आप लोग अभी कुछ दिनों से समाचार पत्रों में पढ़ रहे होंगे ,और टी. बी. आदि में देख सुन रहे होंगे कि उ.प्र.के मुख्यमंत्री जी ने कहा है कि " हनुमान जी दलित थे " ।
वे यहीं नहीं रुके , उन्हें इतना कहने से संतोष नहीं हुआ तो फिर से बोले कि " वेदों के सभी ऋषि हरिजन थे " । कुछ लोगों को बहुत ही बुरा लगा ।
तथा आश्चर्य भी हुआ । यहां तक चर्चा होने लगी कि " एक महात्मा होकर , उस पर भी मुख्यमंत्री होकर योगी जी को ऐसा नहीं कहना चाहिए था ।
वैसे तो प्रायः सभी दलित समाज हरिजन समाज भा.ज.पा. के लोगों से परहेज करते हैं , लेकिन मुख्यमंत्री की बात को प्रामाणिक मानकर बहाना लेकर सभी लोग इकट्ठे होकर आगरा लखन ऊ आदि में कुछ स्थानों में हनुमान मंदिर में पहुंच गए और ब्राह्मणों को हटाकर स्वयं पूजा अर्चना करने के लिए जबरदस्ती तैयार हो गए ।
अलग से हनुमान जी के मंदिर नहीं बना रहे हैं । किंतु बने बनाए मंदिरों में अपना हक दिखा रहे हैं ।
हनुमान जी दलित थे तो क्या अब उनकी पूजा और कोई नहीं कर सकते हैं ?
हनुमान चालीसा तो ब्राह्मण का बनाया हुआ है । अब चालीसा भी अलग से कोई बनाओ ।
कल को मुसलमान भी कहेंगे कि अब्दुल कलाम तो हमारे थे , अब उनकी बनाईं हुईं सभी मिसाइलें हमारीं हैं ।उन्हें और कोई नहीं चला सकता है ।मुसलमान ही चलाएंगे ।
इसीलिए भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि अज्ञानी मनुष्य को उसकी बुद्धि के स्तर को देखकर ही ज्ञान और कर्म का उपदेश करना चाहिए ।
कर्म करने के योग्य मनुष्य को कर्म का ही उपदेश करना चाहिए ।
ज्ञान का उपदेश दिया जाएगा तो कर्म का त्याग भी कर देगा और ज्ञान भी नहीं हो सकेगा ।
अर्थात बुद्धिमान व्यक्ति को कुछ भी कहने के पहले ,कुछ भी करने के पहले परिणाम का विचार कर लेना चाहिए ।
राजनेता बनने के पहले तो योगी आदित्यनाथ जी एक अच्छे दिव्य संप्रदाय से दीक्षित हैं
इनके गुरुदेव ब्रह्मलीन अवैद्यनाथ जी भी सांसद रहे हैं । आपका गोरखपुर में मंदिर भी सुसमृद्ध है ।
योगी आदित्यनाथ जी को विरासत में राजनीति तो प्राप्त हुई है लेकिन एक अच्छे विरक्त ज्ञान ,कर्म भक्ति सम्पन्न शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त नहीं हो पाया है ।
अनेक महात्माओं ने अनेक प्रकार के परोपकारी सामाजिक पुण्यशाली कार्य किए हैं ।
ये भी कर रहे हैं , लेकिन इनका कार्य एक महात्मा के समान सार्वभौम प्रेरणादायक कार्य नहीं है ।
"प्रभुता पाइ काह मद नाहीं " । पद और धन पाकर किसको अहंकार नहीं हो जाता है ? अर्थात सबको हो जाता है ।
न तो योगी आदित्यनाथ जी सम्प्रदाय का ज्ञान कर पाए ,और न ही एक अच्छे सर्वप्रिय महात्मा ही बन पाए ,तथा न ही एक अच्छे सम्माननीय राजनेता ही बन पाए
