भारतीय मनीषियों ने गाय के महत्व को बहुत पहले पहचाना लिया था| उन्होंने पाया कि गाय का दूध स्वस्थ शरीर के लिए आवश्यक है,बैलों से खेती, आवागमन के साधन एवं माल वाहन, गोमूत्र से खाद, कीटनाशक एवं औषिधिय उपयोग तथा भूमि की उत्पादकता बढ़ाने हेतु गोबर खाद ही उत्तम है जो आधारित कृषि की ग्राम स्वालंबन के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है|
उन्होंने गौ की महिमा का बखान करते हुए गाय को माता का स्थान दिया| उन्होंने गाय को धर्म में इस तरह सम्मिलित कर दिया की भारत के उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम क्षेत्र में अनेक धार्मिक मत-मतोतरों के उपरांत भी गाय को सभी ने पूज्यनीय माना|
भगवान श्रीकृष्ण भी गाय की सेवा करके गोपाल, गोविन्द आदि नामों से पुकारे गये| जब तक गौ आधारित स्वावलंबी खेती होती रही तब तक भारत विकसित धनवान राष्ट्र रहा, यहाँ की सम्पदा के लालच में वेदेशी वर्षो तक भारत पर आक्रमण करते रहे
#गौधन के उपेक्षा के कारण
1. भैंस का ढूढ़ गाढ़ा व अधिक चिकनाई वाला होने से दूध व्यवसाय में भैंस के दूध को गाय के दूध पर वरीयता दी जाने लगी|
2. आवागमन के साधन बढ़ने से बैलों की उपयोगिता इस क्षेत्र में सीमित रह गई है|
3. ट्रेक्टरों के बढ़ते उपयोग से बैलों की उपयोगिता कृषि कार्यों में शनैः – शनै: घटती जा रही है|
4. रासायनिक खादों एवं कीटनाशक से गोबर, गोमूत्र के उपयोग में कमी आई है|
इन सबका प्रभाव स्पष्ट दिखाई दे रहा है| गाँव अब गौ आधारित स्वावलंबी नहीं रहे| उन्हें अपने समस्त कार्यों एवं कृषि आदानों के लिए शहर की ओर देखना पड़ रहा है|
गाँव में रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए तथा कृषकों की आय में वृद्धि के लिए हमें पुन: गौ आधारित स्वावलंबी कृषि की ओर वापस जाना होगा| बदले हुए हालात में आज कम से कम गाय के दूध का उत्पादन बढ़ाकर तथा गोबर व गौमूत्र की प्रयोग से रासायनिक खाद व कीटनाशकों पर होने वाले खर्च व गौमूत्र के प्रयोग से रासायनिक खाद व कीटनाशकों पर होने वाले खर्च को बचाकर ग्राम लक्ष्मी का पुन: आह्वान किया जा सकता है|
विभिन्न देशों की गायों के दूध उत्पादन के आंकड़ों को देखकर ऐसा लगा कि विकसित राष्ट्रों के गायों का प्रति व्यात दूध उत्पादन विकासशील देशों की गायों के प्रति बयात दूध उत्पादन से कई गुना अधिक है|
उदाहरण के लिए इजरायल में 9000 लीटर, अमेरिका में 7000 लीटर, हॉलैंड एवं जर्मनी में 6000 लीटर, जापान में 3000 लिटर दूध एक गाय एक व्यात में देती है जबकि भारत की एक गाय का औसत दूध उत्पदान विकास का पैमाना है|
उदाहरण के लिए इजरायल में 9000 लीटर, अमेरिका में 7000 लीटर, हॉलैंड एवं जर्मनी में 6000 लीटर, जापान में 3000 लिटर दूध एक गाय एक व्यात में देती है जबकि भारत की एक गाय का औसत दूध उत्पदान विकास का पैमाना है|
पंजाब, गुजरात, की गायें अधिक दुधारू हैं, ये प्रदेश भी विकसित हैं| म. प्र. में मालवा, निमाड़, मुरैना का गौधन दुधारू है अत: इन क्षेत्रों का किसान भी सम्पन्न है|
