मरने के बाद क्या होता है
संसार में इस समय ऐसे स्त्री पुरुषों की मात्रा बहुत अधिक है जो कुछ पढ़े लिखे होने के कारण कहने लगे हैं कि हम यह नहीं मानते हैं कि भूत प्रेत योनि होती है , भगवान होते हैं , मरने के बाद स्वर्ग नरक होते हैं ,इत्यादि
किसी के मरने के बाद इन्हें यह नहीं दिखाई देता है कि वह मरनेवाला कहां गया ।
और फिर न ही विज्ञान से ही सिद्ध होता है कि मरने के बाद भी वही आदमी फिर से जन्म लेता है ,जो कभी हमारे घर का सदस्य था , मित्र या शत्रु था ।
ऐसे अज्ञानी अन्धे शिक्षित मनुष्य को ये कभी भी विचार नहीं आता है कि उसने जिस-जिस विषय की शिक्षा ली है ,वह भी उसे पूर्णरूप से नहीं आता है, तो जिस विषय को कभी पढ़ा ही नहीं है ,या जिस विषय को जानते ही नहीं है, वह ज्ञान कैसे हो जाएगा ।
सृष्टि के विषय का ज्ञान किसी की मान्यता से नहीं होता है और न ही किसी के न मानने से कुछ नष्ट हो जाता है ।
मरने के बाद क्या होता है, इसका अनुसन्धान वैज्ञानिकों ने नहीं किया है या नहीं कर पाए हैं तो आज के मनुष्य के न मानने से मरने के बाद जो हो रहा है,वह नहीं होगा क्या ?
सृष्टि में जो होता आया है , वह तो होना ही है ,तुम्हें ज्ञान हो या न हो ।
स्त्री पुरुष के संयोग से उत्पन्न संतान अपने माता पिता से भिन्न स्वभाव,भिन्न शरीर की क्यों होती है ?
अनेक ऐसे माता पिता हैं कि वे दोनों अशिक्षित हैं, किंतु उनकी सन्तान बुद्धिशाली है ।
माता पिता दुष्ट हैं तो संतान सज्जन है ।माता पिता सज्जन हैं तो संतान इतनी दुष्ट है कि माता पिता को ही मार डालते हैं ।
यही विषमता पति पत्नी,भाई-भाई ,बहिन-भाई में दिखाई देती है
आपके शरीर से उत्पन्न होने वाले पुत्र-पुत्री कहां से मरकर आए हैं ? ये रहस्य मनुष्य की बनाई मशीन से कैसे ज्ञात होगा ? बिना मरे तो कोई भी उत्पन्न नहीं हो सकता है ।
अभी आप जिन्दा हो ।अब जब तक आप मरेंगे नहीं ,तब तक आप कहीं उत्पन्न भी नहीं हो सकते हैं ।
इसलिए यह तो मानो या न मानो ,लेकिन यही सत्य है कि तुम्हारे घर में जो तुम्हारे शरीर से पुत्र-पुत्री के रूप में उत्पन्न हुए हैं ,वे कहीं पहले थे, मरकर के अब तुम्हारे यहां उत्पन्न हो गए हैं ।
पहले वे किसी के दादा, दादी ,नाना, नानी ,पति ,पत्नी आदि थे ,वही अब आपके पुत्र-पुत्री हो गए ।
अब ये फिर वही पति-पत्नी ,दादा-दादी, नाना-नानी बनेंगें । वर्तमान के बच्चे भूतकाल में माता पिता थे ।
अब बड़े होकर भविष्य में फिर वही माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी बनेंगें ।बूढ़े होकर फिर मरेंगें ,फिर उत्पन्न होंगे
यही क्रम चलेगा,यही क्रम चल रहा है । आप मानो या न मानो ।आपका विज्ञान सिद्ध कर पाए या न कर पाए ।
आपकी जो दशा होनी है,वह तो होकर ही रहेगी ।क्यों कि संसार को मनुष्य नहीं चला रहे हैं ।इसकी व्यवस्था किसी और के हाथ में है ।
भागवत के छठवें स्कंध के 16 वें अध्याय के 5 वें श्लोक में वर्तमान के शरीर को छोड़ने के बाद जीव ने महाराज चित्रकेतु से कहा कि न तो तुम मेरे पिता हो और न ही मैं तुम्हारा पुत्र हूं ।
शरीर के समाप्त होते ही सब संबंध नष्ट हो जाते हैं ।"
बन्धुज्ञात्यरिमध्यस्थमित्रो दासीनविद्विषः ।
सर्व एव हि सर्वेषां भवन्ति क्रमशो मिथः ।।
संसार में सभी जीवों के इतने ही संबन्ध होते हैं
( 1) बन्धु = जिनका संबन्ध विवाह होने पर जुड़ता है । सास ससुर, साला आदि ये बंधु कहे जाते हैं ।
( 2) ज्ञाति = जिस वंश में उत्पन्न होते हैं ,उनसे संबन्ध ।दादा दादी ,चाचा ,भाई ,भतीजा आदि ज्ञाति संबन्ध है ।
( 3 )अरि = शत्रु ,
( 4 ) मित्र , उपकार करने के कारण संबन्ध ।
( 5) मध्यस्थ , गांव समाज के व्यवहार से संबन्ध
( 6 )उदासीन , पक्षपात रहित परिचित संबन्ध ।
( 7) विद्वेष ,=ईर्ष्या के कारण कहीं भी किसी से भी शत्रुभाव से सम्बन्ध
सभी स्त्री-पुरुषों के इतने ही शरीर और मन के सम्बन्ध होते हैं ।
इन्हीं सम्बन्धों में सबका वर्तमान जीवन चलता है और मरने के समय जिसमें मन आसक्त हो जाता है ,उसी के घर में उसका जन्म होता है ।
इसलिए पुत्र,पुत्री,भाई,बहिन भी माता पिता या भाई भाई के साथ ऐसा दुष्ट व्यवहार करते हैं कि जैसा शत्रु को करना चाहिए ।
इस प्रकार से सभी मनुष्य अपने संबन्धियों के यहां ही पैदा होते हैं तथा पूर्व जन्म के अनुसार अच्छा बुरा एक दूसरे से व्यवहार करते हैं ।
अज्ञानी मनुष्य को भोगना पड़ता ही है,माने या न माने ।
राधे राधे ।
*-आचार्य ब्रजपाल शुक्ल, वृन्दाबन धाम*
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