प्रश्न == नारायणकवच में कहा गया है कि
" मार्ग में
देवहेलना रूप दोष से हयशीर्ष भगवान हमारी रक्षा करें " ये देवहेलना क्या है ?
चिंतल विजय भाई
दवे ,बड़ोदरा ,गुजरात ।
उत्तर == यह नारायणकवच भागवत के छठवें स्कन्ध के 8 वें अध्याय में है । देवता भी दुष्टों के अत्याचार से दुखी
होकर स्तोत्रों द्वारा भगवान के विविध अवतारों की स्तुति करते हैं ।
यह नारायणकवच
दैत्यों के पुरोहित त्वष्टा के पुत्र विश्वरूप ने भगवान इन्द्र को प्रदान किया था
।
अर्थात भगवान पक्षपाती नहीं हैं ।
यदि दैत्य भी और
दैत्यों के पक्षपाती गुरू भी भगवान से आत्मरक्षा की प्रार्थना करते हैं तो भगवान
उनकी भी रक्षा करते हैं ।
भगवान तो माँ के समान होते हैं । विषमता तो पुत्रों में
होती है ,माँ के हृदय में असमानता ,विषमता , स्वार्थ और पक्षपात नहीं होता है । इसीलिए तो माता पिता को
भगवान कहा जाता है ,तथा भगवान को
"त्वमेव माता च पिता " कहा जाता है ।
अब आप अपने
प्रश्नानुकूल उत्तर सुनिए । नारायणकवच के 15 वें श्लोक में भगवान से रक्षा के लिए प्रार्थना की गई है ।
सनत्कुमारोsतु कामदेवात् हयशीर्षा मां पथि देवहेलनात् "
जिस समय पति
पत्नी के लिए संयोग करने के लिए निषेध किया गया है ,उस समय जगनेवाले कामदेव से तथा अन्य स्त्री को देखकर पुरुष
के हृदय में जगनेवाले कामदेव से तथा सुंदर
पुरुष को देखकर स्त्री के हृदय में जगनेवाले कामदेव से ब्रह्मापुत्र सनत्कुमार
हमारी रक्षा करें । तथा मार्ग में जाते हुए प्रतिष्ठित अप्रतिष्ठित देवताओं को
नमस्कार न कर पाने से जो दोष लगता है ,तथा कुपित देवताओं से हयग्रीव भगवान हमारी रक्षा करें ।
महाकवि कालीदास जी ने रघुवंश महाकाव्य में लिखा है कि राजा
दिलीप ने गुरुवसिष्ठ जी से संतान न होने का कारण पूंछा तो गुरुदेव ने बताया कि
"जब आप स्वर्ग से आ रहे थे तो मार्ग में कामधेनु खड़ी थी । आपने उसे प्रणाम भी
नहीं किया था और न ही उसे दाहिने तरफ करके चले थे ।उसी दोष के कारण आपके संतान सुख
नहीं मिल रहा है ।
अर्थात गाय के
बाईं तरफ से प्रणाम करते हुए ही निकलना चाहिए । सूर्य की ओर ,पीपल की ओर मुख करके न तो थूंकना चाहिए और न ही
मल मूत्र करना चाहिए । ब्राह्मण ,गौ, सूर्य ,पीपल , ये अप्रतिष्ठित देवता हैं
।ये सर्वत्र और सदा ही प्राप्त होते हैं । इनको प्रणाम करते हुए ही आगे बढ़ना चाहिए
। यही देवहेलना कही जाती है ।
यदि इनको प्रणाम
किए बिना ही निकल जाते हैं तो अवहेलना कहलाएगी ।जैसे आप कहीं बैठे हों या खड़े हों
और आप से परिचित व्यक्ति आपको देखकर भी या बिना देखे ही बिना बोले ही समीप से निकल जाता है तो आपके मन
में कुछ न कुछ अनादर का भाव जगने लगता है ।इसी को उपेक्षा और अवहेलना कहते हैं ।
इसलिए प्रार्थना
की गई है कि मार्ग में शीघ्रता के कारण या किसी विचार के कारण मार्ग में देवमंदिर ,गौ ,ब्राह्मण ,संत या हमसे श्रेष्ठ पुरुषों की अवमानना जाने अनजाने हुई हो ,तो उनके क्रोध से हयग्रीव भगवान हमारी रक्षा करें । इसलिए
कोई न कोई स्तोत्र पाठ प्रतिदिन करना चाहिए । संसार का कितना भी बलवान धनवान
प्रभावशाली मनुष्य हो ,वह दैवी आपत्ति
से आपकी रक्षा नहीं कर सकता है ।आपका धर्म ही आपकी रक्षा करता है ।
राधे राधे ।
-आचार्य ब्रजपाल
शुक्ल, श्री धाम वृन्दाबन
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