हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार गाय में 33 कोटि देवी-देवता 'वास' करते हैं इसलिए इसे पावन माना जाता है और समाज में इसकी पूजा की जाती है.
तो सवाल ये है कि वह गाय कौन सी है जिसे पूजनीय माना जाता रहा है ? क्या दुनिया की सारी गायें उतनी ही पवित्र हैं या फिर सिर्फ़ वही जो अखंड भारत में पैदा हुई हैं.
देसी गाय की संख्या में उतनी बढ़ोतरी नहीं हो पा रही है जितनी विदेशी नस्ल की गाय की और इसका कारण है दूध का बाज़ार. 2012 में हुई भारत की पशुधन जनगणना के मुताबिक़ 2007 की तुलना में देसी गायों की संख्या अभी भी ज़्यादा है. लेकिन बढ़ोतरी विदेशी या वर्णसंकर गायों की संख्या में हो रही है.
देश में 4.8 करोड़ देसी गायें हैं, जो 2007 में 4.1 करोड़ थीं. विदेशी या वर्णसंकर गायों की संख्या 1.4 करोड से दो करोड़ के आंकड़े को छूने लगी है.
देशी गाय पावन क्यों ?
भारत की गाय के वह कौन से गुण हैं जो देसी गाय को पावन बनाते हैं जबकि वो विदेशी नस्लों की गायों के मुकाबले कम दूध देती है?
विश्व हिन्दू परिषद की गोरक्षा समिति के हुकुमचंद कहते हैं, "हमारी देसी गाय जब बछड़े को जन्म देती है तब वो दूध देती है. विदेशी नस्ल की गाय के दूध देने के लिए बछड़ा होना ज़रूरी नहीं है. देसी गाय का दूध जल्दी पच जाता है जबकि भैंस और विदेशी नस्ल की गाय के दूध को पचने में ज़्यादा वक़्त लगता है."
गोबर भी 'गुणकारी'
देसी गाय का सिर्फ़ दूध ही नहीं, उसका गोबर भी गुणकारी होता है जिससे बीमारियां दूर होती हैं. वहीं विदेशी नस्ल की गायों के गोबर से बीमारियां पैदा होती हैं.
करनाल स्थित राष्ट्रीय पशु आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो के एक शोध में देसी गाय के दूध की गुणवत्ता को भी विदेशी नस्ल की गायों से बेहतर बताया गया है. मगर भारत में अब देसी गायों के मुकाबले विदेशी नस्ल की गाय ज़्यादा लाभकारी साबित हो रही है क्योंकि वो ज़्यादा दूध देती है. इसी वजह से इन्हें पालने का चलन बढ़ रहा है.
भारत में गाय को उत्पादकता के इतर जीवनशैली के हिस्से के तौर पर भी देखा जाता है. दूध बेचने वाले देसी गाय की बजाय विदेशी नस्ल की गाय को ही अपने व्यवसाय के लिए अच्छा मानते हैं क्योंकि देसी गाय कम दूध देती है.
वो कहते हैं, ''अब तो क्रास-ब्रीड वाली गाय ही ज़्यादा पाली जा रही है. अब तो वीर्यरोपण का दौर है.''
''विदेशी नस्ल या क्रास ब्रीड की गाय ज़्यादा दूध देती है और उससे मुनाफ़ा भी ज़्यादा होता है.
एक तो देसी गाय कम दूध देती है और दुसरे उसके रख-रखाव में भी काफ़ी जतन करना पढता है."
इस भ्रामक मान्यता को देशी गाय के गुड़करी दूध और गौमूत्र के महत्व को आम भारतीय में प्रचार प्रसार के माध्यम से हमे पहुचना होगा
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