Tuesday, 31 January 2017

Low blood pressure

राजीव दीक्षित- लो ब्लड प्रेशर 
प्राणायाम :-  

1) भ्रामरी,
2) शशकासन,
3)  ॐ उच्चारण ,
4) लम्बी श्वास प्राणायाम (उज्जायी)
5) सूर्य नमस्कार !

प्रात: का भोजन :- 
1) भीगा चना, टमाटर, ककड़ी सेंधा नमक के साथ 

2) नर्इ मूली + सेंधा नमक मिलाकर खाना
3) परवल , मूंग, कुलत्थ की भाजी
4) पुराने चावल का प्रयोग


शाम का भोजन :-  मूंग + चावल की खिचड़ी (सेंधा नमक) डालकर !

पथ्य :-  पुराना चावल, गेहूँ, आम, अनार, सेंधा नमक, केला, प्रात: काल नंगे पैर 
घाँस पर घूमना । 

अपथ्य :-  ज्यादा तनाव, वेग धारण, मैदे वाले सभी पदार्थ।


रोग मुक्ति के लिये आवश्यक नियम  : 

पानी के सामान्य नियम : 

१) सुबह बिना मंजन/कुल्ला किये दो गिलास गुनगुना पानी पिएं । 
२) पानी हमेशा बैठकर घूँट-घूँट कर के पियें । 
३) भोजन करते समय एक घूँट से अधिक पानी कदापि ना पियें, भोजन समाप्त होने के डेढ़ घण्टे बाद पानी अवश्य पियें । 
४) पानी हमेशा गुनगुना या सादा ही पियें (ठंडा पानी का प्रयोग कभी भी ना करें। 


भोजन के सामान्य नियम : 

१) सूर्योदय के दो घंटे के अंदर सुबह का भोजन और सूर्यास्त के एक घंटे पहले का भोजन अवश्य कर लें । 
२) यदि दोपहर को भूख लगे तो १२ से २ बीच में अल्पाहार कर लें, उदाहरण - मूंग की खिचड़ी, सलाद, फल और छांछ । 
३) सुबह दही व फल दोपहर को छांछ और सूर्यास्त के पश्चात दूध हितकर है । 
४) भोजन अच्छी तरह चबाकर खाएं और दिन में ३ बार से अधिक ना खाएं । 


अन्य आवश्यक नियम : 

१) मिट्टी के बर्तन/हांडी मे बनाया भोजन स्वस्थ्य के लिये सर्वश्रेष्ठ है । 
२) किसी भी प्रकार का रिफाइंड तेल और सोयाबीन, कपास, सूर्यमुखी, पाम, राईस ब्रॉन और वनस्पति घी का प्रयोग विषतुल्य है । उसके स्थान पर मूंगफली, तिल, सरसो व नारियल के घानी वाले तेल का ही प्रयोग करें ।  
३) चीनी/शक्कर का प्रयोग ना करें, उसके स्थान पर गुड़ या धागे वाली मिश्री (खड़ी शक्कर) का प्रयोग करें । 
४) आयोडीन युक्त नमक से नपुंसकता होती है इसलिए उसके स्थान पर सेंधा नमक या ढेले वाले नमक प्रयोग करें । 
५) मैदे का प्रयोग शरीर के लिये हानिकारक है इसलिए इसका प्रयोग ना करें । 

Monday, 30 January 2017

Cow dung benefits

गोबर से घरेलु उपचार 

वातावरण की शुद्धता में, धुप आदि में मुख्यतः गोबर का उपयोग किया जाता है. प्राचीनकाल से घर की पुताई करने के लिए गोबर का उपयोग होता है. 


गोबर सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों को सोख लेता है. जिसके कारण इन किरणों से हम सुरक्षित रहते है. 


 अतः घर तथा परिसर में गोबर से पुताई करने से वातावरण शुद्धि के साथ-साथ, सूर्य किरणों की तीव्रता से बचाव हो सकता है. 


