महाभारत से
मनुष्य के स्वाभाव की पहचान
एक सियार आचारवान था उसके आचार विचार की चर्चा चारो और फ़ैल गयी. फिर एक व्याघ्र ने स्वयं आकर उसका विशेष सम्मान किया और उसे शुद्ध तथा बुद्धिमान समझकर अपना मंत्रित्व स्वीकार करने के लिए उससे प्रार्थना की.
व्याघ्र बोला - मै तुम्हारे स्वरुप से परिचित हूँ, तुम मेरे साथ चलकर रहो और मनमाने भोग भोगो. एक बात तुम्हे सूचित कर देते है, हमारी जाती स्वभाव कठोर होती है - यह दुनिया जानती है. यदि तुम कोमलता पूर्वक व्यवहार करते हुए मेरे हित साधन में लगे रहोगे तो तुम्हारा भी भला होगा.
सियार ने कहा-आपने मेरे लिए जो बात कही है, वह सर्वथा आपके योग्य है. तथा आप जो धर्म और अर्थ साधन में कुशल एवं शुद्ध स्वभाव वाले सहायक ढूढ़ रहे है यह भी उचित ही है. इसके लिए आपको चाहिए की जिनका आपके प्रति अनुराग हो. जिन्हें नीति का ज्ञान हो, जो संधि कराने में कुशल विज्याभिलाशी, लोभ रहित, बुद्धिमान, हितैषी तथा उदार ह्रदय वाले हो ऐसे व्यक्तियों को सहायक बनाकर पिता और गुरु के सामान उनका आदर करे.
आप मेरे लिए जो सुविधाए दे रहे है उन्की मुझे इच्छा नहीं है. मै सुख भोग तथा उनके आधारभूत ऐश्वर्य को नहीं चाहता. आपके पुराने नौकरों के साथ मेरा स्वभाव भी नहीं मिलेगा. वे दुष्ट प्रकृति केजीव है, आपको मेरे विरुद्ध भड़काया करेगे. उनका प्रताप बढ़ा हुआ है अतः उनको मेरे अधीन होकर रहना अच्छा नहीं मालूम होगा.
इधर मेरा स्वभाव भी कुछ विलक्षण है, मै पापियों पर भी कठोरताका वर्ताव नहीं करता. दूरतक की बात सोचता हूँ. मेरा उत्साह कभी कम नहीं होता. मुझमे बल की मात्रा भी अधिक है. मै स्वयं कृतार्थ हूँ और प्रत्येक कार्य सफलता के साथ कर सकता हूँ.
किसी की सेवा टहल का तो मुझे बिलकुल ज्ञान नहीं है. स्वच्छन्दतापूर्वक वन में विचरता रहता हूँ. मेरे जैसे वनवासियों का जीवन आसक्ति रहित और निर्भय होता है. एक जगह वेखटके पानी मिलता हो और दूसरी जगह भय देने वाला स्वादिष्ट अन्न प्राप्त होता हो-इन दोनों को यदि विचार करके देखता हूँ तो मुझे वहा ही सुख जान पड़ता है जहा कोई भय नहीं है.
राजा के पास रहने में सदा भय ही भय है. राज्सेवको में से जितने लोग दूसरो के लगाए हुए झूठे कलंक के कारण राजा के हात से मारे गए है उतने सच्चे अपराधो के कारण नहीं.
यदि मुझसे मंत्रित्व का कार्य लेना ही हो तो मै आपसे एक शर्त करना चाहता हूँ उसी के अनुसार आपको मेरे साथ बर्ताव करना पड़ेगा. मेरे आत्मीय व्यक्तियों का आप सम्मान करे, उनकी हितकारी बाते सुने. मै आपके दुसरे मंत्रियो के साथ कभी परामर्श नहीं करूगा. एकांत में सिर्फ आपके साथ अकेला ही मिलूएअ और आपके हित की बाते बताया करूगा. आप भी अपने जाती भाईयो के कामो में मुझसे हिताहित की बात न पूछियेगा. मुझसे सलाह करने के बाद यदि आपके पहले के मंत्रियो की भूल भी साबित हो तो उन्हें प्राणदंड न दीजियेगा तथा कभी क्रोध में आकर मेरे आत्मीय जनों पर भी प्रहार न कीजियेगा.
