Tuesday, 18 December 2018

*गिलोय अद्भुत औषधि*

*गिलोय अद्भुत औषधि*

चलो भारतीय औषधियों की ओर....
हमारे ऋषि मुनियों ने अनेक औषधियों पर अपने जीवन का बहुत समय जड़ीबूटियों की खोज और उसके अनुसन्धान पर लगाया है ।उनमें से एक बहुत अच्छी और मानव रोगप्रतिरोधक तंत्र को मजबूत करने वाली औषधि है| उसके गुणों का प्रचार करना और अनेक दु:खो को रोगों को दूर करने वाली *गिलोय* को आम जनमानस तक पहुंचाना है|


जब स्वाइन फ्लू का प्रकोप बढ़ता तो लोग आयुर्वेद की शरण में पंहुचते । इलाज के रूप में *गिलोय* का नाम खासा चर्चा में आया। *गिलोय या गुडुची, जिसका वैज्ञानिक नाम टीनोस्पोरा कोर्डीफोलिया है,* इसका का आयुर्वेद में एक महत्वपूर्ण स्थान है। इसके खास गुणों के कारण इसे अमृत के समान समझा जाता है और इसी कारण इसे अमृता भी कहा जाता है। प्राचीन काल से ही इन पत्तियों का उपयोग विभिन्न आयुर्वेदिक दवाइयों में एक खास तत्व के रुप में किया जाता है।

*गिलोय* की पत्तियों और तनों से सत्व निकालकर इस्तेमाल में लाया जाता है। गिलोय को आयुर्वेद में गर्म तासीर का माना जाता है। यह तैलीय होने के साथ साथ स्वाद में कडवा और हल्की झनझनाहट लाने वाला होता है।


*गिलोय* के गुणों की संख्या काफी बड़ी है। *इसमें सूजन कम करने,शुगर को नियंत्रित करने,गठिया रोग* से लड़ने के अलावा शरीर शोधन के भी गुण होते हैं। गिलोय के इस्तेमाल से *सांस संबंधी रोग जैसे दमा और खांसी में फायदा होता*है। इसे *नीम और आंवला* के साथ मिलाकर इस्तेमाल करने से *त्वचा संबंधी रोग जैसे एग्जिमा और सोराइसिस दूर किए जा सकते हैं*। इसे खून की कमी,पीलिया और कुष्ठ रोगों*के इलाज में भी कारगर माना जाता है।

सूजन कम करने के गुण के कारण, यह *गठिया और आर्थेराइटिस* से बचाव में अत्यधिक लाभकारी है। गिलोय के पाउडर को सौंठ की समान मात्रा और गुगुल के साथ मिलाकर दिन में दो बार लेने से इन बीमारियों में काफी लाभ मिलता है। इसी प्रकार अगर ताजी पत्तियां या तना उपलब्ध हों तो इनका ज्यूस पीने से भी आराम होता है।


आयुर्वेद के हिसाब से *गिलोय* रसायन यानी ताजगी लाने वाले तत्व के रुप में कार्य करता है। इससे इम्यूनिटी सिस्टम में सुधार आता है और शरीर में अतिआवश्यक सफेद सेल्स की कार्य करने की क्षमता बढ़ती है। यह शरीर के भीतर सफाई करके लीवर और किडनी के कार्य को सुचारु बनाता है। यह शरीर को बैक्टिरिया जनित रोगों से सुरक्षित रखता है। इसका उपयोग सेक्स संबंधी रोगों के इलाज में भी किया जाता है।

लंबे समय से चलने वाले बुखार के इलाज में गिलोय काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह शरीर में ब्लड प्लेटलेट्स की संख्या बढ़ाता है जिससे यह डेंगू तथा स्वाइन फ्लू के निदान में बहुत कारगर है। इसके दैनिक इस्तेमाल से मलेरिया से बचा जा सकता है। गिलोय के चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर इस्तेमाल करना चाहिए।

*शरीर में पाचनतंत्र को सुधारने में गिलोय काफी मददगार होता है*। गिलोय के चूर्ण को आंवला चूर्ण या मुरब्बे के साथ खाने से गैस में फायदा होता है। गिलोय के ज्यूस को छाछ के साथ मिलाकर पीने से अपाचन की समस्या दूर होती है साथ ही साथ बवासीर से भी छुटकारा मिलता है।
गिलोय में शरीर में शुगर और के स्तर को कम करने का खास गुण होता है। इसके इस गुण के कारण यह डायबीटिज टाइप2के उपचार में बहुत कारगर है।

गिलोय को अमृता भी कहा जाता है अमृता एडाप्टोजेनिक हर्ब है अत:मानसिक दवाब और चिंता को दूर करने के लिए उपयोग अत्यधिक लाभकारी है। गिलोय चूर्ण को अश्वगंधा और शतावरी के साथ मिलाकर इस्तेमाल किया जाता है। इसमें याददाश्त बढ़ाने का गुण होता है। यह शरीर और दिमाग पर उम्र बढ़ने के प्रभाव की गति को कम करता है।

*विशेष सावधानी*:-
अपने अनगिनत गुणों के साथ गिलोय सभी उम्र के लोगों के लिए फायदेमंद है परंतु कुछ लोगों में इससे विपरीत प्रभाव पड़ सकते हैं। इससे कुछ लोगों की पाचन क्रिया खराब हो सकती है।


नोट :- गर्भवती महिलाओं को बिना चिकित्सकीय* सलाह के इसके इस्तेमाल से बचना चाहिए।


आप अपने आसपास समाज मे जरूर गिलोय के गुणों के बारे में बतायें ताकि समाज मे लोग जागरूक हों और अपने परिवारों का रोगों से स्वयं समाधान करें |


गिलोय युक्त गौ मूत्र अर्क या गोली (घन वटी) की आवश्यकता हो तो 
व्हाट्स एप करे 9009363221

Sunday, 16 December 2018

साबुन से मानव को ख़तरा


        हम साबुन से नहाकर सोचते है की हमारे शरीर की सफ़ाई हो गयी , परंतु सफ़ाई ऐसे होती है जैसे जब चोर घर का पुरा माल ले जाता है फिर हम बोलते है की चोर घर का पुरा माल साफ़ कर गया । 

भाइयों वेद के अनुसार अपनी स्किन ख़ुद सफ़ाई करती है ,वेद में नहाने का ज़रूर लिखा है परंतु उसका उद्देश अपनी शरीर की माँसपेशियों को एक्टिव करने का  है , 

अपने शरीर का तापमान ३७ डिग्री रहता है और सामान्य मौसम में पानी का तापमान २५ डिग्री रहता है , 

जब शरीर से कम तापमान शरीर पर डालते है तो उसको ३७ डिग्री तक लाने के लिए सारी मांसपेशिया एक्टिव हो जाती है ,

 बस इतना ही काम बताया है नहाने से वेद में । 

अब इन भांड लोगों  ( फ़िल्मी दुनिया ) ने TV पर इतना प्रचार कर दिया कि बिना साबुन के नहाना मतलब ग़रीब , महागरीब । 

मै पिछले एक साल से केवल सादे पानी से नहा रहा हु , और शरीर एकदम स्वस्थ है ।  

साबुन के दुस्परिणाम

 पहला स्किन पर कुछ चिकनाई रहती है जिस से स्किन फटे नहीं और मुलायम रहे और स्किन स्वस्थ रहे । 

साबुन ने चिकनाई ख़त्म कर दी , नहाने के बाद शरीर पर तेल लगाओ या स्किन रोग होना निश्चित है । 

अब आगे सुनो जब साबुन के उपयोग के बाद पानी नाली में बहा जाता है । फिर ये गंदा पानी ज़मीन में जाएगा या किसी नदी नाले में । 

इस तरह ये पानी दोनो जगह से लोटकर प्रदूषित होकर , कैन्सर युक्त होकर हमारे पास वापिस आता है ,या तो ट्यूबवेल , हेंडपम्प , या नगर पालिका से सुबह सप्लाई होकर । 

नगर पालिका से जो पानी घरों में आता है वह किसी नदी पर डैम बनाकर या बहती नदी के पानी को फ़िल्टर प्लांट पर साफ़ करके सप्लाई की जाती है

 जब फ़िल्टर प्लांट पर पानी साफ़ होता है तो , उसको दो तरह से साफ़ किया जाता है की वो दिखने में साफ़ हो दूसरा ज़हरीला ना हो 

 रेत में छानकर साफ़ कर दिया और क्लोरीन डालकर किटाणुरहित कर दिया , 

क्लोरीन अपने में ही ज़हर है मतलब ज़हर को बड़े ज़हर से मारा गया । 

फिर वो पानी आपके पास ही आएगा , जब इस तरह का पानी लम्बे समय तक पियोगे तो कैन्सर होना निस्चित है ।

