पक्ष में भी तिथि क्षय थी। पूर्णिमा चौदहवें दिन आ गई और उसी दिन चंद्रग्रहण था। तिथि-नक्षत्रों की यही स्थिति व नतीजे गर्ग मुनिजी ने पहले बता दिए थे।
बौद्धयन -
भारतीय त्रिकोणमितिज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। कई सदियों पहले ही तरह-तरह के आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाने की त्रिकोणमितिय रचना-पद्धति बौद्धयन ने खोजी। दो समकोण समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी, उतने क्षेत्रफल का ‘समकोण’ समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान के वृत्त में बदलना, इस तरह के कई मुश्किल सवालों का जवाब बौद्धयन ने आसान बनाया।
http://www.bhaskarhindi.com/News/15490/.html

कार्य क्षमता बढ़ाने का अचूक नुस्खा------

कार्य क्षमता बढ़ाने व कोलॅस्ट्रोल घटाने का अचूक आयुर्वेदिक नुस्खा------

अपनी कार्य क्षमता बढ़ा कर सफल होने, स्फूर्तिवान होने व चर्बी घटा कर तन्दरूस्त होने का यह आजमाया हुआ नुस्खा है। अनेक लोगों ने इसका प्रयोग कर सफलता पाई है। नुस्खा निम्न प्रकार है:
मिश्रण: 50 ग्राम मेथी, 20 ग्राम अजवाइन,10 ग्राम काली जीरी
बनाने की विधिः---- मेथी, अजवाइन तथा काली जीरी को इस मात्रा में खरीद कर साफ कर लें। प्रत्येक वस्तु को धीमी आंच में तवे के उपर हल्का सेकें। सेकने के बाद प्रत्येक को मिक्सर-ग्राइंडर में पीसकर पावडर बनालें। तीनों के पावडर को मिला कर कांच की शीशी में रख ले .आपकी अमूल्य दवाई तैयार है।
दवाई लेने की विधिः------ तैयार दवाई को रात्रि को खाना खाने के बाद सोते समय 1 चम्मच गर्म पानी के साथ लेवें। याद रखें इसे गर्म पानी के साथ ही लेना है। इस दवाई को रोज लेने से शरीर के किसी भी कोने में अनावश्यक चर्बी/ गंदा मैल मल मुत्र के साथ शरीर से बाहर निकल जाता है, तथा शरीर सुन्दर स्वरूपमान बन जाता है। मरीज को दवाई 30 दिन से 90 दिन तक लेनी होगी।
लाभः- इस दवाई को लेने से न केवल शरीर मंे अनावश्यक चर्बी दूर हो जाती है बल्किः-

- शरीर में रक्त का परिसंचरण तीव्र होता है। ह्नदय रोग से बचाव होता है तथा कोलेस्ट्रोल घटता है।
- पुरानी कब्जी से होेने वाले रोग दूर होते है। पाचन शक्ति बढ़ती है।
- गठिया बादी हमेशा के लिए समाप्त होती है।
- दांत मजबूत बनते है। हडिंया मजबूत होगी।
- आँखों का तेज बढ़ता है .
- कानों से सम्बन्धित रोग व बहरापन दूर होता है।
- शरीर में अनावश्यक कफ नहीं बनता है।
- कार्य क्षमता बढ़ती है, शरीर स्फूर्तिवान बनता है। घोड़े के समान तीव्र चाल बनती है।
- चर्म रोग दूर होते है, शरीर की त्वचा की सलवटें दूर होती है, लालिमा लिये शरीर क्रांति-ओज मय बनता है।
- स्मरण शक्ति बढ़ती है तथा आयु भी बढ़ती है, यौवन चिरकाल तक बना रहता है।
- पहले ली गई एलोपेथिक दवाईयां के साइड इफेक्ट को कम करती है।
- इस दवा को लेने से शुगर (डायबिटिज) नियंत्रित रहती है।
- बालों की वृद्धि तेजी से होती है।
- शरीर सुडौल, रोग मुक्त बनता है।

 योग करने से दवाई का जल्दी लाभ होता है।

परहेजः- ------
- इस दवाई को लेने के बाद रात्रि में कोई दूसरी खाद्य-सामग्री नहीं खाएं।
- यदि कोई व्यक्ति धुम्रपान करता है, तम्बाकू-गुटखा खाता या मांसाहार करता है तो उसे यह चीजे छोड़ने पर ही दवा फायदा पहुचाएंगी।
- शाम का भोजन करने के कम-से-कम दो घण्टे बाद दवाई लें।

छाछ से चमत्कारी फायदे


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गर्मियों में दूध से बने पदार्थ को शरीर के लिए बहुत अधिक लाभदायक माना गया है। इसीलिए इन दिनों दही,पनीर, मट्टा व छाछ का भरपूर उपयोग किया जाता है। दही, पनीर, मठ्ठा, आदि तो उपयोगी हैं ही लेकिन उनसे भी ज्यादा लाभदायक छाछ है। गर्मियों मे रोजाना छाछ का सेवन अमृत के समान है। इससे चेहरा चमकने लगता है। खाने के साथ छाछ पीने से जोड़ों के दर्द से भी राहत मिलती है।छाछ कैल्शियम से भरी होती है।

इसका रोजाना सेवन करने वाले को कभी भी पाचन सबंधी समस्याएं प्रभावित नहीं करती हैं। खाना खाने के बाद पेट भारी हो जाना अरूचि आदि दूर करने के लिए गर्मियों में छाछ जरुर पीना चाहिए। रोजाना छाछ पीने के ढेरों फायदे हैं उन्हीं में से कुछ आज हम आपको बताने जा रहे हैं तो आइए जानते हैं छाछ पीने के लाभ....

एसिडिटी- गर्मी के कारण अगर दस्त हो रही हो तो बरगद की जटा को पीसकर और छानकर छाछ में मिलाकर पीएं। छाछ में मिश्री, काली मिर्च और सेंधा नमक मिलाकर रोजाना पीने से एसिडिटी जड़ से साफ हो जाती है।

रोग प्रतिरोधकता बढाए- इसमें हेल्‍दी बैक्‍टीरिया और कार्बोहाइड्रेट्स होते हैं साथ ही लैक्‍टोस शरीर में आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है, जिससे आप तुरंत ऊर्जावान हो जाते हैं।

कब्ज- अगर कब्ज की शिकायत बनी रहती हो तो अजवाइन मिलाकर छाछा पीएं। पेट की सफाई के लिए गर्मियों में पुदीना मिलाकर लस्सी बनाकर पीएं।

खाना न पचने की शिकायत- जिन लोगों को खाना ठीक से न पचने की शिकायत होती है। उन्हें रोजाना छाछ में भुने जीरे का चूर्ण, काली मिर्च का चूर्ण और सेंधा नमक का चूर्ण समान मात्रा में मिलाकर धीरे-धीरे पीना चाहिए। इससे पाचक अग्रि तेज हो जाएगी।

