पूर्वजों की स्मृति में ,
स्वजनों के जन्म अथवा पुण्यतिथि पर
गौशाला दर्शन करें
गौ को मातृभाव से स्पर्श करें
गौ सेवा करें।
1. " सर्वे देवः स्थितं देहे सर्वा देवम्याही गौ "
अर्थात,,,
सभी देवी देवता गौ के शारीर में विराजमान हैं । कामधेनु वह चमत्कारी गौ है जो सभी इच्छा को पुर्ण करती है।
2. "यथा -ब्रह्म सूर्यसमं ज्योतिद्दर्योः समुद्र समं सरह ।
इन्द्रः पृथिव्यै वर्षियां गोस्तु मात्रा न विद्दते ।। "
अर्थात,,,
वह ब्रह्म विद्या, जो कि अत्यंत कल्याणकारी होती है उसकी तुलना सूर्य से होती है। उसी तरह स्वर्ग की तुलना समुद्र और धरती की तुलना हम इंद्र देव से कर सकते है।
परन्तु , गौ , जो हमें अत्यंत सुख व समृद्धि प्रदान करती है उस गौ माता की तुलना हम संसार में किसी से भी नहीं कर सकते है अर्थात गौ माता अतुल्निय है। सच में गौ की तरह कल्याणकारी इस संसार में और कोई नहीं है।
3. " सदा गावः शुचयो विश्वधायसः "
अर्थात,,,
गौ सदा पवित्र और सबका कल्याण करने वाली होती है। अतः गौ से कोई भी उऋण नहीं हो सकता। उनकी सेवा से गौ सेवक निष्पाप हो जाता है ।गोखुर से उड़ती हुई धूलि से आच्छादित आकाश पृथ्वी को ऊसर होने से बचाता है । अतः गौ पालन तथा गौसेवा व्रत स्वार्थ नहीं परमार्थ है।
4. " यत्र तीर्थे सदा गावः पिबन्ति तृषिता जलम् । उत्तरन्त्यथवा येन स्थिता तत्र सरस्वती ।। "
अर्थात,,,
गौ जहाँ पानी पीती है अथवा जिस जल से पार होती है, वहाँ सरस्वतीजी विद्यमान होती हैं।
5. " यत् त्वगस्थिगतं पापं देहे तिष्ठति मामके ।
प्राशनात् पंचगव्यस्य दहत्वग्निरिवेन्धनम् ।। "
अर्थात,,,
धर्मशास्त्रों में उल्लेख है कि पंचगव्य का सेवन करने से समस्त पापराशिका क्षय उसी प्रकार हो जाता है, जैसे प्रज्वलित अग्नि से इंधन भस्म हो जाता है ।
अतः केवल पारमार्थिक ही नहीं, लौकिक समृद्धि में भी गोवंश का उल्लेखनीय योगदान है। भारतीय कृषि एवं अर्थव्यवस्था का तो वो आधार ही है। गाय अपने दूध, दही, घी, गोबर तथा मूत्र से हमारा हित व कल्याण करती है।
6. महाभारत के अनुसार वेदव्यासजी कहते हैं -
" गोभिस्तुल्यं न पश्यामि धनं किञ्चिदिहाच्युत "
अर्थात,,,
गोधन के बराबर जगत में अन्य कोई धन नहीं है। मै इस संसार में गौ के सामान दूसरा कोई धन नहीं समझता।
अतः इनके नाम तथा गुणों का कीर्तन-श्रवण, इनका दान तथा इनका दर्शन - ये सरे कार्य संपूर्ण पापों को दूर करके परम कल्याण प्रदान करने वाले हैं। गोवंश के प्रताप से ही भारत की भूमि सोना उगलती थी तथा विश्व में सोने की चिड़िया कहलाने का उसे गौरव प्राप्त था।
7. " त्वं माता सर्वदेवानां त्वं च यज्ञस्य करणम्। त्वं तीर्थं सर्वतीर्थानां नमस्तेअस्तु सदानघे ।। "
