Tuesday, 20 August 2013

गो दुग्ध से चमत्कारी उपचार



घटना १९४५ के आस पास की है

कशी के प्रख्यात वैद्य पंडित राजेश्वर्दत्त शास्त्री के यहा बिहार के एक संपन्न जमीदार अत्यंत क्षीण अवस्था में अपनी पत्नी को लेकर उपचार के लिए आये 

उनकी पत्नी ३० वर्ष की आयु में ही सूखकर कटा हो गयी थी
पूरा शरीर झावर गया था और वे भयानक पीड़ा से बेचैन 
जमीदार ने बताया की कई वर्षो से वे उपचार के लिए चारो ओर दौड़कर थक गए किन्तु कोई लाभ नहीं हुआ 
किसी को इनके रोग का थाह नहीं लगता

वैद्यजी ने उनकी नाडी देखि कुछ देर विचार किया और जमीदार को एकान्त में बताया की इन्हें केंसर हुआ है , किन्तु घबराने की कोई बात नहीं है
भगवान् का नाम लेकर धैर्य और परहेज से यदि दवा करेगे तो छेह माह में ठीक हो जायेगी

इनकी दावा और भोजन केवल काली (श्यामा) गाय का दूध और काली तुलसी की पत्ती होगा. अतः ये जितना खा पी सके वही दूध और पत्ती दीजिये
यदि स्वाद बदलने की इच्छा हो तो मूग की दाल का रस और जौ की रोटी दे सकते है

साथ में कोई भी दवा लेना गो दुग्ध और तुलसी का अपमान होगा और जिससे हानि भी हो सकती है

गाय और तुलसी दोनों हमारी माँताए है

और इसी के अनुसार उपचर किया धीरे धीरे समय बीतता गया

छेह माह बाद जमीदार अपनी पत्नी के साथ जब वाराणसी में वैधजी के यहाँ आये तो स्वस्थ , सुन्दर एवम प्रसन्न महिला को देखते ही वे पहचान गए

और स्वयं हर्षित होकर बोल पड़े - देखा न गो दुग्ध और तुलसी का चमत्कार

जमीदार ने बताया उन्होंने काली तुलसी का बड़ा बगीचा ही लगवा दिया था और चार पांच काली गाये रख ली थी. महीने भर सेवन करते करते उनकी पत्नी पर्याप्त स्वास्थ्य हो गयी

जमीदार ने श्रद्धा पूर्वक वैद्यजी को बहुत आग्रह पूर्वक कुछ देना चाहा और ग्रहण करने की प्रार्थना भी की किन्तु वे बोले -मैंने अपने औषधालय से आपको कोई दवा दी नही तो पैसे किस बात के लू. हा गो माता ने आप पर कृपा की है अतः यह धन किसी गोशाला को दान दे दीजिये

(कल्याण के गो सेवा अंक से साभार)

Sunday, 18 August 2013

रोग दूर हो गया

एक महिला की टांग और पैरो में एग्जिमा रोग भयंकर रूप में था. एलोपैथिक, आयुर्वेदिक आदि अनेक प्रकार की चिकित्साए की गयी. पर लाभ नहीं पहुच. अकस्मात् एक महात्मा का उनके पास आगमन हुआ. उन्होंने बताया की गोमूत्र से पैरो को प्रतिदिन भिगोते रहो, उससे यह रोग दूर हो जाएगा, उन्होंने तीन मॉस तक वैसा ही किया और वह रोग दूर हो गया . उसके बाद वह फिर कभी नहीं हुआ

सत्य घटना



बरेली में एक भिखारी भीख मांगकर निर्वाह किया करता था. 
एक बार उसे जलोदर रोग हो गया. पेट फूलकर घड़े जैसा हो गया, भिखारी सूखकर अस्थि-चरम मात्र रह
एक दिन वह वहा के सिविल अस्पताल में पंहुचा कम्पाउंडर उसे सिविल सर्जन के पास ले गया. सिविल सर्जन ने देखकर कहा- इसकी चिकित्सा यहाँ नहीं हो सकती. यह तो आपरेशन करते-करते ही मर जाएगा. 
बेचारा निराश होकर नगर के बहार साधुओ की एक टोली में जा बैठा, 

क साधू ने उससे पूछा-क्यों? कैसे आया?
भिखारी ने कहा-ऐसा कोई उपाय बताये जिससे यह रोग दूर हो जाय.

साधू ने कहा-एक छटाक गो मूत्र प्रातः और एक छटाक सायंकाल प्रतिदिन एक वर्ष तक पीयो, खाने के लिए जो मिल जाय वही खाओ, भिखारी ने एक वर्ष तक गो मूत्र का सेवन किया

एक वर्ष पश्चात फिर वह उसी अस्पताल में पंहुचा.
डाक्टर को बताया गया की यह वही मानुष है जो पिछले वर्ष आया था. डाक्टर देखकर आश्चर्य में पड गया और
उससे पूछने लगा - बताओ तुम कैसे अच्छे हुए?

भिखारी ने उत्तर दिया - गो मूत्र ने मेरी जान बचा ली.

गौ मूत्र फिनायल बनाने की विधि (केमिकल रहित)

             *सामग्री* गौ मूत्र      *एक लीटर* नीम पत्र    *200 ग्राम सूखा* पाइन आयल इमल्सीफायर युक्त     *50 ग्राम* उबाला हुआ पा...