बरेली में एक भिखारी भीख मांगकर निर्वाह किया करता था.
एक बार उसे जलोदर रोग हो गया. पेट फूलकर घड़े जैसा हो गया, भिखारी सूखकर अस्थि-चरम मात्र रह
एक दिन वह वहा के सिविल अस्पताल में पंहुचा कम्पाउंडर उसे सिविल सर्जन के पास ले गया. सिविल सर्जन ने देखकर कहा- इसकी चिकित्सा यहाँ नहीं हो सकती. यह तो आपरेशन करते-करते ही मर जाएगा.
बेचारा निराश होकर नगर के बहार साधुओ की एक टोली में जा बैठा,
एक साधू ने उससे पूछा-क्यों? कैसे आया?
भिखारी ने कहा-ऐसा कोई उपाय बताये जिससे यह रोग दूर हो जाय.
साधू ने कहा-एक छटाक गो मूत्र प्रातः और एक छटाक सायंकाल प्रतिदिन एक वर्ष तक पीयो, खाने के लिए जो मिल जाय वही खाओ, भिखारी ने एक वर्ष तक गो मूत्र का सेवन किया
एक वर्ष पश्चात फिर वह उसी अस्पताल में पंहुचा.
डाक्टर को बताया गया की यह वही मानुष है जो पिछले वर्ष आया था. डाक्टर देखकर आश्चर्य में पड गया और
उससे पूछने लगा - बताओ तुम कैसे अच्छे हुए?
भिखारी ने उत्तर दिया - गो मूत्र ने मेरी जान बचा ली.
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