आइये हम गौ सेवा और गौ रक्षा का संकल्प ले
आइये
हम गौ सेवा और गौ रक्षा का संकल्प ले कर विशुद्ध भारतीय गौ वंश के संरक्षण में
अपना अमूल्य योगदान प्रदान करें |
68 करोड़ तीर्थ व् 33 कोटि
देवताओ का चलता फिरता विग्रह गाय है | समस्त
ब्रह्माण्ड पर गाय का जो उपकार है उसका वर्णन नहीं किया जा सकता |
भगवान
के सम्बन्ध में यह बात कही जाती है कि शुक, सनकादि, शेष शारदा भी प्रभु के गुणों का सांगोपांग वर्णन करे यह
संभव नहीं |
उन
श्री भगवन के चरणों में कोई प्रार्थना करे, कि
प्रभु आप अपनी उपास्य देवता गौमाता के गुणों का वर्णन करे उनके उपकारो को गिनावे
तो संभवतया भगवान भी गौमाता की चरण रज को मस्तक पर चढ़ा कर, अर्पुरित नेत्रों से मूक रह कर ही गौमाता की महिमा का
वर्णन करेंगे एसी गौमाता की महिमा है |
सारी
समस्याओ का समाधान गोरक्षा, गौसेवा
से संभव है | बिना
गौसेवा व् रक्षा के विश्व मंगल संभव नहीं है | जिस
दिन गाय का एक बूंद रक्त भी धरती पर नहीं गिरेगा, उस
दिन सारी समस्याओ का उन्मूलन हो जायेगा | सारे
विश्व का कल्याण हो जायेगा | यही
समझाने की और सिद्धांत की बात है |
जब
तक हमारी बुद्धि में यह बात बनी रहेगी कि गाय सिर्फ़ एक पशु है तब तक ठीक से सेवा
नहीं बन पायेगी | सेवा
सदा सेव्य की होती है उपासना सदा उपास्य की होती है और उपासना सेवा तब संभव है जब
सेव्य के प्रति, उपास्य
के प्रति हमारी यह बुद्धि बन जाये कि यह साक्षात भगवान है |
गाय ही साक्षात् भगवान है यह बात हमारे ध्यान में आ जाये
और एसा ध्यान करके गौसेवा की जाये तो गौसेवा से भगवत्प्राप्ति हों जाये | लेकिन हमारे गाय के प्रति अपराध बनते जाते है इसका कारण
है कि हमारी गाय के प्रति पशु बुद्धि बनी रहती है| इसलिए
सेवा से जैसा लाभ मिलना चाहिए वह लाभ फिर नहीं मिल पता |
भगवान
के अभिलषित पदार्थो में सबसे पहला पदार्थ है गाय | गाय
के बिना श्री कृष्ण प्रसन्न नहीं होते | आप
शोद्शौप्चार क्या, भले
सेकड़ो उपचारों से भगवान का पूजन कर ले लेकिन गौ-पदार्थ यदि सेवा पूजा में नहीं है
तो भगवान संतुष्ट नहीं| बिना
गाय के गोविन्द का पूजन संभव नहीं | भगवान
का वांछित गाय है |
अर्थात
भगवान की पहली इच्छा यह है कि मैं गायो से घिरा रहू दूसरी इच्छा भगवान की यह है कि
मैं गोपालको, गौसेवको
से घिरा रहू और गौसेवा में सहयोग करने वाली जो उन गोप गणों की गृहणिया है , धरम पत्निया है वे ही है गोपी | तो गायो का जो रक्षण पालन करे उसे गोप कहते है और गायो
का रक्षण पालन करने वाली जो है उन्हें गोपी कहते है |
इसका
मतलब है गौरक्षा , गौसेवा
में जिसकी प्रवर्ति है वही नारी गोपी है और गोप गोपी श्री कृष्ण को प्रिय है हम
श्री कृष्ण के प्रिय पात्र बने इसके लिए आवश्यक है हम गोप और गोपी बन जाये |
हमारे
पूज्य गुरुदेव तो बार-बार कहते है कि, “सर्वाधिक
अत्याचार गाय पर हों रहा है | इसलिए
गाय की सेवा से बढ़कर सत्कर्म इस कलिकाल में दूसरा नहीं हों सकता | महाराज जी के मुख से हमने अनेको बार इस वाक्य को सुना |