अब इस साबुन का पानी नदी नाले से किसान भी अपनी फ़सलो को देते है , 

वो फ़सल भी ज़हरीली होती है और मिट्टी भी कठोर हो जाती है , मिट्टी इतनी कठोर हो जाती है की इसकी जुताई केवल ट्रैक्टर से हो सकती है बैल से  नहीं । 

और जब मिट्टी कठोर हो गयी तो बारिश का पानी नीचे ज़मीन में नहीं जाएगा , केवल बाढ़ लाएगा 

मतलब प्रलय ही प्रलय

 इसी तरह 
कपड़े धोने का साबुन, 
बर्तन साफ़ करने वाला साबुन , 
टॉयलेट साफ़ करने वाला हार्पिक का उपयोग करना कैन्सर को न्योता देना है , 

इन सभी का विकल्प मिट्टी है , मिट्टी को साबुन की जगह उपयोग कीजिए मानव जीवन को बचाइए 
(वैद्य जीतुभाई, डीसा, गुजरात)
पंचगव्य से निर्मित केमिकल रहित साबुन का प्रयोग करे

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ब्रजराज गौशाला रीठी, कटनी, एम पी

Friday, 14 December 2018

कैल्सियम वटी वात पित और कफ तीनों तरह के बीमारी में लाभदायक

चुना और हल्दी इसके साथ ही (छाछ) के संयोग से जब गोली बनती है फिर बात ही क्या कहना है | इसे कहते हैं कैल्सियम वटी वात पित और कफ तीनों तरह के बीमारी में लाभदायक | जिंन्हे बनी बनाई चाहिए तुरंत मैसेज करें: वहैट्सऐप 8019517451
बच्चों से लेकर बूढ़े सभी सेवन कर सकते हैं | (पथरी बनने की शिकायत वाले न लें)
कैल्शियम हड्डियों और दांतों की सरंचना में मुख्य भूमिका निभाता है। कैल्शियम की कमी से हड्डियों में अनेक रोग हो जाते हैं, मसल्स में अकड़ाव आने लगता है। जोड़ों में दर्द रहने लगता है। कैल्शियम की कमी के कारण शरीर में दर्द लगातार बना रहता है। ऐसे अनेक रोग कैल्शियम के कारण होने लगते हैं। महिलाओं में यह समस्या ज्यादा पायी जाती है। आज हम आपको एक ऐसा नुस्खा बताने जा रहे हैं जिसके प्रयोग से आपकी कैल्शियम की कमी दूर होगी और आपकी हड्डिया फौलाद बन जाएँगी।
शरीर के लिए जरूरी पोषक तत्वों में एक कैल्शियम भी है जो शरीर के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हड्डियों को और दांतो की मजबूती के लिए कैल्शियम जरूरी पोषक तत्व है। हर किसी को एक दिनभर में कैल्शियम की एक निश्चित मात्रा की जरूरत होती है।
एक स्वस्थ्य मनुष्य को दिन भर में 1000 से 1200 मिली ग्राम कैल्शियम की आवश्यकता होती है। वहीं गर्भवती महिलाओं को पूरे दिन में 1200 से 1300 मिली ग्राम कैल्शियम की आवश्कता होती है। आजकल न सिर्फ बूढ़ों में बल्कि जवान और बच्चों में भी कैल्शियम की काफी कमी देखी जा रही है। हम बता रहे हैं कुछ लक्षण जिनसे आप जान पायेंगे कि आपके शरीर में कैल्शियम की कमी है।
कुछ लक्षण जिनसे आप जान पायेंगे कि आपके शरीर में कैल्शियम की कमी है
हड्डियों में कमजोरी : कैल्शियम हड्डियों के बनने में मदद करता है और इसकी कमी होने पर इसका पहला लक्षण हड्डियों पर दिखाई देता है। कैल्शियम की कमी से हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और फ्रैक्चर होने की संभावना बढ़ जाती है। कैल्शियम कमी से उम्र के साथ आस्टियोपेरोसिस का होने का खतरा भी बढ़ जाता है।
मांसपेशियों में खिंचाव : मसल्स के निर्माण में कैल्शियम की अहम भूमिका होती है। शरीर में कैल्शियम की कमी होने पर इसका सीधा असर मांसपेशियों पर पड़ता है और उनमें खिंचाव होने लगता है। इसकी कमी से खासतौर पर जांघों और पिंडलियों में असहनीय दर्द होता है।
नाखूनों का कमजोर होना : आपके नाखून भी एक तरह की हड्डियां ही होती हैं इन्हें भी बढ़ने और मजबूत होने के लिए कैल्शियम की जरूरत होती है। कैल्शियम की कमी से नाखून कमजोर होने लगते हैं और आसानी से टूट जाते हैं। शरीर में कैल्शियम की कमी होने पर नाखूनों पर सफेद निशान दिखने लगते हैं।
दांतों का कमजोर होना : शरीर में मौजूद 99 प्रतिशत कैल्शियम हड्डियों और कैल्शियम की कमी से दांतों में दर्द और झनझनाहट होने लगती है और दांत कमजोर होकर टूटने लगते हैं। छोटे बच्चों में कैल्शियम की कमी से दांत देर से निकलते हैं।
थकान : कैल्शियम की कमी से हड्डियों और मांसपेशियों में दर्द रहने की वजह से शरीर में थकान होने लगती है। इस वजह से नींद न आना, डर लगना और तनाव जैसी समस्याएं होने लगती हैं। महिलाओं में बच्चे के जन्म के बाद अक्सर कैल्शियम की कमी हो जाती है और वे थकान महसूस करने लगती हैं।
मासिक धर्म में अनियमितता : महिलाओं में कैल्शियम की कमी की वजह से मासिक धर्म देर से और अनियमित तौर पर होता है। मासिक धर्म से पहले कैल्शियम की कमी के कारण ज्यादा दर्द होता है और खून भी ज्यादा आता है। कैल्शियम महिलाओं के गर्भाशय और ओवेरियन हार्मोन्स के विकास में मदद करता है।
जल्दी-जल्दी बीमार पड़ना : कैल्शियम रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अलावा ये श्वसन तंत्र ठीक रखता है और आंतों के संक्रमण को रोकता है। कैल्शियम की होने पर व्यक्ति जल्दी जल्दी बीमार पड़ने लगता है।
बालों का झड़ना : बालों के विकास में कैल्शियम की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसकी कमी से बाल झड़ने लगते हैं और रुखे हो जाते हैं। अगर आपको ऐसी समस्या है तो ये शरीर में कैल्शियम की कमी का संकेत हो सकती है।
कोई भी आवश्यक विटामिन या मिनरल तभी अच्छा काम करेगा जब आपके शरीर में कैल्शियम की उचित मात्रा होगी |
आवश्यक सामग्री :
हल्दीगाँठ 1 किलोग्राम
बिनाबुझा चूना 2 किलो
नोट : बिना बुझा चुना वो होता है जिससे सफेदी की जाती है।( रासायनिक छोड़ कर)
बनाने की कई विधियाँ हैं, जिसमें से एक वर्णित है |
सबसे पहले किसी मिट्टी के बर्तन में चूना डाल दें। अब इसमें इतना पानी डाले की चूना पूरा डूब जाये। पानी डालते ही इस चूने में उबाल सी उठेगी। जब चूना कुछ शांत हो जाए तो इसमें हल्दी डाल दें और किसी लकड़ी की सहायता से ठीक से मिक्स कर दे। इस हल्दी को लगभग दो माह तक इसी चूने में पड़ी रहने दे। जब पानी सूखने लगे तो इतना पानी अवश्य मिला दिया करे की यह सूखने न पाए। दो माह बाद हल्दी को निकाल कर ठीक से धो लें और सुखाकर पीस ले और किसी कांच के बर्तन में रख लें।
इसके लाभ :
कुपोषण, बीमारी या खानपान की अनियमितता के कारण शरीर में आई कैल्शियम की कमी बहुत जल्दी दूर हो जाती है और शरीर में बना रहने वाला दर्द ठीक हो जाता है।
ये दवा बढ़ते बच्चों के लिए एक अच्छा bone टॉनिक का काम करती है और लम्बाई बढ़ाने में बहुत लाभदायक है टूटी हड्डी न जुड़ रही हो या घुटनों और कमर में दर्द तो अन्य दवाओं के साथ इस हल्दी का भी प्रयोग बहुत अच्छे परिणाम देगा।
सावधानी : जिन्हें पथरी की समस्या है
अमर बलिदानी स्वर्गीय भाई राजीव दीक्षित जी के विचारों (स्वस्थ व समृद्ध भारत) को फैलाने हेतु अपना अमूल्य समय और श्रम दान करें

Thursday, 13 December 2018

अपने दुर्भाग्य को मनुष्य अकेले ही भोगता है


जब भी मनुष्य के ऊपर कुछ आपत्ति आती है , या अकस्मात् कोई दुख आ जाता है तो घबराहट और चिंता के कारण विवेकहीन हो जाता है। अपने सारे दुखों का कारण अपने आस पास के लोगों को ही मानता है ।