श्वासरोग (दमा/अस्थमा) में गोबर का रस निकालकर नाक में दो-दो बूँद डालने से तत्काल लाभ होता है 


गोबर की केवल गन्ध लेने से नाक से रक्त आना बन्द होता है 


गोबर में विटामिन बी 12 अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है 


पतले दस्त/डायरिया की अवस्था में गोबर का रस पीने से शीघ्र लाभ होता है 


समस्त प्रकार के दांत के विकार में गोबर की राख  का मंजन  रूप में उपयोग लाभदायक होता है 


गोबर एक सहज, सुलभ प्राप्त कीटाणुनाशक है 


Wednesday, 18 January 2017

bartan called in english

ऐल्यूमीनियम के बर्तन से कर्इ प्रकार के गंभीर रोग

हमारे देश में एल्यूमिनियम के बर्तन 100-150 साल पहले ही आये हैं उससे पहले धातुओं में पीतल, काँसा, चाँदी, फूल आदि के बर्तन ही चला करते थे और बाकी मिटटी के बर्तन चलते थे। 


अंग्रेजों ने जेलों में कैदियों के लिये ऐल्यूमीनियम के बर्तन शुरु किये क्योंकि उसमें से धीरे-धीरे विष हमारे शरीर में जाता है। ऐल्यूमीनियम के बर्तन के उपयोग से कर्इ प्रकार के गंभीर रोग होते हैं जैसे अस्थमा, वात रोग, टी.बी. शुगर आदि ।

 पुराने समय में फूल और पीतल के बर्तन होते थे जो स्वास्थ्य के लिये अच्छे माने जाते हैं यदि संभव हो तो वही बर्तन फिर से लेकर आयें, हमारे पुराने वैज्ञानिकों को मालूम था कि एल्यूमीनियम बाक्साइट से बनता है और भारत में इसकी भरपूर खदानें हैं फिर भी उन्होंने एल्यूमीनियम के बर्तन नहीं बनाये 

क्योंकि यह भोजन बनाने और खाने के लिए सबसे घटिया धातु है इससे अस्थमा, टी.बी., वात रोग में बढ़ावा मिलता है इसलिये एल्यूमीनियम के बर्तनों का उपयोग बन्द करें ।.

Friday, 13 January 2017

jaivik khad kya hai

जैविक खाद का चमत्कार 

इस बार गौशाला में भारतीय देशी गौवंश से प्राप्त गोबर से जैविक खाद का निर्माण किया और फसल आप स्वयम देख कर अंदाज लगाए की रासायनिक जहर में और देशी खाद में क्या फर्क है
यह तस्वीर  जैविक खाद की फसल की है और नीचे रासायनिक खाद  तस्वीर है
एक ही दिन बुआई की गयी और फर्क दिख रहा है

इस बार जैविक खेती की है


gau seva samiti

गौशाला के नाम पर धंधा?
गाय के नाम पर पैसा मांगने वालों को कभी पैसा मत देना
गौशाला के नाम पर धंधा किया जा रहा है
ऐसा ही पिछले दिनों हमारे शुभचिंतको ने गम्भीर चिंता व्यक्त की


 लेख के माध्यम से गौशालाओ में व्याप्त अनियमितताओं का जिक्र किया गया 
मेरे काबिल दोस्तों ने बिना गौशाला देखे बहुत कुछ लिख डाला

सबसे पहली बात हमारी गौशाला को सरकारी मदद नही मिलती और न हमारी कोई ऑफिसियल वेबसाइट है
और हम जितनी चाहे उतनी गाय अपनी मर्जी से रखे न रखे किसी की जोर जबरदस्ती नही है

क्योकि न तो हम किसी से चंदा लेते

और जिसे हिसाब चाहिए वह पहले गौशाला के कोषाध्यक्ष श्री नर्मदा सोनीजी से मिलकर आय-व्यय देख सकता है

 जितनी क्षमता है उतने ही गौवंश रखे जा सकते है कांजी हाउस बनाकर पाप के भागी नही बनना है

कुछ लोग गौग्रास के लिए मासिक राशि देते है उसका लेख-जोखा कोषाध्यक्ष के पास मोलेगा कोई भी कभी भी हिसाब-किताब देख सकता है

पंचागव्य से बने उत्पाद बेचकर गौशाला को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास है

अभी धुप बत्ती, अर्क, अंगराग टिकिया, मंजन, जैवीक खाद आदि का निर्माण करके गौशाला को चलाया जा रहा है

क्या हमारा कोई व्यक्ति आपसे गौशाला के लिए चंदा लेने पहुचा??