अर्थात,,,
हे पापरहिते, तुम समस्त देवों की जननी हो, तुम यज्ञ की कारणरूपा हो, तुम समस्त तीर्थों की महा तीर्थ हो, तुमको सदैव नमस्कार है।
8. " तीर्थस्नानेषु यत्पुण्यं यत्पुण्यं विप्रभोजने ।
यत्पुण्यं च महादाने यत्पुण्यं हरिसेवने ।।
भूमिपर्यटने यत्तु सत्यवाक्येषु यद्भवेत् ।
तत्पुण्यं प्राप्यते सद्यः केवलं धेनुसेवया ।।"
अर्थात,,,
भगवत्सेवा, पूजा-उपासना , वृत-उपवास, त्याग-तपस्या, दान-दया, सत्य-अहिंसा, सेवा-संयम, तीर्थ-दर्शन, और गंगा-स्नान, आदि के करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, वह सारा का सारा पुण्य केवल " गौसेवा " करने से सहज ही उपलब्ध हो जाता है । अतः गौ को मातृभाव से स्पर्श करें गौ सेवा, गौ रक्षा करें ।
9. " या लक्ष्मिः सर्वभूतानां या च देवेषु संस्थिता।
अर्थात,,,हे पापरहिते, तुम समस्त देवों की जननी हो, तुम यज्ञ की कारणरूपा हो, तुम समस्त तीर्थों की महा तीर्थ हो, तुमको सदैव नमस्कार है।
8. " तीर्थस्नानेषु यत्पुण्यं यत्पुण्यं विप्रभोजने ।
यत्पुण्यं च महादाने यत्पुण्यं हरिसेवने ।।
भूमिपर्यटने यत्तु सत्यवाक्येषु यद्भवेत् ।
तत्पुण्यं प्राप्यते सद्यः केवलं धेनुसेवया ।।"
अर्थात,,,
भगवत्सेवा, पूजा-उपासना , वृत-उपवास, त्याग-तपस्या, दान-दया, सत्य-अहिंसा, सेवा-संयम, तीर्थ-दर्शन, और गंगा-स्नान, आदि के करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, वह सारा का सारा पुण्य केवल " गौसेवा " करने से सहज ही उपलब्ध हो जाता है । अतः गौ को मातृभाव से स्पर्श करें गौ सेवा, गौ रक्षा करें ।
9. " या लक्ष्मिः सर्वभूतानां या च देवेषु संस्थिता।
धेनुरूपेण सा देवी मम शान्तिं प्रयच्छतु ।। "
जो समस्त प्राणियों में तत्त्वतः वास्तविक लक्ष्मी है और जो सभी देवताओं में हविष्यरूप में स्थित है, वह धेनुरुपा देवी मुझे सुख-शांति प्रदान करे तथा ' सा धेनुर्वरदास्तु मे ' वह गौ रूपा धेनु मेरे लिए वरदायनी हो ।
10. " गाश्च शुश्रूषते यश्च समन्वेति च सर्वशः।
तस्मै तुष्टाः प्रयच्छन्ति वरानपि सुदुर्लभनाम्।। "
अर्थात,,,
जो पुरुष गौओं की सेवा करता है और सब प्रकार से उनका अनुगमन करता है, उस पर संतुष्ट होकर गौएँ उसे अत्यंत दुर्लभ वर प्रदान करती हैं।
तस्मै तुष्टाः प्रयच्छन्ति वरानपि सुदुर्लभनाम्।। "
अर्थात,,,
जो पुरुष गौओं की सेवा करता है और सब प्रकार से उनका अनुगमन करता है, उस पर संतुष्ट होकर गौएँ उसे अत्यंत दुर्लभ वर प्रदान करती हैं।
11. " गोभिर्विप्रस्य वेदैश्च सतोभिः सत्यावादिभिः ।
अलुब्धैर्दानशीलैश्च सप्तभिर्धार्यते मही ।। "
अर्थात,,,
