Monday 15 October 2018

गोबर में रेडियेशन अवशोषित करने का गुण है.

गोबर के गुण ---
- जब बाल कृष्ण को पूतना ने विषयुक्त दुग्धपान कराया था तो उस विष का दुष्प्रभाव दूर करने के लिए उन्हें गोबर से नहलाया गया था. गोबर में विष को अवशोषित करने के गुण होते है. गोबर का लेप लगा कर फिर स्नान करने से थोड़े समय बाद शरीर से एक अद्भुत सुगंध आती है.

- गोबर में रेडियेशन अवशोषित करने का गुण है.

- गोमय वसते लक्ष्मी- वेदों में कहा गया है कि गाय के गोबर में लक्ष्मी का वास होता है. गोमय गाय के गोबर रस को कहते है. यह कसैला एवं कड़वा होता है तथा कफजन्य रोगों में प्रभावशाली है. गोबर को अन्य नाम भी है. गोविन्द, गोशकृत, गोपरीषम, गोविष्ठा, गोमल आदि
- अग्रंमग्रं चरंतीना, औषधिना रसवने.
तासां ऋषभपत्नीना, पवित्रकायशोधनं..
यन्मे रोगांश्वशोकांश्व, पापं में हर गोमय.
अर्थात्- वन में अनेक औषधि के रस का भक्षण करने वाली गाय, उसका पवित्र और शरीर शोधन करने वाला गोबर. तुम मेरे रोग और मानसिक शोक और ताप का नाश करो.

- गोबर गणेश की प्रथम पूजा होती है और वह शुभ होता है. मांगलिक अवसरों पर गाय के गोबर का प्रयोग सर्वविदित है. जलावन एवं जैविक खाद आदि के रूप में गाय के गोबर की श्रेष्ठता जगत प्रसिद्द है.

- गाय का गोबर दुर्गन्धनाशक, शोधक, क्षारक, वीर्यवर्धक, पोषक, रसयुक्त, कान्तिप्रद और लेपन के लिए स्निग्ध तथा व्याधि को दूर करने वाला होता है. 

गोबर में नाईट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, आयरन, जिंक, मैग्निज, ताम्बा, बोरोन, मोलिब्दनम, बोरेक्स, कोबाल्ट-सलफेट, चूना, गंधक, सोडियम आदि मिलते है.

- गाय के गोबर में एंटीसैफ्टिक, एंटीडीयोएक्टिव एवं एंटीथर्मल गुण होता है गाय के गोबर में लगभग १६ प्रकार के उपयोगी खनिज तत्व पाये जाते है.

- मैकफर्सन के अनुसार गोबर के समान सुलभ कीटनाशक द्रव्य दूसरा नहीं है रुसी वैज्ञानिक के अनुसार आण्विक विकिरण का प्रतिकार करने में गोबर से पुती दीवारें पूर्ण सक्षम है. भोजन का आवश्यक तत्व विटामिन बी-12 शाकाहारी भोजन में नहीं के बराबर होता है.

- गाय की बड़ी आँतों में विटामिन बी-12 की उत्पत्ति प्रचुर मात्रा में होती है पर वहां इसका अवशोषण नहीं हो पाता अतः यह विटामिन गोबर के साथ बाहर निकल आता है. प्राचीनकाल में ऋषि-मुनि गोबर के सेवन से पर्याप्त विटामिन-बी-12 प्राप्त कर स्वास्थ्य लाभ देते थे. गोबर के सेवन तथा लेपन से अनेक व्याधियां समाप्त होती है.

- प्रो.जी.ई. बिगेंड- इटली के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक ने गोबर पर सतत प्रयोग से सिद्ध किया की गोबर में मलेरिया एवं क्षयरोग के जीवाणुओं को तुरंत नष्ट करने की क्षमता होती है.