जिन्होंने सहयोग दिया है या दे रहे है वह स्वयं ही करते है

आप सभी से निवेदन है
गाय के नाम पर चंदा मत दे गौशाला में बने गोबर और पंचगव्य उत्पाद खरीदे ताकि हमारा प्रयास सफल हो सके और हम गौशाला का और भी विस्तार कर सके

जो  भी भ्रांतिया आपको हुई है आप एक बार गौशाला आकर देखे और हमसे हिसाब जरूर ले

धन्यवाद
जय प्रकाश अवस्थी/अध्यक्ष
व्रजराज गौशाला , रीठी, कटनी,
मध्य प्रदेश

Tuesday, 10 January 2017

tel banane ki vidhi

खाने के लिये घानी का तेल ही सर्वोत्तम 
आधुनिक विज्ञान ने हमें तेल के नाम पर विष खाने के लिए विवश कर दिया है। आज रिफाइंड तेल बनाने के नाम पर हमारे स्वास्थ्य के लिये लाभदायक महत्वपूर्ण घटक (गंध, चिपचिपापन) निकाल लिये जाते है।

 तेल की मूल गंध जो प्रोटीन होती है और चिपचिपापन जिसके कारण उसे तेल कहते हैं उसके निकलने के बाद वह तेल नहीं है तेल जैसा पदार्थ रह जाता है। रिफाइंड बनाने की इस प्रक्रिया में उसमें कर्इ हानिकारक रसायन ज़हर भी मिलाये जाते है। 

इसके साथ ही कानून की मदद से इसमें Palm oil मिलाकर बाजार में बेचा जा रहा है। जब से हम रिफाइंड तेल खाने लगे हैं तब से रक्त चाप, कैंसर, ह्रदयघात जैसे रोगों में गुणात्मक वृद्धि हुर्इ है।

पहले तेल में गैसोलीन नामक केरोसिन फेमिली का रसायन मिलाकर उसे पतला किया जाता है फिर उसमें हेक्सेन मिलाकर खूब हिलाया जाता है और तेल में उपस्थित महत्वपूर्ण घटक Fatty Acid और विटामिन-र्इ तथा Minerals निकाल लिए जाते हैं 

जबकि हमारा शरीर इनको स्वयं नहीं बना पाता, इसी कारण ये तत्व हमें तेल से प्राप्त होते हैं। फिर इस तेल को 300 फैरेनहाइट पर उबाला जाता है ताकि गैसोलीन और हेक्सेन की दुर्गन्ध को दूर किया जा सके, तेल का मटमैला रंग निकालकर उसे ट्रांसपेरेन्ट बनाने के लिए ब्लीचिंग किया जाता है 

जिसके कारण वीटा केरोटिन और क्लोरोफिल खत्म हो जाता है,  ये तत्व हमारे शरीर में कोलेस्ट्राल घटाने का काम करते हैं। इसके बाद Degumming प्रक्रिया द्वारा तेल के महत्वपूर्ण घटकों Phosphalipiel तथा Lecithene को निकाल लिया जाता है जिससे तेल और अधिक पतला हो जाता है। 

फिर तेल से उसकी दुर्गन्ध निकालने के लिए तेल को 464 डिग्री फैरेनहाइट पर गर्म किया जाता है और सबसे अन्त में इस घटिया और तत्वहीन तेल को लम्बे समय तक टिकाये रखने के लिये उसमें प्रिजरवेटिव के रुप में Synthetic Anti Oxidants डाले जाते हैं। अब आप ही सोचिए कि हम तेल खा रहे हैं या विष ?