गाय, ब्राहमण
और साधू तीनो पर संकट है पर महाराज जी कहते थे साधू और ब्राहमण ; इनको काटने के यांत्रिक कत्लखाने नहीं बने है, इनको कही ना कही जाकर सिर छिपाने की जगह है पर गाय को
नष्ट करने के तो यांत्रिक कत्लखाने बन गए |
गाय
काटी जा रही है | इसलिए
सर्वाधिक संकट गाय के ऊपर है और एसी स्थिति में गाय की सेवा से बढ़कर दूसरा कोई
शुभकरम नहीं है | सबसे
श्रेष्ठ सत्कर्म ही गाय की सेवा है, गाय
की रक्षा है आप सोचिये, परम
धर्मात्मा शूरवीर चकर्वर्ति सम्राट के शरीर की कितनी कीमत हों सकती है और वह
धुरंधर सम्राट दिलीप |
परम
गौभक्त दिलीप नंदनी गाय को बचाने के लिए, सिंह
के आगे अपना बलिदान करने को प्रस्तुत हों जाते है, “सिंह
तुम्हे खाना ही है तो मुझे खाकर अपनी भूख मिटा लो, किन्तु
मेरे गुरु महाराज की गाय को छोड़ दो, आप
सोचिये एक सम्राट एक गाय की रक्षा की कीमत अपने शरीर से चूका रहा है, और आज गाय नष्ट हों रही है
गाय
खूब हरित-हरित घास चर के संतुष्ट हों करके जलपान करके जब बैठ जाती है तब ठाकुर जी
बैठते है तब तक ठाकुर जी खड़े रहते है बैठते नहीं है और जब गाय बैठ जाती तब
ठाकुरजी छाक अरोगते और गाय विश्राम करती तब तक ठाकुरजी खड़े हों जाते |
कृष्णावतार में जो अद्भुत गो भक्ति का आदर्श भगवान ने
प्रस्तुत किया है वो तो अपने आप में अनुपम है | श्री
क्रिशन की गौभक्ति श्रीकृष्ण की ही गौभक्ति है | गायो
के पीछे-पीछे जाते है और गायो के पीछे- पीछे ही लोटते है मुरली सुनते है गायो को |
कालियानाग का दमन करते है कालिया हृदय को शुद्ध करते है
तो किसलिए ? गायो
के लिए | कालिय हृदय का जलपान करके मृत्यु को प्राप्त हुई गायो को
जीवन दान देते है | कहाँ
तक कहें, गायो के दावानल पान करते है गायो की रक्षा के लिए ही
गिरिराज बड़े-बड़े असुरो का वध करते है |
कहा
तक कहें गायो कि रक्षा के लिए ही गिरिराज गोवर्धन को अपनी कनिष्ठिका के अग्रभाग पर
धारण करते है | भगवान
ने पूछा ब्रज वासियों ने, सखाओ
ने कि “कन्हेया तू देख साँची-साँची बता हम सखान में ते कोऊ
तुमसे बड़ो है कोऊ चार छह महीने छोटो है हम में तो वो सामर्थ्य नहीं तुममे इतनी
सामर्थ्य कहाँ से आ गयी जो तुमने गोवर्धन उठा लिया तो ठाकुर जी ने कहा, “गौ-सेवा के पुण्य से हमने गोवर्धन उठा लिया” |
गाय
की पीठ पर हाथ फेर दिया, बढ़िया
से उसको खुजोरा कर दिया, उसको
मक्खी, मच्छर से बचाने के लिए आपने गौशाला में धुआं कर दिया तो
नित्य एसा करने वालो को नित्य कपिला गाय के दान का पुण्य होता है | गौदान करने वाला तो जीवन में कुछ ही दान करेगा, लेकिन निष्काम भाव से गौसेवा करने वाला तो नित्य गौदान
का पुण्य पाता है |
गोभिस्तुल्य
न पश्यामि धनं किन्चिदिहाच्युत ||
कीर्तनं
श्रवण दानं दर्शनं चापि पार्थिव |
गवां
प्रस्स्यते वीर सर्वपाप हरम शिवम् ||
गावो
लक्ष्म्या: सदा मुलं गोषु पाप्मा न विद्यते |
अन्न्मेव
सदा गावो देवाना परमं हवि: |
