Submitted by swadeshikheti on 22 October 2016 - 7:28am
जैव उर्वरक (Organic fertilizers) उन उर्वरकों को कहते हैं जो जन्तुओं या वनस्पतियों से प्राप्त होते हैं। जैसे खाद, कम्पोस्ट, आदि
जैविक खेती जीवों के सहयोग से की जाने वाली खेती के तरीके को कहते हैं। प्रकृति ने स्वयं संचालन के लिये जीवों का विकास किया है जो प्रकृति को पुन: ऊर्जा प्रदान करने वाले जैव संयंत्र भी हैं । यही जैविक व्यवस्था खेतों में कार्य करती है । खेतों में रसायन डालने से ये जैविक व्यवस्था नष्ट होने को है तथा भूमि और जल-प्रदूषण बढ़ रहा है। खेतों में हमें उपलब्ध जैविक साधनों की मदद से खाद, कीटनाशक दवाई, चूहा नियंत्रण हेतु दवा बगैरह बनाकर उनका उपयोग करना होगा । इन तरीकों के उपयोग से हमें पैदावार भी अधिक मिलेगी एवं अनाज, फल सब्जियां भी विषमुक्त एवं उत्तम होंगी । प्रकृति की सूक्ष्म जीवाणुओं एवं जीवों का तंत्र पुन: हमारी खेती में सहयोगी कार्य कर सकेगा ।
जैविक खाद निर्माण की विधि
अब हम खेती में इन सूक्ष्म जीवाणुओं का सहयोग लेकर खाद बनाने एवं तत्वों की पूर्ति हेतु मदद ले सकते हैं । खेतों में रसायनों से ये सूक्ष्म जीव क्षतिग्रस्त हुये हैं, अत: प्रत्येक फसल में हमें इनके कल्चर का उपयोग करना पड़ेगा, जिससे फसलों को पोषण तत्व उपलब्ध हो सकें ।
दलहनी फसलों में प्रति एकड़ 4 से 5 पैकेट राइजोबियम कल्चर डालना पड़ेगा । एक दलीय फसलों में एजेक्टोबेक्टर कल्चर इतनी ही मात्रा में डालें । साथ ही भूमि में जो फास्फोरस है, उसे घोलने हेतु पी.एस.पी. कल्चर 5 पैकेट प्रति एकड़ डालना होगा ।
इस खाद से मिट्टी की रचना में सुधार होगा, सूक्ष्म जीवाणुओं की संख्या भी बढ़ेगी एवं हवा का संचार बढ़ेगा, पानी सोखने एवं धारण करने की क्षमता में भी वृध्दि होगी और फसल का उत्पादन भी बढ़ेगा । फसलों एवं झाड पेड़ों के अवशेषों में वे सभी तत्व होते हैं, जिसकी उन्हें आवश्यकता होती है :-
नाडेप विधि
नाडेप का आकार :- लम्बाई 12 फीट चौड़ाई 5 फीट उंचाई 3 फीट आकार का गड्डा कर लें। भरने हेतु सामग्री :- 75 प्रतिशत वनस्पति के सूखे अवशेष, 20 प्रतिशत हरी घास, गाजर घास, पुवाल, 5 प्रतिशत गोबर, 2000 लिटर पानी ।
सभी प्रकार का कचरा छोटे-छोटे टुकड़ों में हो । गोबर को पानी से घोलकर कचरे को खूब भिगो दें । फावडे से अच्छी तरह मिला दें ।
विधि नंबर –1 – नाडेप में कचरा 4 अंगुल भरें । इस पर मिट्टी 2 अंगुल डालें । मिट्टी को भी पानी से भिगो दें । जब पुरा नाडेप भर जाये तो उसे ढ़ालू बनाकर इस पर4 अंगुल मोटी मिट्टी से ढ़ांप दें ।
विधि नंबर-2- कचरे के ऊपर 12 से 15 किलो रॉक फास्फेट की परत बिछाकर पानी से भिंगो दें । इसके ऊपर 1 अंगुल मोटी मिट्टी बिछाकर पानी डालें । गङ्ढा पूरा भर जाने पर 4 अंगुल मोटी मिट्टी से ढांप दें ।
विधि नंबर-3- कचरे की परत के ऊपर 2 अंगुल मोटी नीम की पत्ती हर परत पर बिछायें। इस खाद नाडेप कम्पोस्ट में 60 दिन बाद सब्बल से डेढ़-डेढ़ फुट पर छेद कर 15 टीन पानी में 5 पैकेट पी.एस.बी एवं 5 पैकेट एजेक्टोबेक्टर कल्चर को घोलकर छेदों में भर दें । इन छेदों को मिट्टी से बंद कर दें ।
जैविक खाद तैयार करना