विटामिन- बटर मिल्‍क में विटामिन सी, ए, ई, के और बी पाये जाते हैं जो कि शरीर के पोषण की जरुरत को पूरा करता है।

मिनरल्‍स- यह स्वस्थ पोषक तत्वों जैसे लोहा, जस्ता, फास्फोरस और पोटेशियम से भरा होता है, जो कि शरीर के लिये बहुत ही जरुरी मिनरल माना जाता है।यदि आप डाइट पर हैं तो रोज़ एक गिलास मट्ठा पीना ना भूलें। यह लो कैलोरी और फैट में कम होता है।

•• गौ माता को बचाने के उपाय ••

•• गौ माता को बचाने के उपाय ••


• जो सरकार अपने घोषणापत्र / अजेंडे मे गौ रक्षा अधिनियम का उल्लेख नहीं करती है उसे वोट न दें और 

अगर कोई भी सरकार गौ रक्षा करने मे असमर्थ हो तो उसका बहिष्कार करें आपका अधिकार है आप अगर 

किसी पार्टी को देश हित का नहीं समझते उसे वोट नहीं दे सकते है |

• जो भी गौ का मांस खाता हो उसका सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार करें, उसके अनुष्ठानों की वस्तुओं 

को न खरीदे, उससे सबंध न रखे, इससे कचरा एक तरफ हो जाएगा |

• गाँव मे गौ रक्षक दल बने जो समय समय पर गौ शालाओं मे जाकर निरीक्षण करें और बूचङखानों को 

लेकर जा रहे पशुओं की तस्करी को रोके, और हत्यारों को सलाखों तक पाहुचाए |

• अगर आप गौ रक्षक दल सदस्य या दल बनाने मे असमर्थ है तो गौ रक्षक दल बनाने मे आर्थिक 

सामाजिक रूप से उन्हें प्रोत्साहन दें |

• प्राकृतिक खानपान को जीवन शैली बनाए, जंक फूड (जहरीले फूड) से परहेज करे, निरंतर योगाभ्यास 

करे और नशामुक्त जीवन जिये, 100% स्वदेशी को अपनाने का संकल्प ले |

• हमेशा गौ का ही दूध पिये भेंस का दूध पियोगे तो शरीर मे मलिन बुद्धि का प्रवेश करना स्वाभाविक है |

• जर्सी गायों के दूध और डेरी पदार्थो का प्रयोग बंद करें ये जर्सी गाये सूअर और विदेशी गायों के संकरण से 

पैदा की गई है,इन्ही जर्सी गायों का जो दूध पिता है उसकी बुद्धि का अनवेक्षन करे, ज्ञात हो जाएगा |

• पंचगव्य से बने उत्पादों का उपयोग करे (गोअर्क, साबुन, उबटन, शैम्पू, हेयर ओइल, दंतमंजन, 

धूपबत्ती, फिनाइल, अगरबत्ती, बर्तन पाऊडर आदि सहित जीवन के उपयोग में आने वाली वस्तुएं) |

• किसी भी बिमारी में विश्व की सबसे सफल और किफायती पंचगव्य चिकित्सा का लाभ ले और लोगो को 

इसके बारे में बताए |

• अपने आस पास के लोगो को गौ माता के मनुष्य जीवन पर होने वाली कृपा के बारें मे बताए, जागरूक 

करें |

• किसानो को खेती के लिये गाय और बैल का महत्व समजाये |

• अपने आसपास के कत्लखानों की लिस्ट बना कर रखे और गौ रक्षक दल को सौपे, उनकी मदद करें |

• इंटरनेट के माध्यम से युवाओं को गौ माता के प्रति जानकारी देने के लिए प्रेरित करें |

• शाकाहार के लिए लोगो को प्रेरित करें और आकड़ों को जुटाएँ, तर्क वितर्क मे भाग लें |

• गौ ह्त्या को बढ़ावा देने वाले या तो नहीं रोकने वाले नेताओ की मुंडी जनता के हाथ में रहे ऐसे कुछ 

कानूनों की माँग कर के उन्हें लागू करवाये जैसे की पारदर्शी शिकायत/ प्रस्ताव प्रणाली (सिस्टम) [TCP] , 

प्रजा आधीन राजा (Right to Recall) कानून | 

अंडा शाकाहार का पर्याय

आजकल मुझे यह देख कर अत्यंत खेद और आश्चर्य होता है की अंडा शाकाहार का पर्याय बन चुका है 

,ब्राह्मणों से लेकर जैनियों तक सभी ने खुल्लमखुल्ला अंडा खाना शुरू 

कर दिया है ...खैर मै ज्यादा भूमिका और प्रकथन में न जाता हुआ सीधे तथ्य पर आ रहा हूँ

मादा स्तनपाईयों (बन्दर बिल्ली गाय मनुष्य) में एक निश्चित समय के बाद अंडोत्सर्जन एक चक्र के रूप 

में होता है उदारहरणतः मनुष्यों में यह महीने में एक बार,.. चार 

दिन तक होता है जिसे माहवारी या मासिक धर्म कहते है ..उन दिनों में स्त्रियों को पूजा पाठ चूल्हा रसोईघर 

आदि से दूर रखा जाता है ..यहाँ तक की स्नान से पहले किसी को 

छूना भी वर्जित है कई परिवारों में ...शास्त्रों में भी इन नियमों का वर्णन है

इसका वैज्ञानिक विश्लेषण करना चाहूँगा ..मासिक स्राव के दौरान स्त्रियों में मादा हार्मोन (estrogen) की 

अत्यधिक मात्रा उत्सर्जित होती है और सारे शारीर से यह निकलता 

रहता है ..

इसकी पुष्टि के लिए एक छोटा सा प्रयोग करिये ..एक गमले में फूल या कोई भी पौधा है तो उस पर 

रजस्वला स्त्री से दो चार दिन तक पानी से सिंचाई कराइये ..वह पौधा 

सूख जाएगा ,


अब आते है मुर्गी के अण्डे की ओर


१) पक्षियों (मुर्गियों) में भी अंडोत्सर्जन एक चक्र के रूप में होता है अंतर केवल इतना है की वह तरल रूप में 

ना हो कर ठोस (अण्डे) के रूप में बाहर आता है ,


२) सीधे तौर पर कहा जाए तो अंडा मुर्गी की माहवारी या मासिक धर्म है और मादा हार्मोन (estrogen) से 

भरपूर है और बहुत ही हानिकारक है

३) ज्यादा पैसे कमाने के लिए आधुनिक तकनीक का प्रयोग कर आजकल मुर्गियों को भारत में निषेधित 

ड्रग ओक्सिटोसिन(oxytocin) का इंजेक्शन लगाया जाता है जिससे 

के मुर्गियाँ लगातार अनिषेचित (unfertilized) अण्डे देती है

४) इन भ्रूणों (अन्डो) को खाने से पुरुषों में (estrogen) हार्मोन के बढ़ने के कारण कई रोग उत्पन्न हो रहे है 

जैसे के वीर्य में शुक्राणुओ की कमी (oligozoospermia, 

azoospermia) , नपुंसकता और स्तनों का उगना (gynacomastia), हार्मोन असंतुलन के कारण डिप्रेशन 

आदि ...

