।। गौसेवा से बदला भाग्य ।।
गीताप्रेस गोरखपुर की 'कल्याण पत्रिका में छपी यह एक किसान के जीवन की सत्य घटना है। उसने लिखा है –
मेरे पूर्वज गाँव में सदा सम्पन्न रहे। मेरे पिता जी का जीवन भी उन्नत रहा। उनकी ईश्वर उपासना और गौ सेवा में विशेष रूचि थी। इससे घर में खूब सम्पन्नता थी। पिता जी के बाद गृहस्थी की सारी जिम्मेदारी मुझ पर आ गयी किंतु मैं न तो गायों की देखभाल करता और न ही ईश्वर के लिए समय निकालता। खेती से अन्न कम होने लगा और अधिकांश जमीन परती पड़ गयी। पैसे आने बंद हो गये। देखते देखते सारा काम चौपट हो गया। भाग्य ने जैसे मेरा साथ ही छोड़ दिया था। मैं जिस कार्य में हाथ डालता, उसमें असफल होता। मेरे दोनों भाई भी अपना अपना हिस्सा लेकर अलग हो गये। मेरे ऊपर काफी कर्ज हो गया। लोग मुझे निरूद्यमी और आलसी कहने लगे। मेरे लिए दर-दर की ठोकरें खाने की नौबत आ गयी।
एक रात मैंने सपने में देखा कि गाय बैल मुझे मारने दौड़ रहे हैं और मनुष्य की भाषा में कह रहे हैं कि "अभी तुझे हमारी और भी आह झेलनी पड़ेगी। तूने अपने खाने पीने के सिवा कभी हमारी भी खबर ली है कि हम भूखे हैं या प्यासे ? गौशाला में कभी आकर देखा है कि वह साफ है या हम गोबर मूत्र में पड़े हैं ? इसी पाप का फल तू भोग रहा है। अब भी चेत जा और अपना मार्ग बदल दे नहीं तो अंततः तेरा सर्वनाश हो जायेगा।"
मैं चौंककर जाग उठा। देखा, यह तो स्वप्न था। रात्रि बीतने वाली थी पर उसके पहले मेरे जीवन की रात्रि बीत गयी। मैं उसी समय लालटेन लेकर गौशाला में गया। वहाँ देखा, सभी गाय-बैल भूखे-प्यासे खूँटे से बँधे हैं। उनके आगे घास भूसे का एक तिनका भी नहीं था। कूड़े का ढेर लगा था। मैं मन ही मन पश्चाताप करने लगा। मैंने उसी क्षण गौशाला को साफ करना शुरू किया और दिन के दस बजे तक लगा रहा। उस दिन से मैं गौशाला पर ध्यान रखने लगा। सुबह शाम गौदुग्ध अपने हाथ से दुहना और चारा घास एवं स्वच्छ जल अपने सामने डलवाना मेरा मुख्य कर्तव्य हो गया। कूड़ा करकट अलग गड्ढे में डालता और उसकी अच्छी खाद बनती। गाय बैल सुखपूर्वक रहने लगे और स्वस्थ व हृष्ट-पुष्ट हो गये। घी-दूध पर्याप्त मिलने लगा। मेरी कृषि चमक उठी और अनाज पाँच-छः गुना उत्पन्न होने लगा। ऋण भी अधिकांश चुका दिया। मेरी स्थिति में काफी परिवर्तन हो गया। मुझे निरूद्यमी, आलसी और अभागा कहने वाले लोग अब प्रशंसा करने लगे।
यह घटना बिल्कुल सच्ची है। रईसी के चक्कर में मैं अपनी सम्पत्ति का नाश कर चुका था, किंतु ईश्वर की कृपा, गौमाता की सेवा और उनके आशीर्वाद से मेरी दशा अत्यन्त सुंदर हो गयी। यदि कोई कृषक भाई मेरी तरह दरिद्रता के शिकार हो गये हों तो उन्हें मेरे पथ का अनुसरण करना चाहिए। मैं डंके की चोट पर कहता हूँ कि भगवान पर विश्वास और गौमाता की सेवा से बुरी से बुरी हालत बदलकर अच्छी हो जायेगी।
गाश्च शुश्रूषते यश्च समन्वेति च सर्वशः।
तस्मै तुष्टाः प्रयच्छन्ति वरानपि सुदुर्लभनाम्।।
जो पुरुष गौओं की सेवा करता है और सब प्रकार से उनका अनुगमन करता है, उस पर संतुष्ट होकर गौएँ उसे अत्यंत दुर्लभ वर प्रदान करती हैं।
महाभारत में भी आता हैः गावः कामदुहो देव्यो।
गौएँ समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली देवियाँ हैं।
महाभारत, अनु. पर्व-दानधर्म पर्वः 51.33
स्रोतः लोक कल्याण सेतु, सितम्बर 2010, पृष्ठ संख्या 13,16 अंक 159
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