गौ मूत्र से केंसर का इलाज
वेदों, पुराणों, स्म्रतियो, श्रीमद्भागवत, महाभारत तथा एनी ग्रंथो में गो महिमा पर ढेर सारा साहित्य उपलब्द्ध है. गोमाता में समस्त देवताओं, ऋषियों, मुनियों और तीर्थो का निवास बताया गया है.
गो रक्षा के लिए ईश्वर को स्वयम अवतार लेना पडता है. गाय धरती के समान मानी जाती है. राक्षसों के अत्याचार से पीड़ित होकर धरती द्वारा गाय का रूप धारण कर परमात्मा की गुहार लगाने की घटना धर्म ग्रंथो में वर्णित है.
गो महिमा अनंत है, जिसके पीछे परमब्रह्म परमात्मा श्री कृष्ण के स्वरूप में विचरण करता है.
गो दुग्ध के चमत्कारिक उपचार
हमारे यहा गाय को माता और दुग्ध को अम्रत माना जाता है और इसका चमत्कारी प्रभाव आज भी दिखाई पडता है.
घटना सम्भवतः १९४५ के आस-पास की है. कशी के प्रख्यात वैद्य पंडित राजेश्वर दत्त शास्त्री के यहां बिहार के एक सम्पन्न जमीदार अत्यंत क्षीण अवस्था में अपनी पत्नी को लेकर उपचार के लिए आये.
उनकी पत्नी तीस वर्ष की आयु में ही सूखकर कांटा हो गयी थी. पूरा शरीर पीड़ा से बैचेन था.
जमीदार ने बताया की वर्षो से वे उपचार के लिए चारो और दौडकर थक गये, किन्तु कोई लाभ नही हुआ. किसी को इनका रोग समझ न आता.
यह सुनकर वैद्य जी ने मुस्कराकर कहा- अब आप शांत रहे. इतना कहकर वैद्यजी ने उनकी पत्नी की नाडी देखि. कुछ देर विचार किया और जमीदार को एकांत में बताया की इन्हें केंसर हुआ है, किन्तु घबराने की कोई बात नही है.
भगवन का नाम लेकर धैर्य और परहेज से यदि दवा करेगे तो छह माह में ठीक हो जाएगी. इनकी दवा और भोजन केवल काली (श्यामा) गाय का दूध और काली तुलसी की पत्ती होगा.
अतः यह जितना खा पी सके वही दूध और पत्ती दीजिये.यदि स्वाद बदलने की इच्छा हो तो मूग की दाल का रस और जौ की रोटी दे सकते है. साथ में कोई भी दवा लेना गो दुग्ध और तुलसी का अपमान होगा और उससे हानि भी हो सकती है. गाय और तुलसी दोनों हमारी माताए है.
वैद्य जी की बताई दवा पर पूर्ण विशवास रखते हुए वे अपनी पत्नी के साथ वापस लौट आये और तदनुसार ही गो दुग्ध और तुलसी का सेवन करने लगे.
धीरे धीरे समय बीतता गया
छह माह बाद जमीदार अपनी पत्नी के साथ जब वाराणसी में वैद्य जी के यहा आये तो स्वस्थ, सुंदर एवं प्रसन्न महिला को देखते ही वे पहचान गये और स्वयम हर्षित होकर बोल पड़े - देखा न गो दुग्ध और तुलसी का चमत्कार.
जमीदार ने बताया उब्न्होने काली तुलसी का एक बड़ा बगीचा ही लगवा दिया था और चार पाच काली गाय रख ली थी. महीनेभर सेवन करते करते उनकी पत्नी पर्याप्त स्वस्थ्य हो गयी.
जमीदार ने श्रद्धा पूर्वक वैद्य जी को बहुत आग्रह पूर्वक कुछ देना चाहा और ग्रहण करने की प्रर्थन भी की किन्तु वे बोले-मैंने अपने औषधालय से आपको कोई दवा दी नही तो पैसे किस बात के लू. हा गोमाता ने आप पर कृपा की है अतः यह धन किसी गोशाला को दान दे दीजिये
इस चमत्कारी घनकी चर्चा वाराणसी केबुजुर्ग आज भी करते है.
