गाय से प्राप्त पांच गव्यों के मिश्रण को ‘पंचगव्य’ कहते हैं। पंचगव्य में गाय के ही गव्यों को महत्व क्यों दिया जाता है–
गो का दूध भैस और बकरी के दूध की पौष्टिकता से कम होता है। लेकिन संघटन की दृष्टि से गाय का दूध माता के दूध के समकक्ष होता है। मनुष्य का आहारनाल जितनी आसानी से गाय का दूध पचा लेती है उतनी आसानी से भैंस के दूध को नहीं पचा पाता क्योंकि गाय का दूध ही रोगी, वृद्ध तथा बच्चों को दिया जा सकता है। भैस के दूध से इन लोगों को कब्जियत हो सकती है। इसीलिए पंचगव्य में गौमाता के दूध, दही और घी का प्रयोग किया जाता है।
गौमाता का दूध पीने से मस्तिष्क तथा तंत्रिकातंत्र की कोशिकाओं की बढ़त, रखरखाव तथा मरम्मत होती है। जिन्दगी भर गौ दुग्ध पान करने वालों को कैंसर तथा खासतौर पर माताओं और बहनों को स्तन का कैंसर नहीं होता। गाय का दूध अन्य प्राणियों के दूध से अधिक गुणकारी होता है। इसलिए ‘पंचगव्य’ में गाय के दूध का प्रयोग होता है।
डॉ. ई. वैडीवेल की एक शोध के अनुसार चारा, दाना और पानी के साथ जो विषाक्त पदार्थ गोमाता खाती हैं उन्हें वह कभी भी अपने दूध, मूत्र या गोबर के माध्यम से बाहर नहीं निकालती जबकि बकरी, भैंस तथा सभी पशु विषाक्त पदार्थों को दूध, मूत्र तथा गोबर से बाहर निकाल देते हैं। उक्त प्रक्रिया के कारण गाय का दूध, मूत्र तथा गोबर पवित्र, पोषक तथा औषधिगुणों से युक्त माना गया है। जल, पृथ्वी, वायु, आकाश और अग्नि से पंच महाभूत शरीर की रचना होती है। पांचों तत्व सभी प्राणियों में भिन्न-भिन्न मात्रा में पाया जाात है, लेकिन गौ माता के शरीर में पांचों तत्व संतुलित मात्रा में पाया जाता है इसलिए गाय में दैविक शक्ति अधिक होती है।
वैदिक ग्रन्थों के अनुसार गौ माता के शरीर में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास माना गया है। अगर यह सत्य है तो इससे उत्पन्न होने वाले दूध, मूत्र तथा गोबर किसी न किसी देवी-देवता के सान्निध्य से गुजरते हैं। मान्यताओं के अनुसार गोबर में लक्ष्मी, गोमूत्र में गंगा तथा दूध में सरस्वती का निवास है। इसीलिए कहा जाता है कि गो दुग्ध के सेवन से बुद्धि तीव्र होती है। दूसरे अर्थों में गो दुग्ध में सोम, दही में वायु, गोबर में अग्नि तथा गोमूत्र में वरुण देव का निवास माना गया है। अत: गाय का दूध, मूत्र तथा गोबर दिव्य शक्तियों वाले माने जाते हैं।
‘पंचगव्य प्राशनम् महापातक नाशनम्’
पंचगव्य को सर्वरोगहारी माना गया है। अलग-अलग रूपों में प्रत्येक गव्य त्रिदोष नाशक नहीं हैं। परन्तु पंचगव्य के रूप में एकात्मक होने पर यह त्रिदोषनाशक हो जाता है। अत: त्रिदोष से उत्पन्न सभी रोगों की चिकित्सा ‘पंचगव्य’ से सम्भव है।
पंचगव्य एक अच्छा प्रोबायोटिक है। प्रोबायोटिक रोग न उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं को नष्ट कर मनुष्य को उपयोगी किस्म का फ्लोरा उपलब्ध कराते हैं। प्रोबायोटिक शरीर की व्याधियों को कम करके प्राणी की उत्पादन क्षमता, प्रजनन क्षमता ओज और रोग प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाते हैं। पंचगव्य एक अच्छा एन्टीआक्सीडेन्ट तथा एक अच्छा विषशोधक है। पंचगव्य में मौजूद घी विष शोधक का कार्य करता है। उपर्युक्त गुणों के अतिरिक्त पंचगव्य का प्रयोग रक्तचाप, शुगर, मिर्गी तथा अन्य बहुत से रोगों में भी लाभकारी हैं इस प्रकार से सर्वविदित है कि कैंसर जैसे रोगों के अलावा अन्य कई रोगों में भी ‘पंचगव्य’ की भूमिका महत्वपूर्ण है।
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