Tuesday 22 November 2016

जानिए पंचगव्य के बारे में


गाय को यूं ही माता नहीं कहा गया है। गाय से उत्पन्न हर चीज एक औषधि है। पंचगव्य से लगभग सभी लोग परिचित होंगे और उसके धार्मिक व व्यवहारिक महत्व से भी अनजान नहीं होंगे। पंचगव्य में पांच वस्तुयें आती है। गाय का दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर। पंचगव्य का धार्मिक महत्व न बताकर उसके आयुर्वेदिक महत्व को बताने का प्रयास कर रहा है।
जानिए गाय के बारे में हैरान कर देने वाले रोचक तथ्य

गाय के रंग भेद से भी इन वस्तुओं को ग्रहण करने का विधान है-पीली गाय का दूध, नीली गाय का दही, काली गाय का घी, लाल गाय का गोमूत्र व सफेद गाय का गोबर ग्रहण करने के लिए अति उत्तम होता है।
मां के बाद गाय का दूध ही अमृत है क्यों?

इन पांच वस्तुओं का अलग-अलग गुण क्रमश इस प्रकार है-

1-गाय के दूध की महत्ता

स्वादु शीत मृदु स्निग्ध बहुलं श्लक्ष्णापिच्छिलम्।
गुरूं मन्दं प्रसन्नं च गव्यं दश गुणं पयः।।
तदेवं गुणमेवौजः सामान्यादभिवर्धयेत्।
प्रचुरं जीवनीयानां क्षरमुक्तम रसायनम्।।
गाय का दूध स्वादिष्ट ठण्डा, कोमल, घी वाला, गाढ़ा, चिकना लिपटने वाला, भारी ढीला और स्वच्छ होता है। गाय का दूध अच्छा मीठा, वातपित्तनाशक व तत्काल वीर्य उत्पन्न करने वाला होता है। इस प्रकार गाय का दूध जीवन शक्ति को बढ़ाने वाला सर्वश्रेष्ठ रसायन है।

2- चरकसंहिता में दही का महत्व

रोचनं दीपनं वृष्यं स्नेहनं बलवर्धनं।
पाकेम्लमुष्णं वाताध्नं मंगल्यं वृहणं दहि।।
पीनसे चातिसारे च शीतके विषमज्वरे।।
अरूचै मूत्राकृच्छे च काश्र्ये च दधि शस्यते।।
अर्थात दही रूचि पैदा करने वाला अग्नि बढ़ाने वाला, शुक्र को बढ़ाने वाला, चिकनाई लाने वाला, मंगल करने वाला व शरीर को पुष्ट करने वाला होता है। अतिसार शीतक पुराने ज्वर अरूचि, मूत्र सम्बन्धी रोगों को दूर करने वाला और शरीर की दुर्बलता को दूर करने वाला होता है।

3-गाय के घी का महत्व

योग रत्नाकार के अनुसार- गाय का घी बुद्धि, कान्ति, स्मरण शक्ति को बढाने वाला, बल देने वाला, शुद्धि करने वाला, गैस मिटाने वाला, थकावट मिटाने वाला। गाय का घी अमृत के समान है जो जहर का नाश करने वाला व नेत्रों की ज्योति बढाने वाला होता है।

4- गोमूत्र का महत्व

चरक संहिता आदि आयुर्वेद के ग्रन्थों में गोमूत्र की बड़ी महिमा बताई है। गोमूत्र तीता, तीखा, गरम, खारा, कड़वा, और कफ मिटाने वाला है। हल्का अग्नि बढ़ाने वाला, बु़द्धि और स्मरण शक्ति बढ़ाने वाला, पित्त, कफ और वायु को दूर करने वाला होता है। त्वचा रोग, वायु रोग, मुख रोग, अमावत पेट के दर्द और कुष्ठ का नाशक है। खांसी, दमा, पीलिया, रक्त की कमी को गोमूत्र देर करता है। मात्र गोमूत्र पीने से खुजली, गुदा का दर्द, पेट के कीड़े, पीलिया आदि रोगों का शमन होता है।

5- गोबर का महत्व

गोबर का सबसे बड़ा गुण कीटाणु नाशक है। इसमें हर प्रकार के कीटाणुओं को नष्ट करने की क्षमता है। इसलिए गावों में आज भी शुभ कार्य करने से पूर्व गोबर से लेपा जाता है। इससे पवित्रता व स्वच्छता दोनों बनी रहती है। गोबर हैजे, प्लेग, कुष्ठ व अतिसार रोगों में लाभप्रद है। पंचगव्य स्वंय में एक औषधि है। योगरत्नाकर में इसके महत्व का वर्णन इस प्रकार किया गया है। गाय के गोबर का रस, दही का खट्टा पानी, दूध, घी और गोमूत्र इन सभी चीजों को बराबर मात्रा में लेकर बनाई गई औषधि प्रयोग करने से पागलपन, शरीर की सूजन, व उदर रोगों में लाभ मिलता है। इसी औषधि को लेकर पूरे घर में छिड़कने से भूतप्रेत बाधा, आर्थिक तंगी व रोगों से मुक्ति मिलती है।

No comments:

Post a Comment

गौ मूत्र फिनायल बनाने की विधि (केमिकल रहित)

             *सामग्री* गौ मूत्र      *एक लीटर* नीम पत्र    *200 ग्राम सूखा* पाइन आयल इमल्सीफायर युक्त     *50 ग्राम* उबाला हुआ पा...