केंसर पर पुरे विश्व में रिसर्च हो रहा है और अभी तक यह रोग असाध्य ही माना जाता है किन्तु शास्त्री जी ने पचासों वर्ष पूर्व गोदुग्ध के बलपर सफलता प्राप्त कि थी . इसमें निश्चित ही गो महिमा के साथ ही उनकी आस्था एवं एवं परोपकारी भावना जुडी हुई थी.
गौ घृत के चमत्कार
श्यामा गाय के घृत के प्रयोग से मैंने स्वयम अनेक दुखो व्यक्तियों को रोग मुक्त होते देखा है. इससे गठिया, कुष्ठ रोग, जले तथा कटे घाव के दाग, चहरे की झाई , नेत्र विकार, जलन, मुह का फटना आदि पर आश्चर्य जनक लाभ होता है.
इसी प्रकार की एक घटना और है
कुछ वर्ष पूर्व एक व्यक्ति को गठिया रोग हो गया. रोगी व्यक्ति स्वयम सम्पन्न थे और उनके यह सौभाग्य से एक व्यक्ति को गठिया रोग हो गया. उनके यहाँ सौभाग्य से एक श्यामा गाय भी थी. उस गाय को एक माह तक हरे चारे के अतिरिक्त ढाई -ढाई सौ ग्राम की मात्र में गेहू, गुड, कच्ची गरी, कच्ची मूंगफली, आमा हल्दी, चना, सफेद दूब , बेल की पती, महुआ , सेंधा नमक, सफेद नमक तथा अजवाइन और मेथी पचास-पचास ग्राम प्रतिदिन के हिसाब से एक माह तक खिलाया गया.
गर्मी का समय था अतः गाय को अत्यंत स्वच्छ वातावरण में रखकर दोनों समय नहलाया धुलाया जाता था. प्रातः और सायं थोडा गुड खिलाकर तीसरे दिन से निकाले गये उक्त गाय के दूध से ग्रामीण पद्धति के अनुसार गोहरी की आंच पर मिटटी के पात्र में पकाए गये दूध से घी तैयार कर उसका घी निकाला गया.
जिससे शत प्रतिशत सफलता मिली.
मेरे एक मित्र की आपरेशन के दौरान नाक में हफ्तों नली पड़ने के कारण आवाज चली गयी थी.प्रयास करने के बावजूद १५-२० दिन बाद भी वे कुछ बोल नही पा रहे थे. मजबूर होकर वे अपनी बाते कागज पर लिख देते थे. तीन-चार दिन गले में उक्त घी की मालिश करते ही उनकी आवाज खुलने लगी और ८-१० दिन में वे पूर्ववत बोलने लगे.
तीसरी घटना एक युवक से सम्बन्धित है.
प्रिंटिंग मशीन से दबकर उसके बाए हाथ की हथेली तथा अंगुलिय बुरी तरह फट गयी. अगूठा तो कटकर अलग हो गया. तत्परता से आपरेशन एवं दवा के बाद दो तीन माह में जब उसका हाथ ठीक हो गया तो चमड़े के तनाव और आपरेशन के दाग से उसकी अंगुलिया खुल नही पाती थी और पूरी हथेली बदसूरत लग रही थी.
इस घी की मालिश से महीने भर में ही शेष चारो अंगुलिया और हथेली पूर्ववत हो गयी और आपरेशन का दाग एक सामान्य रेखा के रूप में शेष रह गया.
इसी प्रकार एक और घटना है.
वाराणसी नगर के एक सम्भ्रांत परिवार की सुशील एवं सुंदर कन्या के गले में जगह-जगह सफेद दाग हो जाने से पूरा परिवार चिंतिति था. लडकी स्वयम हीन भावना के कारण उदास दिखाई देती थी.
