विलक्षण औषधीय मूल्य वाले इस घी को पारंपरिक तरीके से दही मंथन के बाद निकाला गया है. इस तरह के दूध (और फलस्वरूप दही औरघी) में भारी प्राण - शक्ति होती है - जिस को आयुर्वेद बहुत महत्व देता है.
हंसली के ऊपर के बहुत से रोगों जैसे मिचली, साइनस, कानकापर्दा, भूलनेकीबीमारी, माइग्रेन आदि को गौमाता के इस अनूठे उपहार काउपयोग कर ठीक किया जा सकता है. बीमारी कोई भी हो, पर घी का उपयोग नाक में ही करना है.
1. उपयोग के समय, घी का तापमान शरीर के तापमान की तुलना में थोड़ा अधिक होना चाहिए. गर्म पानी में घी की बोतल रखकर घी गर्म करें. इस घी को कभी भी सीधे आग पर रखकर गर्म न करें.
2. प्रत्येक नथुने में १ से २ बूँद डालें. रात्रि में सोने से पहले डालना अति उत्तम है. शुरू के १५-२० मिनट तक तकिये का इस्तमाल न करें और पानी न पियें. अगर पानी पीना ही पड़े, तो गर्म पानी लें.
3. बूँदें डालने के पश्चात, नाक को बाहर से रगड़ें ताकि घी नथुनों की भीतरी दीवारों पर लग जाये. घी को विक्स वेपोरब की तरह अंदर खींचनेका प्रयास नहीं करें. साधारण तरीके से श्वास लें. घी स्वतः ही काम करेगा.
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