शेर ने ऐसा ही होगा कहकर सियार का बड़ा आदर किया. सियार ने भी उसका मंत्री होना स्वीकार कर लिया.
फिर तो उसका बड़ा स्वागत सत्कार होने लगा. प्रत्येक कार्य में उसकी प्रशंसा होने लगी. यह सब देख सुन कर पहले के सेवक और मंत्री जल भुन गए. सब उसके साथ द्वेष करने लगे. उनके मन में दुष्टता भरी थी. इसलिए झुण्ड बांधकर बारम्बार सियार के पास आते और अपनी मित्रता जताते हुए उसको समझा-बुझाकर अपने ही सामान दोषी बनाने की कोशिश करते थे.
सियार के आने से पहले उनका रहन सहन कुछ और ही था. दूसरो की बस्तु छीन कर स्वयं उसका उपभोग करते थे. किन्तु अब उनकी दाल नहीं गलती थी.अब वे किसी का भी धन लेने में असमर्थ थे. क्योकि सियार ने उन पर बड़ी कड़ी पाबंदी लगा रखी थी. वे चाहते थे सियार भी डिग जाय इसलिए तरह-तरह की बातो में उसे फुसलाते और बहुत सा धन देने का लोभ दिखाते थे.
मगर सियार बड़ा बुद्धिमान था, वह उनके चक्कर में नहीं आया. उसने धैर्य नहीं छोड़ा. तब उन नौकरों ने उसका नाश करने की शपथ खाई और सबमिलकर इसके लिए प्रयत्न करने लगे,
एक दिन उन्होंने शेर के खाने के लिए जो मांस तैयार करके रखा गया था उसे उसके स्थान से चुरा लिया और सियार की मांद में ले जाकर रख दिया. सियार ने मंत्री पद पर आते समय शेर से पहले ही ठहरा लिया था की यदि तुम मुझसे मित्रता चाहते हो तो किसी के बहकाए में आकर मेरा विनाश न करना.
उधर शेर को जब भूख लगी और वह भोजन के लिए उठा तो उसके खाने के लिए रखा हुआ मांस नहीं दिखाई पड़ा. शेर ने चोर का पता लगाने लिए नौकरों को आज्ञा दी. तब जिनकी यह करतूत थी उन्ही लोगो ने शेर से उस मांस के बारे में बताया - महाराज! अपने को बड़ा बुद्धिमान और पंडित मानने वाले सियार महोदय ने ही आपके मांस का अपहरण किया है.
सियार की यह चपलता सुनकर शेर गुस्से से भर गया और उसको मार डालने का विचार करने लगा. उस समय सियार के प्रतिकूल कुछ कहने का मौका देखकर पहले के मंत्री लोग शेर से कहने लगे-राजन! वह तो बातो से ही धर्मात्मा बना हुआ है, स्वभाव का बड़ा कुटिल है. भीतर का पापी है, मगर ऊपर से धर्म का ढोंग बनाए हुए है. उसका सारा आचार-विचार दिखावे के लिए है. यह कहकर वे क्षण भर में ही उस मांस को सियार की मांद से उठा ले आये . शेर ने उनकी बाते सूनी और जब निश्चय हो गया के सियार ही मांस ले गया था तो उसने उसको मार डालने की आज्ञा दे दी.
शेर की यह बात जब उसकी माता को मालूम हुई तो वह हितकारी वचनों से उसे समझाने के लिए आयी और कहने लगी - बेटा इसमें कुछ कपटपूर्ण षड्यंत्र हुआ जान पड़ता है. तुम्हे इस पर विशवास नहीं करना चाहिए.