स्वाहाकार्वशत्त्कारो
गोषु नित्यं प्रतिष्ठितो |
गावो
यज्ञस्य नेत्रों वै तथा यज्ञस्य ता मुखम ||
अमृतं
ह्र्व्ययं दिव्यं क्षरंति च वहन्ति च |
गाव:
स्वर्गस्य सोपानं गाव:स्वर्गेअपी पूजिता:|
गाव:
काम्दुहो देव्यो नान्यत किंचित परं स्मृतम ||
अर्थात
अपनी मर्यादा कभी च्युत न होने वाले हे राजेंद्र ! मैं इस संसार में गौओ के समान
कोई धन नहीं देखता हूँ | वीर
भूपाल ! गौओ के नाम और गुणों का कीर्तन तथा श्रवण करना, गोओ का दान देना और उनका दर्शन करना-इनकी शास्त्रों में
बड़ी प्रशंसा की गयी है |
ये
सब कार्य सम्पूर्ण पापो को दूर करने वाले और परम कल्याण की प्राप्ति करानेवाले है | गौ सदा लक्ष्मी की जड़ है | उनमे पाप का लेशमात्र भी नहीं है | गौ ही मनुष्यों को सर्वदा अन्न और हविष्य देने वाली है |
स्वाहा और वषट्कार सदा गोओ में ही प्रष्ठित रहते है | गौए ही सदा यज्ञ का सञ्चालन करनेवाली तथा उसका मुख है | वै विकार रहित दिव्य अमृत धारण करनेवाली और दुहने पर
अमृत ही देती है | गोएँ
स्वर्ग की सीढ़ी है, गौएँ
स्वर्ग में भी पूजी जाती है गोएँ समस्त कामनाओ को पूरण करनेवाली देवियाँ हैं उनसे
बढ़कर कोई दूसरा नहीं है |
गौ
माता को सारे शास्त्रों में सर्वतीर्थमयी व मुक्तिदायिनी कहा गया है। गौ माता के
शरीर में सारे देवताओं का निवास है। ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार गौ के पैरों में
समस्त तीर्थ व गोबर में साक्षात माता लक्ष्मी का वास माना गया है। गौ माता के
पैरों में लगी मिट्टी का जोव्यक्ति नित्य तिलक लगाता है, उसे किसी भी तीर्थ में जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि
उसे सारा फल उसी समय वहीं प्राप्त हो जाता है।
जिस घर या मंदिर में गौ माता का निवास होता है, उस जगह को साक्षात देवभूमि ही कहा गया है और जिस घर में
गौ माता नहीं होती, वहां
कोई भी अनुष्ठान व सत्कार्य सफल नहीं होता।
जहां गौ माता हो, यदि ऐसे स्थान पर कोई भी व्रत, जप, साधना, श्राद्ध, तर्पण, यज्ञ, नियम, उपवास या तप किया जाता है तो वह अनंत फलदायी होकर अक्षय
फल देने वाला हो जाता है।यह जरूर ध्यान रखने की बात है कि गौ से मतलब उस गाय से है, जो देवता के रूप में विराजमान गौ माता है।
आज
के दौर की देशी गाय को ही प्राचीन काल में ‘गौ’ नाम से कहा गया है। ‘जरसी’ गाय तो दूध देने वाली एक पशु के समान है। अत: गौ माता का
तात्पर्य शुद्ध देशी गाय से ही है।
यही कारण है कि आयुर्वेद में देशी गाय के ही
दूध, दही और घी व अन्य तत्त्वों का प्रयोग होता है। वत्स
द्वादशी की अनुपम महिमा गौ माता ही हमारी संस्कृति और धर्म में ऐसे देवता के रूप
में प्रतिष्ठित है,जिनकी
नित्य सेवा और दर्शन करने का विधान हमारे शास्त्रों ने किया है।
वर्ष में दो बार दो बड़े पर्व गौ माता के उत्सव के रूप
में ही मनाए जाते हैं। एक भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को और दूसरा
कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को।
