यह पूर्ण और यथार्थ सत्य है कि जिस स्त्री ने
या पुरुष ने किसी आध्यात्मचिन्तक मनुष्य
का संग नहीं किया है, तथा आध्यात्मिक
ग्रंथों का अध्ययन नहीं किया है , वह स्त्री और वह
पुरुष कितना भी धनवान, बलवान,और बुद्धिमान क्यों न हो, वह मानसिक सन्ताप ,तथा मानसिक अशांति से छुटकारा नहीं पा सकता है ।
जैसा सुनेंगे,और जैसा पढ़ेंगे, तथा जैसे व्यक्ति से वार्तालाप करेंगे, आपका मन वैसे ही
विचारों से प्रभावित हो जाता है । संसार के प्रत्येक मनुष्य को दुखी देखकर अनुमान
होता है कि ये रात दिन अप्राप्त वस्तुओं को इकट्ठा करने में व्यस्त हैं, तथा प्राप्त वस्तुओं की रक्षा करने में व्यग्र है ।
अध्यात्म चिन्तन के बिना इन दुखियों को कभी नहीं
पता चलता है कि " इतने परिश्रम के बाद भी , इतना सबकुछ होते हुए भी , परिवार के सभी सदस्य आस पास होते हुए भी ,आखिर में मैं इतना चिन्तित और व्याकुल क्यों
रहता हूँ ?
ऐसा विचार इसीलिए
नहीं उठता है,क्यों कि न तो
ऐसे विचारक किसी महापुरुष से मिलते हैं, और न ही किसी महापुरुष के विचार ग्रंथों को पढ़ते हैं । अब देखिए कि सृष्टि के निर्माता ब्रह्मा जी इस दुख से
भरे संसार के विषय में भगवान श्री कृष्ण से क्या कह रहे हैं ।
*"भागवत के 10
वें स्कन्ध के 14 वें अध्याय के 21 वें श्लोक* को ध्यान से पढ़िए और
विचार करिए । "
*को वेत्ति भूमन् भगवन्
परात्मन् योगेश्वरोतीर्भवतस्त्रिलोक्याम् ।
क्व वा कथं वा
कति वा कदेति विस्तारयन् क्रीडसि योगमायाम् ।।*
ब्रह्मा जी ने स्तुति करते हुए भगवान श्री कृष्ण
से कहा कि हे भगवन् ! हे परमात्मा ! हे
योगेश्वर ! तीनों लोकों में मेरे सहित अनेक ज्ञानवान ऋषि महर्षि , इन्द्रादि देवता कोई भी नहीं जानते हैं कि इस
मायामय संसार में आप अपनी योगमाया से कहां, , कब, कितना, कैसे, कब तक ,क्या करना चाहते हैं । क्यों कि आप के लिए तो
यह अपनी माया के साथ एक क्रीडा है ।
आपके लिए खेल है
। ये सारे मृत्युलोक , स्वर्गलोक ,पातालादि लोक आपके क्रीडास्थल हैं । देवता,
दानव, मनुष्य ,स्त्री पुरुष आदि
सभी जीव ही आपके साथ खेलनेवाले साथी हैं ।जीवों को पता ही नहीं कि दुख, सुख, स्त्री पुरुष, उत्पत्ति ,विनाश ,रोना ,हंसना ,मरना ,पैदा होना ,बड़ा होना ,घटना , बुद्धिमान होना ,बेईमान होना आदि
कबसे चल रहा है ?और कब तक चलेगा ?
कहाँ कहाँ चलेगा ?
यह किसी भी दुखी मनुष्य को पता नहीं है कि मेरा
दुख कैसे शुरू हो गया है ? कब तक यह दुख
रहेगा ? किस किस से कहां, कैसे ,कब तक, दुख मिलेगा । तथा न ही ये
किसी को पता है कि जो अभी सुख मिल रहा है ,वह क्यों मिल रहा है?कैसे मिल रहा है?कब तक मिलेगा?किस किस से मिलेगा? कहाँ कहाँ मिलेगा ?
क्यों कि यह सुख
दुख ,अपने पराए ,जन्म मृत्यु ,दुष्ट सज्जन ,राजा प्रजा ,स्त्री पुरुष ,
ईमानदार बेईमान ,आदि का खेल कोई और खेल रहा है ।इन मरे हुए पुतलों को क्या
पता है कि जिसने बनाया है वही खेल रहा है ।वही तोड़ेगा । वही सुरक्षित रखेगा ।
वही फेंकेगा ।कुछ
पुतलों को सुरक्षित रखेगा ,कुछ पुतलों को
बाहर ही पड़े रहने देगा , कुछ को सजाएगा ,कुछ पुतलों को नंगा ही खड़ा रखेगा । किसी को
किसी के पीछे भगाएगा , पकड़ाएगा ,
फिर छुड़ाएगा । किसी को किसी से मरवाएगा ,
तो किसी से किसी को बचाएगा ।
सोचिए कि यदि इस
खेल को कोई खेल रहा है तो आपके रोने चिल्लाने से वह हंसेगा कि दुखी होगा ? हंसेगा ही । क्यों कि खिलाड़ी जिस पुतले को
रुलाना चाहता है ,वह रोएगा ,तभी तो वह खुश होगा , फिर कोई उसे चुप कराएगा ,तो वह खिलाड़ी दोनों को देखकर ऐसे हंसेगा जैसे बच्चा ताली
बजाते हुए बंदर के खिलौने को देखकर खुद ताली बजा बजा कर हंसने लगता है ।
भगवान भी आप सभी
को दुखी सुखी देखकर खूब हंसते हंसते खुश होते रहते हैं । कोई दो पुतले लड़ रहे हैं ,
फिर कोई पुलिस बनकर एक पुतला पकड़कर ले जाता है
।
निर्णय देने के
लिए एक पुतला कुर्सी पर पहले से ही बैठा हुआ है ।उसने जैसा कहा ,वैसा होने लगा । जेल में गया हुआ पुतला ,अपने जैसे हजारों पुतलों के साथ रहने लगा ।
यहां पिटा हुआ पुतला उसकी सजा से खुश हो गया । स्वयं तो परेशान हुआ है ,फिर भी खुश है ।
बस ,सारा का सारा खेल ऐसा ही खेला जा रहा है ।ऐसा
ही खेला जाएगा । लेकिन यह खेल जिस किसी पुतले को पता चल जाएगा ,वह चुपचाप सारे काम बंद करके उस खिलाड़ी के साथ
बैठकर हंसेगा ।
वही तो महात्मा
है ।इसलिए वह आपके जैसे काम बंद करके नंगा भूखा ,रहकर भी हंसता खेलता है ।आपको यदि खिलाड़ी का खेल समझना है
तो उस महात्मा के पास जाओ और उसके खेल को समझ लो और मस्त हो जाओ । राधे राधे ।
*-आचार्य ब्रजपाल शुक्ल ,वृन्दावनधाम*