इससे स्पष्ट है कि एक ब्यात में गाय का दूध जितना अधिक होगा, उतना ही सम्पन्न किसान, प्रदेश और राष्ट्र होगा| कृषि क्षेत्र में अब यह स्थिति आ गई है कि उत्पादन अब लगभग स्थिर हो गया है| उतनी ही उपज प्राप्त करने के लिए अब आदानों पर अधिक व्यय करना पड़ता है| परिवार के आकार बढ़ने से अब जोत के आकार भी छोटे होते जा रहे हैं|
ऐसी स्थिति में अब गौपालन ही एक ऐसा व्यवसाय बचा है जिसमें उत्पादन बढ़ाने की अपार संभावना है| अनुभव यह बतलाता है कि एक संकर गाय, औसत देखभाल में एक ब्यात्त में 1500 से 1800 लिटर दूध देती हैं जिसका मूल्य साधारण तथा एक एकड़ दो फसली क्षेत्र से प्राप्त उत्पादन के बराबर होता है|
अत: किसान की आर्थिक हालत पता करने का यह भी एक पैमाना हो सकता है कि जिस किसा के पास जितनी दुधारू संकर गायें हैं, उसकी आमदनी उतनी ही एकड़ों में प्राप्त हो फसली क्षेत्र से प्राप्त आमदनी से होगी|
अत: किसान की आर्थिक हालत पता करने का यह भी एक पैमाना हो सकता है कि जिस किसा के पास जितनी दुधारू संकर गायें हैं, उसकी आमदनी उतनी ही एकड़ों में प्राप्त हो फसली क्षेत्र से प्राप्त आमदनी से होगी|
आय बढ़ाने के लिए गौपालन सर्वोत्तम साधन है
जहाँ तक भैंस से प्रतियोगिता का प्रश्न है, विश्व में सबसे अच्छी भैंस केवल भारत में ही है| उनका एक ब्यात का दूध उत्पादन 1200 से 1500 लिटर रही है|
भैंस के दूध को बढ़ाने की क्षमता सीमित है, उसमें सूखे के दिन अधिक होते हैं तथा उसका प्रजनन मौसमी होता है, उसके रख्राव का खर्च भी अधिक होता है, इसलिए भैंस एक अच्छी दुधारू गाय की तुलना में लम्बे समय तक नहीं टिक पायगी|
अत: दूर दृष्टि से सोच कर गाय पालना ही लाभप्रद होगा||
भैंस के दूध को बढ़ाने की क्षमता सीमित है, उसमें सूखे के दिन अधिक होते हैं तथा उसका प्रजनन मौसमी होता है, उसके रख्राव का खर्च भी अधिक होता है, इसलिए भैंस एक अच्छी दुधारू गाय की तुलना में लम्बे समय तक नहीं टिक पायगी|
अत: दूर दृष्टि से सोच कर गाय पालना ही लाभप्रद होगा||
सावधानियाँ :-
गौपालन में लगे हुए उद्यमियों को निम्न बिंदूओं का ध्यान रखना आवश्यक है, अन्यथा लाभ में निरंतर कमी आती जाएगी|
क. प्रजनन
(अ) अपनी आय को अधिक दूध वाले सांड के बीज से फलावें ताकि आने वाली संतान अपनी माँ से अधिक दूध देने वाली हो| एक गाय सामान्यत: अपनी जिन्दगी में 8 से 10 बयात दूध देती हैं आने वाले दस वर्षों तक उस गाय से अधिक दूध प्राप्त होता रहेगा अन्यथा आपकी इस लापरवाही से बढ़े हुए दूध से तो आप वंचित रहेंगे ही बल्कि आने वाली पीढ़ी भी कम दूध उत्पादन वाली होगी| अत: दुधारू गायों के बछड़ों को ही सांड बनाएँ|
(आ) गाय के बच्चा देने से 60 से 90 दिन में गाय पुन: गर्भित हो जाना चाहिए| इससे गाय से अधिक दूध, एवं आधिक बच्चे मिलते हैं तथा सूखे दिन भी कम होते है|
(इ) गाय के फलने के 60 से 90 दिन बाद किसी जानकार पशु चिकित्सा से गर्भ परिक्षण करवा लेना चाहिए| इससे वर्ष भर का दूध उत्पादन कार्यक्रम तय करने में सुविधा होती है|