काम में लाग डाट हो जाने से जिनके मन में पाप होता है वे निर्दोष को ही दोषी बताते है.
किसी को अपने से ऊची अवस्था में देखकर अक्सर लोगो को ईर्ष्या हो जाया करती है, वे उसकी उन्नती नहीं सह सकते . कोई कितना ही शुद्ध क्यों न हो, उस पर भी दोष लगा ही देते है.
लोभी शुद्ध स्वभाव वाले व्यक्तियों से और आलसी तपस्वियों से द्वेष करते है. इसी प्रकार मूर्ख लोग पंडितो से, दरिद्र धनियों से, पापी धर्मात्माओ से और कुरूप रूप वानो से डाह रखते है.
एक ओर तो जब घर में सुनसान था उस समय तुम्हारे मांस की चोरी हुई है दूसरी ओर एक व्यक्ति ऐसा है जो देने पर भी मांस भी नहीं लेना चाहता इन दोनों बातो पर अच्छी तरह विचार करो. संसार में बहुत से असभ्य प्राणी सभी की तरह और सभी असभ्य की तरह देके जाते है, इस प्रकार उनमे अनेको भाव द्रष्टिगोचर होते है,अतः उनकी परीक्षा कर लेनी उचित है.
आकाश औधा कड़ाहा के सामान और जुगनू अग्नि के सामान दिखाई देते है किन्तु न तो आकाश में कड़ाही है और न जुगनू में आग ही है. इसलिए सामने दिखाई देती हुई वस्तु को भी जाँच करना चाहिए. जो जांचने बूझने के बाद किसी विषय में अपना विचार प्रकट करता है उसे पीछे पछतावा नहीं होता. राजा के लिए किसी को मरवा डालना कठिन काम नहीं है मगर इससे उसकी बडाई नहीं होती. शक्तिशाली पुरुष में यदि क्षमा हो तो उसकी प्रशंशा की जाती है. उसी से उसका यश बढ़ता है.
बेटा तुमने स्वयं ही सियार को मंत्री के आसन पर बिठाया है और तुम्हारे सामंतो में भी इसकी ख्याति बढ़ गयी है. ऐसा सुपात्र मंत्री बड़ी मुश्किल से मिलता है, यह तुम्हारा बड़ा हितैषी है इसलिए तुम्हे इसकी रक्षा करनी चाहिए. जो दूसरो के मिथ्या कलंक लगाने पर निर्दोष को भी अपराधी मानकर दंड देता है वह राजा दुष्ट मंत्रियो के साथ रहने के कारण शीघ्र ही मौत के मुख में पड़ता है.
शेर की माता इस प्रकार उपदेश दे ही रही थी की उस शत्रु समूह के भीतर से एक धर्मात्मा व्यक्ति उठकर शेर के पास आया. वह सियार का जासूस था. उसने जिस प्रकार कपट लीला की गयी थी उसका भन्दा फोड़ कर दिया. इससे शेर को सियार की सत्यता का पता चल गया और उसने मंत्री का सत्कार करके उसको इस अभियोग से मुक्त कर दिया तथा अत्यंत स्नेह के साथ उसे गले से लगाया.
सियार नीतिशास्त्र का ज्ञाता था, उसने शेर की आज्ञा लेकर उपवास करके प्राण त्याग देने का विचार किया. शेर ने उसे इस कार्य से रोका और उसका भली भाती आदर सत्कार किया. उस समय स्नेह के कारण उसका चित्त विकल हो रहा था. मालिक की यह अवस्था देख सियार का भी गला भर आया और वह उसे प्रणाम करके गदगद कंठ से बोला-राजन पहले तो आपने मुझे सम्मान दिया और पीछे अपमानित कर दिया, शत्रु सी स्थित में पंहुचा दिया. अब मै आपके पास रहने के योग्य नहीं हूँ.
