परबस जीव स्वबस भगवंता
*प्रश्न- *"औरु करै अपराध कोउ और पाव फल भोग "* का क्या अर्थ है ? कृपा करके समझाएं ।
मोहिनी सिंह चौहान , कोंच ,जि. जालोन उ. प्र. ।
*उत्तर- यह दोहा रामचरित मानस के अयोध्याकाण्ड का 77 वां दोहा है
वनगमन के लिए राम, लक्ष्मण और सीता जी अचेत अवस्था में पड़े हुए महाराज दशरथ जी से आज्ञा लेने जाते हैं ।
मंत्री सुमंत्र जी ने दशरथ जी को बैठाते हुए बताया कि राम जी आए हैं ।
वनवासी वेष में राम, लक्ष्मण और सीता को देखकर व्याकुल होकर राम जी से बोले ।
इसी दोहे की 7 वीं और 8 वीं चौपाई देखिए ।
*" सुभ अरु असुभ करम अनुहारी ।
ईसु देइ फल हृदय विचारी " ।।
कर इ जो करम पाव फल सोई ।
निगम नीति असि कह सबु कोई ।।*
वेदों में तथा नीति शास्त्रों ऐसा कहा गया है कि मनुष्य के शुभ और अशुभ कर्मों का फल ईश्वर हृदय से बहुत विचार करके देते हैं
जो मनुष्य जैसा कर्म करता है ,उस कर्म का फल उसी मनुष्य को भोगना पड़ता है ।
किन्तु मैं तो आज इस नियम के विरुद्ध देख रहा हूं ।कि
*"औरु करे अपराध कोउ और पाव फल भोग ।
अति विचित्र भगवंत गति को जग जानै जोग ।।*
अर्थात अपराध कोई कर रहा है और उसके कर्म का फल कोई और भोग रहा है ।
कर्म का फल देने की विधि अतिविचित्र है ।संसार के नियमों को कौन जान सकता है ?अर्थात कोई नहीं जान सकता है ।
संसार तो भगवान का ही है ,इसलिए इसके विषय में पूर्ण रूप से वही जान सकते हैं । क्या वेद और क्या मनुष्य ?
कैकेयी ने पुत्र मोह में आकर निरपराध राम का वनवास मांगा है ।
ये कैकेयी का कर्म है । इसके लोभ मोह का फल राम को भोगना है ।
दूसरी बात तो हृदय में ही है कि " श्रवण कुमार का अपराधी मैं हूं ,फल तो मुझे मिलना चाहिए ।
लेकिन मेरे कर्म का फल भी राम को भोगना पड़ रहा है । इसलिए दशरथ जी ऐसा कह रहे हैं ।
लेकिन अब आप इस दोहे का सही अर्थ देखिए ।
दुख में कही गई बात , क्रोध में कही गई बात ,मोह और लोभ में कही गई बात , सत्य नहीं मानी जाती है ,और न ही उसे विवेक कहते हैं ।
न ही संसार के बुद्धिमान सामाजिक व्यक्ति उन बातों को उचित मानते हैं
पति पत्नी ,भाई भाई ,भाई बहिन ,पिता पुत्र के झगड़े में क्रोध में अनेक प्रतिज्ञाएं हो जातीं हैं ।
प्रेम में भी ऐसा बोल देते हैं कि फिर कभी कर भी नहीं पाते हैं ।तो समाज के लोग कहते हैं कि ये तो होता ही रहता है ।
तुम तो समझदार व्यक्ति हो ।तुम्हें इनकी बातों का बुरा नहीं मानना चाहिए , इत्यादि ।और फिर सभी एक हो जाते हैं ।
दशरथ जी घोर से घोर मानसिक व्यथा से पीड़ित हैं ,इसलिए वेदों की बात और नीति की बात, तथा श्रेष्ठ पुरुषों की बात निरर्थक होते दिख रही है ।लेकिन ऐसा नहीं है
राम जी को नारद जी ने शाप दिया था कि स्त्री के वियोग में आप भी दुखी होकर घूमेंगे ।ये बात दशरथ जी को पता नहीं है ।
दशरथ जी को पुत्र के वियोग में प्राण छूटने का शाप श्रवण कुमार के माता पिता ने दिया है ।
ये दोनों शाप आज एक साथ फल दे रहे हैं
दशरथ अपने कर्म का फल भोगने जा रहे हैं और श्री राम अपने कर्म का फल भोगने जा रहे हैं , तो ये बात दशरथ जी की कैसे सही हो सकती है कि "अपराध कोई और करता है और फल कोई और भोगता है ।
ये बात पुत्र मोह में कही गई है इसलिए सत्य नहीं है ।
सत्य यही है कि जो कर्म करता है ,उसी को फल भी भोगना पड़ता है ।
वेद तो भगवान की नियमवाणी है ।उसको ब्रह्मा जी भी नहीं बदल सकते हैं ।
हां ,भगवान जब चाहते हैं तो भक्तों के लिए संसार के कर्म का नियम कभी भी बदल देते हैं ।इसीलिए तो वे भगवान हैं ।स्वतन्त्र हैं ।
*" परबस जीव स्वबस भगवंता "* ।।
राधे राधे ।
*-आचार्य ब्रजपाल शुक्ल, वृन्दावन धाम*
जय राम जी की
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