Saturday 22 October 2011

गौ वत्स द्वादशी


गौ वत्स द्वादशी व्रत राजा युधिस्ठिर ने भगवान कृष्ण से कहा की महा भारत की लड़ाई में हजारों सैनिक,राजा और कई महँ व्यक्ति जैसे भीष्म ,द्रोण ,कलिंग राज ,कर्ण ,शल्य ,दुर्योधन आदि जो की मेरे सम्बन्धी थे,मारे गए | इस दौरान पांडवो ने कई अनकहे पाप किये | क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे इन पापों को कम या समाप्त किया जा सकता है? भगवान कृष्ण ने कहा है कि एक बहुत प्रभावशाली 'गौ वत्स द्वादशी व्रत' करने से पापों का नाश होगा और उन्होंने व्रत की प्रक्रिया को समझाया | कई तपस्वी नम्व्रताधर पर्वत के ऊपर ध्यान में व्यस्त थे | भगवान शिव ने एक वृद्ध ब्राह्मण जो उम्र अधिक होने के कांप रहा था,का रूप धरा और सहारे के लिए छड़ी ले ली | ,जबकि देवी पार्वती ने एक गाय का रूप ले लिया | देवताओ और दानवों के द्वारा क्षीरसागर मंथन के दौरान पाँच गाये उत्पन्न हुई , नंदा, सुभद्रा, सुरभि सुशीला, और बहुला | ऐसा कहा जाता है की इनमे लोक माता पार्वती भी उत्पन्न हुई |
इस प्रकार उत्पन्न हुई पांच पवित्र गायों को क्रमशः महर्षि जमदाग्नि ,भारद्वाज, वशिष्ट ,असित और गौतम को देखभाल के लिए दिया गया | गायों के छः उत्पादों गोबर, मूत्र, दूध, दही और घृत को सभी के लिए पवित्र मन जाता है | गोबर शिव को प्रिय है और बिल्व पत्र के वृक्ष का स्रोत है | जिसे श्री वृक्ष के रूप में जाना जाता है और इसलिए देवी लक्ष्मी द्वारा पसंद किया जाता है | गाय का गोबर कमाल पुष्प का भी स्रोत है | गौ मूत्र ‘गुग्गल’ बीज का उत्पादक है जो दिखने में उत्तम और सुगन्धित होता है | यह गुग्गल बीज देवताओ के भोजन का हिस्सा है ,विशेषरूप से शिव जी के भोजन का | विश्व के यह सभी उपयोगी बीज गौ दूध से ही उपजते है | गौ घृत अमृत का मूल है जो देवता की भूख को संतुष्ट करता है | यह सभी जानते है की ब्राह्मण और गाय विश्व की दो प्रमुख प्रजातियों में से दो है | ब्राह्मण का हृदय वेदों का स्रोत है गायों यज्ञों का मूल है और सभी देवता के साथ संबद्ध हैं, गाय के सींग ब्रह्मा और विष्णु का प्रतिनिधित्व करते हैं|

गाय के सींग के शीर्ष पर विश्व के प्रमुख तीर्थ स्थित हैं, सींग के बीच में शिव का स्थान है| देवी गौरी गाय के माथे पर विराजमान है, कार्तिकेय नाक का प्रतिनिधित्व करते है और दोनों नथुनों में दो नाग कांबल और अश्वातर हैं| दोनों कानों में दो अश्विनी कुमार, चन्द्र और सूर्य आँखों में हैं; दांत वसुगण का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं | वरुण जीभ में है, खुर में सरस्वती, गंडस्थल यम और यक्ष का प्रतिनिधित्व करते है|.सभी वेड भी गाय में है |
भगवान कृष्ण ने युधिस्ठिर को बताया कि एक बार भगवान शिव ने कुछ महामुनि से कहा की वे दो दिनों के लिए एक गाय और बछड़े की रक्षा करे फिर वे उन्हें ले जायेंगे| मुनियों ने गाय का बहुत ख्याल रखा|थोड़ी देर बाद एक बाघ आया औरउसने गाय और बछडे को डराना शुरू किया| ऋषिगण डर गए और बाघ का ध्यान गाय और बछड़े से हटाने की कोशिश करने लगे| भय के कारण बछड़ा ऊपर और नीचे कूद शुरू कर दिया और तेज आवाज करने लगता है| एक पवित्र घंटी ध्रिन्धगिरी का उपयोग मुनि करते है ,जो कि ब्रह्मा ने मुनियों को ऐसे ऐसे हालात का सामना करने के लिए दी थी | गाय और बछड़े के खुर का निशान एक शिला में बन गया और अब संघर्ष के निशाँ के रूप में टूटे खुर के रूप में शिला पर स्थित है , जो वास्तव में एक शिव लिंग हैं|
आकाश से देवता और किन्नरों ने भगवान शंकर, जो बाघ का रूप ग्रहण किये थे और देवी पार्वती जिन्होंने गाय का रूप किया गया था, की आराधना की|जो लोग नर्मदा नदी पर जाते है और शम्भू तीर्थ पर शिव लिंग को छूते है उन्हें ब्रम्ह्हत्या के पाप से मुक्ति मिलती है|
इस बीच. महादेव ने बाघ के रूप को त्याग दिया और वृषभा पर सवार होकर दर्शन दिए |उनके बाईं ओर माता उमा थी | गणेश और कार्तिकेय के साथ नंदी ,महाकाल, श्रृंगी, वीरभद्र, चामुंडा और घंटकरना हैं, साथ ही मृतिका,भूत,यक्ष,राक्षस,देवता, दानव,गन्धर्व,मुनि,नाग और उनकी पत्निय भी है|. कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष द्वादशी को मुनियों ने गौ रूप दर्शिनी का व्रत किया | नंदिनी नामक गाय की उसके बछड़े के साथ पूजा की गयी |
यह व्रत राजा उत्तानपाद और उसकी पत्नी सुनीति के द्वारा लोकप्रिय बनाया गया था.| राजा के एक और पत्नी थी सुरुचि | सुरुचि ने रजा के पुत्र ध्रुव को ईर्ष्या के कारण मारने के कई प्रयास किये है, और हर बार ऐसे प्रयास से , ध्रुव बाहर चुस्त और तंदुरुस्त आया| तब सुरुचि ने सुनीति से पूछा कौन सा जादू था कि हर बार ध्रुव सुरक्षित बच गया | सुनीति ने बताया की वह नियमित रूप से व्रत करती है |तब सुरुचि ने भी व्रत किया और पुत्र प्राप्त किया ध्रुव एक ध्रुव तारे के रूप में आकाश में दिखाई देता है! व्रत के दोरान स्नान करके एक समय भोजन ले और गाय और बछड़े की पूजा करे |

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