*भागवत के 10 वें स्कन्ध के 82 वें अध्याय* में वसुदेव जी तथा बहिन कुन्ती का इस दुख और आपत्ति के विषय में अद्भुत संवाद है ।

श्री शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को बताया कि एकबार ऐसा सूर्यग्रहण पड़ रहा था कि जैसे प्रलयकाल में सूर्यग्रहण पड़ता है । भगवान श्री कृष्ण ने सभी द्वारकावासियों से स्यमन्तपञ्चक क्षेत्र में चलने के लिए कहा । सभी तैयार हो कर चल पड़े ।

यह वह क्षेत्र है ,जहां कि परशुराम जी ने  हैहयवंश के अनेक क्षत्रिय राजाओं को मारकर उनके रक्त से पूरा एक तालाब भर दिया था । जैसे द्वारका से सभी वहां पहुंच रहे थे , वैसे ही व्रज वृन्दावन से सभी व्रजवासी नन्द यशोदा के साथ स्यमन्तपञ्चक क्षेत्र में पहुंच चुके थे ।

हस्तिनापुर से कुन्ती आदि सभी लोग भी वहां आ गए । सभी विछुड़े हुए आत्मीयजनों का अद्भुत समागम हो गया । एक दूसरे के गले लग कर एक दूसरे के दुख सुख की बात करने लगे ।

*भागवत के10 वें स्कन्ध के इसी 82 वें अध्याय के 18 वें और 19 वें श्लोक* में कुन्ती ने अपने दुख को सुनाते हुए वसुदेव जी से कहा कि 

*आर्य भ्रातरहं मन्ये आत्मानमकृताशिषम् ।
यद्वा आपत्सु मद्वार्तां नानुस्मरथ सत्तमाः ।। 18 ।।*

  कुन्ती ने कहा कि हे भ्राता वसुदेव ! मैं बहुत अभागिनी हूं ।मैंने पूर्वजन्म में एक भी अच्छे पुण्यकार्य नहीं किए हैं कि इस जन्म में मुझे कुछ सुख शान्ति मिलती । अकाल में ही मेरे पति चले गए । मेरे पांचों पुत्र परम धर्मात्मा हैं । मेरी पुत्रबधू पतिव्रता है ।

इस जन्म में कभी भी कहीं भी हम में से किसी ने भी कोई पाप भी नहीं किया है ।किसी को सताया भी नहीं है । फिर भी पितृछायाहीन सपत्नीक पुत्रों की दशा एक अनाथ बालकों की तरह हो गई है । मैं अभागिनी हूं ,इसीलिए तो आप लोग भी हम लोगों को स्मरण भी नहीं करते हैं । कभी हमारे विषय में आप लोगों ने सोचा भी नहीं है कि कुन्ती कैसे जी रही है ।महात्मा लोग ठीक ही कहते हैं कि

*सुहृदो ज्ञातयः पुत्राः भ्रातरः पितरावपि ।
 नानुस्मरन्ति स्वजनं यस्य दैवमदक्षिणम् " ।। 19 ।।*

 जिसका दुर्भाग्य जगता है , उस मनुष्य को आपत्तिकाल में मित्र छोड़ देते हैं ।पुत्र भी त्याग देते हैं । अपनी जाति के परिवार के लोग भी अनेक दोष देते हुए त्याग देते हैं । यहां तक कि माता पिता भाई भी त्याग देते हैं ।

*अपने दुर्भाग्य को मनुष्य अकेले ही भोगता है ।* इसलिए आप लोगों ने भी अपनी बहिन को आपत्तिकाल में त्याग दिया है । अब देखिए कि कुन्ती के हताशाभरे वाक्यों का वसुदेव जी ने कितना गजब उत्तर दिया है ।

*इसी 19 वें श्लोक के आगे 20 वें और 21 वें श्लोक में*

*अम्ब मास्मानसूयेथा दैवक्रीडनकान् नरान् ।
ईशस्य हि वशे लोकः कुरुते कार्यतेsथवा ।।20 ।।*

 वसुदेव जी ने कुन्ती को मां का सम्बोधन करते हुए कहा कि " हे अम्ब , हे माँ ! इस तरह से दुखी होकर हमारे प्रति दोष भावना मत करो । हम तुम्हारी आपत्ति में तुम्हारे पास नहीं आए , क्यों कि हम सुखी हो गए । ऐसा सोचकर तथा हमें बताकर दुखी मत हो । क्यों कि यहां संसार में सभी जीव अकेले हैं ।यहां कोई भी किसी का नहीं है ।

हम सभी जीव जगतनिर्माता ईश्वर के अधीन हैं ।यहां कोई स्वतन्त्र नहीं है ।सभी देव दानव आदि के तीनों लोकों के जीव उस ईश्वर के खिलौना हैं । यहां कोई जो भी कर्म करता है या करवाता है , वह सब ईश्वर के अधीन होकर ही करता और करवाता है ।

इसलिए इस संसार का सुख और दुख जो भी प्राप्त होता है उसे जीव को भोगना पड़ता है ।

*कंसप्रतापिता सर्वे वयं याता दिशो दश ।
एतर्ह्येव पुनः स्थानं दैवेनासादितः स्वसः ।। 21 ।।*

 देखो , मेरी बहिन ! जब मेरा देवकी के साथ विवाह हुआ था , तभी से कंस ने हमें प्रताड़ित करना प्रारम्भ कर दिया था । 11 वर्ष कारागार में बंद रखा था । मेरे नवजात शिशुओं की हमारे सामने ही हत्या की गई ।

उस कंस के भय के कारण हम सभी दशों दिशाओं में आत्म रक्षा के लिए जहां तहां छिपकर जैसे तैसे समय काट रहे थे । सभी एक दूसरे से विछड़ चुके थे । जिस ईश्वर ने हम सब को अलग अलग कर दिया था ,उसी ने आज हम सब को एक ही स्थान में मिला दिया है ।

जब वह जगदीश्वर चाहते हैं ,तभी कोई किसी से मिलता है और विछुड़ता है । किसके साथ किसका कितने दिन सम्बन्ध रहेगा , ये सब उस जगदीश्वर के हाथ में है । यहां कोई भी जीव न तो जीने में स्वतन्त्र है और न ही मरने में स्वतन्त्र है ।

न किसी के साथ रहने मिलने में स्वतन्त्र है और न ही दूर होने में स्वतन्त्र है । न सुखी होने में स्वतन्त्र है और न ही दुख दूर करने में स्वतन्त्र है ।

क्यों कि यह शरीर , यह सम्बन्ध ,यह संसार हमारा बनाया हुआ नहीं है । इसलिए न तो अपने को अभागी मानना चाहिए और न ही सौभाग्यशाली मानना चाहिए ।
भगवान जो हमें निमित्त बना देते हैं , वही हम बन जाते हैं ।हम सभी जीव भगवान के खिलौने हैं । ऐसा सोचकर ही आनन्द में रहना चाहिए ।

