तुलसी न सिर्फ समाज में पूजनीय है, बल्कि इसमें कई औषधीय गुण भी हैं। इसका स्वाद भले ही कुछ लोगों को पसंद न आए, लेकिन सेहत के लिए यह बहुत फायदेमंद है। खासतौर पर दिल के लिए इसे अत्यंत उपयोगी माना जाता है। तुलसी पित्तनाशक, वातनाशक, कुष्ठरोग निवारक, पसली में दर्द, खून में विकार, कफ और फोड़े-फुन्सियों के उपचार में रामबाण की तरह फायदा करती है।
कड़वी और तीखी तुलसी सांस, कफ और हिचकी को तुरन्त मिटा देती है। उल्टी होने, दुर्गन्ध, कुष्ठ, विषनाशक तथा मानसिक पीड़ा को मिटाने में बड़ी कारगर सिद्ध होती है। तुलसी की महत्ता के साक्ष्य बारे में कई ऐतिहासिक पुस्तकों में वर्णन मिलता है। इसका प्रयोग वैद्यों द्वारा बहुत पहले से होता आया है। मंदिरों में पूजा-अर्चना के पश्चात् गंगाजल में तुलसी के पत्तों को डालकर प्रसाद वितरण किया जाता है। इन सब प्रयोगों के पीछे एक ही संकेत है कि लोग तुलसी का प्रयोग अपनी दैनिक जीवनचर्या में निरन्तर करें तो कई बीमारियों से फायदा होगा।
जहां पर तुलसी के पौधे का आरोपण होगा वहां की वायु भी शुद्ध होगी और विषैले कीटाणु भी प्रभावहीन हो जाते है। यूनानी चिकित्सकों के मतानुसार तुलसी के सेवन से रोगाणु नष्ट होने लगते है। यह एक प्रकार की हृदय में शक्ति भर देने की महाऔषधि है। वायु को परिशोधित करने की शक्ति रखती है। उनकी दृष्टि में इस पौधे में अनेकों तरह के औषधीय गुण विद्यमान रहते है। एलोपैथी चिकित्सा प्रणाली में तो इसे सद्गुण सम्पन्न बताया गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि तुलसी में मलेरिया रोग को भगाने की शक्ति विद्यमान है। सर्दी, खांसी, निमोनिया को नष्ट कर देती है।
स्वास्थ्य-संवर्धन की दृष्टि से तुलसी की गंध को अत्यधिक उपयोगी माना जाता है। इसकी पीली पत्तियों में हरे रंग के एक तैलीय पदार्थ की सत्ता समाहित है। हवा में इस औषधि के मिलने से कई कीटाणु समाप्त होते हैं। रात्रि को सोते समय यदि तुलसी को कपूर को हाथ-पैरों पर मालिश कर लिया जाए तो मच्छर पास नहीं आयेंगे।
पानी में तुलसी डालकर प्रयोग करने से कई बीमारियां समाप्त होती हैं। तुलसी की पत्तियों को मिलकार जल नित्य प्रति सेवन करने से मुखमण्डल का तेज निखर कर आता है। तुलसी का प्रयोग करने से स्मरणशक्ति बढ़ती है। तुलसी में एक विशेष प्रकार का एसिड पाया जाता है जो दुर्गन्ध को भगाता है। भोजन के पश्चात तुलसी की दो-चार पत्तिया चबा लेने से मुंह से दुर्गंध नही आती है।
दमा अथवा तपैदिक के रोगी को तुलसी की लकड़ी अपने पास सदैव रखनी चाहिए। तुलसी की माला पहनने संक्रामक रोगों के फैलने का खतरा कम होता है। तुलसी विश्व प्रसिद्ध औषधि है और उच्चतम कोटि का रसायन है। तुलसी के प्रयोग से शरीर के सफेद दाग मिटते और सुन्दरता बढ़ती है। क्योंकि इसमें रक्त शोधन क्षमता विद्यमान है। नींबू के रस में तुलसी की पत्तियों का रस मिलाकर चेहरे पर लगाया जाये तो चर्मरोग मिटता है और चेहरा खिलता है। तुलसी की पत्तियों को सुखाकर उसमें दालचीनी, तेजपत्र, सौंफ, बड़ी इलायची, अगियाघास, बनफशा, लाल चंदन और ब्राह्मी को मिलायें और कूट डालें। उसपाउडर को किसी कांच के बर्तन में रख लें। चाय के स्थान पर इसका प्रयोग करने से चाय की हानियों से भी बचेंगे और स्वस्थ भी रहेंगे।
