केंचुआ द्वारा जैव- विघटनशील व्यर्थ पदार्थों के भक्षण तथा उत्सर्जन से उत्कृष्ट कोटि की कम्पोस्ट (खाद) बनाने को वर्मीकम्पोस्टिंग कहते हैं।
वर्मी कम्पोस्ट को मिट्टी में मिलाने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति तो बढ़ती ही है, साथ ही साथ फसलों की पैदावार व गुणवत्ता में भी बढ़ोत्तरी होती है।
रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक इस्तेमाल से मृदा पर होने वाले दुष्प्रभावों का वर्मी कम्पोस्ट के उपयोग से सुधार होता है।
इस प्रकार वर्मी कम्पोस्ट भूमि की भौतिक, रासायनिक व जैविक दशा में सुधार कर मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को टिकाऊ करने में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है।
अनुमानत: 1 कि.ग्रा. भार में 1000 से 1500 केंचुए होते हैं। प्राय:1 केंचुआ 2 से 3 कोकून प्रति सप्ताह पैदा करता है।
तत्पश्चात हर कोकून से 3-4 सप्ताह में 1 से 3 केंचुए निकलते हैं। एक केंचुआ अपने जीवन में लगभग 250 केंचुए पैदा करने की क्षमता रखता है।
नवजात केंचुआ लगभग 6-8 सप्ताह पर प्रजननशील अवस्था में आ जाता है।
प्रतिदिन एक केंचुआ लगभग अपने भार के बराबर मिट्टी, खाकर कम्पोस्ट में परिवर्तित कर देता है।
एक कि.ग्रा. केंचुए एक वर्ग मीटर क्षेत्र में 45 किलोग्राम अपघटनशील पदार्थों से 25 से 30 किग्रा. वर्मी कम्पोस्ट 60 से 70 दिनों में तैयार कर देते
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