क्यों कि वोट लोभ तथा पद के अहंकार ने इनके सभी दुर्गुणों को प्रगट करके सद्गुणों को भस्मीभूत कर दिया है ।
हिन्दुओं के पक्षपाती भाषणों के कारण योगी आदित्यनाथ जी लोकप्रिय हुए थे , लेकिन आज उनके प्रति महात्माओं की तथा उच्चवर्ण के समाज की धिक्कार भावना जग रही है ।
आज उन्हें पद के कारण भले अहसास न हो रहा हो , किन्तु आयु और पद की समाप्तिकाल में योगी जी को अपने कथनों और कर्मों पर जितना पश्चात्ताप होगा , इतना पश्चात्ताप शायद फांसी के सजायाप्ता मुजरिम को भी नहीं होगा ।
क्यों कि हर मनुष्य को वृद्धावस्था के असमर्थकाल में ही अपने कर्मों का फल प्राप्त होता है ।
वे एक न एकदिन अवश्य सोचेंगे कि एकदिव्य योगियों के परंपरा में दीक्षा लेने के बाद भी मैं एक अच्छा योगी न बन पाया ।
तथा न ही एक दयालु ,निर्मल , निर्लोभी , सर्वसमाजपूज्य महात्मा बन पाया । और न ही पद प्रतिष्ठा प्राप्त करके भी हिन्दुओं के लिए कुछ नहीं कर पाया ।
और न ही एक सामान्य पारिवारिक सुख प्राप्त कर पाया । न तो भगवान का प्रिय बन पाया ,तथा न ही किसी भी समाज का प्रिय बन पाया ।
इस माया की चकाचौंध ने मेरा पूरा पुरुष जीवन , मनुष्य जीवन ही नष्ट कर दिया । पता नहीं अब मरने के बाद पुनः ऐसा अवसर मिलेगा कि नहीं ।
धन ,पद ,बल ,वैभव , योगियों का संप्रदाय , महात्मा वेष , क्षत्रिय जाति में जन्म , कुशल वक्तृत्वशैली , निर्भीकता आदि दिव्य गुण मुझे परमात्मा ने दिए थे , लेकिन मैं कुछ नहीं कर पाया । राजनेताओं की कुसंगति में फंसकर मैंने आत्मविनाश कर लिया ।
" तुलसीदास जी ने कहा है कि " संग ते यती कुमंत्र ते राजा " कुसंग से महात्मा यति नष्ट हो जाता है ,और कुमंत्रियों से राजा नष्ट हो जाता है । यही दशा आज योगी आदित्यनाथ जी की हो गई है ।
" न खुदा ही मिला न विसाले शनम " । राधे राधे ।
-आचार्य ब्रजपाल शुक्ल , वृन्दावन धाम ।
वे यहीं नहीं रुके , उन्हें इतना कहने से संतोष नहीं हुआ तो फिर से बोले कि " वेदों के सभी ऋषि हरिजन थे " । कुछ लोगों को बहुत ही बुरा लगा ।
तथा आश्चर्य भी हुआ । यहां तक चर्चा होने लगी कि " एक महात्मा होकर , उस पर भी मुख्यमंत्री होकर योगी जी को ऐसा नहीं कहना चाहिए था ।
वैसे तो प्रायः सभी दलित समाज हरिजन समाज भा.ज.पा. के लोगों से परहेज करते हैं , लेकिन मुख्यमंत्री की बात को प्रामाणिक मानकर बहाना लेकर सभी लोग इकट्ठे होकर आगरा लखन ऊ आदि में कुछ स्थानों में हनुमान मंदिर में पहुंच गए और ब्राह्मणों को हटाकर स्वयं पूजा अर्चना करने के लिए जबरदस्ती तैयार हो गए ।
अलग से हनुमान जी के मंदिर नहीं बना रहे हैं । किंतु बने बनाए मंदिरों में अपना हक दिखा रहे हैं ।
हनुमान जी दलित थे तो क्या अब उनकी पूजा और कोई नहीं कर सकते हैं ?
