हजारों वर्ष साधना एवं खोज करके हमारें ऋषि मुनियों ने यह अनुभव किया कि गाय का हमारे जीवन में बहुत महत्व है तभी तो इसके पंचगव्य के सेवन से सालों साल निरोगी रहे।
प्राचीन काल में ब्रह्मचारी जब गुरूकुल में प्रवेष पाने आता था तो प्रवेश से पहले गुरू उसको कुछ माह गोचारण करने की आज्ञा देते थे। गायों के सानिध्य में रहकर चित्तवृत्ति शांत हो जाती थी और उसे ब्रह्मविद्या ग्रहण करने की पात्रता प्राप्त हो जाती थी।
लेकिन आज परिस्थितियां बिल्कुल बदल चुकी हैं। गाय को पालने वाला अब कोई नहीं है। गाय मारी-मारी भूखी-प्यासी बेहाल घूम रही है।
ऐसे में आवारा मवेशियों से जहां किसान परेशान है वहीं इन्हीं आवारा घायल गौवंश के माध्यम से गोबर व गौ मूत्र से जैविक खेती के तरीके द्वारा रीठी स्थित गौशाला में किसानों को जागरूक करने का प्रयास किया जा रहा है
पिछले दसकों से किसान रासायनिक खाद व कीट नियंत्रक के उपयोग से दिनो दिन कर्ज तले दबता चला गया और उत्पादन में भी साल दर साल कमी होती जा रही है।
ऐसे में वृजराज गौ शाला रीठी ने किसानों को जागरूक करने का बीड़ा उठाया है।
2011 में एक गाय से स्थापित इस गौशाला में आज 34 गौवंश है। सड़कों पर घायल गौवंश को लाकर यहां इलाज किया जाता है।
धीरे धीरे इस गौशाला को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया जा रहा है।
गौशाला के अध्यक्ष जयप्रकाश अवस्थी ने बताया कि
गाय से मिलने वाले पंचगव्य से विविध औषधि, खाद, कीटनियंत्रक, धूप, दंतमंजन, नहाने की टिकिया आदि के नियमित उत्पादन से गौशाला को आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है और किसानों को जागरूक किया जा रहा है ताकि प्रत्येक गौपालक गाय का ही नहीं अपितु अपने परिवार का भरण पोषण सरलता से कर सके।
इन सभी के लिए आवश्यक रहता है उत्तम दर्जे का पंचगव्य। यह पंचगव्य कौन सी गाय का होना चाहिए? उन्हें कैसे रखना चाहिए? पंचगव्य किस तरह से इकट्ठा करना चाहिए? उनका अधिक मात्रा में भंडारण किया जा सकता है क्या? कैसे?
इस तरह के अनेक सवाल सामने आते है। इसमें क्या-क्या सावधानियां बरती जानी चाहिए यह सब प्रशिक्षण में बताया जाता है। साथ ही एक गाय से एक एकड़ की खेती कैसे की जाए इसका प्रशिक्षण किसानों को दिया जा रहा है।
मानव स्वास्थ्य पर इसका चमत्कारिक प्रभाव पड़ता है समिति के उपाध्यक्ष याजुवेंद्र सिंह राजपूत ने बताया कि पंचगव्य द्वारा बीमार व्यक्ति कैसे लाभ प्राप्त करे लोगों को जागृत किया जा रहा है।
वैदिक विधि से पंचगव्य घृत का निर्माण भी किया जा रहा है। इस पंचगव्य घृत की एक-एक बूंद रात में सोते समय नाक में डालने से गर्दन से उपर के सारे रोगों में लाभ मिलता है। माइग्रेन, कमजोर याददाश्त, कान के सारे रोगों, कमजोर नजर आदि होने पर इस घी को नाक में डालने से रोगों से छुटकारा मिलता है।
कुन्ज बिहारी परौहा जो कि एक जागरूक किसान है व इसी विधि से जैविक खेती कर रहे है ने बताया कि जिन खेतों में गाय के गोबर की खाद का प्रयोग होता है उनमें उगी फसलों पर विनाषकारी कीटों का आक्रमण नहीं होता हैं। वहां कीटनाषकों के छिड़काव की जरूरत ही नहीं होती।
समिति के कोषाध्यक्ष नर्बदा सोनी ने बताया की गोबर का लेप केवल प्रदूषण से ही नहीं बल्कि आणविक विकिरण से भी रक्षा करता है। इसकी खाद सबसे बढिया उर्वरक है।
इस गौ शाला में लोगो को पंचगव्य के लाभ के प्रति जागरूक किया जा रहा है और लोगो को बताया जा रहा है कि गौ मूत्र चर्म रोगों पर रामबाड दवा है कैसा भी चर्मरोगी हो वह स्नान से पूर्व गौमूत्र की मालिस कर ले और एक घण्टे बाद नहाए और ऐसा मात्र दस दिन तक करे तो हर तरह के चर्मरोग जड़ से गायब हो जाते है। आंख और कान के समस्त रोगो पर गौमूत्र जबरदस्त लाभकारी है।
गौशाला के सचिव अखिलेश उपाध्याय ने किसानों से आग्रह किया है कि गाय के आर्थिक महत्व को समझे व गोबर और गौमूत्र से बनने वाले उत्पादों को बनाकर न केवल जैविक खेती को बढावा दे बल्कि स्वयं का रोजगार भी करे इसके लिए हमारी संस्था में इच्छुक व्यक्ति निःशुल्क प्रशिक्षण ले सकते है।
व्रजराज गौशाला एवं पंचगव्य अनुसन्धान केंद्र रीठी
पो/तह - रीठी, जिला - कटनी, एम पी
व्हाट्स एप 9407001528
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