उनके आग्रह पर उस लड़की को श्यामा गाय का वही घी लगाने के लिए दिया. महीना बीतते-बीतते सफेद दाग के स्थान पर लाली आने लगी और दुसरे माह में उसकी त्वचा एक रंग की हो गयी. उसे देखकर कोई कह नही सकता की गले में कभी कोई दाग था
इसी प्रकार जोड़ो में दर्द, नेत्र संबंधी विकार, चोट, सूजन, फोड़े-फुंसी आदि अनेक विकारो से पीड़ित अनेक लोगो का उक्त घी से उपचार किया गया, जिसमे आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त हुई.
गौ मूत्र एवं गोमय के दिव्य गुण
आयुर्वेदिक ग्रंथो में गाय की बड़ी महिमा गाई गयी है. धार्मिक अनुष्ठानो में पंचगव्य का प्रयोग सर्वविदित है. गाय का गोबर इतना पवित्र माना जाता है की उससे लीपे बिना पूजा अथवा यज्ञस्थल पवित्र नही होता.
गोबर में रोग निवारण के आश्चर्यजनक गुण पाए जाते है. इसकी गंध से हानिकारक विषैले जीव जन्तु मर जाते है. गौमूत्र के बारे में भावप्रकाश कहता है की यह चरपरा, कडुआ, तीक्ष्ण, गर्म, खरा, कसैला, हल्का, अग्निप्रदीपक, मेधा के लिए हितकर, कफ, वात, शूल, गुल्म, उदर, खुजली, नेत्र रोग, मुख रोग, किलास, आमवात रोग, वस्ती रोग, कोढ़, खासी, श्वास, सुजन, कामला एवं पांडू रोग नाशक है.
कान में डालने से कान दर्द दूर हो जाता है.
अंगरेजी दवाओ से प्रथम चरण में फाइलेरिया को कुछ दिनों के लिए भले दबा दिया जाय, किन्तु पतले धागे की तरह लम्बे इसके कीड़ो को केवल गोमूत्र से ही समाप्त किया जा सकता है.
ज्ञातव्य है की यह कीड़े शरीर के भीतर रात में डोलकर पीड़ा पहुचाते है और पील पाँव आदि को उभारकर शरीर को विकृत तथा स्वास्थ्य को चौपट कर देते है. फ़ाईलेरिया से पीड़ित कई व्यक्तियों ने चालीस दिन तक लगातार गौमूत्र पीकर फाइलेरिया से मुक्ति पाई है, यह मेरा अपना अनुभव है.
यह सत्य है की गोवंश से सम्पूर्ण भारत उऋण नही हो सकता क्योकि अनादी काल से इस पर हमारा भौतिक एवं अध्यात्मिक जीवन आधारित रहा है, किन्तु इधर कुछ दशको से वैज्ञानिक प्रयोग के कारण कृषि का मशीनीकरण हो गया और बाजारू डिब्बे बंद घी और दूध से लोग अब काम चलाने लगे. ऐसी दशा में हमे गोवंश अर्थहीन सा प्रतीत होने लगे
नास्तिकता, स्वेच्छा चरण एवं धर्म दर्शन के प्रति उपेक्षित भाव होने के कारन गाय के धार्मिक एवं पारम्परिक मूल्यों को लोग भूल गये. यह कारण है की आज गोवंश पर कुठार उठाने में कोई हिचक और भी नही रह गया.
गोवंश की रक्षा के लिए आन्दोलन और सत्याग्रह करने वालो की भी कमी नही है. किन्तु इसमें पूर्ण सफलता तभी मिलेगी जब सम्पूर्ण मानव समाज गो महिमाँ की जानकारी प्राप्त कर लेगा.
प्राणी जब यह जान जायगा की गाय धरती के लिए वरदान है तो उसकी रक्षा में वह स्वयम तत्पर होगा. किसी के उपदेश आदेश की आवश्यकता नही होगी
(कल्याण के गौ सेवा अंक से साभार)
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