(ई) गर्भावस्था के अंतिम दो माह में दूध नहीं दूहना चाहिए तथा गाय को विशेष आहार देना चाहिए| इससे गाय को बच्चा जनते वक्त आसानी होती है तथा अगले बयात में गाय पूर्ण क्षमता से दूध देती है|
ख. आहार
(अ) दूध उत्पादन बढ़ाने तथा उसकी उत्पादन लागत कम करने के लिए गाय की सन्तुलित आहार देना चाहिए| संतुलित आहार में गाय की आवश्यकता के अनुसार समस्त पोषक तत्व होते हैं, वह सुस्वाद, आसानी से पचने वाला तथा सस्ता होता है|
(आ) दूध उत्पादन से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए, पशु को बारह मास पेट भर हरा चारा खिलाएं| इससे दाने का खर्च भी घटेगा तथा गाय का नियमित प्रजनन भी होगा|
(इ) गाय को आवश्यक खनिज लवण नियमित देंवे|
(ई) गाय को आवश्यक चारा- दाना- पानी नियत समय के अनुसार देवे| समय के हेर-फेर से भी उत्पादन प्रभावित होता है|
ग. रोग नियंत्रण
(अ) संक्रामक रोगों से बचने के लिए नियमित टिके लगवाएं|
(आ) बाह्य परिजीवियों पर नियंत्रण रखे| संकर पशुओं में तो यह अत्यंत आवश्यक है|
(इ) आन्तरिक परजीवियों पर नियंत्रण रखने के लिए हर मौसम परिवर्तन पर आन्तरिक परजिविनाशक दवाएँ दें|
(ई) संकर गौ पशु, यदि चारा कम खा रहा है या उसने कम दूध दिया तो उस पर ध्यान देवें| संकर गाय देशी गाय की आदतों के विपरीत बीमारी में भी चारा खाती तथा जुगाली भी करती है|
(उ) थनैला रोग पर नियंत्रण रखने के लिए पशु कोठा साफ और हवादार होना चाहिए| उसमें कीचड़, गंदगी न हो तथा बदबू नहीं आना चाहिए| पशु के बैठने का स्थान समतल होना चाहिए तथा वहाँ गड्ढे, पत्थर आदि नुकीले पदार्थ नहीं होना चाहिए| थनैला रोग की चिकित्सा में लापरवाही नहीं बरतें|
गौवत्सों का पोषण :-
गौवत्सों का पोषण सही तरीके से किया जाए तो वे 2.11 से 3 वर्षों की उम्र में गाय बन जायेंगे अन्यथा वे 4 से 5 साल की उम्र में गाय बनेंगे| यह स्थिति लाभप्रद नहीं हैं|
गौवत्सों का पालन चिकित्सकों की राय से करें|
गौवत्सों का पालन चिकित्सकों की राय से करें|
लेखा - पशु के दोध उत्पादन, दूध केने के दिन, सूखे दिन, दो बयात में अंतर, प्रजनन,उपचार आदि का भी लेखा- जोखा रखना चाहिए|
इससे पशु के मूल्यांकन में सहायता मिलती है तथा कम लाभप्रद या अलाभप्रद पशु के छंटनी आसानी से की जा सकती है|
इससे पशु के मूल्यांकन में सहायता मिलती है तथा कम लाभप्रद या अलाभप्रद पशु के छंटनी आसानी से की जा सकती है|
इसके अतिरिक्त गोबर व गौमूत्र का युक्ति- युक्त उपयोग कर रासायनिक खाद और कीटनाशकों पर होने वाले खर्च को बचाकर आमदनी बढ़ाई जा सकती है| दूध एक ऐसा पदार्थ है जो जितनी भी मात्रा में उत्पादित किया जावे उसे बाजार मिलना ही है|
जैसे- जैसे समृद्धि बढ़ेगी, वैसे-वैसे भोजन में दूध से बने पदार्थ की खपत बढ़ेगी ही|
अत: गौपालन को पूर्णकालिक व्यवसाय के रूप में अपनाकर किसान बंधु अपनी आय बढ़ाकर रोजगार के नये द्वार खोल सकते हैं|
सर्वश्रेष्ठ जानकारी। ध।
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