Tuesday, 20 December 2016

विदेशी सूअर (जर्सी ,होल्सटीन,फ्रीजियन ) को भी गाय कहने और मानने लगे



आज के युग में हमारी सोच का स्तर कितना गिर चूका है की हमे गाय को देशी कहकर संबोधित करना पड़ता है और भगवान कृष्ण के वंशजों को देशी गाय की पहचान बतानी पड़ती है।

 
जिस प्रकार हर पीली वस्तु सोना नहीं होती उसी प्रकार हर चार पैर, चार थन वाला जीव गाय नहीं होता ।

 
हम दूध के इतने लालची हो गए है कि विदेशी सूअर (जर्सीहोल्सटीन,फ्रीजियन ) को भी गाय कहने और मानने लगे है जबकि भारतीय नस्ल की गाय ही देशी होती है। 

गाय की पीठ पर विद्यमान सूर्यके्तु नाडी सौर मंडल की समस्त ऊर्जा को अवशोषित कर अपने गव्यों (दूध ,मूत्र,गौमय) में डालकर समस्त मानव जीवन और प्रकृति को निरोगी एवं सम रखने का कार्य करती हैं।

 
हमारा शरीर पंचमहाभूतों से बना हैं ये पंचमहाभूत्त है पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एंवआकाश। इन पंचमहाभूतों मैं असंतुलन ही विभिन्न रोगों का कारण हें। 

किन्तु ईश्वर ने हमें गाय दी है जो अपने पंचगव्यो (गोमय दूध, घृत, गोमूत्र, छाछ) से इन पंचमहाभूतों को संतुलित करती है और हमें निरोगी रखती है। 

शरीर का पृथ्वी तत्व असंतुलित हुआ है तो हमें गोबर का रस या गोबर के कंडों से बनी भस्म का सेवन कर अपने पृथ्वी तत्व को संतुलित किया जा सकता है । 

जल तत्व को संतुलित करने के लिए गो मां का दूधवायु तत्व के लिए गोमूत्र, आकाश तत्व के लिए छाछ एंव अग्नि के लिए घृत है। 

अर्थात अपने पाँच महाभूतों को नियमित संतुलित करने के लिए हमें पांचों गव्यों का सेवन करना चाहिए।

 
किंतु पाँचों महाभूतों की बात तो दूर हम एक भी महाभूत को संतुलित नही कर रहे है। 
अगर पंचमहाभूतों को संतुलित करने के इस सूत्र को हम समझ ले तो हम समझ जाऐंगे की गाय के बिना हमारा अस्तित्त्व सम्भव ही नहीं है।

 
जिस प्रकार शरीर के महाभूतों को गाय के गव्यो से संतुलित किया जा सकता है ठीक उसी प्रकार प्रकृति के महाभूतों को भी बिना गाय के गव्यों से संतुलित्त नही रख सकते है। 

अर्थात् गाय के बिना पर्यावरण को भी बचाना मुश्किल है।

 
इसीलिए कहा गया है

 "
गावो विश्वस्य मातर:"
अर्थात गाय ही संपूर्ण जगत की मां है।


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