*-आचार्य ब्रजपाल शुक्ल , वृन्दावन धाम*

बच्चों को टीके लगने चाहिये, तो आपकी मर्जी

1. इस बात का कोर्इ वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि टीकाकरण से वास्तव में रोगों की रोकथाम हुर्इ है। बीमारियों के ग्राफ और आंकड़े दर्शाते हैं कि टीकाकरण की शुरूआत के समय अमुक बीमारियां स्वत: ही खत्म होने के कगार पर थी। जैसे कि चेचक के टीके से चेचक खत्म होने का दावा किया जाता है, लेकिन इससे पहले कि लोग इसके टीके का विरोध कर पाते, हजारों लोग इसके कारण मौत का शिकार हो चुके थे।
2. टीके सुरक्षित हैं या नहीं, इसके लिए कोर्इ दीर्घकालीन अध्ययन और प्रामाणिक शोध का प्रावधान नहीं है। बलिक बहुत ही छोटे एवं अवैज्ञानिक टेस्टप्रयोग किए जाते हैं, जिनमें टीका लगाए गए लोगों की तुलना उन लोगों से की जाती है, जिन्हें कोर्इ और टीके लगे होते हैं! जबकि असल में यह तुलना ऐसे लोगों के साथ की जानी चाहिए, जिन्हें कभी कोर्इ टीके नहीं लगे हों। कोर्इ नहीं जानता कि कम्पनियों द्वारा प्रायोजित इन टीकों के प्रयोगों में किन नियमों और मापदण्डों का पालन किया जाता है।
3. आज तक कोर्इ ऐसा क़दम नहीं उठाया गया है, जिसमें टीके लगे हुए लोगों और बिना टीके लगे हुए लोगों का तुलनात्मक अध्ययन यह जानने के लिए किया गया हो कि आखिर इन टीकों का बच्चों और समाज पर क्या असर हो रहा है।
4. एक बच्चे को केवल एक नहीं, अनेक टीके लगाए जाते हैं। इन अनेक टीकों का बच्चे पर क्या असर होता होगा, इसकी जांच का कोर्इ प्रावधान नहीं है।
5. शिशुओं के टीकाकरण का कोर्इ वैज्ञानिक आधार ही नहीं है। ”टाइम्स आफ इंडिया में प्रकाशित एक वरिष्ठ डाक्टर के कथनानुसार, ”टीकों से बचार्इ जाने वाली बीमारियों से ग्रसित होने की सम्भावना बच्चों में 2 प्रतिशत से भी कम होती है, लेकिन इन टीकों का हरज़ाना उन्हें 100 प्रतिशत भुगतना पड़ता है। यहां तक कि टीकों के आविष्कारकों ने भी टीकाकरण से पहले कर्इ सावधानियां बरतने की पेशकश की है तथा वे खुद भी विशाल स्तर पर टीकाकरण के पक्ष में कभी नहीं थे।
6. बच्चों का टीकाकरण इसलिए आसान होता है, क्योंकि उनके अभिभावकों में बीमारियों का डर पैदा करके उन्हें जबरदस्ती टीके लगाने के लिए तैयार किया जा सकता है। नवजात शिशुओं का टीकाकरण टीका-निर्माता कम्पनियों और डाक्टरों के लिए सबसे फायदेमन्द धन्धा है।
7. भारत सरकार ने ”द हिन्दू अखबार में प्रकाशित एक विज्ञापन के जरिये अभिभावकों को यह हिदायत देना शुरू किया है कि वे सिर्फ सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त टीके ही लगवाएं तथा प्राइवेट अस्पतालों में टीके नहीं लगवाएं।
8. ”भारतीय शिशु रोग विशेषज्ञ संघ के उड़ीसा चेप्टर में उड़ीसा के मुख्यमन्त्री को लिखे गए एक पत्र में यह उल्लेख किया गया है कि प्राइवेट क्लीनिक अस्पताल टीकों के सुरक्षित संग्रहण के लायक नहीं है तथा माता-पिताओं को यह चेतावनी दी है कि वे प्राइवेट अस्पतालों में टीके नहीं लगवाएं।
9. टीकों में इस्तेमाल होने वाली सभी चीजें अत्यन्त विषैली और खतरनाक है।
10. प्राय: सभी टीकों में – धातुएं, कैंसर पैदा करने वाले तत्व, खतरनाक रसायन, जीवित और जीन-परिवर्तित वायरस, जन्तुओं के वायरसों से युक्त सड़ा हुआ सीरम, बिना टेस्ट किए गए एंटीबायोटिक्स आदि होते हैं, जिनके दुष्प्रभाव होते ही हैं।
11. टीकों में इस्तेमाल होने वाला पारा (Mercury), एल्यूमिनियम और जीवित वायरस आटिज्म नामक महामारी (अमेरिकी डाक्टरों के अनुसार हर 50 में से 1 व्यकित आटिज्म से ग्रसित है) के मुख्य कारण है। यह एक ऐसा तथ्य है, जो अमेरिकी वैक्सीन कोर्ट ने भी स्वीकार किया है।
12. अमेरिकी संस्था ”सी.डी.सी. (सेंटर फार डिजीज़ कंट्रोल) ने यह खुले तौर पर स्वीकार किया है कि टीकाकरण और आटिज्म के बीच सम्बन्ध को नकारने वाली सन 2003 की प्रख्यात स्टडी गलत है। सी.डी.सी. प्रमुख डा. गेरबर्डिंग ने मीडिया (सी.एन.एन.) के समक्ष यह स्वीकार किया कि टीकों की वज़ह से आटिज्म के लक्षण पैदा हो सकते हैं। आटिज्म महामारी सिर्फ उन्हीं देशों में हुर्इ हैं, जहां विशाल स्तर पर टीकाकरण को स्वीकृति दे दी गर्इ है।
13. सन 1999 में अमेरिकी सरकार ने टीका-निर्माता कम्पनियों को ”तुरन्त प्रभाव के साथ टीकों में से मक्यर्ूरी (पारा) हटाने के निर्देश दिए थे। लेकिन आज भी कर्इ टीकों में मक्यर्ूरी का इस्तेमाल ज्यों का त्यों हो रहा है। mercury युक्त टीकों पर कोर्इ कदम नहीं उठाया गया और ये टीके सन 2006 तक बच्चों को दिए जाते रहे। यहां तक कि तथाकथित mercury रहित टीकों में भी 0.05 माइक्रोग्राम mercury होता है, जो कि एक नन्हें शिशु को आजीवन विकलांग बनाने के लिए काफी होता है।
14. भारत में टीकों से mercury और अन्य धातुओं को हटाने के लिए कोर्इ कदम नहीं उठाये गये, सिर्फ इसलिए कि ऐसा करने से टीकों की कीमत बढ़ जाएगी।
15. भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम के पूछने पर स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना था, ”टीकों को सुरक्षित बनाने के लिए mercury की जरूरत होती है। लेखकों के इस प्रश्न ”ये कैसे टीके हैं, जिन्हें सुरक्षित बनाए रखने के लिए दुनिया के दूसरे बड़े खतरनाक न्यूरोटाकिसन mercury की जरूरत होती है!? का कोर्इ जवाब नहीं था।
16. टीकों में इस्तेमाल किए जाने वाला mercury, यूरेनियम के बाद दूसरे नम्बर का घातक ज़हर है। यूरेनियम एक घातक रेडियोएकिटव पदार्थ है, जो कि बच्चे के सम्पूर्ण नाड़ी-तन्त्र को पल भर में नष्ट कर सकता है।
17. mercury चर्बी में एकत्रित होता है। और हमारा पूरा दिमाग ही चर्बी की कोशिकाओं से बना होता है। अधिकांश mercury वहीं जमा होता है और बच्चों में आटिज्म के लक्षणों को बढ़ाता है।
18. टीकों में इस्तेमाल होने वाली mercury, इथाइल mercury होती है, जो कि भारतीय डाक्टरों के अनुसार आमतौर पर प्रयुक्त मिथाइल mercury से 1000 गुना ज्यादा विषैली होती है।
19. टीकों में प्रयुक्त होने वाला एल्यूमिनियम, मक्यर्ूरी को 100 गुना और अधिक विषैला बना देता है।
20. एक स्वतन्त्र अध्ययन के अनुसार टीकों में एल्यूमिनियम और फार्मलडिहाइड की मौजूदगी से mercury 1000 गुना अधिक विषैला हो जाता है।
21. ‘तहलका में आटिज्म के बारे में प्रकाशित एक लेख के अनुसार बच्चों को उनके बर्दाश्त करने की क्षमता से 250 गुना अधिक mercury टीकों के जरिए मिल रहा है। इसी लेख में यह भी कहा गया है कि अगर कोर्इ डब्ल्यू.एच.ओ. द्वारा तय की गर्इ पानी में mercury की सीमा को आधार मानें, तो वे उस सीमा से 50000 गुना अधिक mercury टीकों के जरिए ग्रहण कर रहे हैं। जबकि यह सीमा भी वयस्कों के लिए निर्धारित की गर्इ है, शिशुओं के लिए नहीं।
22. आटिज्म भारत में बच्चों में बहुत तेजी से फैलने वाली एक महामारी के रूप में उभर रहा है, जो प्रति 500 में से 1 बच्चे से बढ़कर आज यह प्रति 300 में से 1 बच्चे को है।