जो अपने पद से हटाये गए हो, सम्मानित स्थान से नीचे गिरा दिए गए हो, जिनका सर्वस्व छीन लिया हो जो दुर्बल,लोभी, क्रोधी और डरपोक हो, जिन्हें धोखे में डाला गया हो, जिनका धन लूटा गया हो तथा जिन्हें क्लेश दिया गया हो ऐसे सेवक शत्रुओ का काम सिद्ध करते है.
आपने परीक्षा लेकर योग्य समझकर मुझे मंत्री के आसन पर बिठाया था और फिर अपनी की हुई प्रतिज्ञा को तोड़कर मेरा अपमान किया है. ऐसी दशा में अब आपका मुझ पर विशवास नहीं रहेगा और मै भी आप पर विश्वास न होने से उद्वेग में पड़ा गहूगा. आप मुझ पर संदेह करेगे और मै सदा आपसे डरा रहूगा. इधर दूसरो के दोष ढूढने वाले आपके भरती लोग मौजूद है इनका मुझसे तनिक भी स्नेह नहीं है तथा इन्हें संतुष्ट रखना भी मेरे लिए बहुत कठिन है.
प्रेम का बंधन जब एक बार टूट जाता है तो उसका जुड़ना मुश्किल हो जाता है. और जो जुड़ा हुआ होता है वह बड़ी कठिनाई से टूटता है. किन्तु जो बार-बार टूटता और जुड़ता रहता है, उसमे स्नेह नहीं होता.
राजाओं का चित्त चंचल होता है, उनके लिए सुयोग्य व्यक्ति को पहचानना बहुत कठिन है. सैकड़ो में कोई एक ही ऐसा मिलता है जो सब तरह से समर्थ हो और किसी पर भी संदेह न करता हो.
इस प्रकार कहकर सियार जंगल में में चला गया और अपने प्राण त्याग दिए.
मनुष्य के स्वाभाव की पहचान
एक सियार आचारवान था उसके आचार विचार की चर्चा चारो और फ़ैल गयी. फिर एक व्याघ्र ने स्वयं आकर उसका विशेष सम्मान किया और उसे शुद्ध तथा बुद्धिमान समझकर अपना मंत्रित्व स्वीकार करने के लिए उससे प्रार्थना की.
व्याघ्र बोला - मै तुम्हारे स्वरुप से परिचित हूँ, तुम मेरे साथ चलकर रहो और मनमाने भोग भोगो. एक बात तुम्हे सूचित कर देते है, हमारी जाती स्वभाव कठोर होती है - यह दुनिया जानती है. यदि तुम कोमलता पूर्वक व्यवहार करते हुए मेरे हित साधन में लगे रहोगे तो तुम्हारा भी भला होगा.
सियार ने कहा-आपने मेरे लिए जो बात कही है, वह सर्वथा आपके योग्य है. तथा आप जो धर्म और अर्थ साधन में कुशल एवं शुद्ध स्वभाव वाले सहायक ढूढ़ रहे है यह भी उचित ही है. इसके लिए आपको चाहिए की जिनका आपके प्रति अनुराग हो. जिन्हें नीति का ज्ञान हो, जो संधि कराने में कुशल विज्याभिलाशी, लोभ रहित, बुद्धिमान, हितैषी तथा उदार ह्रदय वाले हो ऐसे व्यक्तियों को सहायक बनाकर पिता और गुरु के सामान उनका आदर करे.
आप मेरे लिए जो सुविधाए दे रहे है उन्की मुझे इच्छा नहीं है. मै सुख भोग तथा उनके आधारभूत ऐश्वर्य को नहीं चाहता. आपके पुराने नौकरों के साथ मेरा स्वभाव भी नहीं मिलेगा. वे दुष्ट प्रकृति केजीव है, आपको मेरे विरुद्ध भड़काया करेगे. उनका प्रताप बढ़ा हुआ है अतः उनको मेरे अधीन होकर रहना अच्छा नहीं मालूम होगा.