जहाँ पृथ्वी एवं लोक को धारण करने वाले ब्राह्मण, वेदादि धर्मशास्त्र, पतिव्रता स्त्रियाँ, सदाचारी, निर्लोभी तथा दानशील संत-महात्मा, महापुरुषों - इन सात प्रकार के प्राणियों का उल्लेख है वहाँ महत्व की दृष्टि से गायें ही सर्वप्रथम परिगणित हैं।
अतः कई पुराणों में ये स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सृष्टि का आधार और संपूर्ण लोकयात्रा को धारण करने वाली प्रथम गौमाता ही है।
अलुब्धैर्दानशीलैश्च सप्तभिर्धार्यते मही ।। "
अर्थात,,,
जहाँ पृथ्वी एवं लोक को धारण करने वाले ब्राह्मण, वेदादि धर्मशास्त्र, पतिव्रता स्त्रियाँ, सदाचारी, निर्लोभी तथा दानशील संत-महात्मा, महापुरुषों - इन सात प्रकार के प्राणियों का उल्लेख है वहाँ महत्व की दृष्टि से गायें ही सर्वप्रथम परिगणित हैं।
अतः कई पुराणों में ये स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सृष्टि का आधार और संपूर्ण लोकयात्रा को धारण करने वाली प्रथम गौमाता ही है।
12. " नमो गोभ्यः श्रीमतीभ्यः सौरभेयीभ्य एव च।
नमो ब्रह्मसुताभ्यश्च पवित्राभ्यो नमो नमः।। "
अर्थात,,,
श्रीमती गौओं को नमस्कार! कामधेनु की संतानों को नमस्कार! ब्रह्माजी की पुत्रियों को नमस्कार!पावन करने वाली गौओं को बार-बार नमस्कार!
नमो ब्रह्मसुताभ्यश्च पवित्राभ्यो नमो नमः।। "
अर्थात,,,
श्रीमती गौओं को नमस्कार! कामधेनु की संतानों को नमस्कार! ब्रह्माजी की पुत्रियों को नमस्कार!पावन करने वाली गौओं को बार-बार नमस्कार!
13. अथर्व वेद के गोष्ठसूक्त के अनुसार -
" गौ वन्दनियाश्च पूज्यश्च सेव्यास्तु नित्यशः "
अर्थात,,,
गौ प्रतिदिन वन्दनीय, पूज्यनीय तथा सेवा-उपासना के योग्य है। अतः गौ सेवा करें गौ का आदर करें।
अर्थात,,,
गौ प्रतिदिन वन्दनीय, पूज्यनीय तथा सेवा-उपासना के योग्य है। अतः गौ सेवा करें गौ का आदर करें।
प्र नु वोचं चिकितुषे जनाय मा गामनागामदितिं वधिष्ठ ।। "
अर्थात,,,
गाय रुद्रों की माता, वसुओं की पुत्री, अदितिपुत्रों की बहन और घृतरूप अमृत का खजाना है ; प्रत्येक विचारशील पुरुष को मैंने यही समझाकर कहा है कि निरपराध एवं अवध्य गौ का वध न करें।
15. " गवां दृष्टा नमस्कृत्य कुर्याच्चैव प्रदक्षिणं । प्रदक्षिणीकृता तेन सप्तद्वीपा वसुन्धर।
मातरः सर्वभूतानां गवाह सर्वसुखप्रदाः। वृद्धिमाकान्क्षता नित्यं गावः कार्याः प्रदक्षिणाः।।"
अर्थात,,,
गौमाता का दर्शन एवं उन्हें नमस्कार करके उनकी परिक्रमा करें। ऐसा करने से सातों द्वीपों सहित भूमंडल की प्रदक्षिणा हो जाती है। गौएँ समस्त प्राणियों की माताएँ एवं सारे सुख देने वाली है। वृद्धि की आकांक्षा करने वाले मनुष्य को नित्य गौओं की प्रदक्षिणा करनी चाहिए।
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