खाने के लिए घानी का तेल ही सबसे अच्छा होता है क्योंकि इसमें तेल को पेरते समय उसका तापमान 20 - 25 अंश सेन्टीग्रेट से ऊपर नहीं जाता जिससे उस तेल के तत्व नष्ट नहीं होते। जबकि रिफाइंड तेल को बनाने में उच्च तापमान का उपयोग किया जाता है और एक बार उच्च तापमान पर बना तेल दोबारा खाने योग्य नहीं होता ।


 इसलिये खाने के लिये घानी का तेल ही सर्वोत्तम है अतः आप अपने-अपने क्षेत्र में घानी लगायें और घानी का तेल ही खायें

Sunday, 8 January 2017

bhojan thali

भोजन  में इतना भी परिवर्तन हो जाये तो स्वास्थ्य अच्छा रहता है
हमारे भोजन की दिनचर्या अत्यधिक बिगड़ गर्इ है ना तो हम अपनी प्रकृति के अनुसार भोजन करते हैं और ना ही सही समय पर भोजन करते हैं । देर रात में भोजन करना सबसे हानिकारक है क्योंकि उस समय हमारी जठराग्नि सबसे मंद होती है जिसके कारण भोजन का पाचन भली-भांति नहीं हो पाता और वह सड़कर कर्इ प्रकार की बीमारियों को जन्म देता है। दिन में सूर्य के प्रकाश के ताप से जठराग्नि सबसे अधिक सक्रिय रहती है जो भोजन के पाचन के लिये उत्तम है इसलिये महर्षि वागभट्ट ने कहा है कि प्रातः काल सूर्योदय से ढाई घण्टे के अन्दर भरपेट भोजन करना चाहिये क्योंकि उस समय जठराग्नि सबसे तीव्र होती है। फिर दोपहर के बाद शाम को 4-6 बजे के बीच में भोजन ग्रहण करना चाहिए क्योंकि सूर्यास्त के बाद जठराग्नि मंद होने लगती है । इसलिए रात में भोजन ना करें।

सुबह भोजन के तुरन्त बाद ऋतु के अनुसार किसी भी फल का रस ले सकते हैं।

दोपहर में खाने के तुरन्त बाद छाछ या मठ्ठा ले सकते हैं।

शाम के भोजन के बाद, रात में दूध पीकर सोना सर्वोत्तम है।

भोजन की दिनचर्या में इतना भी परिवर्तन हो जाये तो स्वास्थ्य काफी अच्छा रहता है।



भोजन जब भी करें तो ज़मीन पर चौकड़ी मारकर ही करें क्योंकि हमारे कूल्हों के ऊपर एक चक्र होता है जिसका सीधा सम्बन्ध जठराग्नि से होता है इसलिए सुखासन (आल्ति-पालती) मारकर सीधे बैठकर भोजन ग्रहण करने से जठराग्नि तीव्रता से काम करती है, परन्तु जब हम कुर्सी पर बैठकर या खड़े होकर भोजन करते हैं तो इसका ठीक उल्टा होता है इसलिये कभी भी खड़े होकर या कुर्सी में बैठकर भोजन नहीं करना चाहिये । भोजन लेने के बाद दस मिनट वज्रासन में अवश्य बैठना चाहिए जिससे हमारा भोजन अच्छी तरह से अमाशय में पहुँच जाता है। 24 घण्टे में यदि हम एक बार भोजन करें तो वह सबसे अच्छा पचता है क्योंकि शरीर में बनने वाला पाचक रस पूर्ण रूप से उसी कार्य में प्रयुक्त होता है इसीलिये ऋषि-मुनि तपस्वी लोग एक बार के भोजन से ही लम्बी आयु जीते थे। अगर दो बार भोजन करें तो भी अच्छा है सामान्य रुप से कम से कम दो बार अवश्य भोजन करें और अधिक से अधिक 24 घण्टे में 3 बार ही भोजन करें, क्योंकि हम जितनी अधिक बार भोजन करते हैं हमारा पाचक रस उतनी मात्रा में बँटता जाता है और पाचन की शक्ति कम होती जाती है।