इधर मेरा स्वभाव भी कुछ विलक्षण है, मै पापियों पर भी कठोरताका वर्ताव नहीं करता. दूरतक की बात सोचता हूँ. मेरा उत्साह कभी कम नहीं होता. मुझमे बल की मात्रा भी अधिक है. मै स्वयं कृतार्थ हूँ और प्रत्येक कार्य सफलता के साथ कर सकता हूँ.
किसी की सेवा टहल का तो मुझे बिलकुल ज्ञान नहीं है. स्वच्छन्दतापूर्वक वन में विचरता रहता हूँ. मेरे जैसे वनवासियों का जीवन आसक्ति रहित और निर्भय होता है. एक जगह वेखटके पानी मिलता हो और दूसरी जगह भय देने वाला स्वादिष्ट अन्न प्राप्त होता हो-इन दोनों को यदि विचार करके देखता हूँ तो मुझे वहा ही सुख जान पड़ता है जहा कोई भय नहीं है.
राजा के पास रहने में सदा भय ही भय है. राज्सेवको में से जितने लोग दूसरो के लगाए हुए झूठे कलंक के कारण राजा के हात से मारे गए है उतने सच्चे अपराधो के कारण नहीं.
यदि मुझसे मंत्रित्व का कार्य लेना ही हो तो मै आपसे एक शर्त करना चाहता हूँ उसी के अनुसार आपको मेरे साथ बर्ताव करना पड़ेगा. मेरे आत्मीय व्यक्तियों का आप सम्मान करे, उनकी हितकारी बाते सुने. मै आपके दुसरे मंत्रियो के साथ कभी परामर्श नहीं करूगा. एकांत में सिर्फ आपके साथ अकेला ही मिलूएअ और आपके हित की बाते बताया करूगा. आप भी अपने जाती भाईयो के कामो में मुझसे हिताहित की बात न पूछियेगा. मुझसे सलाह करने के बाद यदि आपके पहले के मंत्रियो की भूल भी साबित हो तो उन्हें प्राणदंड न दीजियेगा तथा कभी क्रोध में आकर मेरे आत्मीय जनों पर भी प्रहार न कीजियेगा.
शेर ने ऐसा ही होगा कहकर सियार का बड़ा आदर किया. सियार ने भी उसका मंत्री होना स्वीकार कर लिया.
फिर तो उसका बड़ा स्वागत सत्कार होने लगा. प्रत्येक कार्य में उसकी प्रशंसा होने लगी. यह सब देख सुन कर पहले के सेवक और मंत्री जल भुन गए. सब उसके साथ द्वेष करने लगे. उनके मन में दुष्टता भरी थी. इसलिए झुण्ड बांधकर बारम्बार सियार के पास आते और अपनी मित्रता जताते हुए उसको समझा-बुझाकर अपने ही सामान दोषी बनाने की कोशिश करते थे.
सियार के आने से पहले उनका रहन सहन कुछ और ही था. दूसरो की बस्तु छीन कर स्वयं उसका उपभोग करते थे. किन्तु अब उनकी दाल नहीं गलती थी.अब वे किसी का भी धन लेने में असमर्थ थे. क्योकि सियार ने उन पर बड़ी कड़ी पाबंदी लगा रखी थी. वे चाहते थे सियार भी डिग जाय इसलिए तरह-तरह की बातो में उसे फुसलाते और बहुत सा धन देने का लोभ दिखाते थे.