वहीँ स्त्रियों में अनियमित मासिक, बन्ध्यत्व , (PCO poly cystic oveary) गर्भाशय कैंसर आदि रोग हो 

रहे है

५) अन्डो में पोषक पदार्थो के लाभ से ज्यादा इन रोगों से हांनी का पलड़ा ही भारी है .



६) अन्डो के अंदर का पीला भाग लगभग ७० % कोलेस्ट्रोल है जो की ह्रदय रोग (heart attack) का मुख्य 

कारण है

7) पक्षियों की माहवारी (अन्डो) को खाना धर्म और शास्त्रों के विरुद्ध , अप्राकृतिक , और अपवित्र और 

चंडाल कर्म है

इसकी जगह पर आप दूध पीजिए जो के पोषक , पवित्र और शास्त्र सम्मत भी है

नरेश आर्य (Notes)


प्रस्तुति:- नीरज कौशिक

Saturday, 8 June 2013

।। गौसेवा से बदला भाग्य ।।

।। गौसेवा से बदला भाग्य ।।

गीताप्रेस गोरखपुर की 'कल्याण पत्रिका में छपी यह एक किसान के जीवन की सत्य घटना है। उसने लिखा है – 
मेरे पूर्वज गाँव में सदा सम्पन्न रहे। मेरे पिता जी का जीवन भी उन्नत रहा। उनकी ईश्वर उपासना और गौ सेवा में विशेष रूचि थी। इससे घर में खूब सम्पन्नता थी। पिता जी के बाद गृहस्थी की सारी जिम्मेदारी मुझ पर आ गयी किंतु मैं न तो गायों की देखभाल करता और न ही ईश्वर के लिए समय निकालता। खेती से अन्न कम होने लगा और अधिकांश जमीन परती पड़ गयी। पैसे आने बंद हो गये। देखते देखते सारा काम चौपट हो गया। भाग्य ने जैसे मेरा साथ ही छोड़ दिया था। मैं जिस कार्य में हाथ डालता, उसमें असफल होता। मेरे दोनों भाई भी अपना अपना हिस्सा लेकर अलग हो गये। मेरे ऊपर काफी कर्ज हो गया। लोग मुझे निरूद्यमी और आलसी कहने लगे। मेरे लिए दर-दर की ठोकरें खाने की नौबत आ गयी।
एक रात मैंने सपने में देखा कि गाय बैल मुझे मारने दौड़ रहे हैं और मनुष्य की भाषा में कह रहे हैं कि "अभी तुझे हमारी और भी आह झेलनी पड़ेगी। तूने अपने खाने पीने के सिवा कभी हमारी भी खबर ली है कि हम भूखे हैं या प्यासे ? गौशाला में कभी आकर देखा है कि वह साफ है या हम गोबर मूत्र में पड़े हैं ? इसी पाप का फल तू भोग रहा है। अब भी चेत जा और अपना मार्ग बदल दे नहीं तो अंततः तेरा सर्वनाश हो जायेगा।"
मैं चौंककर जाग उठा। देखा, यह तो स्वप्न था। रात्रि बीतने वाली थी पर उसके पहले मेरे जीवन की रात्रि बीत गयी। मैं उसी समय लालटेन लेकर गौशाला में गया। वहाँ देखा, सभी गाय-बैल भूखे-प्यासे खूँटे से बँधे हैं। उनके आगे घास भूसे का एक तिनका भी नहीं था। कूड़े का ढेर लगा था। मैं मन ही मन पश्चाताप करने लगा। मैंने उसी क्षण गौशाला को साफ करना शुरू किया और दिन के दस बजे तक लगा रहा। उस दिन से मैं गौशाला पर ध्यान रखने लगा। सुबह शाम गौदुग्ध अपने हाथ से दुहना और चारा घास एवं स्वच्छ जल अपने सामने डलवाना मेरा मुख्य कर्तव्य हो गया। कूड़ा करकट अलग गड्ढे में डालता और उसकी अच्छी खाद बनती। गाय बैल सुखपूर्वक रहने लगे और स्वस्थ व हृष्ट-पुष्ट हो गये। घी-दूध पर्याप्त मिलने लगा। मेरी कृषि चमक उठी और अनाज पाँच-छः गुना उत्पन्न होने लगा। ऋण भी अधिकांश चुका दिया। मेरी स्थिति में काफी परिवर्तन हो गया। मुझे निरूद्यमी, आलसी और अभागा कहने वाले लोग अब प्रशंसा करने लगे।
यह घटना बिल्कुल सच्ची है। रईसी के चक्कर में मैं अपनी सम्पत्ति का नाश कर चुका था, किंतु ईश्वर की कृपा, गौमाता की सेवा और उनके आशीर्वाद से मेरी दशा अत्यन्त सुंदर हो गयी। यदि कोई कृषक भाई मेरी तरह दरिद्रता के शिकार हो गये हों तो उन्हें मेरे पथ का अनुसरण करना चाहिए। मैं डंके की चोट पर कहता हूँ कि भगवान पर विश्वास और गौमाता की सेवा से बुरी से बुरी हालत बदलकर अच्छी हो जायेगी।

गाश्च शुश्रूषते यश्च समन्वेति च सर्वशः।
तस्मै तुष्टाः प्रयच्छन्ति वरानपि सुदुर्लभनाम्।।
जो पुरुष गौओं की सेवा करता है और सब प्रकार से उनका अनुगमन करता है, उस पर संतुष्ट होकर गौएँ उसे अत्यंत दुर्लभ वर प्रदान करती हैं।

महाभारत में भी आता हैः गावः कामदुहो देव्यो।
गौएँ समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली देवियाँ हैं।
महाभारत, अनु. पर्व-दानधर्म पर्वः 51.33

स्रोतः लोक कल्याण सेतु, सितम्बर 2010, पृष्ठ संख्या 13,16 अंक 159

अंग्रेज़ो के जाने बाद भी संसद मे गौ ह्त्या का बिल पास क्यूँ नहीं हुआ ????

अंग्रेज़ो के जाने बाद भी संसद मे गौ ह्त्या का बिल पास क्यूँ नहीं हुआ ????
किस किस ने टांग आड़ाई ????
जरूर पढ़े !
भारत मे गाय काटने का इतिहास !
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इस देश में मुगल सीधा गाय का कत्ल करते थे ! और कई बार हमारे राजा मुगलो का इसी बात पर वध करते थे ! जैसे शिवाजी ने गौ माता को बचाने के लिए एक मुगल राजा की बाजू काट दी थी !!
लेकिन उन्होने कोई कत्लखाना नहीं खोला !!