इन दोनों ही पर्वों का माहात्म्य
शास्त्रों में इतना लिखा है कि इस दिन जिस घर की महिलाएं गौ माता का पूजन करती हैं, उस घर में माता लक्ष्मी की कृपा सदा बनी रहती है और अकाल
मृत्यु कभी नहीं होती।
भाद्रपद में द्वादशी को पडऩे वाले उत्सव को ‘वत्स द्वादशी’ या
‘बछ बारस’ कहते
हैं। पौराणिक आयान के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद माता यशोदा ने इसी
दिन गौ माता का दर्शन-पूजन किया था।
‘रामायण’ में
भगवान श्रीराम इस दिन स्वयं अपने छोटे भाइयों व परिजनों के साथ गौ माता का पूजन
करते थे। वहां स्पष्ट लिखा है कि भगवान श्रीराम ने यज्ञ के बाद दस लाख गौएं
ब्राह्मणों को दान में दी थीं।
भगवान श्रीकृष्ण तो स्वयं ही अपने मित्रों के साथ
गाय चराने वनों में जाते थे। वेद-पुराणों में गौ स्तवन वेदों में स्पष्ट लिखा है
कि गौ रुद्रों की
माता और वसुओं की पुत्री है।
अदिति पुत्रों की बहन और घृतरूप अमृत का खजाना है।
प्रत्येक ग्रंथ में यह बात दृढता के साथ लिखी गई है कि सदा निरपराध एवं अवध्य गौ
माता का वध करना ऐसा पाप है, जिसका
कोई प्रायश्चित्त ही नहीं है। जो पुण्य अश्वमेध या अनेक यज्ञों को करने से मिलता
है, वह पुण्य मात्र गौ माता की सेवा करने से ही प्राप्त हो
जाता है।
गौ
का विश्वरूप वैदिक साहित्य के अनुसार प्रजापति गौ के सींग, इंद्र सिर, अग्नि
ललाट और यम गले की संधि है। चंद्रमा मस्तिष्क, पृथ्वी
जबड़ा, विद्युत जीभ, वायु
दांत और देवताओं के गुरु बृहस्पति इसके अंग हैं।
इस तरह यह स्पष्ट है कि गौ में
सारे देवताओं का वास है। अत: जिन देवताओं का पूजन हम मंदिरों व तीर्थों में जाकर
करते हैं वे सारे देवता समूह रूप से गौ माता में विराजमान हैं।
इसलिए निर्लिप्त
भाव से पूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ किसी भी कार्य की सिद्धि के लिए व्यक्ति को
नित्य गौ माता की सेवा करनी चाहिए। महाभारत कहता है-
यत्पुण्यं सर्वयज्ञेषु
दीक्षया च लभेन्नर:।
तत्पुण्यं लभते सद्यो गोभ्यो दत्वा तृणानि च।।
अर्थात सारे
यज्ञ करने में जो पुण्य है और सारे तीर्थ नहाने का जो फल मिलता है, वह फल गौ माता को चारा डालने से सहज ही प्राप्त हो जाता
है।
नित्य दें गौ ग्रास
विष्णुधर्मोत्तरपुराण के अनुसार व्यक्ति के किसी भी
अनिष्ट की निवृत्ति के लिए गौ माता के पूजन का विधान किया गया है।
अनेक तरह के
अरिष्टकारी भूचर, खेचर
और जलचर आदि दुर्योग उस व्यक्ति को छू भी नहीं सकते जो नित्य या तो गौ माता की
सेवा करता है या फिर रोज गौ माता के लिए चारे या रोटी का दान करता है।
जो
व्यक्ति प्रतिदिन भोजन से पहले गौ माता को ग्रास अर्पित करता है, वह सत्यशील प्राणी श्री, विजय
और ऐश्वर्य को प्राप्त कर लेता है।
जो व्यक्ति प्रात:काल उठने के बाद नित्य गौ माता के
दर्शन करता है, उसकी
अकाल मृत्यु कभी हो ही नहीं सकती, यह
बात महाभारत में बहुत ही प्रामाणिकता के साथ कही गई है। ग्रहोपचार के लिए गौ पूजन