मगर सियार बड़ा बुद्धिमान था, वह उनके चक्कर में नहीं आया. उसने धैर्य नहीं छोड़ा. तब उन नौकरों ने उसका नाश करने की शपथ खाई और सबमिलकर इसके लिए प्रयत्न करने लगे,
एक दिन उन्होंने शेर के खाने के लिए जो मांस तैयार करके रखा गया था उसे उसके स्थान से चुरा लिया और सियार की मांद में ले जाकर रख दिया. सियार ने मंत्री पद पर आते समय शेर से पहले ही ठहरा लिया था की यदि तुम मुझसे मित्रता चाहते हो तो किसी के बहकाए में आकर मेरा विनाश न करना.
उधर शेर को जब भूख लगी और वह भोजन के लिए उठा तो उसके खाने के लिए रखा हुआ मांस नहीं दिखाई पड़ा. शेर ने चोर का पता लगाने लिए नौकरों को आज्ञा दी. तब जिनकी यह करतूत थी उन्ही लोगो ने शेर से उस मांस के बारे में बताया - महाराज! अपने को बड़ा बुद्धिमान और पंडित मानने वाले सियार महोदय ने ही आपके मांस का अपहरण किया है.
सियार की यह चपलता सुनकर शेर गुस्से से भर गया और उसको मार डालने का विचार करने लगा. उस समय सियार के प्रतिकूल कुछ कहने का मौका देखकर पहले के मंत्री लोग शेर से कहने लगे-राजन! वह तो बातो से ही धर्मात्मा बना हुआ है, स्वभाव का बड़ा कुटिल है. भीतर का पापी है, मगर ऊपर से धर्म का ढोंग बनाए हुए है. उसका सारा आचार-विचार दिखावे के लिए है. यह कहकर वे क्षण भर में ही उस मांस को सियार की मांद से उठा ले आये . शेर ने उनकी बाते सूनी और जब निश्चय हो गया के सियार ही मांस ले गया था तो उसने उसको मार डालने की आज्ञा दे दी.
शेर की यह बात जब उसकी माता को मालूम हुई तो वह हितकारी वचनों से उसे समझाने के लिए आयी और कहने लगी - बेटा इसमें कुछ कपटपूर्ण षड्यंत्र हुआ जान पड़ता है. तुम्हे इस पर विशवास नहीं करना चाहिए.
काम में लाग डाट हो जाने से जिनके मन में पाप होता है वे निर्दोष को ही दोषी बताते है.
किसी को अपने से ऊची अवस्था में देखकर अक्सर लोगो को ईर्ष्या हो जाया करती है, वे उसकी उन्नती नहीं सह सकते . कोई कितना ही शुद्ध क्यों न हो, उस पर भी दोष लगा ही देते है.
लोभी शुद्ध स्वभाव वाले व्यक्तियों से और आलसी तपस्वियों से द्वेष करते है. इसी प्रकार मूर्ख लोग पंडितो से, दरिद्र धनियों से, पापी धर्मात्माओ से और कुरूप रूप वानो से डाह रखते है.
एक ओर तो जब घर में सुनसान था उस समय तुम्हारे मांस की चोरी हुई है दूसरी ओर एक व्यक्ति ऐसा है जो देने पर भी मांस भी नहीं लेना चाहता इन दोनों बातो पर अच्छी तरह विचार करो. संसार में बहुत से असभ्य प्राणी सभी की तरह और सभी असभ्य की तरह देके जाते है, इस प्रकार उनमे अनेको भाव द्रष्टिगोचर होते है,अतः उनकी परीक्षा कर लेनी उचित है.
आकाश औधा कड़ाहा के सामान और जुगनू अग्नि के सामान दिखाई देते है किन्तु न तो आकाश में कड़ाही है और न जुगनू में आग ही है. इसलिए सामने दिखाई देती हुई वस्तु को भी जाँच करना चाहिए. जो जांचने बूझने के बाद किसी विषय में अपना विचार प्रकट करता है उसे पीछे पछतावा नहीं होता. राजा के लिए किसी को मरवा डालना कठिन काम नहीं है मगर इससे उसकी बडाई नहीं होती. शक्तिशाली पुरुष में यदि क्षमा हो तो उसकी प्रशंशा की जाती है. उसी से उसका यश बढ़ता है.