जो मित्र पूरी post नहीं पढ़ सकते तो यहाँ click करे !
http://www.youtube.com/watch?v=gPG4wgFdpw0

पर जब अंग्रेज़ आए ये बहुत चालक थे ! किसी भी गलत काम को करने से पहले उसको कानून बना देते थे फिर करते थे और कहते थे हम तो कानून का पालन कर रहे हैं !!

भारत मे पहला गौ का कत्लखाना 1707 ईस्वी ने रॉबर्ट क्लाएव ने खोला था और उसमे रोज की 32 से 35 हजार गाय काटी जाती थी ! तो कत्लखाने के size का अंदाजा लगा सकते हैं ! और तब हाथ से गाय काटी जाती थे ! तो सोच सकते हैं कितने कसाई उन्होने रखे होंगे !
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आजादी के 5 साल बाद 1952 मे पहली बार संसद मे ये बात उठी कि गौ रक्षा होनी चाहिए ! गाय के सभी कत्लखाने जो भारत मे अंग्रेज़ो ने शुरू किए थे बंद होने चाहिए ! और यही गांधी जी कि आत्मा को यही श्र्द्धांजलि होगी ! क्यूकि ये उनके आजाद भारत के सपनों मे से पहले नंबर पर था !

तो गांधी के परम शिष्य नेहरू खड़ा हुआ और बोला चलो ठीक है अगर गौ रक्षा का कानून बनना चाहिए तो इस पर संसद मे प्रस्ताव आना चाहिए ! तो संसद मे एक सांसद हुआ करते थे महावीर त्यागी वो आर्य समाजी थे और सोनीपत से अकेले चुनाव लड़ा करते थे !सबसे पहला चुनाव 1952 मे हुआ और वो बहुत भयंकर वोटो से जीत कर आए थे !

तो महावीर त्यागी ने कहा ठीक मैं अपने नाम से प्रस्ताव लाता हूँ ! तो प्रस्ताव आया उस पर बहस हुई ! बहस के बाद तय किया कि वोट किया जाय इस पर ! तो वोट करने का दिन आया ! तब पंडित नेहरू ने एक ब्यान दिया !जो लोकसभा के रेकॉर्ड मे है आप चाहे तो पढ़ सकते हैं ! नेहरू ने कहा अगर ये प्रस्ताव पारित हुआ तो मैं शाम को इस्तीफा दे दूंगा !

मतलब ??

गौ रक्षा अगर हो गई इस देश मे! तो मैं प्रधानमंत्री नहीं रहूँगा ! प्रणाम क्या हुआ जो कांग्रेसी नेता संसद मे गौ रक्षा के लिए वोट डालने को तैयार हुए थे नेहरू का ये वाक्य सुनते ही सब पलट गए ! तो उस जमाने मे क्या होता था कि नेहरू जी अगर पद छोड़ दे तो क्या होगा ?? क्यूंकि वल्ब भाई पटेल का स्वर्गवास हो चुका था !

तो कांग्रेसी नेताओ मे चिंता रहती थी कि अगर नेहरू जी भी चलेगे फिर पार्टी का क्या होगा और पता नही अगली बार जीतेंगे या नहीं जीतेंगे ! और उस समय ऐसी बात चलती थी nehru is india india is नेहरू !(और ये कोंग्रेसीओ कि आदत है indra is india india is indra )
तो बाकी कोंग्रेसी पलट गए और संसद मे हगामा कर दिया और गौ रक्षा के कानून पर वोट नहीं हुआ !
और अगले दिन महावीर त्यागी को सब ने मजबूर कर दिया और उनको प्रस्ताव वापिस लेना पड़ा !


महावीर त्यागी ने प्रस्ताव वापिस लेते समय भाषण किया और बहुत ही जबर्दस्त भाषण किया ! उन्होने कहा पंडित नेहरू मैं तुमको याद दिलाता हूँ !कि आप गांधी जी के परम शिष्य है और गांधी जी ने कहा था भारत आजाद होने के बाद जब पहली सरकार बनेगी तो पहला कानून गौ रक्षा का बनेगा ! अब आप ही इस से हट रहे है तो हम कैसे माने कि आप गांधी जी के परम शिष्य है ???

और उन्होने कहा मैं आपको आपके पुराने भाषणो कि याद दिलाता हूँ ! जो आपने कई बार अलग अलग जगह पर दिये है ! और सबमे एक ही बात काही है कि मुझे कत्लखानों से घिन्न आते इन सबको तो एक मिनट मे बंद करना चाहिए ! मेरी आत्मा घबराती है ये आपने कितनी बार कहा लेकिन जब कानून बनाने का समय आया तब आप ही अपनी बात से पलट रहे है ?!

नेहरू ने इन सब बातों को कोई जवाब नहीं दिया ! और चुप बैठा रहा !और बात आई गई हो गई ! फिर एक दिन 1956 मे नेहरू ने सभी मुख्य मंत्रियो को एक चिठी लिखी वो भी संसद के रेकॉर्ड मे है ! अब नेहरू का कौन सा स्वरूप सही था और कौन सा गलत ! ये तय करने का समय आ गया हैं !

जब वे गांधी जी के साथ मंचपर होते थे तब भाषण करते थे कि क्त्ल्खनों के आगे से गुजरता हूँ तो घिन्न आती है आत्मा चीखती है ! ये सभी क्त्ल्खने जल्द बंद होने चाहिए !और जब वे प्र्धानमतरी बनते है तो मुख्य मंत्रियो को चिठी लिखते हैं ! कि गाय का कत्ल बंद मत करो क्यूंकी इससे विदेशी मुद्रा मिलती है !


उस पत्र का अंतिम वाक्य बहुत खतरनाक था उसमे नेहरू लिख रहा है मान लो हमने गाय ह्त्याबंद करवा दी ! और गौ रक्षा होने लगी तो सारी दुनिया हम पर हसे गई कि हम भारत को 18 व शताब्दी मे ले जा रहे हैं ! !

अर्थात नेहरू को ये लगता था कि गाय का कत्ल होने से देश 21 वी शताब्दी मे जा रहा है ! और गौ रक्षा होने से 18 वी शताब्दी कि और जाएगा ! राजीव भाई का हरद्य इस पत्र को पढ़ कर बहुत दुखी हुआ !राजीव भाई के एक बहुत अच्छे मित्र थे उनका नाम था रवि राय लोकसभा के अधक्षय रह चुके थे !उनकी मदद से ये पत्र मिला ! संसद कि लाएब्रेरी मे से ! और उसकी फोटो कॉपी रख ली !!

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तो राजीव भाई ने ये जानने कि कोशिश की आखिर नेहरू जी के जीवन की ऐसे कौन से बात थी जो वो गौ ह्त्या को चालू रखना चाहते थे ! क्यूंकि पत्र मे नेहरू लिखता है कि विदेशी मुद्रा मिलती है तो क्या विदेशी मुद्रा ही एक प्र्शन था या इससे भी कुछ आगे था !

