प्रश्न- महाराज जी के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम ।
" जनमु मरनु जहँ लगि जग जालू ।
संपति विपति करमु अरु कालू "
इसे समझाकर हम सभी के ऊपर अनुग्रह करें ।
वंदना दुबे ,कोनी पाटन ,जि. जबलपुर म. प्र. ।
उत्तर == संसार तो अपार है, किंतु इसके गुणों और दुर्गुणों की संख्या सीमित है । इस संसार की गणित में मात्र 24 ही तत्व होते हैं । इन 24 तत्वों से 84 लाख योनियां बनी हैं ।
बस, यहां से ही इसकी अपारता प्रारम्भ हो जाती है कि एक योनि में कितने जीव हैं ।इनकी गणना करना ही कठिन है ।
"अयोध्या काण्ड के 92 वें दोहे की चौथी चौपाई से लेकर 8 वीं चौपाई तक लक्ष्मण जी ने निषादराज को 84 लाख योनियों के सभी जीवों के स्वभाव और जीवन को बता दिया है ।
पहले आप 84 लाख योनियों के प्रकार समझिए । तब आपको समझ में आएगा कि जो दुख मच्छर को है,जो सुख मच्छर को है, वही दुख सुख एक मनुष्य को मिलता है । संसार का सुख समान है और दुख भी समान है ।
गरुड़पुराण के प्रेतखण्ड के 21 वें अध्याय के 40 वें और 41 वें श्लोक में 84 लाख योनियों की संख्या बताई है ।
" जलजा नव लक्षाश्च दशलक्षाश्च पक्षिणः ।
कृमयो रुद्रलक्षाश्च विंशल्लक्षा गवादयः।।40।।
"स्थावरास्त्रिंशलक्षाश्च चतुर्लक्षाश्च मानवाः।
पापपुण्यं समं कृत्वा नरयोनिषु जायते "।।41।।
जलचरों की 9 लाख, पक्षियों की 10 लाख,कीड़े मकोड़ों की 11 लाख, गौ आदि की 20 लाख, वृक्षों लताओं आदि की 30लाख,तथा मनुष्यों की चार लाख प्रकार की योनियां होतीं हैं ।
सबका योग मिलाइए तो इस प्रकार 84 लाख योनियां हैं । अब 24 तत्व देखिए । (1)पृथिवी (2)जल(3) तेज (4)वायु (5)आकाश, इन 5 त्वों से ही सभी योनियों के शरीर बने हैं और इन्हीं से सभी जीवित हैं ।
इन्हीं पांचों तत्वों में सभी विलीन हो जाते हैं ।
इन्हीं पांचों तत्वों से 10 इन्द्रियां सबकी बनतीं हैं ।(1)आंख(2)कान(3)नाक(4)जिह्वा( 5)त्वचा (चमड़ी)(6)हाथ(7)पैर(8)गुदा (9)लिंग(10) वाणी (जिह्वा ।
सभी छोटे बड़े जीव 5 इन्द्रियों से 5 गुणों के ज्ञान से आनन्द लेते हैं। (1)शब्द (2) स्पर्श (3)सुंदर असुंदर रूप (4)रस (5) सुगंध, दुर्गंध । अब देखिए ये सब मिलाकर 20 तत्व हुए ।
अब इस 20 में (1)मन (2)बुद्धि (3)चित्त (4)अहंकार ,ये चार तत्व मिलाने से कुल 24 तत्व हो गए ।
जब सबके शरीर में ये 24 ही तत्व हैं तो शारीरिक, मानसिक दुख सुख भी समान ही होगा । यदि 4लाख प्रकार का मनुष्य होता है तो इनका भी तो सुख दुख समान ही होता है ।
अर्थात संसार में जो भी सुख दुख होता है ,वह सब शरीर के कारण ही समान रूप से है ।आप जिस योनि में होंगे ,उसी योनि के जीवों से आपको सुख और दुख मिलेगा ।
अब लक्ष्मण जी ने जो अयोध्याकाण्ड के 92 वें दोहे की चौथी चौपाई से 8 वीं चौपाई तक गुण गिनाए हैं ,उनको देखिए । (1)संयोग(2)वियोग(3)भोग(4)भलाई (5) मंद ( सम) (6) हित(7)अहित (8) मध्यम ( समान) (9) भ्रम(10) फंदा( फंसना) (11)जनम (12) मरण (13) जगजाल (14) संपत्ति (15)विपत्ति (16)कर्म (17)काल (समय) (18) पृथिवी (19) धाम (निवास ) (20)धन (21)पुर ( समूह) (22)परिवार (23) स्वर्ग (24)नरक ।
ये ही चौबीस कार्य होते हैं और सब अपने अपने कर्मों के अनुसार सबको सबको सुख दुख प्राप्त होता है ।
अंतिम चौपाई में कहा है कि " मोहमूल परमारथ नाहीं" इस संसार का यथार्थ ज्ञान होने पर ही संसार के दुखों से मुक्त हो सकते हैं ।
ये सब दुख तो मोह के कारण ही मिलते हैं ,मोह समाप्त होने पर कोई दुख नहीं है ।
संसार तो मोह से ही चलता है ।सारे व्यवहार मोह के कारण होते हैं ।
राधे राधे ।
-आचार्य ब्रजपाल शुक्ल, वृन्दाबन धाम
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