गोघातियों एवं गो- अपराधियों का परोक्ष- अपरोक्ष समर्थन करना भी
गोघातरूपी महापाप ही है। इस सम्बन्ध में शास्त्रों द्वारा उल्लेखित बिन्दु-
(01.)जो मूर्ख लोग, गोवंश को
डॉटते तथा मारते- पीटते है वे गौओं के दु:खपूर्ण नि:श्वास से पीङित होकर घोर नरकाग्नि
में पकाये जाते है। (यदि कोई मारने वाली गोमाता घर में आ गयी है तो) उससे सूखे
पलाश के डंडे से हटा दें और उससे यह कहें कि तुम डरो मत, वापस चली जाओ।
(02.) जो मनुष्य पूज्या गोमाता के साथ पाप का व्यवहार करता है, वह निश्चय ही वृषल होता है और उसे रौरवादि नरकों की यंत्रणा
भोगनी पङती है। जो मनुष्य गोवंश को पैरों से मारता है, वह गाढे बन्धनों में बँधकर, भूख-
प्यास से पीङित होकर नरक- यातना भोगता है और जो निर्दय होकर गोवंश को पीङा
पहुँचाता है, वह शाश्वती गति- मुक्ति को नहीं
पा सकता।
(03.) जिस देश में गोवंश के रक्त का एक भी बिन्दु गिरता है, उस देश में किये गये योग, यज्ञ, जप, तप, भजन- पूजन, दान-
पुण्य आदि सभी शुभ कर्म निष्फल हो जाते है और सब धर्म- कर्म भी व्यर्थ हो जाते
हैं।
(04.) आज इस धर्मप्राण भारत देश में नित्यप्रति हजारों गोवंश कि
निर्मम हत्या कर रहे है, इससे
बढकर भला घोर पाप की पराकाष्टा और क्या होगी?
धर्मप्राण भारत से यदि गोवंश हत्या का काला कलंक नहीं मिटाया गया
तो फिर भारत का स्वतंत्र होना किस काम का?
यदि भारत
वास्तव में स्वतंत्र हो गया तो फिर स्वतंत्र भारत में यह गोवंश की हत्या
क्यों? इस स्वतंत्रता का राग अलापना कोरा धोखा देना है और कुछ नहीं
हैं।
(05.) गोरक्षा में असफल हिन्दु- धर्म सभी मोर्चो पर अरक्षित, सभी राष्टृ विरोधी, समाज-
विरोधी, धर्म- विरोधी व्यक्तियों और दानवीय अत्याचारों का शिकार बन
रहा है।
(06.) श्रीनारायण हैं वही साक्षात् पूज्या गोमाता हैं। आज जो इस
ऋषि- मुनियों के देश धर्मप्राण भारत में नित्यप्रति हजारों- लाखों की संख्या में
गोमाताएँ धङाधङ काटी जा रही है। इस गोहत्या से बढकर और कोई दूसरा घोर पाप नहीं है।
(07.) पूज्या गोमाताऔ को आर्थिक दृष्टि से देखना और बूढी, लॅगङी- लूली, अपाहिज
गोमाताऔ को काटने की सलाह देना तथा इनके काटने का किसी भी प्रकार से समर्थन करना-
यह तो एक बङा ही घोर पाप है और यह अक्षम्य अपराध है।
(08.) जब तक हमारी पूज्या गोमाता की इस देश में हत्या होती रहेगी, तब तक भला इस देश में, सुख-
शान्ती की क्या आशा? जिस देश
में, जिस भूमि पर गोवंश को काटा जाता है उस देश में किये गये योग, यज्ञ, जप, तप, दान, पुण्य, भजन-
पूजन आदि सब- के- सब शुभ कर्म व्यर्थ हो जाते हैं और निष्फल हो जाते है। यदि देश
में सुख- शान्ती चाहते हो तो इस गोवंश हत्या के काले कलंक को अविलम्ब बन्द कराने का
भरसक प्रयत्न करो।
(09.) गौ का यौगिक अर्थ गतिशील है- गच्छति इति गौ: जो चलती है- जो
गतिशील है, वह गौ है। सम्पूर्ण संचार
गतिशील होने से गोरूप है। विश्व की, आध्यात्मिक
की और आधिदैविक की अभिव्यक्ति गौ है। गोवंश की रक्षा से विश्वरक्षा और गोवंश की
हत्या से विश्वहत्या सुनिश्चित है।
(10.) विदेशी दुरभिसंधि और गौ ग्रास- लाच्छित राजनेताऔ के कारण
दिन- प्रति- दिन हिन्दुऔ की मानसिकता विकृत होती जा रही है। जिसके फलस्वरूप देशी
गोवंश की योजनाबद्ध हत्या हो रही है। गोहत्या स्वतंत्र भारत के दुर्भाग्यपूर्ण
अभिशाप है।
(11.) उशीनर, विष्वगश्व, नृग, भगीरथ, मान्धाता, मुचुकुन्द, भूरिधुंन, नल, सोमक, पुरूरवा, भरत और श्रीराम के राज्य में पूर्ण पोषण और संरक्षण को
सम्प्राप्त गोवंश तथा कृष्णचन्द्र के द्वारा पालित- पोषित गोवंश आज यान्त्रिक विधि
का आलम्बन लेकर प्रति वर्ष लाखों की संख्या में काटा जा रहा है, यह जघन्य अपराध है, महापाप
है। इससे देश को मुक्त करना हमारा परम कत्र्तव्य है। गोवंश की एक ईकाई की हत्या भी
हमें असह्य है।
(12.) यह गो -प्राण असुरों का प्रबल विरोधी है। जो मनुष्य गोवंश को
ताङना देता है, उसे रौरव नरक की प्राप्ति होती
है।
(13.) गोमाता जब इच्छानुसार चरती होती है, उस समय जो मनुष्य उन्हें रोकता है, उसके पूर्व- पितृगण पतनोन्मुख होकर कॉप उठते है। जो मनुष्य
मूर्खातावश गोवंश को लाठी से मारते है उनको बिने हाथ के होकर यमपुरी में जाना पङता
है।
(14.) जो व्यक्ति स्वयं
गोमाता को मारे या किसी से मरवाये, स्वयं
हरण करे या किसी से हरण कराये, उसे
प्रकृति प्राण दण्ड देती है।
(15.) ध्यान रहें, अमृत के
केन्द्र और मधु प्रदान करने वाली गोमाता की हत्या अपनी संस्कृति और अपने धर्म की
हत्या है, अपने आर्यत्व एवं अस्तित्व की हत्या है।
(16.) जो उच्छृंखलतावश मांस बेचने के लिये गोवंश की हिंसा करते या
गोमांस खाते है तथा जो स्वार्थवश कसाई को गोमाता का कत्ल करने की सलाह देते है, वे सभी महान् पाप के भागी होते है।
गोमाता की हत्या करने वाला, गोमांस खाने वाला, गोहत्या का अनुमोदन एवं समर्थन करने वाला, गोमाता के शरीर में जितने रोएँ (बाल) होते
है उतने वर्षों तक घोर नरक में पङा रहता है।
(17.) गोमाता मन- वचन एवं कर्म से सम्माननीय, पूजनीय एवं आदरणीय हैं। गोमाता को अपमानित करने का अर्थ होता
है देवताओं का कोपभाजन बनना। गोमाता के प्रति अपशब्द कहना और सुनना भी नहीं
चाहिये। गोवंश का छोटा- सा अपराध भी वंश- विनाश की शक्ति रखता है।
ॐ सुरभ्यै नमः
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