मंथन
आजकल जहां देखो वहां सभी छोटे बड़े लोग राजनेताओं की निंदा करते हुए चाहे जब और चाहे जहां मिल जाते हैं ।
एक और विशेष बात यह है कि इस समय ऐसा मनुष्य मिलना दुर्लभ हो गया है, जो किसी न किसी पार्टी से जुड़ा हुआ न हो ।
यह बेचारे अल्पमति इतना भी नहीं जानते हैं कि " जो आध्यात्मिक ज्ञान से हीन धनवान, पदवान और गुणवान होता है, वह प्रायः दुष्ट स्वार्थी तथा लोभी और हिंसक निर्दयी होता है ।"
शुकदेव जी ने भागवत के दशमस्कन्ध के 1 अध्याय के 67 वें श्लोक में राजा परीक्षित से कंस की क्रूरता का वर्णन करते हुए कहा है कि
*" मातरं पितरं भ्रातृन् सर्वांश्च सुहृदस्तथा ।*
*घ्नन्ति ह्यसुतृपो लुब्धा राजानः प्रायशो भुवि "।।*
हे परीक्षित ! इस पृथिवी के राजा प्रायः अर्थात सौ में से 90 शाशक अत्यधिक भोगी,स्वार्थी, और लोभी हो जाते हैं ।
ऐसे लोग अपने पद और धन तथा आत्मरक्षा के लिए अपने माता पिता, भाई, मित्र, तथा अच्छे से अच्छे मित्रों को भी मार डालते हैं, तो सामान्य बलहीन प्रजा की तो बात ही क्या है ?
यह बात आज से साढ़े पांच हजार साल पहले कही गई थी ।जब तो बहुत धार्मिक मनुष्य होते थे ।
आज तो प्रत्येक विभाग में ईमानदार सरकारी नौकरी वाला मनुष्य ऐसे दुर्लभ है,जैसे कि मृतसंजीविनी बूटी दुर्लभ है ।
अपने समाज में यदि कोई रिश्तेदार, या भाई बंधु या गांव का आदमी झूंठ बोलता है, धोखा देता है तो उसका कोई विश्वास नहीं करता है । न ही उसकी कोई प्रसंशा करता है, और न ही कोई उसकी गारंटी देता है,तथा न ही कोई उसे उधार देता है ।
किंतु पता नहीं यही आदमी हर बार धोखा देने वाले नेताओं का प्रसंशक कैसे हो जाता है ? कैसे इसे उनका विश्वास हो जाता है ?
जिन नेताओं से न कभी मिला है और न ही इतनी योग्यता या धन है कि वह मिल सके, और न ही कभी मिल पाएगा, फिर भी पता नहीं उनकी बुराई सुनते ही उनके पक्ष से कैसे लड़ जाता है । बुराई मान जाता है,बोलना आदि भी बंद कर देता है ।अपनापन समाप्त कर लेता है ।
इसका मतलब यह है कि " इस समय कलियुग ने प्रत्येक स्त्री पुरुष के मन बुद्धि में ऐसा प्रवेश किया है कि सबको बाहर के बुरे, बेईमान, दुष्ट स्त्री-पुरुष अच्छे लगेंगे, और अपने घर के लोग प्रेमी हितैषी होने पर भी बुरे और चरित्रहीन लगेंगे ।
घर की सगी बहिन बनाए गए बाहर के आदमी को भाई मानकर जाकर राखी बांधेगी, लेकिन घर के सगे भाई का न तो विश्वास करेगी और न ही प्रेम ।
कहां तक कहें, बस इतना ही समझ लेना ठीक है कि, बाहर का बुरा भी अच्छा लगेगा, घर का अच्छा भी बुरा लगेगा ।
ईमानदारी से झूंठ बोलने का नाम ही सत्य है । पहले लोग असत्य छिपाते थे, अब सत्य को ही छिपाना पड़ेगा ।
इसी को कहते हैं कि " प्रजा भी बिकाऊ है, राजा भी बिकाऊ, जब जिसके पैसा आ जाए,वह उसको खरीद ले ।"
राधे राधे ।
*-आचार्य ब्रजपाल शुक्ल, वृन्दाबन धाम*
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