हनुमान चालीसा तो ब्राह्मण का बनाया हुआ है । अब चालीसा भी अलग से कोई बनाओ ।
कल को मुसलमान भी कहेंगे कि अब्दुल कलाम तो हमारे थे , अब उनकी बनाईं हुईं सभी मिसाइलें हमारीं हैं ।उन्हें और कोई नहीं चला सकता है ।मुसलमान ही चलाएंगे ।
इसीलिए भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है कि अज्ञानी मनुष्य को उसकी बुद्धि के स्तर को देखकर ही ज्ञान और कर्म का उपदेश करना चाहिए ।
कर्म करने के योग्य मनुष्य को कर्म का ही उपदेश करना चाहिए ।
ज्ञान का उपदेश दिया जाएगा तो कर्म का त्याग भी कर देगा और ज्ञान भी नहीं हो सकेगा ।
अर्थात बुद्धिमान व्यक्ति को कुछ भी कहने के पहले ,कुछ भी करने के पहले परिणाम का विचार कर लेना चाहिए ।
राजनेता बनने के पहले तो योगी आदित्यनाथ जी एक अच्छे दिव्य संप्रदाय से दीक्षित हैं
इनके गुरुदेव ब्रह्मलीन अवैद्यनाथ जी भी सांसद रहे हैं । आपका गोरखपुर में मंदिर भी सुसमृद्ध है ।
योगी आदित्यनाथ जी को विरासत में राजनीति तो प्राप्त हुई है लेकिन एक अच्छे विरक्त ज्ञान ,कर्म भक्ति सम्पन्न शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त नहीं हो पाया है ।
अनेक महात्माओं ने अनेक प्रकार के परोपकारी सामाजिक पुण्यशाली कार्य किए हैं ।
ये भी कर रहे हैं , लेकिन इनका कार्य एक महात्मा के समान सार्वभौम प्रेरणादायक कार्य नहीं है ।
"प्रभुता पाइ काह मद नाहीं " । पद और धन पाकर किसको अहंकार नहीं हो जाता है ? अर्थात सबको हो जाता है ।
न तो योगी आदित्यनाथ जी सम्प्रदाय का ज्ञान कर पाए ,और न ही एक अच्छे सर्वप्रिय महात्मा ही बन पाए ,तथा न ही एक अच्छे सम्माननीय राजनेता ही बन पाए
क्यों कि वोट लोभ तथा पद के अहंकार ने इनके सभी दुर्गुणों को प्रगट करके सद्गुणों को भस्मीभूत कर दिया है ।
हिन्दुओं के पक्षपाती भाषणों के कारण योगी आदित्यनाथ जी लोकप्रिय हुए थे , लेकिन आज उनके प्रति महात्माओं की तथा उच्चवर्ण के समाज की धिक्कार भावना जग रही है ।
आज उन्हें पद के कारण भले अहसास न हो रहा हो , किन्तु आयु और पद की समाप्तिकाल में योगी जी को अपने कथनों और कर्मों पर जितना पश्चात्ताप होगा , इतना पश्चात्ताप शायद फांसी के सजायाप्ता मुजरिम को भी नहीं होगा ।
क्यों कि हर मनुष्य को वृद्धावस्था के असमर्थकाल में ही अपने कर्मों का फल प्राप्त होता है ।
वे एक न एकदिन अवश्य सोचेंगे कि एकदिव्य योगियों के परंपरा में दीक्षा लेने के बाद भी मैं एक अच्छा योगी न बन पाया ।
तथा न ही एक दयालु ,निर्मल , निर्लोभी , सर्वसमाजपूज्य महात्मा बन पाया । और न ही पद प्रतिष्ठा प्राप्त करके भी हिन्दुओं के लिए कुछ नहीं कर पाया ।
और न ही एक सामान्य पारिवारिक सुख प्राप्त कर पाया । न तो भगवान का प्रिय बन पाया ,तथा न ही किसी भी समाज का प्रिय बन पाया ।
इस माया की चकाचौंध ने मेरा पूरा पुरुष जीवन , मनुष्य जीवन ही नष्ट कर दिया । पता नहीं अब मरने के बाद पुनः ऐसा अवसर मिलेगा कि नहीं ।
धन ,पद ,बल ,वैभव , योगियों का संप्रदाय , महात्मा वेष , क्षत्रिय जाति में जन्म , कुशल वक्तृत्वशैली , निर्भीकता आदि दिव्य गुण मुझे परमात्मा ने दिए थे , लेकिन मैं कुछ नहीं कर पाया । राजनेताओं की कुसंगति में फंसकर मैंने आत्मविनाश कर लिया ।
" तुलसीदास जी ने कहा है कि " संग ते यती कुमंत्र ते राजा " कुसंग से महात्मा यति नष्ट हो जाता है ,और कुमंत्रियों से राजा नष्ट हो जाता है । यही दशा आज योगी आदित्यनाथ जी की हो गई है ।
" न खुदा ही मिला न विसाले शनम " । राधे राधे ।
-आचार्य ब्रजपाल शुक्ल , वृन्दावन धाम ।
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