राजीव भाई कहते है कि मेरा ये व्यक्तिगत मानना है ये गलत भी हो सकता है ! वो कहते है कि इंसान अपनी public life (सार्वजनिक जीवन) मे जो करता है ! उसकी जड़े उसकी जड़े उसकी private life मे जरूर होती है ! वो भारत का प्र्धानमतरी हो,राष्ट्रपति हो देश के किसी सेवधानिक पद आर बैठा हुआ हो या कोई आम इंसान हो ! या कोई किसान कोई भी व्यक्ति हो अपनी public life (सार्वजनिक जीवन) मे जो करते है ! उसकी जड़े उसकी जड़े उसकी private life मे जरूर होती है !

मतलब नेहरू कि private life मे क्या था जो वो गाय कि ह्त्या के लिए इतने परेशान थे ! और इसके लिए राजीव भाई ने बहुत प्र्यास किया और नेहरू की नीजी जीवन के private life के बहुत दस्तावेज़ इकठे किए !! कम से कम 500 से ज्यादा उनके पास थे ! तो पता चला नेहरू खुद गाय का मांस खाता था ! राजीव भाई कहते है इससे पहले मुझे इतना तो मालूम था कि नेहरू जी शराब पीते हैं ! और सिगरेट भी पीते है और chain smoker है दिन मे 60 से 70 सिगरेट पी जाते हैं !और भी बहुत कुछ मालूम था उनके चरित्र के बारे मे ! पर ये पहली बार पता चला कि वो गाय का मांस भी खाते हैं !

और उनके लिए गाय मांस के भोजन को बनाकर तेयार करके उनको lunch के रूप मे भेजने का काम दिल्ली का वही होटल करता था जहां अमेरिका का प्रधानमंत्री जार्ज बुश अंतिम बार 2006 मे आया था और वहाँ रुका था ! और नेहरू का एक दिन का खर्चा उस जमाने मे 13 हजार रुपए होता था जिस पर भारत के एक समाजवादी नेता ने बड़ी कडक टिपणी की थी राम मनोहर लोहिया ने !

उन्होने संसद मे एक दिन बहुत जोड़दार भाषण दिया था !कि नेहरू तुम्हारा एक समय के भोजन का खर्च 13 हजार रुपए है और भारत के 14 करोड़ लोगो को खाने के लिए 2 समय की रोटी नहीं है !तुमको शर्म नहीं आती उस समय के जमाने मे लोहिया जी एक व्यक्ति थे जो नेहरू जी को इस तरह से बोल पाते थे बाकी सब नेहरू के आगे पीछे ही घूमते थे !

जब ये दस्तावेज़ मिल गए तो ये बात समझ आती है कि नेहरू के मन मे गाय के लिए प्रेम सिर्फ एक दिखावा था गांधी जी को खुश करने के लिए था और भारत का प्रधानमंत्री बनने के लिए था एक बार प्र्धानमतरी बन अब तो कोई कष्ट नहीं है को रोकने वाला नहीं तो टोकने वाला नहीं और सरदार पटेल कि मृतयु के बाद तो कोई नहीं !

और राजीव भाई कहते है ये जो जितनी बाते मैंने आपको नेहरू के बारे मे कही है सब कि सब लोकसभा के रिकॉर्ड मे है और कभी इतिहास लिखा जाये तो ये सब का सब सामने आए जाये ! और पूरे देश को नेहरू का काला चिठा पता चल जाये !!



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अब आगे कि बात करे नेहरू के बाद से आजतक गाय ह्त्या रोकने का बिल पास क्यूँ नहीं हुआ !???

दस्तावेज़ बताते हैं इसके बाद के दो ऐसे प्रधानमंत्री हुए जिनहोने पूरी ईमानदारी से गौ ह्त्या रोकने का कानून लाने की कोशिश की ! उनमे से एक का नाम था श्री लाल बहादुर शास्त्री और दूसरे श्री मुरार जी देसाई !!

श्री मुरार जी भाई ये कानून पास करवा पाते कि उनकी सरकार गिर गई ! या दूसरे शब्दो मे कहे सरकार गिरा दी गई ! क्योंकि वही एक मात्र ऐसे प्रधान मंत्री थे ! जिनहोने बहुत हिम्मत वाला काम किया था अमेरिका कि कंपनी coca cola को 3 दिन का नोटिस दिया और भारत से भागा दिया ! और ऐसा नोटिस केवल coco cola को नहीं बल्कि एक और बड़ी विदेशी कंपनी hul(hindustaan uniliver ) को भी दिया और ऐसे करते करते काफी विदेशी कंपनियो को नोटिस जारी किया कि जल्दी से जल्दी तुम भारत छोड़ दो !

इसके इलवा उन्होने एक और बढ़िया काम किया था गुजरात मे शराब पर प्रतिबंध लगा दिया ! और वो आजतक है वो बात अलग है कि black मे कहीं शराब मिल जाती है पर कानूनी रूप से प्रतिबंध है ! और उनहोने कहा था ऐसा मैं पूरा भारत मे करूंगा और जल्दी से गौ रक्षा का कानून भी लाऊँगा और गौ ह्त्या करने वाले को कम से कम फांसी कि सजा होगी !

तो देश मे शराब बेचने वाले,गौ ह्त्या करने वाले और विदेशी कंपनिया वाले ! ये तीनों l lobby सरकार के खिलाफ थी इन तीनों ने मिल कर कोई शयद्त्र रचा होगा जिससे मुरार जी भाई की सरकार गिर गई !!

लालबहादुर शास्त्री जी ने भी एक बार गौ ह्त्या का कानून बनाना चाहा पर वो ताशबंद गए ! और फिर कभी जीवित वापिस नहीं लोटे !!

और अंत 2003 मे श्री अटल बिहारी वाजपायी की NDA सरकार ने गौ ह्त्या पर सुबह संसद मे बिल पेश किया और शाम को वापिस ले लिया !!

क्यू ??

अटल जी की सरकार को उस समय दो पार्टिया समर्थन कर रही थी एक थी तेलगु देशम और दूसरी त्रिमूल कॉंग्रेस ! दोनों ने लोकसभा मे कहा अगर गौ ह्त्या पर कानून पास हुआ तो समर्थन वापिस !!
बाहर मीडिया वालों ने ममता बेनर्जी से पूछा की आप गौ ह्त्या क्यूँ नहीं बंद होने देना चाहती ???

ममता बेनर्जी ने कहा गाय का मांस खाना मे मौलिक अधिकार है
कोई कैसे रोक सकता है ??
तो किसी ने कहा आप तो ब्राह्मण है तो ममता ने कहा बेशक हूँ !!

तो अंत वाजपाई जी को अपनी सरकार बचाना गौ ह्त्या रोकने से ज्यादा बड़ा लगा ! और उन्होने बिल वापिस ले लिया !

