Sunday, 9 June 2013
गोमूत्र से चार्ज होगी बैटरी, जलेगा लालटेन
रायपुर। छत्तीसगढ़ के एक व्यक्ति ने बैटरी से
जलने वाले लालटेन का निर्माण किया है।
बैटरी को बिजली से चार्ज करने की जरूरत
भी नहीं पड़ती है। बैटरी में एसिड की जगह गोमूत्र
का इस्तेमाल होता है।बैटरी लो होने पर बिजली से
चार्ज करने के बजाय गोमूत्र बदलने से
ही लालटेन में लगी 12वोल्ट की बैटरी फुल चार्ज
हो जाएगी और लालटेन जलने लगेगा।
ग्रामीणों के लिए बेहद उपयोगीइस लालटेन और
बैटरी को ईजाद किया है कामधेनु पंचगव्य एवं
अनुसंधान संस्थान अंजोरा के निदेशक डॉ. पीएल
चौधरी ने। बैटरी की गुणवत्ता पर नेशनल
इंस्टीट्यूट ऑफ रायपुर ने भी अपनी मुहर
लगा दी है।
बताया जाता है कि इस बैटरी में500 ग्राम
गोमूत्र का उपयोग कर 400 घंटे तक तीन वॉट के
एलईडी (लेड) बल्ब से भरपूर रोशनी प्राप्त
की जा सकती है। बैटरी बनाने वाले चौधरी के इस
मॉडल को प्रदेश के मुख्यमंत्री के समक्ष
भी प्रदर्शित किया गया है। उन्होंने खुशी जाहिर
करते हुएइसे प्रदेश पंचगव्य संस्थान के लिए
बड़ी उपलब्धि बताया।
डॉ. चौधरी बताते हैं कि इस लालटेन में बैटरी के
भीतर डाले जाने वाली एसिड की जगह गोमूत्र
डाला गया। इसमें किसीभी प्रकार का कोई
केमिकल नहीं मिलाया गया है, न ही बैटरी में कोई
बदलाव किया गया है। इसकी सबसे
बड़ी खासियत यह है कि बैटरी सिर्फ देसी गाय
के गोमूत्र से ही चलेगी। इसे मोटरसाइकिल
की पुरानी बैटरी को विकसित कर तैयार
किया गया है। लालटेन में जब बल्ब
की रोशनी कम होने लगती है तो बैटरी में गोमूत्र
को बदलना होता है। यह चमत्कारी प्रयोग है
जो जनजातीय या अन्य इलाकों में
जहां बिजली की कमी होती है, उन क्षेत्रों में
काफी उपयोगी साबित होगा।
डॉ. चौधरी ने इस प्रयोग को पेटेंट कराकर
अनुसंधान को आगेजारी रखने की बात कही।
इसके लिए वह खुद अपने स्तर पर लगातार
अनुसंधान कर रहे हैं। एनआईटी-रायपुर के कुछ
युवा वैज्ञानिकों ने इस प्रयोग को पर्यावरण
मित्र और गैर पंरापरागत साफ-
सुथरी ऊर्जा कास्रोत बताते हुए इसे ग्रामीण
क्षेत्रों के लिए काफी उपयोगीबताया है।
डॉ.पीएल चौधरी ने बताया कि बैटरी चालित
लालटेन बिजली गुलहोने पर इमरजेंसी लाइट
की तरह कार्य करेगा। इस बैटरी से मोबाइल
को भी चार्ज किया जा सकता है। उन्होंने
कहा कि गोमूत्र से चलने वाली बैटरी के उपयोग
से बिजली की खपत कम होगी और गोमूत्र
का सदुपयोग होगा, जिससे किसानों को पशुपालन
के लिए प्रेरणा मिलेगी। यह कमाल केवल
देसी नस्ल की गाय के मूत्र ही संभव है।
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