23. आटिज्म एक स्थायी विकलांगता है, जो बच्चे को शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से प्रभावित करती है। इससे बच्चे का समाज से सम्बन्ध टूट जाता है। यह बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास में रुकावट डालता है। यह बच्चे के दिमाग को क्षति पहुंचाता है, जिससे उसकी याददाश्त और ध्यान देने की क्षमता बहुत प्रभावित होती है। टीकों पर शोध करने वाले डाक्टर हेरिस काल्टर के अनुसार टीकाकरण से बच्चे विकृत और आपराधिक प्रवृतित के हो जाते हैं। अमेरिका में स्कूली बच्चों द्वारा हुर्इ हत्या की घटनाएं आटिज्म से ग्रसित बच्चों द्वारा ही हुर्इ है। टीके इतने घातक हो सकते हैं कि चिकित्सक समुदाय भी इसे अप्रत्यक्ष रूप से स्वीकार करने लगा है।
24. आटिज्म से ग्रस्त बच्चों को आंतों के बीमारियां भी झेलनी पड़ती है। डाक्टर एंड्रू वेकफील्ड के अनुसार यह एम.एम.आर. टीके में मौजूद मीजल्स के जि़न्दा वायरस के कारण होता है। और इस टीके के बाद लगभग सभी बच्चे आटिज्म से ग्रस्त हो जाते हैं।
25. डी.पी.टी. का टीका भी बच्चों के विकास को रोकता है और यह भय पैदा करता है कि वे जीवित वायरस से युक्त टीके आटिज्म का प्रमुख कारण है। अगर तीन जि़न्दा वायरस वाले टीके से इतनी हानि हो सकती है, तो हम कल्पना कर सकते हैं कि आज पांच और सात वायरसों से युक्त टीकों से बच्चों पर क्या असर होता होगा।
26. आटिज्म से भी पहले, यह मालूम हो चुका है कि वर्तमान समाज में कैंसर नामक महामारी टीकाकरण की वजह से फैल रही है। चेचक और पोलियो दोनों के टीके बन्दर के सीरम से बनाए जाते हैं। इस सीरम में बन्दरों में कैंसर पैदा करने वाले कर्इ वायरस होते हैं, 60 ऐसे वायरस पाये जा चुके हैं, जो इंसानों की रक्त-शिराओं में डाले जाते हैं।
27. यह भी विदित है कि टीकों में बन्दरों के सीरम के इस्तेमाल की वज़ह से सिवियन इम्यून डेफिसिएंसी वायरस) का स्थानान्तरण बन्दरों से इंसानों में हुआ है। ैप्ट और भ्प्ट (जो कि एडस का कारण) दोनों बहुत समान हैं।
28. केवल एडस ही नहीं, बलिक बच्चों में रक्त-कैंसर (एक्यूट लिम्फोब्लासिटक ल्यूकेमिया), जो कि हजारों की तादाद में बच्चों को प्रभावित कर रहा है, उसका कारण भी टीकों में मौजूद अत्यन्त विषैले पदार्थ हैं।
29. शिशु अवस्था में होने वाले पीलिया और मधुमेह का भी इन विषैले टीकों के साथ गहरा सम्बन्ध है।
30. भारतीय चिकित्सा संघ के डाक्टरों के मतानुसार बच्चों को पिलार्इ जाने वाली पोलियो की दवा से 65000 से भी अधिक बच्चे AFP (वैक्सीन की वजह से होने वाला पैरेलाइटिक पोलियो) से ग्रसित हो चुके हैं। अमेरिका में पोलियो का टीका लगाने के 16 साल बाद भी पोलियो का केस सामने आया है।
31. टीकों में न केवल चिम्पैंजी और बन्दरों के सीरम, बलिक गाय, सूअर, मुर्गी, अण्डे, घोड़े और यहां तक कि इंसान के सीरम और भू्रण से निकाले ऊतकों (टिश्यू) का इस्तेमाल किया जाता है।
32. टीकाकरण से मृत्यु और स्थायी विकलांगता बहुत सामान्य बात है और स्वयं डाक्टर इस बात को जानते हैं। लेकिन वे सरकारी निर्देशों के अनुसार चुप रहने और इन केसों का सम्बन्ध टीकाकरण से नहीं जोड़ने के लिए बाध्य हैं।
33. कर्इ डाक्टर यह मानते हैं कि बचपन में होने वाली बीमारियां शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए होती हैं। इन बीमारियों को दबा देने से बच्चे का इम्यून सिस्टम अविकसित रह जाता है, जिससे मधुमेह और आर्थराइटिस जैसी आटो इम्यून रोग पैदा होते हैं, जो कि आज महामारी का रूप ले रहे हैं।
34. टीकाकरण से बच्चे की प्राकृतिक रोग-प्रतिरोधक क्षमता दब जाती है, जिससे शरीर में प्राकृतिक एंटीबाडीज नहीं बन पाती। इसी कारण मां के दूध में भी प्राकृतिक एंटीबाडीज नहीं होती और वो बच्चे में बीमारियों से लड़ने की क्षमता विकसित नहीं कर पाता।
35. अमेरिका में तो टीकों के विपरीत प्रभाव का रिकार्ड रखा जाता है और सरकार द्वारा पीडि़ताें को करोड़ों डालर का हर्जाना दिया जाता है (हाल ही के एक केस में वैक्सीन कोर्ट द्वारा तकरीबन 20 करोड़ डालर का हर्जाना दिया गया)। जबकि भारत सरकार इस बात को स्वीकार भी नहीं करती कि टीकों से कोर्इ मृत्यु या स्थायी विकलांगता हो सकती है।
36. यह बात वैज्ञानिक तौर पर प्रमाणित हो चुकी है कि टीके बीमारियों को रोकने में नाकामयाब रहे हैं। टीके तो केवल ”हयूमरल यानी रक्त सम्बन्धी प्रतिरक्षा पैदा करने की कोशिश भर करते हैं, जबकि प्रतिरोधक क्षमता का विकास हयूमरल और कोशिकीय सहित कर्इ स्तरों पर होता है। इंसानी इम्यून सिस्टम के बारे में हम आज भी बहुत सीमित ज्ञान रखते हैं, अत: हमें इसमें दखल नहीं देना चाहिए।
37. अमेरिका में बच्चों के अभिभावकों को टीकों के दुष्प्रभावों के बारे में सूचित किया जाता है और टीकाकरण से पहले उनकी सहमति ली जाती है। लेकिन भारत में विशाल स्तर पर विज्ञापनों और अभियानों के जरिये प्रचार किया जाता है कि टीकाकरण पूरी तरह से सुरक्षित है। जो अभिभावक इसका बहिष्कार करते हैं, उन्हें प्रशासनिक धमकियों का सामना करना पड़ता है।
38. टीकाकरण से क्षतिग्रस्त बच्चों के इलाज के लिए कोर्इ व्यवस्था नहीं है। अभिभावकों को एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल में चक्कर लगाने पड़ते हैं। सरकार भी ऐसे केस से आंखें फेर लेती है तथा टीकाकरण से इन केसों के सम्बन्ध को पूरी तरह नकार देती है।
39. कर्इ मेडिकल डाक्टर तो भारत सरकार द्वारा प्रमाणित टीकों को भी चुनौती दे रहे हैं। टी.बी. की रोकथाम के लिए लगाए जाने वाले बी.सी.जी. के टीके की जांच तो बहुत पहले सन 1961 में ही की जा चुकी थी और इसे पूरी तरह बेअसर पाया गया। पोलियो की दवा से पोलियो सहित कर्इ न्यूरोलोजिकल और आंतों से सम्बनिधत रोगों से ग्रसित 10 हजार से भी अधिक बच्चे पाए गए हैं। हाल ही में शुरू किया गया हैपेटाइटिस-बी का टीका बच्चों के लिए कतर्इ नहीं है। यह टीका एक यौन सवंमित रोग के लिए है, जो सिर्फ वयस्कों के लिए है। टेटनस के टीके में टेटनस टाक्सायड के अलावा मरकरी यानी पारा और एल्यूमिनियम दोनों होते हैं। डी.पी.टी. के टीके को खुद डाक्टर भी लगाना पसन्द नहीं करते हैं, क्योंकि यह सबसे अधिक घातक टीकों में से एक है। मीज़ल्स का टीका अकसर बहुत गम्भीर दुष्प्रभाव डालता है कि कर्इ स्वास्थ्यकर्मी भी इसे बन्द करने के पक्षधर हैं।
40. शिशु रोग चिकित्सक भारत में ऐसे सनिदग्ध टीके ला रहे हैं, जिनका अमेरिका और यूरोप में डाक्टरों, राजनेताओं और जनता द्वारा विरोध किया जा चुका है। रोटावायरस, हिब, एच.पी.वी. और कर्इ अन्य मल्टीवायरस के टीकों को भारत में बिना परीक्षण के सिर्फ इसलिए लाया जा रहा है कि टीके बनाने वाली कम्पनियां और उनसे जुड़े डाक्टर इनसे बहुत पैसा कमा रहे हैं। विश्वभर में कर्इ र्इमानदार डाक्टर इन टीकों का विरोध कर रहे हैं।
उपयर्ुक्त सभी तथ्य संपूर्ण नहीं कहे जा सकते, फिर भी इन्हें पढ़ने के बाद भी, अगर आप को लगता है कि आपके बच्चों को टीके लगने चाहिये, तो आपकी मर्जी। आप निस्संदेह एक टीका त्रस्त शिशु के माता पिता कहलाने के हकदार हैं।