लाभ:- पित्त की अधिकता के कारण होने वाले रोगों से छुटकारा मिलता है। अपच, खट्टी डकारें, अम्लता, एसिडिटी, रक्त विकार, उच्च रक्तचाप, मोटापा आदि रोगों में लाभ प्राप्त होता है।


Saturday, 7 January 2017

sendha namak benefits

सेंधा नमक ही खाये 

आयोडीन के नाम पर हम जो नमक खाते हैं उसमें कोर्इ तत्व नहीं होता। आयोडीन और फ्रीफ्लो नमक बनाते समय नमक से सारे तत्व निकाल लिए जाते हैं और उनकी बिक्री अलग से करके बाजार में सिर्फ सोडियम वाला नमक ही उपलब्ध होता है 

जो आयोडीन की कमी के नाम पर पूरे देश में बेचा जाता है, जबकि आयोडीन की कमी सिर्फ पर्वतीय क्षेत्रों में ही पार्इ जाती है इसलिए आयोडीन युक्त नमक केवल उन्ही क्षेत्रों के लिए जरुरी है। 

समुद्र के जल और धूप की गर्मी से वाष्पित होकर बनने वाले नमक में सोडियम, मैग्नीशियम, कैल्शियम, पोटेशियम जैसे तत्व मिले रहते हैं ये तत्व वर्षा के जल के द्वारा जमीन की मिटटी से मिलते हुए समुद्र में मिलते हैं और यही नमक में आते हैं। 

इसलिए खड़ा नमक अधिक अच्छा है, लेकिन सोडियम की मात्रा अधिक होने के कारण वह शरीर में नुकसान भी करता है। 

इसकी तुलना में सेंधा नमक /काला नमक / डेले वाले नमक में सोडियम की मात्रा कम होती है और मैग्नीशियम, कैल्शियम, पोटेशियम आदि का अनुपात सन्तुलित होता है इसलिये यह नमक हल्का, सुपाच्य और शरीर के लिए लाभदायक होता है।

 हम प्रतिदिन जो अनाज, सब्जियाँ और फल खाते हैं उनमें आजकल भरपूर मात्रा में UREA, DAP के रुप में रासायनिक खाद और विभिन्न प्रकार के कीटनाशक डाले जाते हैं 

जिसके कारण ये विष हमारे शरीर में जाते हैं और एक अनुमान के अनुसार हम एक वर्ष में लगभग 70 ग्राम विष खा लेते हैं। 

सेंधा नमक / काला नमक / डेले वाला नमक इस विष को कम करता है और थायराइड, लकवा, मिर्गी आदि रोगों को रोकता है।

काला और सेंधा नमक में 84 मिनरल्स होते हैं इसके अलावा इसमें Trace Minerals भी होते हैं इन Trace Minerals के कारण ही सोडियम शरीर को निरोगी बनाता है। 

रिफाइण्ड नमक में 98% सोडियम क्लोराइड ही है शरीर इसे विजातीय पदार्थ के रुप में रखता है। यह शरीर में घुलता नही है।

 इस नमक में आयोडीन को बनाये रखने के लिए Tricalcium Phosphate, Magnesium Carbonate, Sodium Alumino Silicate जैसे रसायन मिलाये जाते हैं जो सीमेंट बनाने में भी इस्तेमाल होते है।

 विज्ञान के अनुसार यह रसायन शरीर में रक्त वाहिनियों को कड़ा बनाते हैं जिससे ब्लाक्स बनने की संभावना और आक्सीजन जाने मे परेशानी होती है, जोड़ो का दर्द और गढिया, प्रोस्टेट आदि होती है। 

आयोडीन नमक से पानी की जरुरत ज्यादा होती है। 1 ग्राम नमक अपने से 23 गुना अधिक पानी खींचता है। यह पानी कोशिकाओ के पानी को कम करता है। इसी कारण हमें प्यास ज्यादा लगती है। 