- चेन्नई के डॉ. किंग के अनुसार गाय के गोबर में कीटाणु मारने की क्षमता रहती है, इसमें ऐसी बिमारी के समय दूषित पानी में गाय का गोबर पानी में मिलाकर पानी शुद्ध कर उपयोग करने से प्लेग नहीं होता है और जिस भाग में बिजली का करंट लगा हो उस भाग पर गाय का गोबर लगाने से बिजली के करंट के असर में कमी आती है.

- गाय के गोबर से बनी राख का उपयोग किसान भाई अपनी फसल को कीटाणुओं, बिमारियों व जीवजंतुओं से बचाने के लिए आदिकाल से प्रयोग करते आ रहे है.

- गाय का गोबर मल नहीं है यह मलशोधक है, दुर्गन्धनाशक है एवं उत्तम, वृद्धिकारक तथा मृदा उर्वरता पोषक है. यह त्वचा रोग खाज, खुजली, श्वासरोग, जोड़ों के दर्द सायटिका आदि में लाभदायक है. गोबर में बारीक़ सूती कपड़े को गोबर में दबाकर छोड़ दे थोड़ी देर बाद इस कपड़े को निचोड़कर गोमय प्राप्त कर सकते है. इससे अनेक लोग त्वचा रोगों में स्नान करते है. मुहासे दूर करके चेहरे की कान्ति बनाये रखता है, गोमय के साथ गेरू तथा मुल्तानी मिट्टी व नीम के पत्तों को मिलाकर नहाने का साबुन बनाया जाता है यह चेहरे की झुर्रियां दूर करता है.

- अपाने सर्वतीर्थानी गोमुत्रे जह्वन्वी स्वयं.
अष्टऐश्वर्य लक्ष्मी गोमय वसते सदा.
अर्थात्- गाय के मुख से निकली श्वास सभी तीर्थों के समान पवित्र होती है तथा गौमूत्र में सदा गंगा जी का वास रहता है और आठ ऐश्वर्यों से संपन्न लक्ष्मी गाय के गोबर में वास करती है.

- तृणं चरन्ती अमृतं क्षरंती :- गायमाता घास चरती है और अमृत की वर्षा करती है तथा गाय का गोबर देह पर लगाकर शरीर शुद्ध करते समय हमारे धर्म-कर्म में महत्व अधिक रहता है. इसलिए धर्मशास्त्र में गौ के गोबर को उच्च स्नान प्राप्त है. गोबर को सारे शरीर पर मलकर धूप में बैठने से दाद, खाज, खुजली, एग्जिमा, सोराइसिस आदि त्वचा रोग नष्ट हो जाते है.
- हमारे प्रायश्चित विधान में पञ्चगव्य (गोबर, गोमूत्र, दुग्ध, दही, घी) सेवन का बड़ा महत्त्व बताया गया है. जैसे अग्नि में ईंधन जल आता है, वैसे ही पञ्चगव्य प्राशन से पाप के दूषित संस्कार नष्ट हो जाते है. गोबर रोगों के कीटाणु और गन्ध को दूर करने में अद्वितीय है.

- छोटे बच्चों को संस्पर्श के रोग से मुक्त करने के लिए गोबर का तिलक देने की प्रथा है. भगवान की मूर्ति की प्रतिष्ठा में गोबर के भस्म से मूर्ति का मार्जन किया जाता है तथा उच्छिष्ठ स्थान को शुद्ध करने के लिए, गोबर का चौका लगाया जाता है.

- मृतगर्भ (पेट में गया हुआ बच्चा) बाहर निकालने के लिए (गोमय) गोबर का रस 7 तोला, गौदुग्ध में मिलाकर पिलाना चाहिए. बच्चा आराम से बाहर आ जायेगा और गोबर को उबालकर लेप करने से गठियारोग दूर होता है.
- पसीना बंद करने के लिए सुखाये हुए गोबर और नमक के पुराने मिट्टी के बर्तन इन दोनों के चूर्ण का शरीर पर लेप करना चाहिए और गुदाभ्रंश के लिए गोबर गर्म करके सेंक करना चाहिए और खुजली के लिए गोबर शरीर में लगाकर गरम पानी से स्नान करना चाहिए.