Saturday, 8 December 2018

अग्निहोत्र की विधि

गाय के गोबर में हवन सामग्री मिलाकर छोटे-छोटे उपले / कंडे बनाकर सूखने देना है। बिना हवन सामग्री के भी बनाये जा सकते हैं।

तब हमें अग्निहोत्र करते समय हवन सामग्री ऊपर से डालना पड़ेगा। बेहतर है कंडे बनाते समय ही उसे मिला दिया जाये।

जब सूख जाएँ, तो उनका उपयोग अग्निहोत्र पात्र में आम की सूखी पतली लकड़ी के साथ जलाना है।

कंडों के बीच कपास से बनी बाती जो देशी गाय के घी में डुबाई गयी हो, उससे अग्नि प्रज्वलित करनी है। कपूर भी इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन अग्निहोत्र में घी और चंद चावल के दाने डालना आवश्यक है

देशी गाय के घी के जलने से आसपास के वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ती है। यही कारण है कि हमारे यहाँ घी के दिये जलाने को श्रेष्ठ माना गया है।

आपको जानकार आश्चर्य होगा कि हमारे देश की गाय के गोबर से बने अग्निहोत्र कंडे, पिरामिड आकार के अग्निहोत्र पात्र विदेशों में निर्यात हो रहे हैं।

अगर शहरों में मिट्टी के अग्निहोत्र पात्र उपलब्ध न हों तो बर्तन की दुकान से तांबे के अग्निहोत्र पात्र खरीदे जा सकते हैं।

अग्निहोत्र सूर्योदय और सूर्यास्त के समय करना सबसे उत्तम होता है।

जब तक अग्निहोत्र की आग और धुआं शांत न हो जाये तब तक आसान लगाकर उसके सामने बैठें। जिससे अग्निहोत्र का सेहत के लिये फायदेमंद धुंआ हमारी सांसों के माध्यम से अंदर जाये।

घर के खिड़की आदि खोलकर रखें जिससे वह धुआं आसपास भी फैले। कीटाणु, घर की गंदगी के अलावा बाहर से भी आते हैं। बाहर के वायुमंडल को भी शुद्ध करना आवश्यक है।

बची हुई राख उत्तम किस्म की खाद होती है। उसे अपने गमले, खेत आदि में डाल दें।

अखंड रामायण का पाठ, कथा, भागवत कथा आदि अनुष्ठान भी इसलिये कराये जाते हैं। शादी भी बिना हवन के नहीं होती। शादी की सालगिरह, जन्मदिन आदि पर पूजा पाठ और हवन भी इसलिये कराये जाते थे।

अब हम हानिकारक रसायनों से भरा केक काटकर ज़हर खाते हैं, मोमबत्ती को फूँक कर प्रदूषित धुआं अपने बच्चों के फेंफड़ों में प्रवेश कराते हैं।

हमारे सभी परम्पराओं में गहरा विज्ञान है। लेकिन हमारी आँखों पर आयातित कचरा संस्क्रति का काला चश्मा चढ़ा हुआ है।

सबसे पहले कचरा संस्क्रति के 🎂 Happy Birthday 🎂 मनाने के तरीके का अग्निहोत्र करें।

रोज़ अग्निहोत्र क्यों


☔ बारिश के बाद ही सारे त्यौहार क्यों आते हैं?

🏡 हर पूजा पाठ, कथा, व्रत पूजा में हवन क्यों करते हैं?

🐄 हवन में गाय के गोबर के उपले / कंडे ही क्यों इस्तेमाल करते हैं?

🤷🏻‍♂ बारिश खत्म होने के बाद  दीपावली के समय ही क्यों घरों आदि की लिपाई, पुताई, सफाई होती है? 

💫 गणेश चतुर्थी, नवरात्रि, दीपावली, करवा चौथ, देव उठनी सहित हर घर में पूजा हवन क्यों किया जाता है?

बारिश के मौसम में घर बाहर सभी जगह मौसम में आर्द्रता से लाखों करोड़ों प्रकार के हानिकारक सूक्ष्म जीव आ जाते हैं। 

हवन, यज्ञ, अग्नि होत्र आदि के धुएँ से वायु में व्याप्त सभी कीट और हानिकारक सूक्ष्म जीव भाग जाते हैं। गाय के गोबर, हवन सामग्री, गाय के घी आदि का प्रयोग वो गैस उत्पन्न करता है जो वायु को शुद्ध करते हुऐ उस क्षेत्र में शुद्ध ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाता है।

यह वैज्ञानिक रूप से जापान और भारत में भी प्रयोग करके सिद्ध हुआ है। 

आज के प्रदूषित वातावरण में जहाँ चारों तरफ हमारे ही द्वारा फेंके गये कचरे, उसकी सड़न, मरने वाले पशु पक्षी के सड़ने से उत्पन्न कीटाणु, नाली की गन्दगी 24 घंटे विषैले कीटाणु पैदा कर रहे हैं।

प्रतिदिन सुबह और शाम घर में अग्निहोत्र करें। पहले यह अग्निहोत्र रोज़ स्नान के पश्चात पूजा और हवन से दिनचर्या में जुड़ा था। उसकी जगह एक 'शार्ट-कट' अगरबत्ती के जलते बाँस से निकलने वाली ज़हरीले गैस न ले ली है।

बाँस कभी जलाया नहीं जाता। अगर जलाना हानिकारक न होता तो किसी के मृत शरीर को श्मशान घाट तक ले जाने के लिये इस्तेमाल किये जाने वाले बाँस को भी चिता में जलाने की परंपरा होती। 

परन्तु ऐसा नहीं किया जाता। कारण वही है। बाँस जलाने से ज़हरीली गैस निकलती हैं। 

मृत्यु होते ही कंडे जलाये जाते हैं। अंतिम यात्रा में एक व्यक्ति यात्रा के सबसे आगे, मिटटी के पात्र में जलते हुऐ कंडों के साथ आगे चलता है। 

जिससे उसका पीछे जाता हुआ धुआं, decompose होते मृत शरीर से निकलने वाले कीटाणुओं से सभी को बचाकर रखे।

सुबह शाम अपने ऑफिस, घर, स्कूल, कॉलेज, खेत आदि जगहों पर अग्निहोत्र करें। मैं प्रतिदिन करता हूँ। इसका लाभ मैंने स्वयं घर में पाया है।

🚩 जय गौ माता 🚩

Friday, 7 December 2018

एक रोग को खत्म करने से 80% रोग अपने आप चले जाएंगे.....

इस एक रोग को खत्म करने से 80% रोग अपने आप चले जाएंगे.....
आजकल हमने अपना खाना ऐसा बना लिया है जो यूरोप और अमेरिका में मज़बूरी में खाया जाता है. जैसे पावरोटी, डबल रोटी, बिस्कुट अब ये चीजें हम घर में शोंक से ला रहे हैं. आजकल ब्रेकफास्ट में ब्रेड पकोड़ा या ब्रेड का कोई न कोई प्रिपरेशन देखने को मिल जाएगा, पूछें कि ब्रेकफास्ट में ब्रेड प्रिपरेशन ही क्यूँ? तो कहते हैं कि प्रिपरेशन बहुत आसान है. आसान तो इडली भी ही सांभर भी है, डोसा भी है, और हलुवे से ज्यादा कुछ भी आसान नही है.
देसी घी का हलुवा सबसे पौष्टिक और सबसे सुरक्षित है और इतना पौष्टिक कि यदि कोई मरीज अभी घंटे पहले ऑपरेशन करवा कर भी आया हो तो उसे ही हलवा दे सकते हैं. उस पेशेंट को रोटी या दाल नही खिलाई जा सकती. कम से कम 15 दिन तक चावल भी नही खिलाया जा सकता. कोई भी पेशेंट हो ऑपरेशन के बाद अगर हलुवा खिला दें तो हीलिंग में बहुत मदद मिलेगी.
हलुवा ही ऐसा पोष्टिक भोजन है जो 5 मिनट में बन सकता है और वो ही आजकल धीरे धीरे विलुप्त हो रहा है. और उसकी जगह पावरोटी आ गयी, डबल रोटी आ गयी, घर में नुडल्स आ गये, और सुबेरे के ही नास्ते में ये सब आ गयी है और आयुर्वेद कहता है कि सुबेरे के नाश्ता ही सबसे ज्यादा मजबूत होना चाहिए. और उसी में हम पाव रोटी डबल रोटी बच्चों को खिला रहे है.
कभी कभी तो आप ही बहाना बना देते है कि सुबह बच्चे खाना खाते नही हैं. आपने आदत ही नही डाली तो क्यूँ खायेंगे वो, और यहीं से हमारी जिंदगी की गड़बड़ी शुरू हो रही है. और ये सड़े हुए मैदे की पावरोटी डबल रोटी आप जितनी खायेंगे कब्जियत उतनी ही बढ़ेगी. और कब्जियत बढ़ेगी तो शरीर की बीमारी बढ़ेगी. 103 बीमारियाँ होती है अकेले पेट ख़राब होने से ये बात हमेशा ध्यान रखिये.
डबल रोटी, पाव रोटी और नुडल्स खाने से ये हमारे पेट के अन्दर के हिस्सों में चिपकता है और कोंस्टीपेशन बनता है. और पाव रोटी, डबल रोटी या नुडल्स को बनाने का कोई तरीका देख ले तो उसको घृणा आ जाए. इतने ख़राब तरीके से बनता है. तो आप सबसे छोटी सी विनति है कि अगर आप स्वस्थ रहना चाहते है, तंदरुस्त रहना चाहते है तो अपने जीवन में अष्टांगहृदयं के दिए हुए सूत्रों का पालन करें.
सब लिख पाना असंभव है ये विडियो देखिये >>
अगर कोई मरीज ऐसा हो जिसके शरीर में 50 बीमारियाँ हो तो ये समझ नही आता कि पहले कौन सी ठीक करें. तो उसकी सबसे बड़ी बीमारी को अगर ठीक कर दिया तो बाकि अपने आप ठीक हो जाएँगी. और 99% करोनिक पेशेंट की अंतिम बीमारी निकलती है पेट की कब्जियत (कोंस्टीपेशन). और जब भी उनको कोई ऐसी दवाई दें जिससे कब्जियत ठीक हो जाए तो उनकी अन्य बीमारियाँ अपने आप ठीक हो जाती है.
राजीव जी कहते हैं कि वो बहुत से संधिवाद के पेशेंट को पेट साफ़ होने की दवाई देते थे और ये नही बताते थे कि ये संधिवाद की दवाई नही है. क्यूंकि जैसे ही पेट साफ होने लगता है तो घुटनों का दर्द अपने आप ठीक होने लगता है. जैसे ही पेट साफ़ होने लगता है पेट अपने आप साफ़ होने लगता है, नींद अच्छी आने लगती है. पेट साफ़ होते ही शरीर के जॉइंट पैन अपने आप निकलने लगता है. और अंतिम निष्कर्ष ये है कि हम जो यूरोप का खान पान अपने घर में ले आए है इसने हमको फसा दिया है.
इस एक रोग को खत्म करने से 80% रोग अपने आप चले जाएंगे.
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Thursday, 6 December 2018

