ब्राह्मण जाति से ,गौ से और शास्त्रों से ऐसा द्वेष और ईर्ष्या क्यों??
कलियुग के अमोघ प्रभाव के कारण आजकल शाशन से लेकर समाज के सभी हरिजन वर्ग को अज्ञान के कारण अकारण ही ब्राह्मण जाति से ,गौ से और शास्त्रों से ऐसा द्वेष और ईर्ष्या हो रहे हैं कि जिसको भी देखो ब्राह्मण और शास्त्रों की घोर निंदा करते मिलते हैं ।
न तो उन्होंने कभी शास्त्रों को देखा है और न ही कभी अच्छे ब्राह्मण से मिले हैं । कुछ ब्राह्मण भी ऐसे हैं कि हरिजनों और सरकार के इस द्वेष का समर्थन करते हैं ।
भक्ति और पूजा के विषय में भी हरिजन लोग शास्त्रों की और ब्राह्मणों की बात न मानकर अपने मन का करके भक्ति का नाम दे रहे हैं । विधि विधान के बिना की गई पूजा भक्ति कैसे भक्ति कहलाएगी ?
ईर्ष्या द्वेष से भरे हुए मन में भक्ति और भगवान दोनों नहीं होते हैं ,यही अकाट्य अटल सिद्धान्त है ।
कलियुग भगवान तो हृदय में हैं लेकिन कलियुग के दोषों को नष्ट करने वाले दयालु मुक्ति दाता भगवान हृदय में नहीं हो सकते हैं
ज्ञान, भक्ति और वैराग्य ये तीनों गुण जिस विधि से आते हैं , वे नियम चारों युगों में एक जैसे ही रहेंगे ।
मनुष्य मनमानी करके नियमों को बदलेगा भी , तो पाखण्डी और दम्भी तो हो जाएगा ,लेकिन उसको ज्ञान, भक्ति और वैराग्य तो नहीं ही होगा
रामचरित मानस के अरण्यकाण्ड के 14 वें दोहे की 9 वीं चौपाई में लक्ष्मण जी ने पंचवटी में शान्ति से बैठे हुए श्री राम जी से पूंछा कि
*"कहहु ग्यान विराग अरु माया ।
कहहु सो भगति करहु जेहिं दाया " ।*
हे भगवन् ! आप कृपा करके ज्ञान ,वैराग्य और माया को समझाते हुए वह भक्ति बताइए ,जिससे प्रभावित होकर आप जीव पर दया करते हैं ।
अब श्री राम जी का उत्तर ध्यान से सुनिए ।
अरण्यकाण्ड के 16 वें दोहे की प्रथम चौपाई देखिए ।
*" धर्म ते बिरति जोग ते ज्ञाना ।
ग्यान मोच्छप्रद वेद बखाना " ।।*
राम जी ने कहा कि ब्राह्मण ,क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र स्त्री ,पुरुष अपनी जाति के अनुसार धर्म और नियम का पालन करेंगे तो शुद्ध वैराग्य होगा , संयम ,नियम का द्रढ़ता से पालन करेंगे तो ज्ञान होगा । वेदों में ज्ञान को मोक्ष देनेवाला बताया गया है ।
अब भक्ति के साधनों को बताते हुए इसी काण्ड के 16 वें दोहे की छठवीं चौपाई में कहा है कि
*"प्रथमहिं विप्र चरन अति प्रीती ।
निज निज कर्म निरत श्रुति नीती "।।*
भगवान की भक्ति का प्रथम साधन ये है कि ब्राह्मणों के चरणों में अत्यधिक प्रेम होना चाहिए ।
उनके द्वारा बताए गए शास्त्रीय नियमों को द्रढ़ता से पालन करते हुए अपनी जाति और धर्म के अनुसार कर्तव्य को करे ।
ब्राह्मण के चरणों में प्रीति करने का फल तथा अपने अपने कर्म करने का फल क्या मिलेगा ? तो इसी के आगे की 7 वीं चौपाई में कहा है कि
*" एहि कर फल पुनि विषय विरागा ।
तब मम धर्म उपज अनुरागा " ।।*
ब्राह्मणों के चरणों में प्रीति का और जाति के अनुसार धर्म का पालन करने का फल यह होगा कि आपको संसार के दुखदायी चोरी, झूंठ, व्यभिचार, निंदा ,ईर्ष्या ,द्वेष आदि दुर्गुणों से वैराग्य हो जाएगा ।
जब आपका हृदय शुद्ध हो जाएगा, तभी मुझ भगवान में भक्ति जगेगी ।तभी आपको भक्ति के धर्म में प्रेम जगेगा ।
अब आप ही सोचिए कि यदि भक्ति ग्रंथ रामायण ,भागवत आदि की बात नहीं मानना है , धर्म ग्रंथ की बात नहीं मानना है , यदि वेद और ब्राह्मण की बात नहीं मानना है ,मात्र मंदिर की मूर्ति में जल चढ़ाना है , तिलक लगाकर चोटी रखा लेना है , जागने से सोने तक शास्त्रों की और ब्राह्मणों की निंदा करना है ।
तो क्या इसको ज्ञान कहते हैं ?भक्ति कहते हैं? नहीं ,कभी नहीं ।
तो क्या इसको ज्ञान कहते हैं ?भक्ति कहते हैं? नहीं ,कभी नहीं ।
ऐसे निंदक ,ईर्ष्यालु , धर्म कर्म हीन स्त्री पुरुष के हृदय में कलियुग का वास होता है ।
इतने मैले हृदय में भगवान की भक्ति न किसी युग में थी और न ही कभी होगी ।
कानून के विरुद्ध चलनेवाले चोर, डकैत ,व्यभिचारी ,अत्याचारी को भारतरत्न का पुरस्कार नहीं दिया जाता है ।
इसी प्रकार लाल पीले कपड़े पहननेवाले साधुवेष धारी ब्राह्मण निंदक ,शास्त्र निंदक ,को भगवान का भक्त और ज्ञानी नहीं कहा जाएगा ।पाखण्डी और दम्भी ही है ।
राधे राधे ।
राधे राधे ।
*-आचार्य ब्रजपाल शुक्ल, श्रीधाम वृन्दाबन*
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