जैविक खाद को घर में से बनाने के कुछ उपाय निम्नलिखित हैं :
1. रसोई के कचरे से खाद बनाने की विधि :
अनिवार्य रूप से, ग्रामीणों को रसोई के कचरे की कम पैमाने पर होने वाली एरोबिक अपघटन के बारे में बताया जाता है और उसे कैसे उपयोग में लाया जाए इस के लिए प्रशिक्षित किया जाता है । इस खाद को बनाने की विधि निम्नलिखितहैं :
· कैंटीन, होटल आदि से रसोई कचरे इकठ्ठा कर लीजिए ।
· लगभग 1 फुट गहरा गड्ढा खोदें और एकत्रीत कचरे को उसमें भर लें।
· इन अपशिष्ट युक्त गड्ढे में, लगभग 250 ग्राम रोगाणुओं को डाला जाता है जो अपघटन बढ़ाने का काम करते हैं ।
· इन अपशिष्ट युक्त गड्ढे में, लगभग 250 ग्राम रोगाणुओं को डाला जाता है जो अपघटन बढ़ाने का काम करते हैं ।
· पानी और मिट्टी की एक परत को साथ मिश्रित कर के कवर द्वारा बीछा दिया जाता है ताकि नमी की मात्रा को बनाए रखा जा सके ।
· इसे लगभग 25-30 दिनों के लिए इसी तरह के रूप में छोड़ दिया जाता है और अपशिष्ट माइक्रोबियल अमीर खाद में परिवर्तित हो जाता है ।
इस प्रक्रिया को हर 30 से 35 दिनों के बाद दोहराया जा सकता है ।
2. सूखी जैविक उर्वरक:
सूखी जैविक खाद ,को इन में से किसी भी एक चीज़ से बनया जा सकता है - रॉक फॉस्फेट या समुद्री घास और इन्हे कई अवयवों के साथ मिश्रित किया जा सकता है।लगभग सभी जैव उर्वरक पोषक तत्वों की एक व्यापक सारणी प्रदान करते हैं, लेकिन कुछ मिश्रणों को विशेष रूप से नाइट्रोजन, पोटेशियम, और फास्फोरस की मात्रा को संतुलित रखने के लिए और साथ ही सूक्ष्म पोषक तत्व प्रदान करने के लिए तैयार किया जाता हैं।
वर्तमान समय में अनेक वाणिज्यिक मिश्रण उपलबद्ध हैं तथा अलग-अलग संशोधन के मिश्रण से इन्हे खुद भी बना सकते हैं।
3. तरल जैव उर्वरक
इस खाद को चाय के पत्तो से या समुद्री शैवाल से बनाया जा सकता है । तरल उर्वरक का प्रयोग पौधो में पोषक तत्वों को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है इसे हर महीने या हर 2 सप्ताह में पौधो पर छिड़का जा सकता है । एक बैग स्प्रेयर की टंकी में तरल जैव उर्वरक के मिश्रण को भर कर पत्ते पर स्प्रे कर सकते है ।
4. विकास बढ़ाने वाले उर्वरको का प्रयोग
वह उर्वरक जो कि पौधों को मिट्टी से अधिक प्रभावी ढंग से पोषक तत्वों को अवशोषित कर सकने मे मदद करते हैं।सबसे आम विकास बढ़ाने वाला उर्वरक सिवार है जो समुद्री घास की राख से बनता है । यह सदियों से किसानों के द्वारा इस्तेमाल किया गया है ।
5. पंचगाव्यम्
' पंच ' शब्द का अर्थ है पांच, और 'गाव्यम्’शब्द का अर्थ है गाय से प्राप्त होने वाला तत्व ।यह उर्वरक प्राचीन काल से भारतीयों द्वारा इस्तेमाल किया जाता रहा है. इस खाद को बनाने की विधि निम्नलिखित हैं :
· एक मटका लें।
· उसमें गाय का दूध, दही , मक्खन, घी , मूत्र, गोबर और निविदा नारियल डाल लें ।
· लकड़ी की छड़ी की मद्द से अच्छी तरह से मिलाएं ।
· तीन दिनों के लिए मिश्रण युक्त बर्तन को बंद कर के रखें।
· तीन दिनों के बाद केले और गुड़ को उसमें डाल दें ।
· इस मिश्रण को हर रोज (21 दिनों के लिए) मिलाते रहें, और यह सुनिश्चित करें की मिश्रण को मिलाने के बाद बर्तन को अच्छे से बंद कर लें.