दूर हो जाएगी पैसों की दिक्कत

घर के दरवाजे पर टांग दें इस पौधे की जड़, हमेशा के लिए दूर हो जाएगी पैसों की दिक्कत
कई बार लोग मेहनत के बावजूद पैसों की बचत नहीं कर पाते हैं। इसकी वजह घर में किसी तरह का वास्तु दोष होना एवं कुंडली में अशुभ ग्रहों का प्रभाव होना हो सकता है। इन सबसे छुटकारा पाने के लिए अका के पौधे का उपाय बहुत कारगर साबित होता है, तो कैसे करें इसका इस्तेमाल आइए जानते हैं।
1.अगर आप किसी को अपनी ओर आकर्षित करना चाहते हैं तो गुरु पुष्य या रवि पुष्य नक्षत्र में सुबह के समय आक की जड़ को साफ कर लें और इसे पानी के साथ पीस लें। फिर इस पेस्ट को रुई के साथ मिलाकर बत्ती बनाएं और उसे दीपक में डालकर काजल तैयार कर लें। इसके बाद इस काजल को गणपति जी के मूल मंत्र के साथ अपनी आंखों पर लगा लें। इससे लोग आपकी ओर खिंचने लगेंगे।
2.जिनके पास पैसा नहीं टिकता है व हमेशा रुपयों की तंगी बनी रहती हैं उन्हें इससे बचने के लिए अपने घर के मुख्य दरवाजे पर आक की जड़ को काले कपड़े में लपेटकर लटका देना चाहिए। ऐसा करने से घर में नकारात्मक शक्तियां नहीं आएगी। साथ ही घर में सुख—समृद्धि में वृद्धि होगी।
3.अगर आपके बच्चे को बार—बार नजर लग जाती है तो इससे छुटकारा पाने के लिए सफेद आक की जड़ को गणपति जी के मंत्र 'ॐ गं गणपतये नमः' या 'ॐ श्री विघ्नेश्वराय नमः' से 108 बार जाप करते हुए अभिमन्त्रित करके बच्चे को गले में पहनाना चाहिए। इससे नजरदोष से बचाव होगा।
4.अगर किसी पर भूत—प्रेत बाधा है तो उन्हें सफेद आक की जड़ बांधनी चाहिए। इससे धारण करने से पहले जड़ को बजरंगबली के चरणों में रखकर उनके किसी भी सिद्ध मंत्र से अभिमंत्रित कर लेना चाहिए। ऐसा करने से प्रेत बाधा आपको छू भी नहीं पाएगी।
5.अगर बुरी नजर की वजह से बच्चे की तबियत अक्सर खराब रहती है तो रवि पुष्य या गुरु पुष्य के दिन श्वेत आक के 11 फूलों की माला बनाकर बच्चे को पहनाना चाहिए।
6.यदि घर की बरक्कत रुक गई हो और सारे काम बिगड़ रहें हो तो सफेद आक की जड़ को गणेश जी के सामने रखें। अब इसे पूजा के बाद अपनी तिजोरी में रख दें। इससे धन संबंधित समस्याएं दूर हो जाएंगी।
7.आक का उपाय सेहत के लिए भी बहुत लाभकारी है। जिन लोगों को शारीरिक कमजोरी लगती है उन्हें आक की जड़ का रस पीने से लाभ होगा।
8.जिन्हें कान में दर्द रहता है या बुखार है तो सफेद आक की जड़ को पीसकर इसके रस को पीने से ज्वर ठीक हो जाएगा। साथ ही इसके लेप को कान के पास रखने से दर्द से छुटकारा मिलेगा।
9.सफेद आक का पौधा आसानी से कहीं भी मिल सकता है। वैसे अधिकतर यह शुष्क और ऊंची भूमि में देखने को मिलता है। सफेद आक का पौधा करीब 5 फुट चौड़ा और 7 फुट ऊंचा होता है। इसके पत्ते बरगद के पत्तों के समान मोटे होते हैं। सामान्य आक के पत्ते हरे रंग के होते हैं, लेकिन सफेद आक के पत्ते सफेद रंग के ही होते है।
10.सफेद आक का प्रयोग ज्यादातर तंत्र विद्या में किया जाता है। इसमें फूल भी होते हैं। इसकी जड़ से निकलने वाले दूध से कई ज्योतिषीय क्रियाएं सम्पन्न होती हैं।

Tuesday, 4 December 2018

अमरूद

अमरूद स्वाद में तो लाजवाब होता ही है, स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह उपयोगी फल है। पौष्टिकता से भरपूर अमरूद को संस्कृत में अमृतफल कहते हैं।
क्या आप जानते हैं?
पके अमरूद के बजाय कच्चे अमरूद में विटामिन सी अधिक मात्रा में होता है।
भोजन से पहले अमरूद के नियमित सेवन से कब्ज़ की शिकायत नहीं होती है।
अमरूद सेरम कोलेस्ट्राल घटा कर उच्च रक्तचाप से बचाव करता है।
अमरूद के बीज को खूब चबा-चबा कर खाए जाएँ तो शरीर को लौह तत्व की पूर्ति होती है।
अमरूद विश्व में सर्वाधिक मात्रा में भारत में ही पैदा होता है।
अमरूद का पेड़ तीन से दस मीटर तक ऊँचा बारहों महीने हराभरा रहने वाला पेड़ है। पेड़ का तना काफी पतला होता है और उपर की हरी-भूरी खाल बीच-बीच में छिलती नज़र आती है। नई निकली छोटी-छोटी टहनियों पर पत्तों के पास सफेद रंग के फूल कहीं एक तो कहीं २-३ फूलों के गुच्छे में नज़र आते है। अमरूद का फल कभी गोल, कभी हल्का-सा लम्बा होता है। अमरूद का छिलका एकदम पतला हरे पीले रंग का होता है और अंदर का गूदा मुलायम और दानेदार होता है। इस गूदे में अन्दर फल के बीचोबीच सख्त बीज होते हैं। कुछ अलग जाति के अमरूद बीजरहित भी होते हैं। अलग-अलग जातियों के अमरूद का स्वाद भी अलग होता है।
अमरूद ४-५ दिन तक ताज़े रहते हैं लेकिन यदि फ्रिज में रखेंगे तो १०-१२ दिन तक अच्छे रहते हैं। अमरूद कभी छीलकर खाना नहीं चाहिए क्यों कि इनमें विटामिन सी काफी मात्रा में होता है जो दांतों और मसूढे के रोगों तथा जोड़ों के दर्द में बहुत ही उपयोगी है। पके हुए १०० ग्राम अमरूद से हमें १५२ मि. ग्रा. विटामिन सी, ७ ग्राम पाचनक्रिया में सहायक रेशे, ३३ मि. ग्रा. कैल्शियम और १ मि. ग्रा. लोहा प्राप्त होता है। साथ ही इसमें फॉस्फोरस और पोटैशियम की प्रचुर मात्रा होती है जो शरीर को पुष्ट बनाती है। अमरूद के पेड़ की जड़े, तने, पत्ते सभी दवा बनाने में काम आते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार अमरूद कसैला, मधुर, खट्टा, तीक्ष्ण, बलवर्धक, उन्मादनाशक, त्रिदोषनाशक, दाह और बेहोशी को नष्ट करने वाला है। बच्चों के लिए भी यह पौष्टिक व संतुलित आहार है। अमरूद से स्नायु-मंडल, पाचन संस्थान, हृदय तथा दिमाग को बल मिलता है।
पेट दर्द में अमरूद का सफ़ेद गूदा हल्के नमक के साथ खाने से लाभ मिलता है। पुराने जुकाम के रोगी के लिए आग में भुना हुआ गरम गरम अमरूद नमक और काली मिर्च के साथ स्वास्थ्य लाभ दे सकता है। चीनी चिकित्सक अल्बर्ट विंग नंग लियांग ने अमरूद के फल और पत्तियों के चूर्ण के प्रयोग से मधुमेह के रोग पर आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त की है। अमरूद के पत्ते को पानी में उबालकर उसमें नमक डालकर चेहरे पर लगाने से मुहासों से छुटकारा मिलता है।
हरा यानी ज़रा-सा कच्चा या फिर पीला याने पका अमरूद खाने में बड़ा स्वादिष्ट होता है। इससे जैम-जेली, गूदा या रस हर तरह से प्रयोग में लाया जाता है।
मलेशिया में पेरक, जोहोर, सेलंगोर और नेगरी सेंबिलन जैसी जगह अमरूद के पेड़ काफी मात्रा में लगाए जाते हैं। अमेरिका के अपेक्षाकृत गरम प्रदेश जैसे मेक्सिको ले कर पेरू तक, अमरूद के पेड़ उगाए जाते हैं। कहते हैं कि अमरूद का अस्तित्व २००० साल पुराना है पर आयुर्वेद में अमृतफल के नाम से इसका उल्लेख इससे हज़ारों साल पहले हो चुका है।
१५२६ में कैरेबियन द्वीप पर इसकी खेती पहली बार व्यावसायिक रूप से की गई। बाद में यह फ़िलीपीन और भारत में भी प्रचलित हुई। अब तो दुनिया भर में अमरूद को व्यावसायिक लाभ के लिए उगाया जाता है। अमरूद का पौधा किसी भी तरह की मिट्टी में या तापमान में बढ़ सकता है लेकिन सही मौसम और मिट्टी में बढ़नेवाले पौधों में लगे अमरूद स्वादिष्ट होते हैं।