कड़वी और तीखी तुलसी सांस, कफ और हिचकी को तुरन्त मिटा देती है। उल्टी होने, दुर्गन्ध, कुष्ठ, विषनाशक तथा मानसिक पीड़ा को मिटाने में बड़ी कारगर सिद्ध होती है। तुलसी की महत्ता के साक्ष्य बारे में कई ऐतिहासिक पुस्तकों में वर्णन मिलता है। इसका प्रयोग वैद्यों द्वारा बहुत पहले से होता आया है। मंदिरों में पूजा-अर्चना के पश्चात् गंगाजल में तुलसी के पत्तों को डालकर प्रसाद वितरण किया जाता है। इन सब प्रयोगों के पीछे एक ही संकेत है कि लोग तुलसी का प्रयोग अपनी दैनिक जीवनचर्या में निरन्तर करें तो कई बीमारियों से फायदा होगा।
जहां पर तुलसी के पौधे का आरोपण होगा वहां की वायु भी शुद्ध होगी और विषैले कीटाणु भी प्रभावहीन हो जाते है। यूनानी चिकित्सकों के मतानुसार तुलसी के सेवन से रोगाणु नष्ट होने लगते है। यह एक प्रकार की हृदय में शक्ति भर देने की महाऔषधि है। वायु को परिशोधित करने की शक्ति रखती है। उनकी दृष्टि में इस पौधे में अनेकों तरह के औषधीय गुण विद्यमान रहते है। एलोपैथी चिकित्सा प्रणाली में तो इसे सद्गुण सम्पन्न बताया गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि तुलसी में मलेरिया रोग को भगाने की शक्ति विद्यमान है। सर्दी, खांसी, निमोनिया को नष्ट कर देती है।
स्वास्थ्य-संवर्धन की दृष्टि से तुलसी की गंध को अत्यधिक उपयोगी माना जाता है। इसकी पीली पत्तियों में हरे रंग के एक तैलीय पदार्थ की सत्ता समाहित है। हवा में इस औषधि के मिलने से कई कीटाणु समाप्त होते हैं। रात्रि को सोते समय यदि तुलसी को कपूर को हाथ-पैरों पर मालिश कर लिया जाए तो मच्छर पास नहीं आयेंगे।
पानी में तुलसी डालकर प्रयोग करने से कई बीमारियां समाप्त होती हैं। तुलसी की पत्तियों को मिलकार जल नित्य प्रति सेवन करने से मुखमण्डल का तेज निखर कर आता है। तुलसी का प्रयोग करने से स्मरणशक्ति बढ़ती है। तुलसी में एक विशेष प्रकार का एसिड पाया जाता है जो दुर्गन्ध को भगाता है। भोजन के पश्चात तुलसी की दो-चार पत्तिया चबा लेने से मुंह से दुर्गंध नही आती है।
दमा अथवा तपैदिक के रोगी को तुलसी की लकड़ी अपने पास सदैव रखनी चाहिए। तुलसी की माला पहनने संक्रामक रोगों के फैलने का खतरा कम होता है। तुलसी विश्व प्रसिद्ध औषधि है और उच्चतम कोटि का रसायन है। तुलसी के प्रयोग से शरीर के सफेद दाग मिटते और सुन्दरता बढ़ती है। क्योंकि इसमें रक्त शोधन क्षमता विद्यमान है। नींबू के रस में तुलसी की पत्तियों का रस मिलाकर चेहरे पर लगाया जाये तो चर्मरोग मिटता है और चेहरा खिलता है। तुलसी की पत्तियों को सुखाकर उसमें दालचीनी, तेजपत्र, सौंफ, बड़ी इलायची, अगियाघास, बनफशा, लाल चंदन और ब्राह्मी को मिलायें और कूट डालें। उसपाउडर को किसी कांच के बर्तन में रख लें। चाय के स्थान पर इसका प्रयोग करने से चाय की हानियों से भी बचेंगे और स्वस्थ भी रहेंगे।
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