- शीतला माता के फूट निकले छालों पर गाय के गोबर को सुखाकर जलाकर राख को कपड़े में छानकर उसमें भर दें. इस पर यही श्रेष्ठ उपाय है और साधारण व्रण (घाव) के ऊपर घी में राख मिलाकर लेप करना चाहिए. गाय के ताजे गोबर की गन्ध से बुखार एवं मलेरिया रोगाणु का नाश होता है.

- पेट में छोटे-छोटे कीड़े हुए हो तो, गोबर की सफेद रख 2 तोला लेकर 10 टोला पानी मिलाकर, पानी कपड़े में छान ले. तीन दिन तक सुबह-शाम यही पानी पिलायें और रतौंधी में ताजे गोमय को लेकर के आँखे आंजने से दस दिन में रोग छुटकारा हो जायेगा.

- दांत की दुर्गन्ध, जंतु और मसुडे के दर्द पर गाय के गोबर को जलावें, जब उसका धुँआ निकल जायें तब उसे पानी में डालकर बुझा ले, सुख जाने पर चूर्ण बनाकर कपड़े से छान ले, इस मंजन से प्रतिदिन दांत साफ करने से दांत के सब रोग नष्ट हो जाते है.

- आयुर्वेदानुसार गाय के सूखे गोबर पावडर से ध्रूमपान करने से दमे, श्वास के रोगी ठीक होते है और हैजा के कीटाणु से बचने के लिए शुद्ध पानी में गोबर घोल कर छानकर पीने से कीटाणुओं से बचाव होता है और हैजा से मुक्त रहते है.

- लक्ष्मीश्च गोमय नित्यं पवित्रा सर्ममंगलता.
गोमयालेपनं तस्मात् कर्तव्यं पांडूनन्दन.
अर्थात् – गाय के गोबर में परम पवित्र सर्वमंगलमयी श्री लक्ष्मी जी नित्यनिवास करती है, इसलिए गोबर से लेपन करना चाहिए.

- सामन्यता गोमय कटु, उष्ण, वीर्यवर्धक, त्रिदोषशामक तथा कुष्ठघ्न, छर्दीनिग्रहण, रक्तशोधक, श्वासघ्न और विषघ्न है. यह विष नाशक है विषों में गोमय-स्वरस का लेप एवं अंजन उपयोगी साबित हुए है. गाय का गोबर मिर्गी रोग में, नस्य रूप में प्रयुक्त होता है. बिजौरा नींबू की जड़, गौघृत, मनःशिला को गोमय में पीसकर लेप करने से मुख की कान्ति बढ़ती है.

- आग से जल जाने पर गोबर का लेपन रामबाण औषधि है. ताजा गोबर का बार-बार लेप करते हुए उसे ठंडे पानी से धोते रहना चाहिए यह व्रणरोपण एवं कीटाणुनाशक है.

- सर्पदंश, विषधर सांप, बिच्छु या अन्य जीव के काटने पर रोगी को गोबर पिलाने तथा शरीर पर गोबर का लेप करने से विष नष्ट होता है. अति विषाक्ता की अवस्था में मस्तिष्क तथा ह्रदय को सुरक्षित रखता है. बिच्छु के काटने पर उस स्थान पर गोबर लगाने से भी उसका जहर उतर जाता है.

- पञ्चगव्य घृत के सेवन से उन्माद, अपस्मार शोध, उदररोग, बवासीर, भगंदर, कामला, विषज्वर तथा गुल्म का निवारण होता है. मनोविकारों को दूर कर पञ्चगव्य घृतस्नायुतंत्र को परिपुष्ट करता है.

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