Sunday, 13 November 2016

एक बीघा धान की लागत सिर्फ एक हजार रुपये और पैदावार 8-10 क्विंटल

स्वयं प्रोजेक्ट

एक बीघा धान की लागत सिर्फ एक हजार रुपये और पैदावार 8-10 क्विंटल 

कम्यूनिटी जर्नलिस्ट: उमा शर्मा (17 वर्ष)
प्रखर प्रतिभा इन्टर कालेज, बैरी असई, कानपुर देहात
शिवराजपुर (कानपुर नगर)। पिछले एक वर्ष से जीरो बजट से जैविक खेती करना शुरू किया है। अब फसल की बोआई से लेकर कटाई तक पैसे की कोई चिंता नहीं रहती है क्योंकि शून्य लागत में जैविक ढंग से खाद घर पर ही तैयार हो जाती है। ऐसे में इस बार प्रति एक बीघा धान की लागत सिर्फ एक से डेढ़ हजार रुपये ही आयी है। यह कहना है किसान सुनीता का।

बोआई से लेकर कटाई तक लागत सिर्फ एक हजार

कानपुर नगर के शिवराजपुर ब्लॉक से 15 किलोमीटर दूर पड़रहा गाँव है। इस गाँव में रहने वाली सुनीता (35 वर्ष) ने इस वर्ष जैविक ढंग से खेती करनी शुरू की है। सुनीता बताती हैं कि पहले जब खेती की बोआई करते थे तो बीज से लेकर खाद, कीटनाशक हर चीज के लिये बाजार जाना पड़ता था। एक सीजन धान की फसल की बोआई के लिए कम से कम हमारे पास 5-6 हजार रुपये होते, तब कहीं एक बीघे धान की बोआई तैयार हो पाती थी। सुनीता आगे बताती हैं कि इस बार धान की बोआई से लेकर कटाई तक पूरी लागत सिर्फ एक हजार रुपये आयी है।

सिर्फ सुनीता ही नहीं, 126 किसान

धान की बोआई में प्रति बीघा 5000 रुपये लागत बचाने वाली बात सिर्फ सुनीता की ही नहीं, बल्कि शिवराजपुर ब्लॉक के 126 किसान की सैकड़ों बीघा धान की लागत की बात है। पिछले कुछ वर्षों से बढ़ती महंगाई की वजह से किसान खेती करना घाटे का सौदा समझ रहे थे क्योंकि उनकी बाजार पर निर्भरता बहुत ज्यादा थी। खेत की जुताई से लेकर बीज, खाद, खरपतवार-कीटनाशक दवाइयां सब बाजार से ही खरीदते थे। किसानों ने इस समस्या के समाधान के लिए आपस में मिलकर किसान संगठन का निर्माण किया और उनकी जो भी समस्याएं होती थी, इन समूहों में चर्चा करना शुरू किया।

तब स्वयं सहायता समूह से जुड़ीं महिलाएं

सुनीता बताती हैं कि हम स्वयं सहायता समूह से जुड़े हैं। मीटिंग के दौरान जब समूहों में जाते तो हर महिला खेती की बढ़ती लागत से परेशान दिखाई देती। हम सब ने स्वयं सहायता समूह में ही रहकर खेती से जुड़ी समस्याओं पर गम्भीरता से चर्चा की। वो आगे बताती हैं कि पिछले एक साल से हमारे समूह की सैकड़ों महिलाएं जीरो बजट से खेती कर रही हैं। अभी शुरुआत एक और दो बीघे से की है। इस बार सभी किसानों की धान बहुत अच्छी है, जबकि लागत शून्य है।

मिट्टी भी उपजाऊ और किसान की सेहत भी बेहतर

सुनीता खुश होकर बताती हैं कि इस बार गेहूं की बुआई भी जीरो बजट से करेंगे। घर की खाद, घर की पांस, घर की कीटनाशक दवाइयां, सब कुछ हम लोग बना लेते हैं जिसकी लागत बहुत न्यूनतम होती है। जीरो बजट खेती करने से इन किसानों को बहुत लाभ हो रहा है और ये अपने पुराने पारंपरिक तरीके पर वापस आ रहे हैं। जैविक ढंग से खेती होने से मिट्टी का उपजाऊपन और ग्रामीणों की सेहत दोनों की बेहतर होगी। अभी किसान सिर्फ खुद के खाने के लिए जैविक खेती कर रहे हैं। आने वाले समय में पूरी खेती जैविक ढंग से शुरू हो सकती है।

जीवामृत बनाने की विधि

200 लीटर पानी, 10 किलो देशी गाय का गोबर, 5-10 लीटर देशी गाय का गोमूत्र, 2 किलो बेसन, 2 किलो गुड़, एक मुट्ठी पीपल या बरगद के पेड़ की मिट्टी को 250 लीटर वाले ड्रम में मिलाकर कर छाया में 48 घंटे के लिए ढंककर रख दें। फसल की बोआई से पहले एक बार एक बीघे खेत में डालें और बाद में सिंचाई के दौरान एक बार बनाकर डाल दें। बोआई से पहले जीवामृत से बीज का शोधन भी कर लें। इससे जमाव अच्छा होगा।

घनामृत बनाने की विधि

100 किलो गोबर, 2 किलो बेसन, 2 किलो गुड़, 5-10 लीटर गोमूत्र, 100 ग्राम पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी, सभी को आपस में मिलाकर पतले जूट के बोरे से 48 घंटे के लिए ढंककर रख दें। इस खाद को एक बार जुताई से पहले और दूसरी बार फसल के बीच में पानी लगने से पहले फैला दें। इन दोनों खादों के प्रयोग से खेत में करोड़ों की संख्या में जीवाश्म की संख्या बढ़ेगी, इससे फसल की पैदावार बढ़ेगी।
जीवामृत और घनामृत दो ऐसी देशी खादें हैं, जिसे किसान घर पर ही बना लेते हैं। बीज शोधन से लेकर खाद तक, ये दोनों खादें पूरे फसल में किसानों के लिए कारगर साबित हो रही हैं। महिलाएं एक-दूसरे की फसल की बेहतर उपज को देखकर खुद भी जीरो बजट की खेती करना शुरू कर रही हैं। इस पूरी कम्पनी में स्वयं सहायता समूह की महिलाएं हैं, जो इसकी निदेशक और प्रशिक्षक हैं। ये महिलाएं गाँव-गाँव जाकर लोगों को जागरूक कर रही हैं।
अरमान अली, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, एकता नेचर फार्मिंग प्रोड्यूसर कम्पनी लिमिटेड, शिवराजपुर, कानपुर
This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

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