इसके बाद राजीव भाई ने अटल जी को एक चिठी लिखी ! और कहा अटल जी काश आपने गौ ह्त्या रोकने के मुद्दे पर अपनी सरकार गिरा ली होती ! तो मैं गारंटी के साथ कहता हूँ अगली बार आप पूर्ण बहुमत से जीतकर आते !! क्यूँ कि गौ ह्त्या को रोकने का मामला इस देश 80 करोड़ लोगो के दिल से जुड़ा है ! और वो आपको दुबारा जीतवाते ! अगर गौ ह्त्या रोकने के लिए आपने सरकार गिरा ली होती !!
तो खैर अटल जी शायद उस वक्त इतने दूरदर्शी नहीं थे !!

फिर 2003 के बाद कॉंग्रेस आ गई ! इससे तो वैसे कोई अपेक्षा नहीं कि जा सकती ! गाय ह्त्या रोकना तो दूर लूटेरे मनमोहन ने भारत को दुनिया मे गाय का मांस निर्यात करने वाले देशो कि सूची मे तीसरे नंबर पर ला दिया है !!

अब आपको तय करना है की हम सब गौ ह्त्या रोकने का बिल संसद मे कैसे पास करवाएँगे !!


आपने पूरी post पढ़ी बहुत बहुत धन्यवाद
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चरागाहों का नाश कर दिया

इंग्लैंड हरेक पशु के लिए औसतन 3.5 एकड़ जमीन चरने के लिए अलग रखता है। जर्मनी 8 एकड़, जापान 6.7 एकड़ और अमेरिका हर पशु के लिए औसतन 12 एकड़ जमीन चरनी के लिए अलग रखता है। इसकी तुलना में भारत में एक पशु के लिए चराऊ जमीन 1920 में 0.78 एकड़ अर्थातअंदाजन पौने एकड़ थी। (Agricultural Statistics of India, 1920/21, Vol.1, Table 1, 2 – 5)
अब यह संख्या घटकर प्रति पशु 0.09 एकड़ हो गई है। अर्थात अमेरिका में 12 एकड़ पर 1 पशु चरता है, जबकि अपने यहां एक एकड़ पर 11 पशु चरते हैं (India 1947, Page 172-187)। सिर्फ एक ही साल में अपने यहां साढे सात लाख एकड़ जमीन पर के चरागाहों का नाश कर दिया गया। 1968 में चराऊ जमीने 3 करोड़ 32 लाख 50 हजार एकड़ जमीन पर थी, जो 1969 में घटकर 3 करोड़ 25 लाख एकड़ हो गई। (India 1947, page 172) और पांच सालों में अर्थात 1974 में वे और अढ़ाई लाख एकड़ कम होकर 3 करोड़ 22 लाख 50 हजार एकड़ हो गई। इस तरह सिर्फ छह सालों में 10 लाख एकड़ चराऊ जमीनों का नाश किया गया। फिर भी किसानों का विकास करने की बढ़ाई हांकने वाले, गरीबों को रोजी दिलाने का वादा करने वाले, विशेषकर किसानों, पशुपालकों व गांव के कारीगरों के वोट से चुनाव जीतने वाले किसी भी विधानसभा या लोकसभा के सदस्य ने उसका न तो विरोध किया है, न ही उसके प्रति चिन्ता व्यक्त की है।

गोबर

गोबर का पर्यावरण की रक्षा में महत्वपूर्ण भाग है ।
गोबर के जलन से वातावरण का तापमान संतुलित होता है और वायु के कीटाणुओं का नाश ।
गोबर में विष, विकिरण और उष्मा के प्रतिरोध की क्षमता होती है । जब हम दीवारों पर गोबर पोतते हैं और फर्श को गोबर से साफ करते हैं तो रहनेवालों की रक्षा होती है । १९८४ में भोपाल में गैस लीक से २०,००० से अधिक लोग मरे । गोबर पुती दीवारों वाले घरों में रहने वालों पर असर नहीं हुआ । रूस और भारत के आणविक शक्ति केंद्रों में विकीरण के बचाव हेतु आज भी गोबर प्रयुक्त होता है ।
गोबर से अफ्रीकी मरूभूमि को उपजाऊ बनाया गया ।
गोबर के प्रयोग द्वारा हम पानी में तेजाब की मात्रा घटा सकते हैं ।
जब हम संस्कार कर्मों में घी का प्रयोग करते है तो ओजोन की परत मजबूत होती है और पृथ्वी हानिकारक सौर विकिरण से बचती है ।
बढ़ते हुए कल्लगाहों और भूकंपों के बीच का संबंध प्रमाणित होता जा रहा है ।

पंचगव्य से स्वास्थ्य लाभ :



दूध : चरक संहिता के अनुसार दूध सर्वश्रेष्ठ जीवन शक्तिदाता है । दूध में पाये जाने वाला केसिन प्रोटीन शिशुओं की वृद्धि में सहायता करता है, चूना (कैल्शियम) और गंधक (सल्फर) हमारी अस्थियों को मजबूत बनाते हैं । दूध विटमिन-डी और बी-कांपलेक्स से भरपूर होता है ।
दही : पेचिश रोकता है, मोटापे का नियंत्रण करता है और कैंसर प्रतिरोधक है ।
घी : बुद्धि और सौंदर्य को बढ़ाता है । नेत्र रोगों में उपयोगी होता है ।
गोमूत्र अर्क : फ्लू, गठिया (अर्थराइटिस), जीवाणु जनित रोगों, विषाक्त भोजन के दुष्प्रभावों, अपच, एडीमा और कोढ़ के उपचार में लाभदायक है ।
पंचगव्य मिश्रण : पंचगव्य घृत, अमृतसार, घनवटी, क्षारवटी, नेत्रसार आदि औषधियाँ आयुर्वेद में बहुमूल्य मानी जाती है

तुलसी



तुलसी न सिर्फ समाज में पूजनीय है, बल्कि इसमें कई औषधीय गुण भी हैं। इसका स्‍वाद भले ही कुछ लोगों को पसंद न आए, लेकिन सेहत के लिए यह बहुत फायदेमंद है। खासतौर पर दिल के लिए इसे अत्‍यंत उपयोगी माना जाता है। तुलसी पित्तनाशक, वातनाशक, कुष्ठरोग निवारक, पसली में दर्द, खून में विकार, कफ और फोड़े-फुन्सियों के उपचार में रामबाण की तरह फायदा करती है।


कड़वी और तीखी तुलसी सांस, कफ और हिचकी को तुरन्त मिटा देती है। उल्‍टी होने, दुर्गन्ध, कुष्ठ, विषनाशक तथा मानसिक पीड़ा को मिटाने में बड़ी कारगर सिद्ध होती है। तुलसी की महत्ता के साक्ष्‍य बारे में कई ऐतिहासिक पुस्‍तकों में वर्णन मिलता है। इसका प्रयोग वैद्यों द्वारा बहुत पहले से होता आया है। मंदिरों में पूजा-अर्चना के पश्चात् गंगाजल में तुलसी के पत्तों को डालकर प्रसाद वितरण किया जाता है। इन सब प्रयोगों के पीछे एक ही संकेत है कि लोग तुलसी का प्रयोग अपनी दैनिक जीवनचर्या में निरन्तर करें तो कई बीमारियों से फायदा होगा।