सहजन - Moringa

सहजन जिसे आयुर्वेद में 200 बीमारियों के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है . महर्षि चरक ने चरक संहिता के तीसरे अध्याय में इसे कृमिघ्ना यानी कृमि ( कीड़े ) नाशक बताया है . आयुर्वेद इसे शोभांजना ( Auspicious tree ) , तीक्ष्णगंधा , अक्षीवा और मोचका कहा गया है .आयुर्वेद में इसके रस को कटु , तिक्त (bitter) उष्ण प्रकृति का और वात तथा कफ को बैलेंस करने वाला बताया गया है
अब साइंसटिफिक तरीके से इसे समझते है . इसका वैज्ञानिक नाम Moringa oleifera है . यह उष्ण कटिबंधीय जलवायु में पाया जाता है
भारत के विभिन्न हिस्सों में इसे खाया जाता है , जितना इसे नार्थ इंडियन पकवान में खाते है उतना ही साउथ इंडियन भी उपयोग करते है . इसके जड़ में , फूल में ,पत्तियों में , फल में और इसके तेल में बहुत सी चीजे पायी जाती है जैसे glucosinolates , isothiocyanates , glucuronic acid , nine amino acid ,beta sitostenone , beta sitosterol , L arabinos , galactose आदि , अगर मै इसमें पाए जाने वालो केमिकल कम्पाउंड को सिर्फ लिख दूँ तो 3 पेज भर जायेंगे
मै इसमें पाए जाने वाले हर एक कम्पाउंड के फायदे लिख सकती हूँ , मिसाल के तौर पर beta sitostenone शरीर के बैड कोलेस्ट्रॉल को कम करने वाला केमिकल है , ये इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है ,जिससे ये कोलन कैंसर , कोल्ड फ्लू , रह्युमेटोइड आर्थराइटिस , टी बी , आदि से बचाता है , यानी की हर एक केमिकल का अपना उपयोग है
आज सहजन पर अपनी पिछली पोस्ट को आगे बढ़ा रही हूँ , सबसे अच्छी बात जो सहजन के साथ है वह इसका एंटीऑक्सिडेंट्स गुण है ,ये anti-इंफ्लेमेटरी भी है . इस लिए दिल के मरीजों , है बी पी के मरीज , ब्लड शुगर के मरीज , जॉइंट्स पेन के मरीज , गठिया के मरीज के लिए विशेष फायदेमंद है . साइंसटिस्ट इसमें पाए जाने वाले isothiocyanates को सूजन कम करने वाला मानते है .
अब इसके फायदे बिंदुवार ढंग से जानते है
1-हाई बी पी के मरीज इसकी पत्तियों का काढ़ा बना के पी सकते है , ये बैड कॉलेस्ट्रॉल को भी कम करता है ,इसमें पोटैशियम पाया जाता है . किसी बर्तन में डेढ़ गिलास पानी में सहजन की ताजी पत्तियों को उबाले ,आधा गिलास होने पर उसे छान के पी ले .
2- इसमें कैल्शियम भी पाया जाता है ,जो बच्चो में हड्डियों का विकास करता है . साथ में आयरन मैग्नीशियम भी होता है .बच्चो को इसके फली और पत्ती का सूप बना के दे सकते है . एक तरीका ये है की इसके फली और पत्ती को उबाल के उस पानी को वेजिटेबल स्टॉक के रूप में प्रयोग कर सकते है
3- सहजन मेटाबॉलिस्म को सुधारता है इसलिए ये मोटापा भी कम करता है , विटामिन B-कॉम्पलेक्स एवं फोलिक एसिड, पाइरीडॉक्सिन (pyridoxine) सहजन की पत्तियों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है यह ये सभी तत्व भोजन का आसानी से पचने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सहजन की पत्तियों में मौजूद विटामिन पाचन क्रिया को रेगुलेट करते हैं। इसकी सूखी पत्तियों का पावडर गर्म पानी से सेवन किया जा सकता है
4- इसमें जिंक पाया जाता है जो स्पर्म के लिए जरुरी है , इसके सेवन से वीर्य गाढ़ा और पुष्ट होता है , पुरुषो में लो स्पर्म काउंट में प्रभावी है
5- इसमें एंटी फंगल , एंटी बैक्टेरियल गुण है , ये विटामिन A से भी युक्त है , इसके सेवन से त्वचा चमकदार बनती है
6- स्किन कैंसर , प्रोस्टेट कैंसर से बचाता है , ट्यूमर को गलाता है , सिस्ट को गलाता है .
7- आस्टियोपोरोसिस के मरीज को जैविक और नेचुरल कैल्शियम उपलब्ध कराता है
8- सूजन को कम करने वाली हर्बल क्रीम और मसल्स की पीड़ा को दूर करने वाली क्रीम बनाने में सहजन के फूलों का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा सहजन के फूलों का चाय बनाकर पीने से इसमें मौजूद पोषण की वजह से महिलाओं में यूटीआई की समस्या खत्म हो जाती है
9- एंटीबायोटिक गुणों से भरपूर होने के कारण ड्रमस्टिक की जड़ों का उपयोग बहुत सी बीमारियों को दूर करने में किया जाता है। सहजन अस्थमा, पाचन की बीमारी, गैस, त्वचा की समस्याएं, थायरॉइड और सूजन को दूर करने में बहुत उपयोगी होता है
10- सहजन में विटामिन सी की मात्रा बहुत होती है। विटामिन सी शरीर के कई रोगों से लड़ता है खासतौर पर सर्दी जुखाम से
इसके गुण के बखान करने में कई पोस्ट लग जाएगी क्यों की आयुर्वेद में इसे 200 बीमारियों में प्रयोग करने को कहा जाता है , इसलिए इसका सेवन किसी न किसी रूप में करना चाहिए . इसका सूप बना के पिए ,
सब्जी बना के खाये , इसे उबाल के उस पानी का प्रयोग वेजिटेबल स्टॉक्स में करे , इसका सप्लीमेंट्स भी आता है ,उसका प्रयोग कर सकते है
सावधानी इस बात की रखे की अगर आप किसी रोग से ग्रस्त है तो इसके सेवन से पूर्व डाक्टर से बात करे , हालाँकि डाक्टर भी मना नहीं करेंगे ,
लेकिन आप को अपना चेकप करते रहना होगा , जैसे आप शुगर के मरीझै और इसका सेवन कर रहे है तो 2दिन के अंतराल में अपना शुगर नापते रहे की उसमे कम या ज्यादा क्या हो रहा है . फिर उसी हिसाब से डाक्टर को बता के अपनी डोज सेट कराये , यही बात हाई बी पी के लिए भी है
ये गर्म नेचर का है ,इसलिए गर्भवस्था में , दूध पिलाती महिलाये इसका सेवन ना करे 

गौ मूत्र फिनायल बनाने की विधि (केमिकल रहित)

             *सामग्री* गौ मूत्र      *एक लीटर* नीम पत्र    *200 ग्राम सूखा* पाइन आयल इमल्सीफायर युक्त     *50 ग्राम* उबाला हुआ पा...