*प्रश्न ==*
गुरुदेव ! कोटिशः चरणवंदन ,राधे राधे ।
नवरात्रि में कन्याभोजन का ही विधान है कि ब्राह्मणभोजन भी करा सकते हैं ? क्या कन्याभोजन में भी जाति का विधान है ?
*गायत्री
अजय सिंह चौहान , कोंच ,जि. जालौन उ.
प्र. ।*
*उत्तर ==* आजकल तो लोग जाति की बात सुनते
ही कहने लगते हैं कि यह बात तो गलत है ।वह शास्त्र ही नहीं मानना है ,जिसमें जाति के अनुसार पूजाविधि लिखी गई है ।
ऐसे लोग इतने
अधिक अविवेकी होते हैं कि उन्हें जाति के अनुसार किए गए सरकारी काम तो अच्छे लगते
हैं ,लेकिन शास्त्रों में जाति
के अनुसार कही गई पूजा पद्धति बहुत ही खलती है । लेकिन फल तो शास्त्र की विधि के
अनुसार करने से ही प्राप्त होता है ,विपरीत करने वाले को विपरीत फल ही प्राप्त होता है ।
आप सब धार्मिक और
आस्तिक लोग हैं ,इसलिए आपको
शास्त्रों के अनुसार ही करना चाहिए ।आज के समाज की मान्यता के अनुसार और सरकार की
मान्यता के अनुसार न तो व्रत उपवास का फल मिलेगा और न ही उपासना का फल प्राप्त
होगा ।
धरती की सरकार तो
यहीं के कानून के अनुसार फल देगी ,धर्म और पूजा का
फल भगवान देतें हैं । इसलिए सरकार और समाज की बात संसार के कामों में ही मानना
चाहिए ,पूजा अर्चना में नहीं
मानना चाहिए ।
अब आप देखिए कि
नवरात्रि में ब्राह्मणभोजन कराना चाहिए कि नहीं ? माता दुर्गा जी की पूजा अर्चना के विषय में *देवीभागवत* के
तीसरे स्कन्ध के 26 वें और 27 वें अध्याय में व्यास भगवान ने बताई है । 27 वें अध्याय के 11 वें श्लोक में
दोनों नवरात्रियों में ब्राह्मण भोजन का भी विधान है ।
ब्राह्मणों से ही
भगवती की स्थापना पूजा पाठ कराने का विधान है ,इसलिए भोजन का भी विधान है ।
*पायसैरामिषैहोमैर्ब्राह्मणानां
च भोजनैः ।*
*फलपुष्पोपहारैश्च
तोषयेज्जगदम्बिकाम् ।।*
दोनों
नवरात्रियों में विद्वान ब्राह्मणों से पूजा पाठ करा कर उनको भोजन कराना चाहिए ।
मांसाहारी मनुष्य को भी देवी का हवन पूजन मांस से नहीं करना चाहिए ।खीर से हवन
कराकर तथा फल, पुष्प ,माला तथा साड़ी आदि सौभाग्यसामग्री से माता का
पूजन करके जगदम्बा को प्रसन्न करना चाहिए ।
अब देखिए कि किस
जाति की कन्या का भोजन कराने से क्या फल मिलता है ? इसी 27 वें अध्याय के
चौथे ,पांचवें और छठवें श्लोक
में कन्याओं के विषय में व्यास जी ने कहा है कि
*एकवंशसमुद्भूतां
कन्यां सम्यक् प्रपूजयेत् ।। 4 ।।*
एकवंश से उत्पन्न
कन्या का ही पूजन करना चाहिए । यदि ब्राह्मण ने किसी और जाति से विवाह किया है तो
उससे उत्पन्न कन्या का निमन्त्रण या पूजन नहीं करना चाहिए ।आजाए तो आदरपूर्वक भोजन
तो कराना ही चाहिए ।
यदि क्षत्रिय ने ब्राह्मण
की कन्या से भी विवाह किया है तो भी उसकी कन्या भी पूजा के योग्य नहीं है ।अर्थात
ब्राह्मण पुरुष और ब्राह्मणी स्त्री से उत्पन्न कन्या ही ब्राह्मण की कन्या कहलाती
है । अर्थात वर्णसंकर कन्या नहीं होनी चाहिए ।
अब 5 वां श्लोक देखिए
*ब्राह्मणीसर्वकार्येषु
जयार्थे नृपवंशजा ।*
*लाभार्थे
वैश्यवंशोत्था मता वा शूद्रवंशजा ।।*
युद्ध में मुकद्मा में विजय प्राप्त करने के लिए
क्षत्रिय की कन्या का पूजन करना चाहिए ।धन प्राप्ति के लिए वैश्य की कन्या का पूजन
करना चाहिए ।तथा ज्ञान के लिए शूद्र की कन्या का पूजन करना चाहिए ।लेकिन ब्राह्मण
की कन्या का पूजन करने से विजय ,धन ,मोक्ष सभी कुछ प्राप्त होता है ।
अब देखिए कि
किसकी कन्या का पूजन किसको करना चाहिए ।
*ब्राह्मणैर्ब्रह्मजाः
पूज्याः राजन्यैर्ब्रह्मवंशजाः ।*
*वैश्यैः
त्रिवर्गजाः पूज्याः चतस्रः पादसम्भवैः ।।6 ।।*
ब्राह्मण को ब्राह्मण की कन्या का ही पूजन करना
चाहिए ,अन्य जाति की कन्या का
नहीं । क्षत्रिय को ब्राह्मण और क्षत्रिय जाति की ही कन्या का पूजन करना चाहिए
।वैश्य को ब्राह्मण ,क्षत्रिय और
वैश्य इन तीनों की कन्याओं का पूजन करना चाहिए ।तथा शूद्र वर्ग को चारों जाति के
कन्याओं का पूजन करना चाहिए ।
कन्या पूजन का
नवरात्रि में विशेष महत्व है ।कन्या की आयु आदि का भी वर्णन देवी भागवत में बड़े
विस्तार से ऊपर कहे गए स्कन्ध के अध्यायों वर्णित है ।
राधे राधे ।
*-आचार्य ब्रजपाल
शुक्ल, श्री धाम वृन्दाबन*
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