जहां पर तुलसी के पौधे का आरोपण होगा वहां की वायु भी शुद्ध होगी और विषैले कीटाणु भी प्रभावहीन हो जाते है। यूनानी चिकित्सकों के मतानुसार तुलसी के सेवन से रोगाणु नष्ट होने लगते है। यह एक प्रकार की हृदय में शक्ति भर देने की महाऔषधि है। वायु को परिशोधित करने की शक्ति रखती है। उनकी दृष्टि में इस पौधे में अनेकों तरह के औषधीय गुण विद्यमान रहते है। एलोपैथी चिकित्सा प्रणाली में तो इसे सद्गुण सम्पन्न बताया गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि तुलसी में मलेरिया रोग को भगाने की शक्ति विद्यमान है। सर्दी, खांसी, निमोनिया को नष्ट कर देती है।

स्वास्थ्य-संवर्धन की दृष्टि से तुलसी की गंध को अत्यधिक उपयोगी माना जाता है। इसकी पीली पत्तियों में हरे रंग के एक तैलीय पदार्थ की सत्ता समाहित है। हवा में इस औषधि के मिलने से कई कीटाणु समाप्‍त होते हैं। रात्रि को सोते समय यदि तुलसी को कपूर को हाथ-पैरों पर मालिश कर लिया जाए तो मच्छर पास नहीं आयेंगे।


पानी में तुलसी डालकर प्रयोग करने से कई बीमारियां समाप्‍त होती हैं। तुलसी की पत्तियों को मिलकार जल नित्य प्रति सेवन करने से मुखमण्डल का तेज निखर कर आता है। तुलसी का प्रयोग करने से स्मरणशक्ति बढ़ती है। तुलसी में एक विशेष प्रकार का एसिड पाया जाता है जो दुर्गन्ध को भगाता है। भोजन के पश्चात तुलसी की दो-चार पत्तिया चबा लेने से मुंह से दुर्गंध नही आती है।

दमा अथवा तपैदिक के रोगी को तुलसी की लकड़ी अपने पास सदैव रखनी चाहिए। तुलसी की माला पहनने संक्रामक रोगों के फैलने का खतरा कम होता है। तुलसी विश्व प्रसिद्ध औषधि है और उच्चतम कोटि का रसायन है। तुलसी के प्रयोग से शरीर के सफेद दाग मिटते और सुन्दरता बढ़ती है। क्योंकि इसमें रक्त शोधन क्षमता विद्यमान है। नींबू के रस में तुलसी की पत्तियों का रस मिलाकर चेहरे पर लगाया जाये तो चर्मरोग मिटता है और चेहरा खिलता है। तुलसी की पत्तियों को सुखाकर उसमें दालचीनी, तेजपत्र, सौंफ, बड़ी इलायची, अगियाघास, बनफशा, लाल चंदन और ब्राह्मी को मिलायें और कूट डालें। उसपाउडर को किसी कांच के बर्तन में रख लें। चाय के स्थान पर इसका प्रयोग करने से चाय की हानियों से भी बचेंगे और स्वस्थ भी रहेंगे।

मिट्टी का कुकर


हम लोग खाना इसलिए खाते हे
ताकि हमारे शरीर को जरुरी प्रमाण में
पोषक तत्त्व मिले।
अगर आप लोग एलुमिनियम के प्रेसर कूकर
में खाना बनाते हो तो
87% पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते है,सिर्फ
13% ही बचते है।
अगर पीतल के बरतन में बनाये तो 7%
पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते है, 93% बचते
है।
"अगर कासे के बरतन में बनाये तो 3%
पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते है, 97% बचते
है।"
अगर आप मिटटी के बरतन में खाना बनाये
तो 100% पोषक तत्त्व बचते है।
और अगर आपने एक बार मिटटी के बरतन
का खाना खा लिया तो उसका जो स्वाद
है वो आप जिन्दगी भर नहीं भुलेंगे।

गौवंश वध प्रतिषेध अधिनियम का कड़ाई से पालन कर

गौवंश वध प्रतिषेध अधिनियम का कड़ाई से पालन कर

नियमों के अनुसार हो पशुओं का परिवहन

katni
म.प्र. में गौवंश वध प्रतिषेध अधिनियम 2004 के अंतर्गत गौवंश के वध पर पूर्णत: प्रतिबंध है। इसके बाद भी जिले में हत्या के उद्देश्य से अवैध रूप से गौवंश के परिवहन की घटनायें लगातार हो रही है। जिसके कारण जिले में कानून व्यवस्था की स्थिति निर्मित होती है और जनता में आक्रोश भी बढ़ता है। 

 कोई भी व्यक्ति जिसमें परिवाहक भी शमिल है, जो एक राज्य से अन्य राज्य को म.प्र. होते हुए गौवंश का किसी भी माध्यम से परिवहन करना चाहता है, निर्धारित प्रारूप में प्रत्येक पशु के लिए अलग-अलग स्वास्थ्य प्रमाण पत्र पशु चिकित्सक से प्राप्त कर निर्धारित प्रारूप में परिवहन अनुज्ञा के लिए 100 रु. प्रति फेरा के शुल्क के साथ अनुविभागीय अधिकारी राजस्व को आवेदन प्रस्तुत करेगा।

म.प्र. में गौवंश वध प्रतिषेध अधिनियम में अनुविभागीय अधिकारी राजस्व को गौवंश परिवहन के लिए अनुज्ञा पत्र जारी करने के लिए सक्षम अधिकारी नियुक्त किया गया है। गौवंश परिवहन के लिए दिये गये आवेदन के ब्यौरे के सत्यापन के लिए अनुविभागीय अधिकारी राजस्व द्वारा जांच के उपरांत समाधान होने पर आवेदन प्राप्ति की तिथि से दो सप्ताह के भीतर गौवंश परिवहन का अनुज्ञा पत्र जारी करेंगें या आवेदन को नामंजूर करने के कारणों को दर्शाते हुए आदेश पारित कर स्वयं के हस्तलेखन में शासकीय रजिस्टर में संबंधित जानकारी प्रविष्ट करेंगें। 

अनुविभागीय अधिकारी राजस्व द्वारा जारी अनुज्ञा पत्र के पीछे पशुओं के प्रति क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के अंतर्गत पशु परिवहन नियम 1978 एवं पशुओं का पैदल परिवहन नियम 2001 एवं अन्य संबंधित नियमों के उपबंधों का उल्लेख किया जायेगा और पशु परिवहन की अनुज्ञा धारक को उसका पालन करना होगा।