· 21 दिनों के बाद मिश्रण से बु उत्पन्न होने लगती है ।
· फिर पानी के 10 लीटर के मिश्रण के 200 मिलीलीटर तैयार मिश्रण मिला लें और पौधों पर स्प्रे करें।
जैविक खाद बनाने के लिए आम घरेलू खाद्य सामग्री
· ग्रीन चाय - हरी चाय का एक कमजोर मिश्रण पानी में मिला कर पौधों पर हर चार सप्ताह के अन्तराल पर इस्तेमाल किया जा सकता है(एक चम्मच चाय में पानी के 2 गैलनध)।
· जिलेटिन - जिलेटिन खाद पौधों के लिए एक महान नाइट्रोजन स्रोत हो सकता है , हालांकि ऐसा नहीं हैकी सभी पौधों नाइट्रोजन के सहारे ही पनपे। इसे बनाने के लिए गर्म पानी की 1 कप में जिलेटिन कीएक पैकेज भंग कर के मिला ले, और फिर एक महीने में एक बार इस्तेमाल के लिए ठंडे पानी के 3 कपमिला लें ।
· मछलीघर का पानी –
मछलीघर टैंक से पानी बदलते समय उसका पानी पौधों को देने के काम आ सकता है । मछली अपशिष्ट एक अच्छ उर्वरक बनाता है।
इस प्रकार के खाद सस्ते और बनाने में आसान होते हैं और साथ ही बहुत प्रभावी भी होते हैं इनके प्रयोग से मिट्टी और फसल की गुणवत्ता में काफी सुधार होता है, जिन में से कुछ निम्नलिखित हैं :
खाद, मिट्टी की संरचना में सुधार लाता है, जिसके कारण मिट्टी में हवा का प्रवाह अच्छे से संमभ्व हो पाता है , जल निकासी में सुधार होता है और साथ ही साथ पानी के कारण होने वाली मिट्टी का कटाव भी कम कर हो जाता है ।
खाद मिट्टी में पोषक तत्वों को जोड़ देता है ताकी उन्हे पौधें आसानी से सोख़ सकें और उन्हे पोषक तत्वों को लेने में आसानी हो तथा फसल की पैदावार अच्छी हो जाये।
खाद मिट्टी की जल धारण करने की क्षमता में सुधार लाता है । इस कारण सूखे के समय में भी मिट्टी मे नमी बनी रहती है।
मिट्टी में खाद मिलाने से फसल में कीट कम लगते हैं और फसल की रोगप्रतीरोधक छमता में वृद्धिहोती हैं ।
खाद, रासायनिक उर्वरकों से कई अधीक फायदेमदं हैं । रासायनिक उर्वरकों पौधों को तो लाभ पहुँचातें हैं किन्तु इनसे मिट्टी को कोई फायदा नहीं पहुँचता है । ये आम तौर पर उसी ऋतु में पैदावार बढ़ाते है जिसमें इनका छिड़काव कियाजाता हैं । क्योंकि खाद मिट्टी को पोषक तत्व प्रदान करती है और मिट्टी की संरचना में सुधार लाती है , इस वज़ह से इसकेलाभकारी प्रभाव लंबे समय तक चलते है ।
खाद मिट्टी में पोषक तत्वों को जोड़ देता है ताकी उन्हे पौधें आसानी से सोख़ सकें और उन्हे पोषक तत्वों को लेने में आसानी हो तथा फसल की पैदावार अच्छी हो जाये।
खाद मिट्टी की जल धारण करने की क्षमता में सुधार लाता है । इस कारण सूखे के समय में भी मिट्टी मे नमी बनी रहती है।
मिट्टी में खाद मिलाने से फसल में कीट कम लगते हैं और फसल की रोगप्रतीरोधक छमता में वृद्धिहोती हैं ।
खाद, रासायनिक उर्वरकों से कई अधीक फायदेमदं हैं । रासायनिक उर्वरकों पौधों को तो लाभ पहुँचातें हैं किन्तु इनसे मिट्टी को कोई फायदा नहीं पहुँचता है । ये आम तौर पर उसी ऋतु में पैदावार बढ़ाते है जिसमें इनका छिड़काव कियाजाता हैं । क्योंकि खाद मिट्टी को पोषक तत्व प्रदान करती है और मिट्टी की संरचना में सुधार लाती है , इस वज़ह से इसकेलाभकारी प्रभाव लंबे समय तक चलते है ।
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