अपने आसपास के दुकान वालों से सेंधा नमक या काला नमक या डेले वाला नमक लें अगर उपलब्ध न हो तो बतायें हमारे साथी कार्यकर्ता उपलब्ध करवा सकते हैं।

Sunday, 1 January 2017

How useful Cow Urine (Gau Mutra) to cure health at home


Gua Mutra contains carbolic acid which is antigermicidal in action. This is why it purifies and has cleansing action. This is the reason that ancient Vedic scriptures consider Gau Mutra as pure. Modern scientific techniques have proved the presence of phosphates, nitrogen, urea, uric acid, potassium and sodium in it. During lactation period of cow it also contains lactose which has the capacity to improve heart and mental ailments.
 The cow whose Gau Mutra is to be consumed should be young and healthy. It should be fed essentially on natural grass that grows in pastures and highlands. One must filter it through thin, clean muslin cloth before consuming it empty stomach, early in the morning. One should not eat anything for one hour after taking it. Children who are still on mother’s feed if given Gau Mutra then their mother’s should also consume it. Taking in of Gau Mutra by women during menstruation gives them strength and peace. A young person can increase consumption of cow urine at a time under guidence of any ayurvedacharya or panchgavya chikitsak.
1) Patient of constipation should be given cow urine that has been filtered many times.
2) Patients of jaundice, inflammation and chronic fever will be cured miraculously if they take cow urine mixed with extract of Chirhita (Achyrethes)
3) Bronchitis, cough and cold can be effectively cured by taking cow urine in prescribed amount.
4) Hepatitis is cured if one takes Gau Mutra in early morning for a month.
5) Children of Whooping cough should be given Gau Mutra mixed with turmeric.
6) All types of stomach ailment can be successfully cured by consuming cow Urine.
7) Patients of jalodar can simply be cure by taking Desi cow’s milk and in taking Desi Cow’s urine mixed with honey.
8) Any kind of inflammation in body can be cured by drinking cow’s milk and urine.
9) To cure any ailment of stomach one should take Gau Mutra mixed with equal quatities of salt and sugar.
10) In case of eye flu and eye irritation, lethargy, constipation one can take Gau Mutra mixed with sugar.
11) Women health improves dramatically if she takes Gau Mutra after child birth.
12) Patients of leucoderma have shown miraculous improvement by applying Gau Mutra mixed with herbs on affected area.
13) Mixing the powder of fenugreek seeds in desi cow urine and massaging it on body before taking bath cure various kinds of skin diseases.
14) Gold,loh vatsnabh, kuchla bhasma can be purified in Gau Mutra to prepare various medicines.
15) It detoxifies various posinous substances. It is also used to purify shilajeet.
16) Filariasis can be cured by taking Gau Mutra of desi cow breed empty stomach in the morning.
17) Acidity of stomach and urine infections can be cured successfully by taking cow urine.
18) Hair will become shiny if one washes it with water mixed with cow urine.
19) Patients of leprosy are to known to show improvement if they take cow urine mixed with jiggery and turmeric powder.
20) Drinking gaumutra with castor oil improves arthritis and other vaat doshs in children.
21) Emaciated kids should be given Gau Mutra with Saffron two time a day.
22) Regular intake of cow urine removes lethargy, improves appetite and cures blood pressure.
23) In case of Tuberculosis, smelling Gau Mutra (cow urine) and Gomaya (cow Dung) kills the germs of TB.
24) Applying a paste of crushed leaves of poppy plant and mixed with cow urine and successfully cure ring worm.
25) In case of hair loss during Typhoid, if one applies a paste of tambhaku prepared in Gau Mutra can restore hair growth.

गौ मूत्र फिनायल बनाने की विधि (केमिकल रहित)

             *सामग्री* गौ मूत्र      *एक लीटर* नीम पत्र    *200 ग्राम सूखा* पाइन आयल इमल्सीफायर युक्त     *50 ग्राम* उबाला हुआ पा...