अनुविभागीय अधिकारी राजस्व अपने क्षेत्राधिकार अंतर्गत आने वाले पशु बाजारों पर पशु चिकित्सक, राजस्व अमले एवं संबंधित नगरपालिका/ग्राम पंचायत के अमले के माध्यम से नियंत्रण करेंगें। अनुविभागीय अधिकारी राजस्व अपने क्षेत्र के प्रत्येक पशु बाजार के लिए नामजद पशु चिकित्सा सहायक शल्यज्ञ/पशु चिकित्सा विस्तार अधिकारी की डयूटी लगायेंगें। ऐसे पशु चिकित्सा शल्यज्ञ बाजार के दिन बाजार स्थल पर निर्धारित स्थान पर बेठेंगें। पशु चिकित्सा शल्यज्ञ बाजार में क्रय-विक्रय की प्रक्रिया के दौरान या पश्चात परिवहन से पूर्व क्रय किये गये पशुओं का परीक्षण करेंगें एवं वे कृषि कार्य के लिए उपयोगी है या नहीं इसका प्रमाण पत्र निर्धारित प्रारूप में अपने हस्ताक्षर एवं सील सहित जारी करेंगें। 

पैदल मार्ग से परिवहन करते समय गौवंश का प्रत्येक झुंड 25 से अधिक का नहीं होगा। यदि परिवहन करने वाला कृषक है तो उसके पास ऋण पुस्तिका एवं पशु बाजार की विक्रय रसीद होना आवश्यक होगा तथा ऋण पुस्तिका में विक्रेता द्वारा संबंधित जानकारी प्रविष्ट की जायेगी। पशु परिवहन करने वाले को पशु चिकित्सक का स्वास्थ्य प्रमाण पत्र भी साथ में अनिवार्य रूप से रखना होगा। संबंध्द कृषक एक समय में 4 से अधिक गौवंश का परिवहन नहीं कर सकेगा। गौवंश का राज्य के भीतर परिवहन पशुओं का परिवहन नियम 1978 एवं पशुओं का पैदल परिवहन नियम 2011 के अंतर्गत किया जायेगा। जिसमें प्रत्येक पशु के लिए निर्धारित प्रारूप में पशु चिकित्सक का स्वास्थ्य प्रमाण पत्र पशु परिवहक के साथ होना अनिवार्य होगा। 

Friday, 7 June 2013

इस पृथ्वी पर गाय के समान कोई धन नहीं है ।

इस पृथ्वी पर गाय के समान कोई धन नहीं है

गौमाता सर्वदेवमयी है अथर्ववेद में रुद्रों की माता, वसुओं की दुहिता, आदित्यों की स्वसा और अमृत की नाभि-संज्ञा से विभूषित किया गया है

गौ सेवा से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों तत्वों की प्राप्ति सम्भव बताई गई है भारतीय शास्त्रों के अनुसार गौ में तैतीस कोटि देवताओं का वास है उसकी पीठ में ब्रह्मा, गले में विष्णु और मुख में रुद्र आदि देवताओं का निवास है इस प्रकार सम्पूर्ण देवी-देवताओं की आराधना केवल गौ माता की सेवा से ही हो जाती है गौ सेवा भगवत् प्राप्ति के अन्य साधनों में से एक है जहां भगवान मनुष्यों के इष्टदेव है, वही गौ को भगवान के इष्टदेवी माना है अत: गौ सेवा से लौकिक लाभ तो मिलतें ही हैं पारलौकिक लाभ की प्राप्ति भी हो जाती है

शास्त्रों में उल्लेख है कि गौ सेवा से मनुष्य को धन, संतान और दीर्घायु प्राप्त होती हैं

गाय जब संतुष्ट होती है तो वह समस्त पाप-तापों को दूर करती है दान में दिये जाने पर वह अक्षय स्वर्ग लोक को प्राप्त करती है अत: गोधन ही वास्तव में सच्चा धन है गौ सेवा से ही भगवान श्री कृष्ण को भगवता, महर्षि गौतम, कपिल, च्यवन सौभरि तथा आपस्तम्ब आदि को परम सिद्धि प्राप्त हुई

महाराजा दिलीप को रघु जैसे चक्रवर्ती पुत्र की प्राप्ति हुई गौसेवा से ही अहिंसा धर्म को सिद्ध कर भगवान महावीर एवं गौतम बुद्ध ने अहिंसा धर्म को विश्व में फैलाया जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर भगवान आदीनाथ को ऋषभ भी कहते हैं जिनका सूचक बैल ;ऋषभ द्ध है वेद-शास्त्र स्मृतियां, पुराण तथा इतिहास गौ की महिमा से ओत-प्रोत है और यहां तक की स्वयं वेद गाय को नमन करता है  


ऋग्वेद में कहा गया है कि जिस स्थान पर गाय सुखपूर्वक निवास करती है वहां की रजत पवित्र हो जाती है पुरातन काल से ही हमारी भारतीय संस्कृति में गाय श्रद्धा का पात्र रही है पुराण काल में एक ऐसी गाय की कल्पना की गई है जो हमारी सभी इच्छाओं  की पूर्ति करती है इसे कामधेनू कहते हैं यह स्वर्ग में रहती हैं और जन समाज के कल्याण के लिए मानव लोक में अवतार ले लेती है

भारतीय संस्कृति ही नही अपितु सारे विश्व में गौ का बड़ा सम्मान रहा है जैसे हम गौ की पूजा करते हैं उसी प्रकार पारसी समाज के लोग सांड़ की पूजा करते हैं सर्वविदित है कि मिश्र देश के प्राचीन सिक्कों पर बैल की मूर्ति अंकित रहती थी

गौभक्त मनुष्य जिस-जिस वस्तु की इच्छा करता है वह सब उसे प्राप्त होती है स्त्रियों में भी जो गोओं की भक्त है वे मनोवांछित कामनाएं प्राप्त कर लेती है ।पुत्रार्थी मनुष्य पुत्र पाता है और कन्यार्थी कन्या धन चाहने वाले को धन और धर्म चाहने वाले को धर्म प्राप्त होता है
दूध, घी, दही के अतिरिक्त गौ का मूत्र और गोबर भी इतने ही उपयोगी माने गये है
गवा मूत्रपूरीषस्य नोद्विजेत: कदाचन
धर्म, अर्थ ,काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों की सिद्धि गौ से ही सम्भव है

गौ रक्षा हिन्दु धर्म का एक प्रधान अंग माना गया है प्राय: प्रत्येक हिन्दु गौ को माता कहकर पुकारता है और माता समान ही उसका आदर करता है जिस प्रकार कोई भी पुत्र अपनी माता के प्रति किये गये अत्याचार को सहन नही करेगा उसी प्रकार एक सच्चा हिन्दु गौमाता के प्रति निर्दयता के व्यवहार को सहन नही करेगा

गौ मूत्र फिनायल बनाने की विधि (केमिकल रहित)

             *सामग्री* गौ मूत्र      *एक लीटर* नीम पत्र    *200 ग्राम सूखा* पाइन आयल इमल्सीफायर युक्त     *50 ग्राम* उबाला हुआ पा...