बेटा तुमने स्वयं ही सियार को मंत्री के आसन पर बिठाया है और तुम्हारे सामंतो में भी इसकी ख्याति बढ़ गयी है. ऐसा सुपात्र मंत्री बड़ी मुश्किल से मिलता है, यह तुम्हारा बड़ा हितैषी है इसलिए तुम्हे इसकी रक्षा करनी चाहिए. जो दूसरो के मिथ्या कलंक लगाने पर निर्दोष को भी अपराधी मानकर दंड देता है वह राजा दुष्ट मंत्रियो के साथ रहने के कारण शीघ्र ही मौत के मुख में पड़ता है.
शेर की माता इस प्रकार उपदेश दे ही रही थी की उस शत्रु समूह के भीतर से एक धर्मात्मा व्यक्ति उठकर शेर के पास आया. वह सियार का जासूस था. उसने जिस प्रकार कपट लीला की गयी थी उसका भन्दा फोड़ कर दिया. इससे शेर को सियार की सत्यता का पता चल गया और उसने मंत्री का सत्कार करके उसको इस अभियोग से मुक्त कर दिया तथा अत्यंत स्नेह के साथ उसे गले से लगाया.
सियार नीतिशास्त्र का ज्ञाता था, उसने शेर की आज्ञा लेकर उपवास करके प्राण त्याग देने का विचार किया. शेर ने उसे इस कार्य से रोका और उसका भली भाती आदर सत्कार किया. उस समय स्नेह के कारण उसका चित्त विकल हो रहा था. मालिक की यह अवस्था देख सियार का भी गला भर आया और वह उसे प्रणाम करके गदगद कंठ से बोला-राजन पहले तो आपने मुझे सम्मान दिया और पीछे अपमानित कर दिया, शत्रु सी स्थित में पंहुचा दिया. अब मै आपके पास रहने के योग्य नहीं हूँ.
जो अपने पद से हटाये गए हो, सम्मानित स्थान से नीचे गिरा दिए गए हो, जिनका सर्वस्व छीन लिया हो जो दुर्बल,लोभी, क्रोधी और डरपोक हो, जिन्हें धोखे में डाला गया हो, जिनका धन लूटा गया हो तथा जिन्हें क्लेश दिया गया हो ऐसे सेवक शत्रुओ का काम सिद्ध करते है.
आपने परीक्षा लेकर योग्य समझकर मुझे मंत्री के आसन पर बिठाया था और फिर अपनी की हुई प्रतिज्ञा को तोड़कर मेरा अपमान किया है. ऐसी दशा में अब आपका मुझ पर विशवास नहीं रहेगा और मै भी आप पर विश्वास न होने से उद्वेग में पड़ा गहूगा. आप मुझ पर संदेह करेगे और मै सदा आपसे डरा रहूगा. इधर दूसरो के दोष ढूढने वाले आपके भरती लोग मौजूद है इनका मुझसे तनिक भी स्नेह नहीं है तथा इन्हें संतुष्ट रखना भी मेरे लिए बहुत कठिन है.
प्रेम का बंधन जब एक बार टूट जाता है तो उसका जुड़ना मुश्किल हो जाता है. और जो जुड़ा हुआ होता है वह बड़ी कठिनाई से टूटता है. किन्तु जो बार-बार टूटता और जुड़ता रहता है, उसमे स्नेह नहीं होता.
राजाओं का चित्त चंचल होता है, उनके लिए सुयोग्य व्यक्ति को पहचानना बहुत कठिन है. सैकड़ो में कोई एक ही ऐसा मिलता है जो सब तरह से समर्थ हो और किसी पर भी संदेह न करता हो.
इस प्रकार कहकर सियार जंगल में में चला गया और अपने प्राण त्याग दिए.
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