रासायनिक खाद एक जहर
कृत्रिम
रासायनिक खाद से प्रारंभ में भले ही उत्पादन में कुछ व्रद्धि दिखाई दे पर थोड़े समय
में ही उत्पादन शक्ति घटने लगती है और वह प्रायः ऊसर बन जाती है।
इस
पर हमें जरूर विचार करना चाहिए।
*अल्बर्ट
हावर्ड* ने इस विषय में जो खोज की है वह आँखे खोल देने वाली है।
वह
भारत में अग्रेजो के राज्य में इकोनॉमिक बॉटनिस्ट बनकर आये और पूसा कृषि गवेषणा
परिषद में काम करने लगे।
अपने
अनुभव उन्होंने
*ऍन
एग्रीकलचरल टेस्टामेंट* नामक पुस्तक में प्रकाशित किये।
इसमें
लिखा
*फसलो के
रोग भूमि के अस्वस्थ और रोगी होने के कारण होते है और भूमि के रोगी होने के कारण
होते है और भूमि के डीजी हीने के कारण है प्राकृतिक खाद, जीब्रा
या हरी खाद का न मिलना।*
अतः
गोबर की खाद ही भूमि की प्राकृतिक खाद है।
रासायनिक
खाद भूमि को जीवांश (ह्यूमस) प्रदान नही करती।
रासायनिक
पदार्थ भूमि को संतुष्ट नही रख सकते। इनके उपयोग से व्रद्धि और क्षय का कभी
सन्तुलन नही हो सकेगा।
पृथ्वी
को उसका भोजन गोबर की खाद न मिलने से उत्पादन घट रहा है।
हावर्ड
के निष्कर्षों से यह स्पष्ट है कि रासायनिक खाद का उपयोग करने से केवल उपज ही कम
नही होती बल्कि भूमि का स्वास्थ्य बिगड़ता है।
अतः
भारत की अर्थ व्यवस्था की उन्नति के लिए गोवंश का संरक्षण और संवर्धन बहुत जरूरी
है।
No comments:
Post a Comment