धर्मशास्त्रों में गौ माता की महिमा भरी पड़ी है।
जिस व्यक्ति को ग्रह बाधा हो या ग्रहों की प्रीति नहीं
हो पा रही हो, उस
व्यक्ति को सरल, सहज
व सुलभ तरीके से प्राप्त गौ माता की नित्य सेवा करनी चाहिए।
ज्योतिष
शास्त्र में तो एक राशि ‘वृष’ का वर्ग ही गौ है। इसी तरह जिन लोगों की जन्मपत्री में
धनु या मीन लग्न हो, उन्हें
या जिनकी पत्री में बृहस्पति की महादशा या अंतर व प्रत्यंतर दशा चल रही हो उन्हें
अनिवार्य रूप से गौ माता के दर्शन करने चाहिएं।
बृहस्पति
ग्रह के प्रसन्नार्थ रोज गाय को रोटी भी देनी चाहिए। यदि रोज संभव न हो सके तो
प्रत्येक वीरवार को तो निश्चित रूप से गुड़ व रोटी गाय को खिलानी ही चाहिए।
इसी तरह जिन जातकों की मेष व वृश्चिक राशि है, उन्हें हरेक मंगलवार को गौ माता को गुड़ और रोटी देनी
चाहिए, इससे न केवल मंगल की पीड़ा शांत होती है, साथ ही यदि ऐसे लोग राजनीति क्षेत्र में होते हैं तो
उन्हें राजनीतिक लाभ भी प्राप्त होता है।
धनु व मीन राशि वाले लोगों को व्यापारिक, राजनीतिक व पारिवारिक संकटों से बचने के लिए पीले रंग की
गाय विधि-विधान के साथ वीरवार को किसी श्रेष्ठ ब्राह्मण को श्रद्धा के साथ दान
करनी चाहिए।
सिंह व कर्क राशि वाले लोगों को भी प्रतिदिन गौ माता को
रोटी खिलानी चाहिए, इससे
संतान पीड़ा व स्वास्थ्य कष्ट का शमन होता है। जब गौ माता को रोटी दें तो इस मंत्र
का उच्चारण करें- त्वं माता सर्वदेवानां त्वं च यज्ञस्य कारणम्। त्वं तीर्थं
सर्वतीर्थानां नमस्तेऽस्तु सदानघे।।
कई
लोगों के मन में यह सवाल रहता है हम गौ सेवा कैसे करें ?
इसके
लिए यह जानना जरुरी है की हम गौ सेवा निम्न प्रकार से कर सकते है :
1) अपने या अपने परिवारजनों के जन्मदिन पर, पूर्वजों की स्मृति में, स्वजनों
की पुण्यतिथि पर गौशाला दर्शन करके गौ सेवा करें ।
2) गौ माता पर हो रहे अत्याचारों को रोकने में अपना सहयोग
प्रदान करें।
3) ऐसी वास्तु इस्तेमाल करने से बचें जिसको बनाने हेतु गौ
को कष्ट व पीढ़ा पहुंचाई गयी हो।
4) निजी स्वार्थ पूर्ति हेतु कुछ लोग गौ हत्या करते हैं ऐसा
होने से रोकें।
5) रोज अपनी कमाई का कुछ अंश गौ माता के लिए निकालें व इसे
गौ माता के लिए ही खर्च करें, जैसे
हरा चारा, आदि खरीद के गौ को दे सकते हैं, या किसी गौशाला में जाकर भी इस राशी को दान कर सकते हैं।
6) अपने घर में छोटे बच्चों को भी ये सिख दें कि वो अपनी
पॉकेट मनी (जेब खर्च) में से कुछ पैसा बचा के गौ माता के लिए निकालें, उन्हें भी गौ माता का महत्व समझाएं ।
7) घर में गौ ग्रास जरुर निकालें ।
8) हरी सब्जी जैसे पालक, मैथी, सरसों, बथुआ, चौलाई, मटर, हरा चना, इत्यादि
का उपयोग करने के उपरांत जो हरा चारा निकलता है उसे कूड़ा दान में न डालते हुए गौ
माता को खिलाएं। ऐसा करके देखें, ऐसा
करने से न केवल गौ माता की सेवा होगी बल्कि आत्म सुख भी प्राप्त होगा ।
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