ऐसा हमने सुना और पढा है कि पहले
भारत में घी-दूध की नदियां बहती थीं। यानि भारत देश में इतना गोधन था कि प्रत्येक
व्यक्ति को पीने को पर्याप्त मात्रा में शुद्घ दूध एवं खाने को शुद्घ घी मिल जाता
था। हर घर में एक या अधिक गाय बंधी होती थीं।
न आज जैसी बीमारियां थी न व्यक्ति साधारणतया बीमार होता था। गौधन
की बहुतायत के कारण जैविक खेती होती थी। इन तमाम कारणों से पर्यावरण भी शुद्घ था।
परंतु धीरे-धीरे व्यक्ति स्वर्थी एवं लालची होता गया।
गाय को घर से बाहर निकाला
जाने लगा एवं उसकी हत्या होने लगी। तेजी से गो-पशुओं की संख्या घटने लगी। स्थिति
विषम होती गयी।
दूध एवं घी की पूर्ति के लिए इसमें मिलावट की जाने लगी।
जैविक कृषि की जगह रासायनिक खाद का प्रयोग किया जाने लगा। जिसका परिणाम हम देख रहे
हैं, कैंशर जैसी भयानक बीमारियां तेजी से
बढ़ रही हैं एवं हजारों व्यक्ति प्रतिदिन कैंसर जैसी बीमारियों से असमय ही मौत का
शिकार हो रहे हैं।
प्रत्येक दस व्यक्तियों में 7-8 प्रतिशत
किसी न किसी बीमारी से पीडि़त हैं। भारत में गाय को माता का दर्जा दिया गया है।
उसमें सैकड़ों देवी देवता निवास करते हैं, उसे पूजा
जाता था। परंतु वही व्यक्ति कितना निर्दयी हो गया है कि उसी गौमाता को घर से निकाल
कर उसे मरने को मजबूर किया जा रहा है।
जब तक गाय दूध देती है उसे स्वार्थवश पूरा एवं अच्छा आहार दिया
जाता है, उसकी सेवा की जाती है। जैसे ही वही गाय दूध देना बंद कर देती
है तो उसे आवारा छोडक़र भटकने के लिए मजबूर किया जाता है। उसकी खोज खबर तक नही ली
जाती है।
बेचारी मूक वह गाय आंसू बहाती हुई दर-दर भटकती रहती है एवं
लोगों के पत्थर एवं लाठियां खाती है। आज तो स्थिति यह हो रही है कि गर्भवती गाय को भी छोड़ दिया जाता है तथा वह भटकती रहती है।
जब वह गाय मालिक के घर से कहीं दूर बिहाय जाती है तथा उसके मालिक
को उसके बिहाने का पता लगता है तो वह भागा-भागा हुआ जाता है एवं अपना अधिकार जताते
हुए उस गाय बछड़े को घर लाता है। आज यह स्थिति प्रत्येक शहर ही नही अब तो गांवों
में भी देखी जा सकती है।
हर गांव गली में गाय तड़पते हुए मरती देखी जा सकती है।
एक आवारा भूखी गाय अपनी भूख शांत करने के लिए शहर गांव के
कूड़े पर आकर वहां बिखरा हुआ कचरा, यहां तक
पड़ी हुई प्लास्टिक की पन्नी भी खा जातीी है जो उसकी आंतों को चीरकर तड़पते हुए
मरने को मजबूर करता है।
एक गाय व्यक्ति को दूध दही घी तो देती ही है। इसके अलावा उसका गोबर
एवं मूत्र संपूर्ण मानव जाति के लिए बड़ा उपयोगी है जो शुद्घ खाद एवं विभिन्न प्रकार की दवाईयां बनाने
के काम आता है।
गाय जीते जी तो यह सब देती है परंतु मरने के बाद उसकी खाल एवं
हड्डियां भिन्न-भिन्न कार्यों में काम आती हैं।
इस प्रकार गौमाता जिंदा रहते हुए तो मनुष्य का पालन करती ही है, मरने के बाद भी वह बहुत कुछ मनुष्य को देती है। परंतु
स्वार्थी मनुष्य इसी गौमाता को अपने घर से निकालकर उसे आवारा भटकने एवं तड़पते हुए
मरने के लिए मजबूर कर रहा है।
आए दिन हमे ऐसी सुचना मिलती है कि अमुक
गली में एक गाय को बहुत दूर बिहाए को घंटों हो चुके हैं परंतु उसका कोई धणी
धोरी नही है। जैसे ही हमारे द्वारा उस बिहाई गाय बछड़े को गौशाला ले जाने की
व्यवस्था की जाती है तो मालिक दौड़ा-दौड़ा आता है तथा गाय पर अपना अधिकार जताते
हुए गाय बछड़े को घर ले जाता है जबकि वह गाय कई दिनों से लावारिस घूम रही थी।
अगर ऐसी ही दूसरी गाय दूध नही देती
वह गाय मालिक के घर से बाहर कई दिनों
भूखी प्यासी भटकती रहती है। तथा
ऐसी गाय को गौशाला लाया जाता है तो उस गाय का कोई मालिक बनकर नही आता।
क्यों हो रहा है गौमाता के साथ यह अत्याचार। क्या गौमाता
अपने मालिक को श्राप नही देगी। ऐसा व्यक्ति कभी सुखी नही रह सकता। मेरे पास ऐसे कई व्यक्तियों के फोन भी आते रहते हैं कहते हैं कि हमारे गाव
में दर्जनों आवारा गाय फसलो को नष्ट क्र रही है क्या आपकी गौशाला में भिजवा दे ।
लोगो को गाय का खर्चा
भारी हो रहा है, वह बोझ हो गयी है। उसे गौशाला
में रखा जावे।
मैंने ऐसे व्यक्तियों से यह प्रार्थना की कि, आप इतनी उस गाय के लिए केवल एक चारे की गाड़ी की व्यवस्था कर
देवें उसके बाद उस गाय की शेष जीवन की व्यवस्था गौशाला करेगी। इसके बाद तो ऐसे
व्यक्तियों का कोई प्रत्युत्तर नही आता है।
क्या गौमाता आज हमारे लिए बोझ बन गयी है, जिस गाय ने उक्त परिवार का माता की तरह पालन पोषण किया है।
ऐसी गायें कत्लखाने को भेजी जाती हैं।
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